वर्ण व्यवस्था (Varn vyavastha explained)

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वर्ण व्यवस्था (Varn vyavastha explained in hindi):

मानव समाज को संचालित करने के लिए, वर्ण व्यवस्था की स्थापना की गई थी| आज पूरा विश्व इसी व्यवस्था के अंतर्गत ही कार्य करता है किंतु, कुछ समाजों में इसका भ्रमित रूप भी प्रचलित है| आज भी वर्ण व्यवस्था को, समाज की कुरीतियों में गिना जाता है हालाँकि, ऐसी सोच का आधार सामाजिक दुराचार ही है जहाँ, कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए, वर्ण व्यवस्था का विकृत रूप प्रस्तुत किया और समाज में, भेदभाव को निरंतर बढ़ावा देते रहे ताकि, वो मनमाने ढंग से गरीबों का शोषण करते रहें लेकिन, उनकी मूर्खता से इतिहास की सभ्यता का तिरस्कार करना उचित नहीं होगा क्योंकि, कोई भी देश, कोई भी घर या कोई भी व्यक्ति, इस वर्ण व्यवस्था से अछूता नहीं है| क्या आपको धन नहीं चाहिए? क्या आपको सुरक्षा नहीं चाहिए? क्या आपको ज्ञान नहीं चाहिए और क्या अपने जीवन में, बिना किसी सुविधाओं के रह सकते हैं? क्या आपको सेवा नहीं चाहिए? अतः इन चारों में से, किसी एक के बिना भी जीवन संभव नहीं है इसलिए, प्राचीन काल से ही अलग अलग वर्णो में, इसका विभाजन किया गया था ताकि, मनुष्य अपनी क्षमता के अनुसार, अपने वर्ण का चुनाव कर सके और मनुष्य अपने जीवन को, किसी उद्देश्यपूर्ण कार्य में समर्पित कर सके किंतु, वर्ण व्यवस्था का महत्व, मनुष्य के अहंकार की भेंट चढ़ गया| चलिए कुछ प्रश्नों से इसे समझने का प्रयत्न करते हैं|

  1. वर्ण व्यवस्था क्या है?
  2. वर्ण व्यवस्था का महत्व क्या है?
  3. वर्ण व्यवस्था के कितने प्रकार हैं?
  4. ब्राम्हण कौन है?
  5. छत्रिय कौन है?
  6. वैश्य कौन है?
  7. शूद्र कौन है?
इतिहास की सभ्यता: history of civilization?
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क्या आज के समय में किसी भी मुद्दे पर, सबकी एक राय हो सकती है? अगर नहीं तो, इतिहास में वर्ण व्यवस्था को, समझने वाली सोच, विभिन्न क्यों नहीं रही होगी? वस्तुतः इतिहास में कई कहानियाँ उपलब्ध हैं जिनका, उदेश्य मनुष्य के अंधकार को मिटाना था लेकिन, उसके अहंकार ने उन कथाओं में, अपना स्वार्थ खोज निकाला और उसी के अनुसार, अपनी धारणा बना ली जिससे, वर्णव्यवस्था जैसे सम्माननीय कार्य, निंदनीय समझे जाने लगे| इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि, जो विषय मनुष्य की एकता का प्रतीक बनता, वही आज भेदभाव का मूल कारण बन चुका है| ख़ैर कुछ भी हो, हम आने वाली पीढ़ी को, जीवन का सही अर्थ समझाने के लिए प्रतिबद्ध हैं इसलिए, वर्ण व्यवस्था का उपयोगी व्याख्यान लेकर प्रस्तुत हुए हैं जिसे, निम्नलिखित बिंदुओं से समझने का प्रयत्न करते हैं|

वर्ण व्यवस्था क्या है?

वर्ण व्यवस्था क्या हैः What is the caste system?
Image by Sammy-Sander from Pixabay

मनुष्य के कर्मों का विभाजन ही वर्ण व्यवस्था है अर्थात मनुष्य अपने जीवन में जो भी कार्य करता है वह, केवल चार वर्णों के अंतर्गत ही आते हैं जिन्हें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कहा जाता है| यह एक उपयोगी व्यवस्था है, जिसका अनुगमन सभी समाज कर रहे हैं| अधिकतर लोग वर्ण व्यवस्था को जातिगत रूप से देखते हैं जो, निसंदेह हास्यास्पद है क्योंकि, केवल जाति से स्वयं को ब्राह्मण समझ लेना ही, ब्राह्मण नहीं बना देता बल्कि, ब्रह्म के मार्ग में रमण करने वाले मनुष्य को, ब्राह्मण कहते हैं जो, अपने स्वार्थ को भूलकर, दूसरों के जीवन में सत्य का दीप जलाता है वही, वास्तविक रूप से ब्राम्हण है| इसी प्रकार सभी वर्गों को, आगे आने वाले बिंदुओं में स्पष्टता से बताया गया है|

वर्ण व्यवस्था का महत्व क्या है?

वर्ण व्यवस्था का महत्व क्या हैः What is the importance of caste system?
Image by https://x.com/hathyogi31/status/1290321499035844608

मानव जीवन के लिए, ये चार बातें मुख्य रूप से आवश्यक हैं| पहला, उसे अपनी सुरक्षा चाहिए दूसरा, उसे सांसारिक ज्ञान चाहिए तीसरा, जीवन जीने के लिए धन चाहिए और चौथा, अपने जीवन की दैनिक आवश्यकताओं के लिए, सहायता चाहिए और ये चारों वर्ण व्यवस्था के ही अंग हैं| क्या आप इनमें से, किसी एक के बिना भी जी सकते हैं? अगर नहीं तो फिर, आपको भी इन चारों में से, न्यूनतम किसी एक वर्ग का उत्तरदायित्व तो लेना ही होगा तभी, समाज को सुचारु रूप से संचालित किया जा सकेगा| अब आप अपनी प्रतिभा के अनुसार, तय कर सकते हैं कि, आपके जीवन के लिए, किस दिशा में जाना सार्थक होगा|

वर्ण व्यवस्था के कितने प्रकार हैं?

वर्ण व्यवस्था के कितने प्रकार हैं: How many types of character system are there?
Image by vedicvishal.wordpress.com

उपरोक्त वर्गीकरण के अनुसार, वर्ण व्यवस्था को चार भागों में विभाजित किया गया है| ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र| समाज में सभी वर्णों का एक दूसरे से, परस्पर संबंध है| समाज किसी एक के बिना, आगे नहीं बढ़ सकता हालाँकि, इन चार वर्णों में, ब्राह्मण को श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि, जब तक समाज को आध्यात्मिक ज्ञान नहीं होगा तब तक, वह पशु ही कहलाएगा हालाँकि, ज्ञान के क्षेत्र में आने वाले सभी व्यक्तियों को, ब्राम्हण वर्ण में ही सम्मिलित किया जाता है जिसे, आगे समझाया गया है|

ब्राह्मण कौन है?

ब्राह्मण कौन हैः Who is a Brahmin?
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मानव जीवन के अंधकार को मिटाने वाला व्यक्ति, ब्राह्मण कहलाता है| ब्राह्मण हमेशा, ब्रह्मा के मार्ग में ही विचरण करते हैं हालाँकि, सामाजिक दृष्टिकोण से लोग इसे, जातिगत देखते हैं जो, निरर्थक है और कहीं न कहीं, इसी विचारधारा से, ब्राह्मण वर्ण का निरादर हुआ और इसका परिणाम यह हुआ कि, आज मनुष्य वैज्ञानिक रूप से तो, सर्वश्रेष्ठ विकास को प्राप्त कर चुका है किंतु, मनोविज्ञान विषय से, आज भी अनभिज्ञ है| ब्राह्मण प्राचीन काल से ही, मनुष्य को मुक्ति का मार्ग समझातें आ रहें हैं लेकिन, जैसे जैसे लोगों ने बिना ज्ञान के ही, अपने आपको ब्राम्हण कहना शुरू कर दिया तो, सामाजिक भेदभाव का जन्म हुआ क्योंकि, वास्तविक ब्राम्हण किसी को ऊँचा नीचा उल्लेखित नहीं कर सकता| ब्राह्मण, किसी व्यक्ति को शारीरिक तल पर नहीं देखता बल्कि, चेतना के तल पर शिक्षित करता है ताकि, मनुष्य इस सांसारिक मायाजाल के दुख से बच सके किंतु, आज के अधिकतर जातिगत ब्राम्हण, स्वयं सत्य का मार्ग भूल चुके हैं और सांसारिक विषय वस्तु में उलझ गए हैं जहाँ, प्राचीन काल के ब्राह्मण वेदों में पारंगत थे आज, बिरला ही कोई होगा जिसे, वेदों का सम्पूर्ण ज्ञान हो| मनुष्य के जीवन का रहस्य ही वेदों और उपनिषदों में छुपा हुआ है और वह बिना पढ़े नहीं जाना जा सकता हालाँकि, मुक्ति के मार्ग को बताने वाले कई दार्शनिक, अलग अलग देशों में भी हैं जिनके, लेखों में मुक्ति का ब्यौरा मिलता है| अतः ब्राह्मण वर्ण, मानव जाति के लिए, अति आवश्यक है|

क्षत्रिय कौन है?

क्षत्रिय कौन हैः Who is a Kshatriya?
Image by Wikimedia Commons

प्रत्येक वह व्यक्ति, क्षत्रिय कहलाता है जो, रक्षात्मक कार्यों में संलग्न हो अर्थात धर्म (मनुष्यता) की रक्षा के लिए, हथियार उठाने वाला प्रत्येक मनुष्य क्षत्रिय है| अब यहाँ बात आती है कि, क्या क्षत्रिय हिंसात्मक प्रवृत्ति के होते हैं? तो, इसका उत्तर है जी नहीं, केवल हथियार उठाने से कोई क्षत्रिय नहीं बनता बल्कि, मनुष्य धर्म को जानने वाला योद्धा ही, वास्तविक क्षत्रिय होता है| यह एक ऐसा वर्ण हैं जो, मानवीय समाज में अत्यधिक लोकप्रिय होता है| जैसे किसी देश की आर्मी, पुलिस या अन्य बचाव दल, क्षत्रिय वर्ण में आते हैं लेकिन, यदि वह आक्रामक होकर विस्तारवादी नीति का पालन करते हैं तो, उनका क्षत्रिय धर्म नष्ट हो जाता है| क्षत्रिय केवल बचाव के लिए लड़ते हैं न कि, अहं के वशीभूत होकर किसी पर अधिकार जताने के लिए, यदि एक माँ अपने बेटे की रक्षा के लिए, हथियार उठाती है तो, उसे भी क्षत्रिय ही कहा जाएगा किंतु, यदि उसका बेटा अत्याचारी है तो, उसका बचाव करना, क्षत्रियत्व नहीं होगा| अतः कोई भी मनुष्य, अपने जीवन के किसी भी मोड़ में, अधर्म के विरुद्ध हथियार उठाता है तो, यही गुण क्षत्रियत्व कहलाता है| इसके विपरीत अधर्म के साथ खड़े होने वाले योद्धा, हिंसक श्रेणी में गिने जाते हैं और उनके गुणों को हिंसात्मक कहा जाता है| क्षत्रिय मनुष्य की श्रेष्टता की पहचान है जो, मनुष्य अपने शरीर की चिंता न करते हुए, परहित में अपना समर्पण करता है वही, वास्तव में क्षत्रिय कहलाने योग्य है|

वैश्य कौन है?

वैश्य कौन हैः who is vaishya?
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आर्थिक कार्यों के संचालन के लिए, वैश्य वर्ण उत्तरदायी होता है| मानव समाज में लोगों का जीवन स्तर, अच्छा करने के लिए, धन की आवश्यकता होती है| जिसके लिए नीतिगत व्यापारिक समूहों का गठन किया जाता है| धन अर्जित करने के लिए किये गये कार्य को, वैश्य श्रेणी में रखा गया है| यदि कोई व्यक्ति धन के लिए, कार्य कर रहा है तो, वह वैश्य वर्ण का कहलाएगा| हालाँकि, लोग इसे जातिसूचक समझते हैं जिसे, अज्ञानता का परिचायक कहना उचित होगा| यदि कोई ब्राह्मण जाति का व्यक्ति भी, व्यापारिक कार्यों में संलग्न है तो, उसे भी वैश्य कहा जाएगा| एक व्यक्ति कई वर्णों में, अपनी भूमिका निभा सकता है| इसे तर्कसंगत समझा जाएगा|

शूद्र कौन है?

शूद्र कौन हैः who is shudra?
Image by Phuong Nguyen from Pixabay

मानवीय समाज में सहायक व्यक्तित्व को, शूद्र कहते हैं| शूद्र वह मनुष्य होता है जो, बिना किसी स्वार्थ के, सेवा भाव से सहायता प्रदान करता है हालाँकि, इसके बदले उसे कुछ न कुछ प्राप्त होता रहता है लेकिन, वह आवश्यकता से अधिक की उम्मीद नहीं रखता| शूद्रता एक विशाल हृदयी मनुष्य की पहचान है जो, बिना किसी भेदभाव के लोगों की पीड़ा समझता है और सदा सहायता के लिए, तत्पर रहता है उसे ही, वास्तविक शूद्र वर्ण का समझा जाएगा| एक महिला बिना किसी चाहत के, अपने परिवार की सहायता करती है तो, वह शूद्र वर्ण की कहलाएगी| एक ब्राह्मण जाति का व्यक्ति, चिकित्सा का कार्य करता है तो, वह भी शूद्र ही होगा| अतः करुणामयी कार्यों को करने वाले लोग, शूद्र की संज्ञा में गिने जाते हैं हालाँकि, संवैधानिक रूप से जातियों के आधार पर, सभी वर्गों का विभाजन किया गया है जो, भेदभाव का मुख्य कारण रहा है| यदि मनुष्य वास्तविक वर्ण व्यवस्था के भाव को समझ ले तो, आपसी कलह पर अंकुश लगाया जा सकता है|

वर्ण व्यवस्था जातिगत व्यवस्था नहीं बल्कि, मानवीय गुणों का विभाजन है जिसे, चार वर्गों में वर्गीकृत किया गया था| उसी के आधार पर, अपने कार्यों का निर्धारण करने से, व्यक्ति संबंधित वर्ण को प्राप्त कर सकता है| यह मनुष्य का अभिन्न अंग है| मानव जीवन को सुगम बनाने के लिए, इन चारों वर्णों का होना अनिवार्य है किंतु, जब इतिहास की महान् व्यवस्था को राजनीतिक रूप से उपयोग किया जाने लगे तो, उनका महत्व धूमिल होने लगता है|

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