विचारधारा (vichardhara explained in hindi):
विचारधारा, जिसे मानव दिशा निर्देशक के रूप में से, व्यक्त किया जाता है| मानव स्वार्थ संबंधित विचारधारा, प्रत्यक्ष तौर पर उसे प्रभावित करती है| अगर साधारण शब्दों में समझें तो, कोई भी मनुष्य अपने विचारों के प्रभावशाली वेग से ही चलता है और उन्हीं, छोटे छोटे विचारों का संयुक्त समूह, सांसारिक विचारधारा कहलाती है| समय, स्थिति और संयोग से मानव विचारधारा रूपांतरित होती है| इस लेख में हम मानव समाज की मुख्यधारा में सम्मिलित, विचारधाराओं की चर्चा करेंगे| जिनके आधार पर, विश्वस्तरीय राजनीति सक्रियता से गतिशील है| आज सभी देशों में सत्ताधारी, पूंजीपतियों और आम जनता के बीच तालमेल बनाकर रख पाना संभव नहीं है| सांसारिक लोगों की सोच, विभिन्न दिशाओं की ओर बढ़ रही है जिससे, पूरी मानव जाति विनाश के निकट पहुँच चुकी है| क्या, कोई भी विचारधारा सभी पैमानों पर स्वीकार्य हो सकती हैं या सभी मनुष्यों को मानवता का पाठ पढ़ाकर एकता की नींव रखी जा सकी है? तो, इसका उत्तर है| जी हाँ लेकिन, कैसे? आइए कुछ प्रश्नों के माध्यम से इसे समझने का प्रयत्न करते हैं|
- विचारधारा क्या है?
- विचारधारा का महत्व क्या है?
- विचारधाराओं का वर्गीकरण
- मनुवादी विचारधारा
- अम्बेडकरवादी विचारधारा
- समाजवादी विचारधारा
- साम्यवादी विचारधारा
- गांधीवादी विचारधारा
- फाँसीवादी विचारधारा
- नाज़ीवादी विचारधारा
- नारीवाद विचारधारा
- दक्षिणपंथी विचारधारा
- वामपंथी विचारधारा
- उपभोक्तावादी विचारधारा

विचारधाराओं का निर्माण सामाजिक, राजनीतिक या व्यक्तिगत आधार पर भी होता है| प्राचीन काल से ही, विभिन्न विचारधाराएँ मानव समाज को संचालित करती चली आ रहीं हैं| जैसे मनुवाद, समाजवाद, नारीवाद, गांधीवाद, फाँसीवाद, अम्बेडकरवाद, हिटलर साही इत्यादि| हालांकि कुछ विचारधाराओं के नाम, विरोधियों द्वारा दिए जाते हैं| इनका उपयोग एक गाली की भांति किया जाता है| जैसे, हिटलर साही या फाँसीवादी विचारधारा| वस्तुतः वर्षों से प्रताड़ित लोग, जिनके ऊपर अत्याचार हुए हो, उन्हें याद रखने के लिए भी, ऐसी विचारधाराओं का नामकरण किया जाता है| हालाँकि, विचारधाराएँ मानव हितों की रक्षा के लिए बनायी जाती हैं लेकिन, समस्या तो वहाँ आती है जब, विचारधारा दूसरे के विरोध में खड़ी हों| आज विश्व में, राजनीति को देखकर समझ पाना कठिन है कि, कौन सा दल, किस विचारधारा को प्राथमिकता दे रहा है? समय और परिस्थितियों के अनुसार, सभी अपना पक्ष बदलते रहते हैं किंतु, आम जनता का जीवन संशय में रहता है कि, दुनिया में कौन सा पक्ष है जो, ऊपर वाले के अनुसार, सही दिशा में कार्यरत है अर्थात कौन सी, ऐसी विचारधाराएँ है जिन्हें, कुछ बदलाव के साथ या यथारूप अपनाया जा सकता है| यदि राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो, विचारधाराओं को दो पक्षों में विभाजित किया जा सकता है| वामपंथ और दक्षिणपंथ, जिन्हें हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से जानेंगे|
विचारधारा क्या है?

मानवीय विचारों के श्रेष्ठतम समूह को, विचारधारा कहते हैं अर्थात प्रभावशाली व्यक्तियों या उनके द्वारा किए गए कार्य, जिनका मानव जीवन पर, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा उसे, विचारधारा के रूप में व्यक्त किया जाता है| जैसे महात्मा गांधी के द्वारा किए गए कार्यों ने, गांधीवादी विचारधारा को जन्म दिया और हिटलर की हिंसात्मक कार्यवाही को, हिटलर शाही कहा गया| वस्तुतः मानव समाज में सभी तरह की विचारधाराओं को मानने वाले लोग होते हैं| जिनके बीच तालमेल बनाए रखना तभी, संभव हो पाता है जब, कोई पक्ष अपनी विचारधारा से समझौता करे| वस्तुतः प्रत्येक विचारधारा, किसी न किसी के विरोध में ही स्थापित की गई है| अतः संपूर्ण सद्भाव बनाए रखना चुनौतीपूर्ण कार्य है|
विचारधारा का महत्व क्या है?

एक मनुष्य के जीवन में, किसी विचारधारा का महत्व तभी है जब, उसके प्रभाव से उसका जीवनस्तर, उच्चतम सम्भावनाओं की ओर गतिशील हो| सबसे प्राचीनतम विचारधारा, मनुवादी मानी जाती है जहाँ, राजा महाराजाओं के शासन के अंतर्गत, वर्णव्यवस्था से समाज का संचालन होता था| इसके पश्चात कई विचारधाराएँ आयी और काल के गाल में समा गईं किंतु, आज भी कुछ प्रभावी विचारधाराएँ हैं जो, चरम पर विश्वस्तरीय प्रभाव डालती हैं| किसी भी विचारधारा का उद्देश्य, उनसे संबंधित लोगों के जीवन को सहज बनाना होता है किंतु, जब वही विचारधारा किसी और के लिए, विध्वंसक होने लगे तो, निःसंदेह उसे महत्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता| ऐतिहासिक घटनाओं से देखा गया है कि, जिस भी विचारधारा को मानने वाले लोगों की अधिकता समाज में होती है, वह शोषक बन जाते हैं इसीलिए, एक ज्ञानी मनुष्य को किसी भी तरह की विचारधाराओं से प्रभावित नहीं होना चाहिए| वस्तुतः कोई भी विचारधारा, मनुष्य की सोचने की क्षमता छीन लेती है| विचारधाराओं का मानव मस्तिष्क पर गंभीर प्रभाव पड़ता है जिससे, कई बार मनुष्य हिंसात्मक मार्ग भी अपना लेता है| आपको बता दें कि, केवल मारपीट या हत्या करना हिंसा नहीं कहलाती| अंधे मोह को भी हिंसात्मक गुण कहा गया है और सत्य के साथ चलना ही, अहिंसा है| फिर चाहे उस मार्ग पर, किसी का वध ही क्यों न करना पड़े| जैसे राम के द्वारा, रावण की हत्या हिंसा नहीं कही जाएगी| अपने नागरिकों की रक्षा के लिए, कोई भी देश जब हथियार उठाएगा उसे, हिंसा नहीं कहा जाएगा किंतु, हाँ जब कोई, दूसरे देश का शोषण करने के लिए आगे बढ़ता है तो, उसके द्वारा किया गया प्रेम पूर्वक व्यवहार भी हिंसा ही है| अपनी रक्षा करना, प्रत्येक मनुष्य का धर्म है लेकिन, दूसरों की रक्षा परमार्थ मार्गी ही करते हैं| वही सुख दुख से ऊपर, उठकर आनंद लोक में वास करते हैं जिन्हें ,हिंसात्मक कहना मूर्खतापूर्ण होगा इसलिए, समय और स्थान के अनुसार, उचित कर्म का चुनाव ही, जीवन जीने का श्रेष्ठतम मार्ग है जो, सभी विचारधाराओं से परे है|
विचारधाराओं का वर्गीकरण?

मनुष्य एक अज्ञानी प्राणी है जिसे, शिक्षित करने के लिए, ज्ञान की आवश्यकता होती है लेकिन, जब उसी ज्ञान का उपयोग, निजी स्वार्थ को केंद्रित रख कर किया जाने लगे तो, अन्यायपूर्ण परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है और तब, समाज के बीच, कोई ऐसा व्यक्ति खड़ा होता है जो, अन्याय के विरुद्ध संघर्ष में अपना जीवन समर्पित कर देता है परिणामस्वरूप ऐसे व्यक्तियों के जीवन को, विचारधारा के रूप में अपनाया जाता है| आज पूरे विश्व में, कई विचारधाराएँ सक्रिय हैं जिन्हें, समझना अनिवार्य है ताकि, लोगों को अपने पक्ष की जानकारी हो सके|
मनुवादी विचारधाराः

मनुवाद सबसे प्राचीनतम विचारधारा है जहाँ, वर्ण व्यवस्था के द्वारा, सामाजिक संचालन होता था| ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इस व्यवस्था के प्रमुख अंग है हालाँकि, मनुवादी विचारधारा में, कुछ ऐसे विचार भी है जो, विवादित माने गए हैं| इसी कारण इस व्यवस्था का प्रचलन नहीं हो सका| मनुवादी विचारधारा को मानने वाले लोगों का दावा है कि, यह विचारधारा मानव जीवन के लिए अतिआवश्यक है| संसार में व्यवस्था का होना अनिवार्य होता है| अतः मनुष्य के ज्ञान के अनुसार, उसके कार्यों का विभाजन किया जाना चाहिए लेकिन, मनुवादी विचारधारा से असहमति रखने वाले लोगों का मानना है कि, मानव समाज में किसी भी तरह के विभाजन की कोई जगह नहीं| लोगों की इच्छा के अनुसार उन्हें, अपने कर्म के चुनाव का अधिकार होना चाहिए न कि, उनके सामाजिक वर्णों के आधार पर|
अम्बेडकरवादी विचारधारा:

यह विचारधारा, प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत, दलितों और पिछड़ों को विशेष अधिकार दिए जाने की माँग करती है| अम्बेडकरवादी विचारधारा का मानना है कि, इतिहास में उनके साथ जो भी जातिगत अत्याचार हुए थे, उनके प्रभाव से, वह पिछड़ गए हैं अतः उन्हें, मुख्यधारा में लाने के लिए, विशेष तौर पर सहायता प्रदान की जानी चाहिए| इस विचारधारा का जन्म, भीमराव अंबेडकर के नाम पर हुआ| उन्हें “बाबा साहब” के नाम से भी संबोधित किया जाता है| बाबा साहब द्वारा, दलितों और पिछड़ों हेतु, किए गए संघर्ष को, अम्बेडकरवादी विचारधारा के रूप में व्यक्त किया गया है| जातिगत वर्णव्यवस्था के आधार पर, हो रहे भेदभाव से, मुक्ति दिलाने के लिए, बाबा साहब ने प्रखर रूप से आवाज उठायी जो, धीरे धीरे एक क्रांति में परिवर्तित हुई| आज भारत देश, बाबा साहब के द्वारा बनाए गए संविधान के अनुसार ही, लोकतांत्रिक व्यवस्था का पालन कर रहा है| दलितों और पिछड़ों का मानना है कि, बाबा साहब उनके लिए भगवान् है जिन्होंने, उन्हें जातिगत भेदभाव के क्रूर आतंक से, मुक्ति दिलायी| आज कई लोग, अंबेडकरवादी विचारधारा का समर्थन करते हैं|
समाजवादी विचारधाराः

समाजवादी विचारधारा, जातिगत भेदभाव के विरुद्ध स्थापित की गई थी| यहाँ, व्यक्तिगत स्वतंत्रता को महत्व नहीं दिया जाता| इसका अनुगमन करने वाले व्यक्तियों का मानना है कि, सभी मनुष्यों को अपने अपने समाज के, नियमों के अनुसार रहना चाहिए और सबको राज्य में अधिकार मिलना चाहिए| फिर चाहे राजनीति हो या प्राकृतिक संसाधन, सभी को भेदभाव रहित वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए| लोगों को उनकी क्षमता के अनुसार, आर्थिक लाभ लेने की स्वतंत्रता हो हालाँकि, यह विचारधारा आर्थिक असमानता के साथ खड़ी है जो, पूंजीपतियों के समर्थन में भी दिखाई देते हैं| समाजवादी विचारधारा में, न्यायिक व्यवस्था के अंतर्गत, अपने अधिकारों की माँग रखने पर दबाव दिया गया है| समाजवाद, जाति व्यवस्था का धुर विरोधी है| इसके अनुसार, सभी जाति या समुदाय एक समान हैं और यह लोकतांत्रिक व्यवस्था पर विश्वास रखते हैं| लोकतंत्र अर्थात जिसके अंतर्गत, सभी नागरिकों को मताधिकार होता है ताकि, सार्वजनिक सहमति से ही, सत्ता संचालित की जा सके| सामाजिक भेदभाव का विरोध, विज्ञान की बढ़ती शिक्षा का परिणाम है जिसे, मानवता के हित मे गिना जाएगा|
साम्यवादी विचारधारा:

साम्यवादी विचारधारा का जन्मदाता, कार्ल मार्क्स को माना जाता है| यह व्यवस्था, आर्थिक समानता पर बल देती है| साम्यवादी विचारधारा का राजतंत्र पर कोई विश्वास नहीं बल्कि, इस विचारधारा को मानने वाले लोग, सत्ता को छीनने में विश्वास रखते हैं| साम्यवाद में मजदूर वर्ग को, एक होकर सत्ता और पूंजीपतियों के विरुद्ध, आंदोलन या युद्ध तक करने को, प्रेरित किया गया है हालाँकि, साम्यवाद लोकतंत्र पर विश्वास नहीं रखता| इनका मानना है कि, जो व्यक्ति जिस योग्य है उसे, उसी अनुसार कार्य दिया जाना चाहिए| साम्यवाद ने समाज को, आर्थिक आधार पर दो वर्गों में बाँटा है| इनका विश्वास है कि, पूरे संसाधनों पर केवल श्रमिकों का अधिकार होना चाहिए अर्थात इस संसार में, कोई संपन्न ही नहीं बचना चाहिए| कोई व्यक्ति चाहे, कितनी भी दौलत प्राप्त करे, उसे वापस करना ही होगा और उसे अपनी आवश्यकता के अनुसार ही, धन एकत्रित करने की अनुमति दी जाएगी हालाँकि, प्रकृति के संसाधनों के अनुसार, यह विचारधारा मनुष्यों को एक बराबर रखने पर बल देती है| साम्यवाद धर्म, जाति या संप्रदाय नहीं मानता| उनके अनुसार पृथ्वी पर, सभी व्यक्तियों का बराबरी का अधिकार है| इन्होंने, धार्मिक विचारधाराओं को गरीबों के लिए घातक माना है जिन्हें, रहने का कोई अधिकार नहीं| अतः साम्यवाद, कट्टरता को भी बढ़ावा देता है| इस विचारधारा का अनुगमन करने वाले लोग, पूँजीपतियों और सत्ताधारियों के विरुद्ध, क्रान्ति करने से भी पीछे नहीं हटते|
गांधीवादी विचारधाराः

भारत देश में रहने वाले, मोहनदास करमचंद गांधी द्वारा, किए गए कार्यों को, अहिंसा से जोड़कर देखा जाता है| गांधी का मानना था कि, अपना अधिकार माँगने के लिए, हथियार नहीं उठाने चाहिए बल्कि, शांतिप्रिय मार्ग ही अपनाना चाहिए| फिर चाहे अपनी जान ही क्यों न चली जाए| गांधीवादी विचारधारा, कई देशों में लोकप्रिय मानी गई लेकिन, बिना आत्मज्ञान के, सार्वजनिक तौर पर अहिंसा का मार्ग अपनाया जाना असंभव है| गांधीवादी विचारधारा, सभी संप्रदायों को एक समान रखने पर बल देती है| गांधीवाद प्रेम और सदभाव को, सर्वाधिक महत्व देता है| हालाँकि, कई लोग गांधीवादी विचारधारा से सहमत नहीं हैं| उनका मानना है कि, अपनी रक्षा के लिए, हथियार उठाना हिंसा नहीं कहलाती बल्कि, आत्म रक्षा ही मनुष्य का कर्तव्य है| गांधीवाद व्यक्ति विशेष की स्वतंत्रता पर केंद्रित है जहाँ, लोगों को अपनी इच्छा के अनुसार, किसी भी धर्म संप्रदाय को मानने या न मानने की अनुमति दी जाती है| गांधीवाद, राजनैतिक व्यवस्था में सभी की समानता को न्याय संगत मानता है|
फाँसीवादी विचारधाराः

फासीवादी विचारधारा का जन्म, इटली में मुसोलिनी के द्वारा, प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात हुआ था| फाँसीवाद के अंतर्गत, राज्यों को केंद्र में रखकर, सत्ता संचालित की जाती है| यहाँ व्यक्ति पूजा को, विशेष महत्व दिया जाता अर्थात जो व्यक्ति, सत्ता केंद्रित होगा वही, यहाँ का भगवान माना जाएगा| इनका मत लोकतांत्रिक व्यवस्था के विरुद्ध है| व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए, फाँसीवाद विचारधारा घातक मानी गई है जहाँ, किसी भी व्यक्ति को अपना जीवन, अपने अनुसार जीने का अधिकार नहीं होता| फासीवाद किसी भी, विरोधी दल को अपने सत्ता के संरक्षण में नहीं रहने देता| इस विचारधारा के अंतर्गत रहने वाले व्यक्तियों को, एक समान कठोर नियमों के साथ, सत्ताधारी शीर्ष नेतृत्व का पालन करना होता है|
नाज़ीवाद विचारधाराः

नाज़ीवाद का उदय, जर्मनी में हिटलर के द्वारा किया गया| नाज़ीवाद को भी फाँसीवाद की ही भांति, उग्रराष्ट्रवाद माना जाता है| इसे तानाशाही का चरम बिंदु माना गया| हिटलर ने अपने शासन काल में, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, बड़ी संख्या में हिंसात्मक नरसंहार किया| नाज़ीवाद सत्ता, शीर्ष व्यक्ति को, विशेष महत्व देता है अर्थात एक व्यक्ति के हाथ में, सत्ता का केंद्रीकरण किया जाता है| जिसका उद्देश्य, राज्य की सुरक्षा के लिए, तानाशाह शासन चलाना है| हालाँकि, नाज़ीवाद फासीवाद की तुलना में, व्यक्तियों का मत जानने की छूट देता है जिससे, सुधार की उम्मीद बनी रहती है|
नारीवाद विचारधाराः

नारी अधिकारों के लिए, लड़ने वाली सोच को, नारीवाद विचारधारा से प्रदर्शित किया जाता है| नारीवाद के अंतर्गत, महिलाओं को पुरुषों के द्वारा शोषित माना गया है| स्त्री और पुरुष के मध्य, लगभग विश्व के सभी देशों में भेदभाव चलता है| जिसके कारण, राज्य की सत्ता से लेकर, पारिवारिक प्रतिष्ठा तक, पुरुषों का ही बोलबाला है| नारीवाद का मानना है कि, महिलाओं को अपने अधिकार के लिए, स्वयं भी खड़े होना होगा| आधुनिक युग में, नारीवाद विचारधारा का समर्थन करने वाले लोगों की संख्या, निरंतर बढ़ती जा रही है हालाँकि, पहले शारीरिक बल के अनुसार, स्त्रियों को दुर्बल साबित किया जा सकता था लेकिन, विज्ञान ने यह भेद समाप्त कर दिए हैं| आज एक महिला, विज्ञान की सहायता से, पुरुषों से भी श्रेष्ठ कार्य कर सकती है तो भला, वह पीछे कैसे रह सकती है? यही विचार नारीवाद को बल देता है|
दक्षिणपंथी विचारधाराः

दक्षिणपंथ मत, धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है| इनका मानना है कि, धर्म और संस्कृति के बिना राज्य नहीं चलाया जा सकता| यह राजशाही व्यवस्था को संचालित करने पर बल देते हैं| इनके अनुसार, प्राचीन दार्शनिक दृष्टिकोण महत्वपूर्ण होता है जो, मानवीय इतिहास की प्राचीनतम धरोहर भी है| दक्षिणपंथी विचार, सामाजिक श्रेष्टता अर्थात धर्म संप्रदाय के अनुसार, ऊँची नीची जाति व्यवस्था का समर्थन करते हैं| यदि सरल शब्दों में समझा जाए तो, किसी भी मनुष्य का अपने धर्म, जाति, संप्रदाय पर अटूट विश्वास ही, दक्षिणपंथी विचारधारा का आधार है| यह पंथ, जन्म के अनुसार, मानवीय गुणों को महत्व देता है| अतः जिसका इतिहास पूजनीय हैं वही, श्रेष्ठ माना जाएगा| दक्षिणपंथ रंगभेद और जाति भेद को बढ़ावा देता है हालाँकि, इस विचारधारा का समर्थन करने वाले लोग, जातिगत भेदभाव का दावा नहीं करते| दक्षिणपंथी विचारधारा, चरम पर हिंसात्मक होती है| दक्षिण पंथ को, मानवीय अहंकार का प्रतिबिम्ब समझा जा सकता है जहाँ, कुछ लोग दूसरों के प्रति हीन भावना रखते हैं और केवल अपने संप्रदाय को, विशेष स्थान देते हैं जो, सामूहिक कलह का जनक है| आज अधिकतर देशों में दक्षिणपंथी विचारधारा अपनायी जाती है|
वामपंथी विचारधाराः

यह विचारधारा, दक्षिणपंथ के विपरीत स्थापित की गई थी| वामपंत व्यक्तिगत स्वतंत्रता को महत्व देता है| इनके अनुसार, इस पृथ्वी पर किसी धर्म, जाति, संप्रदाय के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए| वामपंथी विचारधारा का जन्म, पूंजीवादी और राजतंत्र व्यवस्था के विरुद्ध हुआ है| इनका मानना है कि, प्राकृतिक संसाधनों पर, सभी मनुष्यों का बराबर अधिकार होना चाहिए| फिर चाहे कोई योग्य हो या न हो, उसे अधिकार मिलना ही चाहिए| सत्ता हो या व्यवसाय, सभी में गरीबों और वंचितों का दब दबा होना चाहिए| हालाँकि, वामपंथ भी अपने चरम पर, घोर हिंसात्मक प्रतीत होता है| वामपंथी मत का समर्थन करने वाले लोग, किसी भी तरह की ऐतिहासिक व्यवस्था पर विश्वास नहीं रखते| इनका मुख्य एजेंडा, बदलाव का है अर्थात कोई भी मनुष्य, व्यक्तिगत तौर पर अपने जीवन का चुनाव कर सकता है| वामपंत, विज्ञान को ही श्रेष्ठ मानता है| किसी भी तरह के दार्शनिक विचारों का, वामपंथियों द्वारा समर्थन नहीं किया जाता| वामपंथ, भोगवाद को भी जन्म देता है जिनके अनुसार, इस पृथ्वी पर केवल मनुष्यों का ही अधिकार होना चाहिए अर्थात् मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ है| वर्षों से हो रहे दुर्व्यवहार से प्रभावित व्यक्ति, वामपंथी विचारधारा का समर्थन करते हैं| यह मत उन्हें अपने अधिकारों के लिए, लड़ने का प्रोत्साहन देता है हालाँकि, दक्षिणपंथियों द्वारा वामपंत को धर्म और संस्कृति का शत्रु माना है|
उपभोक्तावादी विचारधाराः

यह विचारधारा, सभी से विभिन्न शरीर केंद्रित होती है जहाँ, मनुष्य अपनी इंद्रियों के अनुसार, ऐच्छिक कार्यों के लिए, स्वतंत्र होता है| उपभोक्तावादी लोग, भौतिक विषय वस्तुओं के उपभोग को ही, जीवन समझते हैं| इनके अनुसार, वस्तुओं को इकट्ठा करने से, सुख की प्राप्ति होती है| ये न केवल पृथ्वी बल्कि, जहाँ तक मनुष्य की पहुँच है, उसे उपभोग योग्य मानते हैं| इस विचारधारा को मानने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है| आज सोशल मीडिया, भोगवाद की संस्कृति को बढ़ावा दे रहा है जहाँ, मानवीय आवश्यकताओं के साथ साथ, सुख सुविधाओं की वस्तुओं को भी, अधिक महत्व दिया जाता है बुद्धिजीवियों का मानना है कि, उपभोक्तावादी नीति पृथ्वी के विनाश का कारण बन सकती है|
उपरोक्त बतायी गई विचारधाराओं के अतिरिक्त और भी बहुत सी विचारधाराएँ हैं जैसे- व्यक्तिवाद, उदारवाद, उपयोगितावाद इत्यादि जिनका, कई लोगों में गहरा प्रभाव है| विचारधारा समय के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं| कोई भी विचारधारा जो, मानवता के विरुद्ध, हिंसात्मक कृत्य को बढ़ावा दें उसे, त्यागना ही मनुष्यों के लिए, लाभकारी होगा| मनुष्य एक प्रगतिशील जीव है जो, सुख सुविधाओं की ओर बढ़ना चाहता है लेकिन, किस कीमत पर? विभिन्न मतों का हस्तक्षेप, किसी एक व्यवस्था को स्थिरता से नहीं चलने देता है जिससे, सामाजिक सद्भाव बिगड़ जाता है| आज आम जनता, राजनेताओं से शांति की उम्मीद रखती है किंतु, चुनाव आते ही, जनता के बीच विवादित बयानबाजी का युद्ध छिड़ जाता है जिससे, मानवीय समाज की शांति भंग हो जाती है| कई बार स्थितियां, उपद्रव में भी बदल जाती है जिससे, जन धन की हानि होती है| किसी भी विचारधारा को अपनाने से पहले, अपने अहंकार से मुक्त होना चाहिए अर्थात् अपने जन्म से जुड़ी हुई पहचान को हटाते हुए ही, अपने वास्तविक स्वरूप को देखा जा सकता है| जब, किसी भी विचारधारा का चश्मा नहीं होता तो, सत्य देखने में समस्या नहीं होती| कई बार आप सोचते होंगे कि, क्या विचारधारा होना आवश्यक है? तो, आपको बता दें कि, ज्ञानी मनुष्य को विचारधारा मुक्त होना चाहिए किन्तु, संसारियों को नियन्त्रित रखने हेतु विचारधाराएँ सहायक होती हैं| कोई भी धारणा, व्यक्ति के विवेक को निगल लेती है अतः समय काल परिस्थिति के अनुसार, सत्य का साथ देना ही, उत्तम विचार होगा चूँकि, संसारी धर्म, कर्म और अर्थ तक ही सीमित है अतः उन्हें मोक्ष तक लाने हेतु आत्मावलोकन मार्ग ही, उपयोगी विचारधारा प्रदायक होगा|
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