मनुष्य (manushya explained)

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मनुष्य (manushya explained in hindi):

पंचभूतों से सृजित मानवीय देह रचना को मनुष्य कहते हैं| साधारण अर्थों में मनुष्य एक मशीन है जो, मानसिक जानकारियों के आधार पर चलायमान है| किसी भी मनुष्य को विचारों से प्रभावित किया जा सकता है| साधारण मनुष्यों के सभी गुण एक समान होते हैं| जैसे वह केवल स्वयं से जुड़े हुए, व्यक्तियों को ही महत्व देते हैं| निजी वस्तुओं के नष्ट होने पर ही, शोक व्यक्त करते हैं| उन्हें कुछ प्राप्त करने की आशा सदैव बनी रहती है| किसी को कुछ देते हैं तो, अधिक की कल्पना होती है| मन में सदा असंतुष्टि का भाव पनपता रहता है| यही मानवीय प्रकृति है| मनुष्य एक ऐसा जीव है जो, अपने संपूर्ण जीवनकाल में सबसे अधिक दुख भोगता है| आपने अनुभव किया होगा, हम जिसे अपनी ख़ुशी समझते थे, वही हमारा दुख बन गया| हमने जिसकी आशा की, उसके प्राप्त होते ही, उसका महत्व समाप्त हो गया| क्यों पहले जो आपको पसंद था, उससे आज घृणा हो रही है? इतना बुद्धिमान होते हुए भी, यदि मनुष्य आज दो रोटी लिए तरस रहा है तो, क्या मतलब इतने विज्ञान का? यदि आज बड़े से बड़ा मनोरंजन, मनुष्य के दुखों को कम नहीं कर पा रहा, सुंदर से सुंदर जगह घूमने के बाद भी, आंतरिक पीड़ा बनी हुई है| क्या कोई ऐसा रहस्य है, जिसे हम नहीं जानते और इसी का परिणाम है कि, आज कितना भी प्रयास करें, हम सफल होकर भी आनंद अनुभव नहीं कर पा रहे? वस्तुतः मनुष्य भटक चुका है जो, अपनी शारीरिक परिस्थिति के अनुसार, अपने जीवन की रचना कर रहा है और यहीं से, उसके दुखों का आरम्भ होता है| इसे समझने के लिए, हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|

  1. मनुष्य क्या होता है?
  2. मनुष्य का जन्म क्यों हुआ?
  3. मनुष्य का धर्म क्या है?
  4. मनुष्य के गुण और अवगुण क्या है?
  5. मनुष्य का स्वभाव क्या है?
  6. मनुष्य क्या क्या कर सकता है?
  7. मनुष्य की मृत्यु क्यों होती है?
प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ जीव nature's best creature
Image by PublicDomainPictures from Pixabay

वैसे तो, मनुष्य अपने आपको प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ जीव समझता है लेकिन, वास्तव में वह सबसे दुर्बल है| किसी भी जानवर के बच्चे को, चलने फिरने में कम से कम समय लगता है किंतु, मनुष्य कई महीने पैरों पर खड़े होने में ही लगा देता है| यह कहना सही होगा कि, बिना किसी देखभाल के, मनुष्य कुछ दिन भी जीवित नहीं रह सकता| हालांकि, शरीर को सुरक्षित रखना और उसे आनंदित रखना, दोनों ही विभिन्न बातें हैं| आज मनुष्य की सुरक्षात्मक समस्या कम है क्योंकि, उसके लिए बहुत सी संस्थाएं निरंतर प्रयासरत हैं लेकिन, मानसिक समस्याएं अधिक है| जहाँ मनुष्य दुखों से घिरा हुआ है| जिसे कम करने के लिए, वह संसार की सभी दिशाओं में भटक रहा है| जिसे भी वह, अपने लिए चुनता है, कुछ दिन बाद वही, बोझ लगने लगता है| इन सभी बातों का एक ही समाधान है जिसे, हम आत्मज्ञान कहते हैं| मनुष्य जब तक स्वयं को जान न ले, तब तक वह पशु योनी में भटकता रहता है जिससे, वह निरंतर दुख की प्राप्ति करता है| निम्नलिखित बिंदुओं से यह बात पूर्णता स्पष्ट होगी|

मनुष्य क्या होता है?

मनुष्य क्या होता हैः What is a human being?
Image by Pete Linforth from Pixabay

मन और बुद्धि से मिश्रित शरीर को, मनुष्य कहते हैं| मनुष्य का शरीर पंचतत्वों से बना है| पृथ्वी, आकाश, वायु, अग्नि और जल किंतु, इसके अतिरिक्त एक चेतना नामक तत्व भी होता है जिसे, मन का आधार समझा जाता है| जो कि, किसी भी व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करता है| जिस मनुष्य की चेतना सोई है, तो वह पशुओं की भांति जीवन जीता है| जिसमें वह अपनी कामवासना, भूख और मनोरंजन आदि विषयों पर अधिक रुचि लेता है लेकिन, यदि चेतना जाग चुकी है तो, जीवन में सत्य की प्राथमिकता होती है परिणामस्वरूप, चेतन व्यक्ति का जीवन सार्थकता की ओर अग्रसर होता है|

मनुष्य का जन्म क्यों हुआ?

मनुष्य का जन्म क्यों हुआः Why was man born?
Image by CrimsonMystique from Pixabay

पृथ्वी में सभी जीव, विकासशील प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न हुए हैं और उसी श्रेणी में, मनुष्य का भी विकास हुआ है| मनुष्य पृथ्वी का सबसे बुद्धिमान जीव है| जिसका जन्म पृथ्वी के संतुलन को बनाए रखने के उद्देश्य से हुआ है   किंतु, आज पृथ्वी की दुर्गति का सबसे बड़ा कारण, मनुष्य ही है| पृथ्वी के अन्य जानवर अपनी भूमिका भले ही निभा रहे हों लेकिन, मनुष्य केवल भोग करने में लगा हुआ है| वह जन्म से ही अहंकार धारण कर लेता है इसलिए, वह केवल अपने आस पास के वातावरण को, अनुकूलित रखने का प्रयास करता है| वह अपने सगे संबंधियों की सुरक्षा में जीवन समर्पित होता है| कुछ लोगों से लगाव रखने से, वह सृष्टि का स्वामी बनने का अधिकार खो बैठता है और जब उसके मोह से जुड़ी हुई, वस्तुओं का हनन होता है तो, वह दुखी हो जाता है और अपने दुख से बचने के लिए, नई नई पहचान धारण करता रहता है| कभी कार खरीद के, कार का मालिक बनता है तो, घर खरीद कर, मकान मालिक| वस्तुतः मनुष्य का कुछ बनना ही दुख है| मनुष्य के शरीर का जन्म भले ही होता हो, किंतु मानव वृत्ति, प्राचीन काल से ही सामान है जो, सभी जीवों में एक जैसी पाई जाती है| प्रत्येक जीव अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देता है ताकि, वह अधिक से अधिक जीवित रह सकें लेकिन, मनुष्य का उद्देश्य जीवित रहना नहीं, मुक्ति पाना है| स्वतंत्रता के लिए सारा जीवन भी लगा दिया जाए तो, व्यर्थ नहीं होता|

मनुष्य का धर्म क्या है?

मनुष्य का धर्म क्या हैः What is the religion of man?
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मनुष्य का धर्म वह नहीं होता जो, उसे लोगों से विभाजित कर दें बल्कि, धर्म तो वह पवित्रता है, जिसका अनुसरण करने वाले मनुष्य, परमार्थ मार्ग में अपना जीवन समर्पित कर देते हैं और सच्चे संघर्ष से, अपने जन्म को सार्थक बना पाते हैं| मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो, जन्म से ही बंधन प्राप्त कर लेता है और आगे चलकर वही, उसका दुख बनते हैं| इसलिए, प्रत्येक मनुष्य का पहला धर्म, अपने बंधनों से मुक्ति होता है हालाँकि, सभी बंधनों से एक अशक्ति आवश्यक होती है कि, यह रिश्ते या वस्तु मेरी रक्षा करेंगे जो, हास्यास्पद है क्योंकि, जो स्वयं नष्ट होने वाले हैं, वह भला आपकी सुरक्षा कैसे करेंगे| कभी आपको भी अनुभव हुआ होगा कि, यदि वह व्यक्ति आपके जीवन में आ जाए तो, आपकी समस्याओं का समाधान हो जाएगा या एक निश्चित राशि, आपको प्राप्त हो जाए तो, आप अपनी सभी चिंताओं से मुक्त हो जाएंगे किंतु, उनके प्राप्त होते ही, उनका आकर्षण मिट जाता है या तो, आप रूपांतरित हो जाते हैं या आपकी परिस्थितियां, परिवर्तित हो जाती हैं| मनुष्य को सांसारिक विषयों में, भ्रमित होने के बजाय, उनकी वास्तविकता पहचान लेना चाहिए तभी, मनुष्य अपने धर्म की यथार्थता को धारण कर सकेगा अन्यथा, वह संयोग से प्राप्त हुए, सामाजिक धर्म को अपना धर्म समझ कर, जीवन भर दुखी होता रहेगा|

मनुष्य के गुण और अवगुण क्या है?

मनुष्य के गुण और अवगुण क्या हैः What are the merits and demerits of man?
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मनुष्य का सबसे बड़ा गुण, विचारों की अभिव्यक्ति है| कोई भी पशु या पक्षी, ग्रहण की हुई जानकारियों को संरक्षित नहीं कर सकता लेकिन, मनुष्य आदि काल से अपने अर्जित ज्ञान को, लेख के माध्यम से सुरक्षित रखता आ रहा है और उन्हीं जानकारियों की वजह से, जन्म लेने वाले बच्चे को, प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त होती है और यदि मनुष्य के अवगुणों की बात की जाए तो, वह सबसे भ्रमित जीव माना जाता है जो, कभी भी अपनी दिशा से भटक सकता है| मनुष्य अपने अहंकार को बढ़ाने के लिए ही, अपने कर्म का चुनाव करता है| उदाहरण से समझते हैं, एक लड़का अधिक पैसे इसलिए कमाना चाहता है ताकि, वह अपने समाज में सम्मान प्राप्त कर सके| वहीं कोई ऐसा भी है जो, किसी शक्तिशाली पद की कामना रखता है ताकि, लोगों पर अपना दबदबा बनाया जा सके और ये सारी मनोकामनाएँ, पशु प्रवृत्ति से ही जन्म लेती है क्योंकि, श्रेष्ठ मनुष्य अपने ज्ञान से संचालित होता है न कि, अपने शारीरिक बल और तल से|

मनुष्य का स्वभाव क्या है?

मनुष्य का स्वभाव क्या हैः What is the nature of man?
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स्वाभाविक रूप से मनुष्य शांत प्रवृत्ति का होता है किंतु, वह जन्म लेते ही सांसारिक विषयों में भटक जाता है और मृत्योपरांत, मुक्ति की खोज जारी रहती है| वस्तुतः कोई भी सामान्य मनुष्य, अपने जीवन में सुख सुविधाओ के माध्यम से शांति प्राप्त करना चाहता है| आपने देखा होगा, वयस्क होते ही मनुष्य विपरीतलिंगी की ओर आकर्षित होने लगते हैं| यह आनंद की मनोकामना है जो, कदाचित् सांसारिक विषय वस्तुओं से प्राप्त नहीं की जा सकती लेकिन, मनुष्य अज्ञानता के प्रभाव में दुख का मार्ग चुन लेता है| जिस प्रकार मृग की कस्तूरी, उसकी नाभि में छुपी होती है, उसी प्रकार मनुष्य की शांति भी, उसके मन के अंदर ही छुपी होती है किंतु, उस तक पहुँच पाना सामान्य बात नहीं| प्राचीन काल से, कई ग्रंथ इसके मार्गदर्शन के लिए लिखे गये हैं लेकिन, फिर भी अधिकतर मनुष्य उन तक नहीं पहुँच पाते परिणामस्वरूप, पृथ्वी लोक में नर्क भोगने वालों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है|

मनुष्य क्या क्या कर सकता है?

मनुष्य क्या क्या कर सकता हैः What can man do?
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मनुष्य शारीरिक रूप से भले ही दुर्बल हो किंतु, मानसिक शक्ति और आधुनिक ज्ञान से वह, किसी भी ग्रह तक पहुँच सकता है| कहने का आशय है कि, भौतिक विषय से जुड़ा हुआ कोई भी कार्य, मनुष्य के द्वारा किया जा सकता है लेकिन, मनुष्य जब तक अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए जीवन जीता है तब तक, वह सामान्य प्राणी की भांति दुर्बल होता है| उसे भी अपनी मृत्यु का भय होता है और असुरक्षा का यही भाव उसे, उसके उच्चतम स्तर तक नहीं पहुँचने देता हालाँकि, मनुष्य एक बुद्धिमान जीव है जिसके कारण, वह अपने संसाधनों को बढ़ाने में सक्षम है किंतु, जब जब संसाधन अपने भोग के लिए जुटाए जाएंगे तब तब, वह कष्टदायी होंगे| आपने देखा होगा जो भी विषय वस्तु हमारे स्वार्थ से जुड़ी होती है, उसके नष्ट होते ही, हमारा मन दुखी हो जाता है लेकिन, एक आर्मी का जवान जंग में लड़ते हुए, अपने अंग क्षतिग्रस्त होने पर भी, गौरव का अनुभव करता है| अंतर केवल इतना है कि, आर्मी का जवान अपने स्वार्थ के लिए नहीं लड़ रहा था किंतु, सामान्य मनुष्य अपने निजी सुखों के लिए ही, केंद्रित होते हैं जिससे, वह सबसे अधिक दुख प्राप्त करते हैं|

मनुष्य की मृत्यु क्यों होती है?

मनुष्य की मृत्यु क्यों होती हैः Why do humans die?
Image by Tanvir Islam from Pixabay

विज्ञान की भाषा में मस्तिष्क की निष्क्रियता को ही, मृत्यु कहा जाता है| शरीर के किसी भी अंग को परिवर्तित किया जा सकता है लेकिन, मस्तिष्क को परिवर्तित करने से, व्यक्ति ही रूपांतरित हो जाएगा| मानसिक जानकारी प्राप्त करना ही, मनुष्य का जन्म है और मस्तिष्क से जानकारियों का मिटना ही, मनुष्य की मृत्यु| आपने लोगों को कहते सुना होगा कि, मनुष्य का जन्म कई योनियों के बाद होता है| इसका अर्थ है कि, जब तक मनुष्य सांसारिक सूचनाओं के आधार पर अपने आपको परिभाषित करता रहेगा तो, उसकी जन्म और मृत्यु होती रहेगी जैसे, वह पहले किसी का दोस्त होगा, बाद में दुश्मन बन जाएगा| पहले प्रेमी होगा, फिर बैरी हो जाएगा| पहले विक्रेता होगा, फिर ग्राहक बन जाएगा अर्थात जैसा दृश्य, वैसा दृष्टा होना ही, साधारण मनुष्य की पहचान है| निरंतर इसी तरह के परिवर्तन को ही, जन्म और मृत्यु कहा जाता है क्योंकि, मनुष्य केवल शरीर को नहीं कहा जाता, शरीर के भीतर एक मन है और उस मन को संचालित करने वाली, एक सत्य चेतना है, जिस तक पहुँचकर ही, मनुष्य का वास्तविक जन्म होता है अन्यथा, वह पशुतुल्य ही होगा जो, देह से मानव और मन से पशु ही कहलायेगा|

मनुष्यों की देह प्रकृति की अद्भुत संरचना है| यदि इसका उपयोग, एक साधन की भांति किया जाए तो, निश्चित ही अपने जीवन में, अकल्पनीय परिवर्तन देखा जा सकता है किन्तु, यदि मनुष्य अपने शरीर को ही महत्व देने लगे और उसी के अनुसार जीवन जीने लगे तो, उसके जीवन को नर्क बनते देर नहीं लगेगी| प्रतिक्षण अनिश्चितताओं से भरा हुआ जीवन ही, दुखद होता है| यदि किसी व्यक्ति या वस्तु के विकारों को, पहले से ही भाँप लिया जाए तो, कई समस्याओं से बचा जा सकेगा किंतु, यह केवल तभी संभव है जब, मनुष्य स्वयं को पहचान सके| स्वयं को पहचानना ही आत्मज्ञान है जिसके, प्राप्त होते ही मनुष्य, पशु योनी से मुक्त हो जाता है तत्पश्चात, वह किसी सार्थक कर्म की ओर, अपना जीवन समर्पित कर अमरता को प्राप्त होता है|

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