त्यौहार (tyohar explained in hindi):
मानव समाज में त्योहारों का अद्भुत महत्व रहा है| त्योहार अपने आप में एक संकेत होते हैं ताकि, इनके माध्यम से मनुष्य अंधकार से, प्रकाश की ओर बढ़ सके किंतु, आज त्योहार केवल मनोरंजन का प्रतीक बन गए हैं| नए कपड़े, स्वादिष्ट पकवान और बहुमूल्य उपहार का चलन निरंतर, बढ़ता जा रहा है| क्या वास्तव में त्योहार इसलिए बनाए गए थे कि, मानव भोग में अधिक रुचि लेने लगे या मनुष्य ने, अपने स्वार्थ में आकर त्योहारों को मनोकामना पूर्ति का माध्यम समझ लिया| हालाँकि, सभी पंत समुदाय अपनी मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल से ही त्योहार मनाते चले आ रहे हैं किंतु, फिर भी उनका जीवन दुख से बाहर नहीं आ सका है| मनुष्य अपने जीवन के दुखों को भुलाने के लिए, त्योहारों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं किंतु, वह नहीं जानते कि त्योहार तो, मनुष्य की सभी चिंताओं से मुक्ति का मार्ग है| जिस पर केवल, आध्यात्मिक ज्ञान से चला जा सकता है किंतु, मनुष्य की अज्ञानता ने, इस रहस्य को कभी उजागर नहीं होने दिया| आइए निम्नलिखित प्रश्नों से त्योहारों का महत्व समझने का प्रयत्न करते हैं|
- त्यौहार क्या है?
- त्योहार मनाने के उद्देश्य क्या है?
- त्योहार कैसे मनाते हैं?
- प्रमुख त्यौहार कौन कौन से हैं?
कुछ लोग त्योहारों को साम्प्रदयिक एकता के आधार पर महत्व देते हैं जो, त्योहारों के संदेश को समझें बिना, केवल मान्यताओं को निभाने में ही गौरवपूर्ण अनुभव करते हैं जबकि, मान्यताएं समयानुसार परिवर्तित होती रहती हैं| याद कीजिए, कोरोना महामारी के समय, अंतिम संस्कार की विधियाँ बदल चुकी थी| सभी लोगों ने अपने मुँह और नाक ढकना प्रारंभ कर दिये थे| आने वाली पीढ़ी, मान्यता के तौर पर इसे अनिवार्य रूप से अपनाने लगे तो, क्या यह सही होगा? नहीं न, वस्तुतः मनुष्य को यह समझना होगा कि, सभी मान्यताएं काल सापेक्ष होती है अर्थात किसी स्थान, समय और घटना के अनुसार, मान्यताओं का निर्माण होता है किंतु, उनका उद्देश्य मानव जाति की भलाई का होता है न कि, मनुष्य स्वार्थ पूर्ति का साधन| अतः जब मान्यता अहंकार का रूप धारण कर लेती है तब, विनाशकारी बन सकती है| जैसे, प्रदूषण का भय होने के बाद भी, अपने अहंकार में ज्वलनशील पदार्थों का प्रयोग करना| पर्यावरण संतुलन बिगड़ने के बाद भी, जानवरों पर क्रूरता बनाए रखना| आध्यात्म ने कभी भी, हिंसा का मार्ग नहीं सिखाया किंतु, अब कुछ विधर्मी लोग समाज में होते हैं जैसे, राम के युग में रावण था और कृष्ण के काल में कंस| अतः यह निर्णय, मनुष्य का होना चाहिए कि, वह कैसे व्यक्तित्व को अपने जीवन में धारण करेगा फिर, जितने अधिक लोग जिसे, अपना आदर्श पुरुष समझेंगे, उसी की भांति दुनियाँ बन जाएगी और आज यदि दुनिया, अधिक मांसभक्षी होती गई तो, यह पृथ्वी के लिए भयावह स्थिति को जन्म देने वाला होगा| त्योहारों में छोटे बच्चों से लेकर, बड़ों तक रोमांचक अनुभव प्राप्त करते हैं| त्योहारों में सगे संबंधी, रिश्तेदार, दोस्त और पड़ोसी एक दूसरे से मिलकर, अपने जीवन को रोमांचक बनाने का प्रयत्न करते हैं| त्योहारों से किसी विशेष विषयवस्तु का जुड़ा होना अनिवार्य होता है जैसे, दिवाली से राम, नवरात्रि से दुर्गा, होली से प्रहलाद आदि अतः स्पष्ट होता है कि, मनुष्य अपने श्रेष्ठ व्यक्तित्व को भूलना नहीं चाहता और उनके द्वारा दी हुई सीख, मानव समाज में बनाए रखने के लिए, त्योहारों का मार्ग स्थापित किया गया इसलिए, वह त्योहारों के माध्यम से, उनकी सीख को हमेशा, अपने बीच बनाए रखना चाहता है क्योंकि, यह संपूर्ण सृष्टि के संरक्षण तथा जीव मुक्ति हेतु अनिवार्य है| आइए कुछ प्रश्नों के माध्यम से इसकी चर्चा करते हैं|
त्योहार क्या है?
मानव चेतना को प्रकाशित करने वाला उत्सव त्योहार कहलाता है| विश्व में अनगिनत त्योहार मनाए जाते हैं| वर्तमान में त्योहार केवल मनुष्य की सामाजिक एकता के प्रतीक बन कर रह गए हैं| आपने अनुभव किया होगा, अब त्योहार केवल रीति रिवाज रह गये हैं और त्योहारों से मिलने वाली शिक्षा भी, नैतिकता प्रधान हो चुकी है| वास्तविक त्योहार तो, मनुष्य के जीवन को स्थायित्व प्रदान करते हैं किंतु, आज के समय में मनाए जाने वाले त्योहार, शोर शराबे का केंद्र बन चुके हैं जहाँ, धनी मनुष्यों के लिए, यह दिखावे का अवसर होते हैं और निर्धन के लिए, चिंताओं का सूचक| हालाँकि, प्रत्येक त्योहार अपने आप में विशेष महत्व रखता है जिनसे, कोई न कोई कथा अवश्य जुड़ी होती है| कथा भले ही अतिशयोक्ति हो किंतु, उसका उद्देश्य श्रेष्ठ होता है| अतः त्योहारों को परंपराओं के अनुसार नहीं, उसमें निहित ज्ञान के अनुसार मनाना चाहिए|
त्योहार मनाने के उद्देश्य क्या है?
यह संसार माया रूपी भ्रमजाल है| यहाँ प्रत्येक विषय वस्तु परिवर्तनीय हैं इसलिए, जो मनुष्य संसार को सच मानकर जीता है उसे, अत्यंत दुखों की प्राप्ति होती है| अतः त्योहार ही वह कार्यक्रम हैं जिनसे, मनुष्य अपनी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सके किंतु, आज मानव समाज त्योहारों का आध्यात्मिक महत्व भूल चुका है उसके लिए, त्योहार केवल पारिवारिक उत्सव बनकर रह गए हैं| वैज्ञानिक युग, सुख सुविधाओं से तो भरा हुआ है लेकिन, फिर भी मनुष्य शांति की प्राप्ति नहीं कर पाया है| कोई भी त्योहार, कुछ दिनों तक ही मन प्रफुल्लित कर सकता है चाहे, रिश्तेदारों का समूह एकत्रित हो, फिर भी मन सूना होता है| अगर त्योहार के उच्चतम उद्देश्य को समझ लिया जाए तो, निश्चित ही जीवन आनंद से परिपूर्ण किया जा सकता है|
त्योहार कैसे मनाते हैं?
त्योहार मनाने की विधियां, समय और स्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं| कुछ जगह तो, त्योहार केवल औपचारिकता बन कर रह गए हैं| त्योहारों के अर्थ न समझने का परिणाम यह है कि, आज की पीढ़ी ने त्योहारों को महत्व देना भी कम कर दिया है| वस्तुतः कोई भी प्रतिरूप असत्य के आधार पर नहीं चल सकता इसलिए, जब तक त्योहारों का उचित शब्दार्थ न समझा जाए तब तक, त्योहार केवल सोशल मीडिया की सामग्री बन कर रह जाएंगे| आगे आने वाले लेख में कुछ विशेष त्योहारों का वर्णन किया गया है जो, मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण है|
प्रमुख त्योहार कौन कौन से हैं?
मानव जाति का त्योहारों से जुड़ा प्राचीन इतिहास रहा है| आज विश्व में अनगिनत त्योहार मनाए जाते हैं| सभी त्योहार मानवता के विकास लिए अनिवार्य हैं| अधिकतर त्योहार दुख निवारक होते हैं लेकिन, जब उनके महत्व को अपने जीवन में उतारा गया हो| आइए कुछ प्रमुख त्योहारों की चर्चा करते हैं|
दिवालीः
भारत में मनाया जाने वाले मुख्य त्योहारों में से एक दिवाली भी है जिसे, राम की रावण पर विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है| इस दिवाली को प्रकाश का पर्व माना जाता है हालाँकि, दिवाली चेतना को प्रकाशित करने वाला आयोजन होना चाहिए लेकिन, वह तो केवल बाहरी रंग रोगन का त्योहार बन चुका है जहाँ, शोर शराबे के बीच चमकदार रोशनी का होना अनिवार्य है| क्या वास्तव में दिवाली इसलिए, मनाई जानी चाहिए? कभी आपने सोचा कि, भगवान राम ने तो, अपना सम्पूर्ण राज्य त्याग दिया था और चौदह वर्ष के लिए वनवासी जीवन अपनाया था लेकिन, क्या आज कोई अपने पिता के कहने पर, अपनी संपत्ति छोड़ सकता है नहीं न? इसीलिए, राम को श्रेष्ठ गुणों का स्वामी कहा गया था और उनकी भांति ही गुणवान मनुष्य, अपने जीवन के श्रेष्ठतम आनंद की प्राप्ति करता है| यही दिवाली का संदेश था| दिवाली में प्रचलित रामायण, एक महाकाव्य है जो, मनुष्य के लिए मार्गदर्शक पटल है लेकिन, निजी स्वार्थ में पवित्र ग्रंथों को भी मनोरंजन का केंद्र बना दिया गया| आज बड़े बड़े ग्रंथ केवल फ़िल्मी व्यवसाय का स्त्रोत हैं और दीवाली जैसे त्योहार, वस्तुओं की बिक्री बढ़ाने वाला अवसर| आंकड़ों के अनुसार, दिवाली में अकल्पनीय उत्पाद विक्रय दर्ज किया गया है| त्योहारों को चलचित्र के माध्यम से, उपभोक्तावादी संस्कृति में परिवर्तित करने का षडयंत्र, वर्षों से चला आ रहा है जहाँ, पहले कुछ राजा महाराजा और पाखंडियों ने मिलकर, त्योहारों में वस्तुओं की ख़रीदारी करने पर ज़ोर दिया और आज यही काम, फ़िल्मों और सीरियलों के द्वारा किया जा रहा है जहाँ, दिवाली में भांति भांति के आभूषण, वस्त्र और चॉकलेट का प्रचार बढ़ गया है जिससे, पवित्र त्योहार अर्थव्यवस्था बढ़ाने वाले यंत्र बनते जा रहे हैं| मनुष्य को यह समझना होगा कि, वेदों और उपनिषदों से निकलने वाली कोई भी बात, मानवता की भलाई के लिए कही गई है लेकिन, यदि उसके अर्थ को नहीं समझा गया तो, निश्चित ही दुष्परिणाम भुगतने होंगे| दिवाली न स्वर्ण आभूषणों का त्योहार है और न ही पटाखों का, यह तो संसार के मोह को त्यागने का संदेश है जो, राम के जीवन से मिलता है| रामायण में आने वाले सभी पात्र, गूढ़ रहस्य निहित हैं जैसे- हनुमान, जिनके जीवन का कोई निजी उद्देश्य नहीं किंतु, वह बलशाली है इसलिए, उन्हें अपने जीवन में संघर्ष की आवश्यकता है किंतु, वह सत्य की दिशा में धर्म की रक्षा के लिए होना चाहिए इसलिए, हनुमान ने श्रीराम का साथ दिया| दूसरा पात्र, विभीषण जिन्होंने धर्म के लिए, अपने सगे भाई का भी साथ छोड़ दिया| तीसरा पात्र, नल नील जिनका श्राप भी भगवन राम की कृपा से उपयोगी सिद्ध हुआ अतः लाचारी को वीरता बनाने का संदेश दिया गया| चौथा पात्र जामवन्त, जिन्होने हनुमान को प्रोत्साहित करके, गुरु की भूमिका निभाई| यदि रामायण के सभी पात्रों की चर्चा की जाए तो, कई किताबें भरी जा सकती हैं| पात्रों की भूमिकाएं भले ही भिन्न हों लेकिन, सभी का उद्देश्य धर्म की रक्षा ही है इसलिए, मनुष्य को अपने जीवन की किसी भी परिस्थिति में, अपने आप को रखकर देखना चाहिए और रामायण से तुलना करना चाहिए कि, किस पात्र से उसका जीवन मिल रहा है जैसे, यदि आपके दोस्त का झगड़ा हो जाए और आपको यह बात पता है कि, गलती आपके दोस्त की है तो, यहाँ अब आपके पास दो स्थितियां है या तो आप, उसका साथ देंगे या नहीं| अगर देते हैं तो, आप कुंभकरण हुए और यदि विरोधियों का साथ दिया तो, विभीषण| इसी भांति यदि, आपका दोस्त किसी काम को करने में सक्षम है किंतु, उसका मनोबल टूट चुका है तब, आपको जामवंत की भांति उसे प्रोत्साहित करना होगा हालाँकि, दुर्बल व्यक्ति भी रामायण से, गिलहरी बनने की प्रेरणा ले सकता है| कभी आपने सोचा कि, राम के जीवन में इतनी सारी सुख सुविधाएँ थी फिर भी, वह वन क्यों चले गए जबकि, उनकी प्रजा भी उन्हें इतना पसंद करती थी कि वह अपने पिता का विरोध कर सकते थे? यही एक अद्भुत रहस्य है जो, हमें राम ने सिखाया था कि, संसार की कोई भी विषय वस्तु धर्म से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है और यही संदेश, मनुष्य को अपनाना चाहिए था लेकिन, कुछ लोगों की स्वार्थी सोच त्योहारों की पवित्रता को धूमिल करती जा रही है|
होलीः
भारत देश में होली बड़ी धूमधाम से मनायी जाती है| होली में एक दूसरे को रंग लगाने की परंपरा है जो, निरंतर चली आ रही है| होली से संबंधित, भगवान विष्णु के नर्सिंग अवतार की कथा प्रचलित है जिसमें, हिरण्यकश्यप नामक राक्षस ने, अपने बेटे की विष्णु भक्ति से क्रोधित होकर, उसे अपनी बहन होलिका की शक्ति द्वारा, षड्यंत्र करके आग से जलाना चाहा किंतु, इस घटना में होलिका ही, जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद सुरक्षित, अग्नि से बाहर आ गए तत्पश्चात नर्सिंग भगवान ने, जन्म लिया और हिरण्यकश्यप के वरदान की मर्यादा रखते हुए, उसका वध उसकी इच्छानुसार न दिन में, न रात में, न घर के बाहर, न घर के अंदर, न मनुष्य द्वारा और न ही जानवर के द्वारा किया था हालाँकि, यह कथा तो, सभी ने सुनी होगी लेकिन, क्या आप इसके वास्तविक मर्म को जान पाए हैं? मानव समाज होली में भले ही कई रंगों में डूबता हो, किंतु होली भक्ति के रंग को धारण करने के लिए, प्रारंभ की गई थी जहाँ, भक्त प्रह्लाद की भांति विपरीत परिस्थितियों में भी, अपनी भक्ति न त्यागना अद्भुत धार्मिक मार्ग है जिसे, अपनाने से मन भय तथा दुख निषेधात्मक हो जाता है| जिस भांति प्रह्लाद के मन में, केवल भगवान विष्णु का रंग चढ़ा था उसी प्रकार, मनुष्य को भी अपने जीवन में, आत्मसत्य का रंग चढ़ाकर रखना चाहिए, यही होली का वास्तविक संदेश है|
रक्षाबंधनः
भाई बहन के रिश्ते को प्रदर्शित करने वाला त्योहार, रक्षाबंधन कहलाता है जिसमें, बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँध कर, अपनी रक्षा का वचन लेती है| रक्षाबंधन की शुरुआत, राजा बलि की कथा से हुई| वस्तुतः राजा बलि, भगवान विष्णु के अद्भुत भक्त थे जिनकी, भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु, ब्राह्मण का रूप धारण कर, राजा बलि के यहाँ रहने लगे| जिससे भगवान विष्णु की पत्नी, लक्ष्मी दुखी हो गईं| उन्होंने अपने पति को वापस लाने के लिए, ब्राम्हण स्त्री का वेश रखा और राजा बलि के यहाँ पहुँच गईं| उन्होंने राजा बलि के हाथ में, एक रक्षा सूत्र बाँध कर उनसे वचन लिया कि, वह जो माँगेगी राजा बलि उन्हें देंगे| राजा रक्षा सूत्र के वचन से बँध चुके थे इसलिए, उन्होंने लक्ष्मीजी की इच्छानुसार, भगवान विष्णु को जाने का आग्रह किया और तभी से, रक्षासूत्र को धर्म के बंधन के रूप में अपनाया गया| जिसका उल्लेख भविष्य पुराण में भी मिलता है| इतिहास में ब्राह्मणों के द्वारा, रक्षा सूत्र बांधकर यह प्रथा निरंतर चलती रही और उसके बाद रक्षा बंधन के रूप में प्रचलित हुई जिसे, बहन की रक्षा के नाम पर मनाया जाता है हालाँकि, विवाह के पूर्व बहन की रक्षा का दायित्व पिता का ही होता है लेकिन, विवाह के पश्चात पिता की वृद्धावस्था होते ही, विपरीत परिस्थितियों में, भाई की आवश्यकता भी पड़ सकती है चूँकि, पहले महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने पर ध्यान नहीं दिया जाता था इसलिए, महिलाएँ सदा ही, आधारित रही है हालाँकि, आधुनिक युग महिलाओं की आत्मनिर्भरता पर विशेष रुचि रखता है जो, सकारात्मक दृष्टिकोण को प्राथमिकता देता है| वैसे तो, राखी केवल धागा है किंतु, इसका महत्व अभूतपूर्व है जिसके अनुसार, भाई को उसके धर्म में रहने का वचन है| धर्म के स्थायित्व के लिए, मानव समाज को बाध्य करना अनिवार्य होता है अतः रक्षा बंधन की लोकप्रियता बढ़नी चाहिए लेकिन, सही अर्थों के साथ|
नवरात्रिः
शक्ति अर्थात माँ दुर्गा के नव रूपों की, मूर्तियों की स्थापना के साथ, नवरात्रि का आयोजन किया जाता है| नवरात्रि, माया अर्थात जगदम्बा को नमन करने का उत्सव है| यह संसार दुखों से भरा हुआ है| यहाँ प्रत्येक मनुष्य असंतुष्ट है और वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए, सांसारिक विषय वस्तुओं की कामना समर्पित कर्म में जुटा है किंतु, यह माया उन्हें भ्रमित कर रही है| वे जो कुछ भी प्राप्त करते हैं, उसका महत्व परिवर्तित हो जाता है| जिस व्यक्ति पर विश्वास करते हैं वही, बदल जाता है| वस्तुतः यही देवी का मायाजाल है जिसे, नवरात्रि के पर्व पर समझा जाना चाहिए| नवरात्रि पर देवी दुर्गा द्वारा, महिषासुर राक्षस के वध की कथा तो, आपने सुनी ही होगी लेकिन, क्या आप उसके रहस्य को समझ पाए| जिसके अंतर्गत देवी यह संदेश दे रही हैं कि, यदि आप इस प्रकृति का महिषासुर राक्षस की भांति भोग करने का प्रयास करेंगे तो, माया जिसे देवी दुर्गा का रूप कहा गया है वह, आपके लिए कष्टदायक सिद्ध होंगी| आपने देखा होगा जो, व्यक्ति दुराचार से ऐशो आराम और अय्याशी में जीवन व्यतीत करता है, उसका परिणाम कष्टकारी होता है| अतः प्रकृति को अपनी माँ की भांति समझना चाहिए और उसके साथ बेटे की भांति बर्ताव करना चाहिए तभी, मानवता की भलाई संभव है, यदि व्यक्तिगत स्वार्थ में, प्रकृति का शोषण किया गया तो, जीवन नर्क बन जायेगा, यही नवरात्रि का अर्थ है|
मानव द्वारा बनाए गए त्योहार और प्रथाएँ, समयानुकूल परिवर्तनीय रहे हैं जो, परिस्थितियों की माँग के अनुसार, कर्म करने को प्रेरित करते हैं| जिनके अंतर्गत, त्योहार अपनी कमियों से बाहर आने का होना चाहिए| त्योहार अपने विचारों की श्रेष्टता का होना चाहिए| त्योहार सत्य की दिशा में बढ़ रहे प्रत्येक पड़ाव पर होना चाहिए| त्योहार ही, जीवन का हर्षोल्लास हैं लेकिन, आज अधिकतर त्योहार, ज्ञान के अभाव में केवल, मनोरंजन के लिए आयोजित किये जा रहे हैं जो, न केवल मानवता के लिए बल्कि, सृष्टि के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी घातक हो रहे हैं|