आत्मा और जीवात्मा (Atma aur jivatma)

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आत्मा और जीवात्मा (Atma aur jivatma facts in hindi):

आत्मा हमारे बीच एक प्रचलित शब्द है| जिसका संबंध मृत्यु के बाद होने वाली घटनाओं से जोड़कर देखा जाता है| आत्मा को मन भी समझा जाता है| कई संप्रदायों में आत्मा को, भूत प्रेत की भांति भी प्रचलित किया गया है और इसी धारणा का उपयोग करके, कुछ लोग समाज में अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं| इस लेख का उद्देश्य आत्मा कि, वास्तविकता को समझाना है जिसके लिए, हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|

1. जीवात्मा क्या है?
2. आत्मा क्या है?
3. आत्मा का स्वरूप कैसा है?
4. आत्मा की शक्ति क्या है?
5. क्या आत्मा भटकती है?
6. आत्मा की मुक्ति कैसे होती है?
7. आत्मा की शांति के लिए क्या करना चाहिए?

आत्मा और जीवात्मा: what is soul and spirit?
Image by Pete Linforth from Pixabay

आत्मा एक ऐसा सत्य है, जिसे धारण करते ही, आप अपने सभी कष्टों से मुक्त हो सकते हैं और वही आत्मज्ञान, आपके मन के सभी क्लेश दूर कर सकता है| आत्मा एक विराट स्वरूप है, जिसका विस्तार अनंत है किंतु, आत्मा को समझने से पहले, जीवात्मा को जानना होगा|

जीवात्मा क्या है?

जीवात्मा क्या हैः What is soul?
Image by Gerd Altmann from Pixabay

जीवात्मा वह अहंकार है जिससे, व्यक्ति की पहचान होती है साधारण अर्थों में इसे हम, व्यक्तियों के मन से जोड़कर देख सकते हैं| दिमाग के विचार शून्य होते ही जीवात्मा भी नष्ट हो जाती है जिसे आत्मज्ञान या शारीरिक मृत्यु के उपरान्त प्राप्त किया जा सकता है जीवात्मा प्रत्येक मनुष्य में व्यक्ति में विभिन्न है जो, अतीत की जानकारियों के आधार पर जन्म लेती है| उदाहरण से समझें तो, किसी व्यक्ति का अपमान होने पर वह कहता है कि, मेरी आत्मा दुखी है तो, यह जीवात्मा है जिसे, अज्ञानतावश हम आत्मा समझ रहे हैं क्योंकि आत्मा तो निर्गुनि है जिसे दुःख सुख कैसे हो सकता है जीवात्मा एक मिथ्या है, जिसका संबंध आपके अहम् से है| अहम अर्थात वह अहंकार, जिसके आस पास आपके जीवन की रचना हुई है| आत्मज्ञान से ही, जीवात्मा को मिटाया जा सकता है तत्पश्चात् व्यक्ति, आत्मा के स्वरूप को पहचान सकता है| वस्तुतः अपना अतीत भूला नहीं जा सकता है लेकिन, उसे निर्लिप्तता के साथ जिया जा सकता है| जहां, अतीत केवल सूचनाओं तक ही सीमित होगा ताकि, वर्तमान विषय के अन्वेषण में सहायता प्राप्त की जा सके| इसके अतिरिक्त कोई प्रयोजन रखना अनुचित होगा|

आत्मा क्या है?

आत्मा और मन क्या हैः What are soul and mind?
Image by Stefan Keller from Pixabay

आत्मा का सम्बन्ध आतंरिक उर्जा से है जो शुक्राणु के माध्यम से हस्तांतरित होती है जिसे प्राण भी कहा जाता है आत्मा वही प्रकाश है जिससे सभी जीव जंतु पेड़ पौधे जीवन पाते हैं सभी का एक ही स्त्रोत है अतः सभी की एक ही आत्मा है जिसे परमात्मा की अनुकम्पा ही कहा जा सकता है हालांकि साधारण व्यक्ति अपनी शरीरिक पहचान को ही आत्मा कहते हैं वही मन है अर्थात जीवात्मा ही मन है| जिस पहचान को आप अपना समझ रहे हैं उसे ही, आप जीवात्मा कह सकते हैं| हमारा अज्ञान ही हमारे मन को चारों दिशाओं में भटकाता है जिसे, जीवात्मा का भटकना कहा जाता है जिस प्रकार सागर के जल में बुलबुले की कोई व्यक्तिगत सत्ता नहीं होती उसी प्रकार मनुष्य की कोई निजी आत्मा नहीं हो सकती मृत्यु के पश्चात् ऊर्जा पुन: ब्रह्माण्ड में बुलबुले की आतंरिक वायु की भांति अपने प्रारंभिक वातावरण में विलीन हो जाती है|

आत्मा का स्वरूप कैसा है?

आत्मा का स्वरूप कैसा हैः What is the nature of the soul?
Image by Nanne Tiggelman from Pixabay

आत्मा अनंत है, अखंड है अर्थात् आत्मा ही ब्रह्मांड की अनंतता है| आत्मा ही परमात्मा है| लोगों में आत्मा और परमात्मा के भेद का भ्रम बना रहता है| यहाँ आपको स्पष्ट कर दें कि, सृष्टि में उपलब्ध सभी जीवों की एक ही आत्मा है| यदि व्यक्ति का अहम गल जाए तो, वह आत्मा के निकट पहुँच सकता है| जीवात्मा का आत्मा में विलय होना ही, अहंकार का गलना है जिसके लिए, आत्म ज्ञान होना अनिवार्य है|

आत्मा की शक्ति क्या है?

आत्मा की शक्ति क्या हैः What is the power of soul?
Image by Çiğdem Onur from Pixabay

आत्मा ही ब्रह्माण्ड का पारिस्थितिकी तंत्र है| इस पूरे ब्रम्हाण्ड के कण कण की रचना, आत्मा की शक्ति के द्वारा ही हुई है| आत्मा को शरीर और जीवन का बंधन कहा जा सकता है जिसके टूटते ही शारीरिक मृत्यु होती है| आत्मा की कोई सीमा नहीं अर्थात, उसका आंकलन करना असंभव है क्यों कि, आत्मा का विस्तार निरंतर होता रहता है| करोड़ों वर्षों से कितने ग्रह टूटे, कितने बनें, कितने जीव जन्तु विकास प्रक्रिया के तहत, अपना स्वरूप बदलते रहे, यही आत्मा की शक्ति है|

क्या आत्मा भटकती है?

क्या आत्मा भटकती हैः Does the soul wander?
Image by Victoria from Pixabay

यदि बात आत्मा की है तो, वह कण कण में विद्यमान् है लेकिन, जीवात्मा व्यक्ति का मन है| जिसका जन्म, अहम से होता है और मानव शरीर मिटते ही, उसका अहंकार भी नष्ट हो जाता है तो, जीवात्मा के भटकने का सवाल ही पैदा नहीं होता| हाँ किंतु, जीवित अवस्था में वह ख़ुशी पाने की आशा में भटकती रहती है जिसे, पुनर्जन्म कहा जाता है| यहाँ पुनर्जन्म से आशय किसी दूसरे शरीर को धारण करने से नहीं बल्कि, मानवीय वृत्तियाँ बदलने से है| आपने लोगों को कहते सुना होगा कि, यदि इस जन्म में भक्ति कार्य करोगे तो, जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाओगे| यहाँ इसका अर्थ हमारे आत्म ज्ञान से है| जो व्यक्ति अपने जीवन के यथार्थ को देखकर, उसे मिथ्या समझ लेता है| वह पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है अर्थात, संसार उसे झूठा लगने लगता है और तभी वह अपने जीवन के मोह को त्याग पाता है|

आत्मा की मुक्ति कैसे होती है?

आत्मा की मुक्ति कैसे होती हैः How does the soul get liberated?
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आत्मज्ञान से ही आत्मा की मुक्ति की जा सकती है| आत्मज्ञान अर्थात, वह ज्ञान जिससे मनुष्य अपनी झूठी ज़िंदगी को पहचान लेता है और अपने भटकते हुए मन को, इन्द्रियों के माध्यम से नियंत्रित करके, जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है| यहाँ जन्म मरण का अर्थ मन के बदलने से है| मन का प्रतिक्षण परिवर्तन ही, पुनर्जन्म कहलाता है| आगे इसकी चर्चा विस्तार से की गई है|

आत्मा की शांति के लिए क्या करना चाहिए?

आत्मा की शांति के लिए क्या करना चाहिएः What should be done for peace of soul?
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उपरोक्त बिंदुओं से स्पष्ट है कि, मानव शरीर मिटने के बाद, किसी तरह का व्यक्तिगत जीवन संभव नहीं है तो, यहाँ आत्मा की शांति हमारे मन की शुद्धि से जोड़कर समझी जाएगी| वस्तुतः यह संसार माया है जिसके, पूर्ण स्वरूप को पहचान लेना ही मुक्ति है| मुक्ति अर्थात अतीत के बंधनों से मोहभंग होना है| अब यहाँ बात मन के तल पर चेतन होना है भौतिकता से इसका कोई सम्बन्ध नहीं किंतु, यह तब तक संभव नहीं जब तक, आप किसी श्रेष्ठ गुरु के मार्गदर्शन में, आत्मज्ञान प्राप्त न कर लें| अब आप सोच रहे होंगे कि, फिर इतनी तरह की धारणाएँ क्यों फैली हुई है कि, मरने के बाद मनुष्य की आत्मा भटकती रहती है और उसे मुक्ति तभी मिलती है जब, वह कुछ संस्कारों का पालन करें? तो आपको बतादें कि, न ही श्रेष्ठ वेदों में और न ही विज्ञान में मरणोपरांत आत्मा निकलने की बात को वैधता दी गई है किन्तु प्राणवायु का उल्लेख अवश्य मिलेगा तो, ऐसी भूत प्रेत वाली आत्मा सम्बंधित धारणाएँ काल्पनिक ही समझी जाएंगी|

अध्यात्म का संबंध, हमारे वर्तमान जीवन के आनंद से है न कि, मरने के बाद स्वर्ग पाने से| स्वर्ग और नर्क व्यक्ति की मानसिक अवस्थाएं हैं जिसे, आध्यात्मिक ज्ञान से ही प्राप्त किया जा सकता है| अंत में एक विशेष बात, इस संसार में चारों ओर माया का साया है इसलिए, हम किसी व्यक्ति की श्रेष्टता को नहीं पहचान सकते| जिससे कुछ लोग धर्म का चोला पहनकर, हमें भ्रमित करते हैं और इसी कारण हम, ज्ञान के अर्थ का अनर्थ करके, अपने जीवन के आनंद से वंचित रह जाते हैं और अनावश्यक डर धारण करके, अपना जीवन नर्क कर लेते हैं इसलिए, आध्यात्मिक विषय से संबंधित ज्ञान प्राप्त करने के लिए, मनुष्य को स्वयं ही दर्शनशास्त्र और वेदों की शरण में जाना चाहिए|

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