जन्म और मृत्यु (Janam aur mrityu ka rahasya in hindi):
मनुष्य के शरीर का जन्म तो, विकास प्रक्रिया का परिणाम है जहाँ, स्त्री और पुरुष के मिलन से, नये जीव की उत्पत्ति होती है जिसे, जन्म कहते हैं और इसके विपरीत, शरीर की शून्यता को, मृत्यु से जोड़कर देखा जाता है अर्थात, मनुष्य के आंतरिक अंगों के निष्क्रिय होते ही, उसे मुर्दा मान लिया जाता है| लेकिन क्या वास्तविक तौर पर, यही जन्म और मृत्यु है या, इसके अलावा कोई और रहस्य है जिसकी, जानकारी के बिना, हम भ्रम में जीते रहते हैं और नक़ली जन्म और मृत्यु को वास्तविकता से जोड़कर देखते हैं परिणामस्वरूप, हम अपने जीवन की सच्चाई देखे बिना ही इस ब्रम्हाण्ड में खो जाते हैं? इसे समझने के लिए हम तो कुछ प्रश्नों की ओर चलते हैं|
1. जन्म क्या है?
2. मेरा जन्म कब हुआ है?
3. जन्म लेने का सही समय क्या है?
4. मैं कब तक जिंदा रहूंगा?
5. मृत्यु क्या है?
6. मृत्यु के बाद क्या होता है?
7. अकाल मृत्यु क्यों होती है?
![जन्म और मृत्यु (Janam aur mrityu ka rahasya in hindi): मनुष्य के शरीर का जन्म: birth of human body?](http://buzz369.com/wp-content/uploads/2024/05/Janam-aur-mrityu-ka-rahasya.jpg)
जन्म और मृत्यु का संबंध शरीर से नहीं बल्कि, मानवीय चेतना से है हालाँकि, बाहरी तौर पर ऐसा प्रतीत हो सकता है कि, मनुष्य का जन्म एक बार होता है और उसकी मृत्यु भी एक ही बार संभव है लेकिन, यह पूर्णतः असत्य है क्योंकि, एक मनुष्य अपने जीवन में हज़ारों बार जन्म लेता है और उतने ही बार मृत्यु की गोद में सोता है| आगे आने वाले बिंदुओं से, यह बात स्पष्ट तौर पर समझी जा सकती है|
जन्म क्या है?
![जन्म और मृत्यु (Janam aur mrityu ka rahasya in hindi): जन्म क्या हैः what is birth?](http://buzz369.com/wp-content/uploads/2024/05/Janam-aur-mrityu-ka-rahasya1.jpg)
जन्म का संबंध सीधे तौर पर, जीव की उत्पत्ति से है| किसी भी पशु पक्षी का जन्म निश्चित होता है और उसी दायरे में सीमित रह जाता है| उदाहरण से देखें तो, एक हाथी अपनी पूर्व निर्धारित क्षमताओं से ही जीवन जीता है जहाँ, वह शाकाहारी चीज़ों पर आधारित होता है या कोई और जानवर, अपनी प्रकृति से ही जन्म लेता है लेकिन, मनुष्य इन सबसे भिन्न है क्योंकि, वह अपने जीवन को पल पल बदलता रहता है जहाँ, वह अपनी पिछली ज़िंदगी से पूरी तरह बदल कर, एक नया इंसान बन जाता है और हम उसे वही समझ रहे होते हैं| इसका स्पष्टीकरण अगले प्रश्न के उत्तर में उपलब्ध है|
मेरा जन्म कब हुआ है?
![जन्म और मृत्यु (Janam aur mrityu ka rahasya in hindi): मेरा जन्म कब हुआ हैः When was I born?](http://buzz369.com/wp-content/uploads/2024/05/Janam-aur-mrityu-ka-rahasya2.jpg)
यह आपकी प्रकृति पर निर्भर करता है कि, आप अभी किस रूप में जीवित हैं यदि, आप अपने आपको पति मान रहे हैं तो, आप के विवाह के दिन ही आपका जन्म हुआ है| यदि आप अपने आपको किसी का पिता मान रहे हैं तो, जिस दिन आप के घर पुत्र ने जन्म लिया, उसी दिन आपका भी जन्म हुआ है और यदि आप, अपने आपको किसी पद प्रतिष्ठा से प्रदर्शित करते हैं तो, जिस दिन आपको उसकी प्राप्ति हुई उसी दिन, आपका जन्म माना जाएगा अर्थात् आपका जन्म तो, आपकी सोच पर आधारित है| मनुष्य अपनी एक पहचान बनाता है और उसी दिन, उसकी उत्पत्ति मानी जाती है| इसी को पुनर्जन्म कहा जाता है लेकिन, ज्ञानी व्यक्ति बार बार जन्म नहीं लेते, वह एक स्थायी रूप अपनाते हैं और उसी में अडिग होकर, जीवन समर्पित कर देते हैं जिसे, संन्यासी कहा जाता है| संन्यासी का अर्थ यह नहीं है कि, सभी से अलग एकांत में जाकर वास करना है बल्कि, यह है कि, अपने मन को शरीर के ताल से, ऊपर उठा लेना और माया के प्रतिबिम्ब को जान लेना|
जन्म लेने का सही समय क्या है?
![जन्म और मृत्यु (Janam aur mrityu ka rahasya in hindi): जन्म लेने का सही समय क्या हैः What is the right time to be born?](http://buzz369.com/wp-content/uploads/2024/05/Janam-aur-mrityu-ka-rahasya3.jpg)
प्राथमिक जन्म तो, संयोग पर आधारित है| जिसका समय आप तय नहीं कर सकते लेकिन, यदि वास्तविक तौर पर स्वयं को पहचान लिया जाए तो, हम किसी भी क्षण अपना नया जन्म ले सकते हैं हालाँकि, कुछ संप्रदायों में शरीर के जन्म से जुड़ी, अनेकों धारणाएँ हैं| जिनका पालन लोग कई वर्षों से, करते चले आ रहे हैं| यहाँ स्पष्ट कर दें कि, शरीर के जन्म के समय का, व्यक्ति के जीवन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात, हमारे विचार हमें, नया जन्म दे सकते हैं जिससे, हमारा जीवन आनंदित हो सके इसलिए, व्यक्तियों को चाहिए कि, अपने आपको देखें और समझें कि, वह अपने आपको क्या समझ कर, जीवन जी रहे हैं और यदि वह अपने जीवन से संतुष्ट नहीं है तो, ज्ञान के माध्यम से अपने मोह को त्यागकर, पुनर्जन्म लेने का प्रयास करना चाहिए|
मैं कब तक जिंदा रहूंगा?
![जन्म और मृत्यु (Janam aur mrityu ka rahasya in hindi): मैं कब तक जिंदा रहूंगाः How long will I live?](http://buzz369.com/wp-content/uploads/2024/05/Janam-aur-mrityu-ka-rahasya4.jpg)
मैं अर्थात वह अहंकार, जिसे आपकी पहचान माना जाता है| इसे बदलना आपके हाथ में होता है| अतः हम यह कह सकते हैं कि, आपका जीवन आपके हाथ में है| जिस दिन आपका अहंकार, ज्ञान के प्रकाश से नष्ट हो जाएगा वहीं दिन, आपका आख़िरी होगा| यहाँ बात आपके शारीरिक मृत्यु की नहीं बल्कि, अहंकार की है| अहंकार ही व्यक्ति का वास्तविक रूप होता है| आपने कभी लोगों से पूछने का प्रयास किया होगा कि, आप कौन हैं और आपको उत्तर मिला होगा, कोई नाम या, कोई पद प्रतिष्ठित पहचान| जिसके क़ायम रहने तक, वह व्यक्ति ज़िंदा रहता है लेकिन, जैसे ही वह पहचान, उससे अलग कर दी जाए तो, वह नया जन्म लेकर, कुछ और बन जाता है और यह चक्र निरंतर चलता रहता है|
मृत्यु क्या है?
![जन्म और मृत्यु (Janam aur mrityu ka rahasya in hindi): मृत्यु क्या हैः what is death?](http://buzz369.com/wp-content/uploads/2024/05/Janam-aur-mrityu-ka-rahasya5.jpg)
अहंकार का परिवर्तन ही मृत्यु है जहाँ, जन्म के विपरीत मृत्यु को माना जाता है| शारीरिक मृत्यु का निर्धारण तो, संयोग पर टिका हुआ है लेकिन, आपकी मृत्यु उसी पल हो जाती है जब, आप अपनी देह की वास्तविकता को समझ पाते हैं| उदाहरण के तौर पर, कभी आप छोटे बच्चे थे जहाँ, आपकी प्राथमिकता कुछ खिलौने या शायद कुछ छोटी मोटी वस्तुएँ रही होंगी लेकिन, आज आप कोई ओर हैं| ज़रा सोचिए, वह बच्चा कहाँ गया, वह मर चुका है और अब आप कोई और हैं, अगर अब यहाँ कोई, आपको वही पुराना बच्चा समझकर व्यवहार करें तो, शायद आपको पसंद नहीं आएगा इसलिए, हमें समझना होगा कि, मानव हज़ारों बार जन्म और मरण के चक्र फँसते हैं और इसी से बाहर आना ही मुक्ति है|
मृत्यु के बाद क्या होता है?
![जन्म और मृत्यु (Janam aur mrityu ka rahasya in hindi): मृत्यु के बाद क्या होता हैः What happens after death?](http://buzz369.com/wp-content/uploads/2024/05/Janam-aur-mrityu-ka-rahasya6.jpg)
शरीर की मृत्यु के बाद, वह मिट्टी में बदल जाता है जिससे, बैक्टीरिया उत्पन्न होते हैं और वह नया जीवन धारण करते हैं लेकिन, मनुष्य की मृत्यु के बाद, वह नया जन्म ले लेता है| यहाँ जन्म का आशय, मनुष्य की प्रकृति बदलने से है अर्थात, पहले कोई व्यक्ति अपने आपको ग़रीब मानकर जी रहा था लेकिन, जैसे ही उसके पास कुछ पैसे आने शुरू हुए तो, वह अपने आपको अमीर मानने लगा| यहाँ ग़रीब की मृत्यु हो गई और अमीर पैदा हो गया लेकिन, इसका आशय यह नहीं कि, वह हमेशा अपने अमीर रूप को निभा पाएगा| एक समय के बाद, उसे इस रूप से घृणा होने लगेगी और वह नए रिश्तों की तलाश में निकल जाएगा ताकि, इस जीवन से भी मुक्ति पा सके और वह अपने शरीर की मृत्यु होने तक, पुनर्जन्म के चक्रव्यूह में फँसा रहेगा|
अकाल मृत्यु क्यों होती है?
![जन्म और मृत्यु (Janam aur mrityu ka rahasya in hindi): अकाल मृत्यु क्यों होती हैः Why does premature death occur?](http://buzz369.com/wp-content/uploads/2024/05/Janam-aur-mrityu-ka-rahasya7.jpg)
शरीर तो मिट्टी का एक टुकड़ा है जो, अनुकूल वातावरण में ही जीवित रह सकता है लेकिन, यदि परिस्थितियां गंभीर हुई तो, व्यक्ति किसी भी क्षण मृत्यु को प्राप्त हो सकता है जिसे, अकाल मृत्यु कहा जाता है| उदाहरण के तौर पर, कोरोना जैसी महामारी से करोड़ों मनुष्यों ने, अपना जीवन गंवाया था जिसे, लोग अकाल मृत्यु कह सकते हैं लेकिन, इसके पीछे बतायी गई धारणाएँ, निराधार है| अकाल मृत्यु के पीछे यह धारणा है कि, मरने के बाद मनुष्य की आत्मा भटकती रहती है जो, सरासर ग़लत है| दरअसल, हमारे शरीर को चलाने वाली जीवात्मा शरीर के साथ ही नष्ट हो जाती है लेकिन, जिस आत्मा की बात हमें बतायी जा रही है वह, सूर्य की तरह है अर्थात, सभी की एक आत्मा है और मानव शरीर के मिटते ही, वह वापस ब्रम्हाण्ड में समा जाती है| जिस प्रकार सूरज की रोशनी, एक मकान के अंदर प्रकाश दे रही होती है| उसे हम मकान का प्रकाश कहते हैं लेकिन, यदि मकान गिरा दिया जाए तो, प्रकाश तो वहीं रहेगा, कमरा भले ही मिट्टी में बदल चुका हो| यहाँ हम यह कह सकते हैं कि, आत्मा न तो मरती हैं, न ही जन्म लेती है| वह तो युगों युगों से यहीं है| आत्मा के रहस्यों को समझने के लिए, एक लेख उपलब्ध है जिससे, आप समझ सकेंगे की आत्मा और जीव आत्मा में क्या अंतर होता है|
उपरोक्त बिंदुओं से, आपने मृत्यु के वास्तविक रूप को समझ लिया होगा| यहाँ कुछ लोगों के मन में सवाल उठ रहे होंगे कि, अगर शरीर की मृत्यु के बाद कोई जीवन नहीं तो, प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख क्यों किया गया है? इसका उत्तर है, जिन ग्रंथों की आप बात कर रहे हैं, वह कहानियों पर आधारित रचनाएँ है जिसे, अतिश्योक्ति ही कहा जाएगा| दरअसल, मनुष्य बिना आध्यात्मिक ज्ञान के एक जानवर की तरह है जिसे, समझाने के लिए प्राचीन ऋषि मुनियों ने, तरह तरह की विधियों का उपयोग किया था और उन्हीं विधियों में एक डर भी है| जिसके माध्यम से, मनुष्य को पूरी तरह जानवर बनने से रोका जा सके| कई बार ऐसी धारणाएं भी आवश्यक होती है ताकि, मनुष्य को अगले जन्म का भय दिखाकर, पाप पर अंकुश लहगाया जा सके| यह विधि वर्तमान समय भी में भी कारगर सिद्ध हो रही है इसलिए, कोई भी ऐसा कार्य जो, मानवीय चेतना को ऊँचा उठाने में सहयोग प्रदान करें, वह निश्चित ही सम्मान का पात्र है इसलिए, सभी प्राचीन ग्रंथ पूजनीय हैं|