मनुष्य का डर (Human fear psychology)

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मनुष्य का डर (Human fear psychology in hindi):

मनुष्य के जीवन में डर का एक महत्वपूर्ण स्थान है| हमारी सारी व्यवस्था डर पर आधारित है| घर बनाना मतलब मौसम से डर, रोज़गार ढूँढना मतलब दरिद्रता से डर, बीमा करवाना मतलब कुछ खोने का डर और इसी तरह के न जाने कितने डर है जो, हमारे जीवन को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करते हैं|

डर मनुष्य के ज्ञान को हर लेता है और उसे मानसिक बंधनों में जकड़ लेता है परिणामस्वरूप, हमारा जीवन आनंदविहीन हो जाता है| आज हम जिस भी बात से डरते हैं क्या, वास्तव में उससे डरना सही है या हमारा डर केवल हमारी अज्ञानता की उपज है? इसे गहराई से समझने के लिए, हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|

1. डर क्या है?
2. डर कैसे पैदा होता है?
3. डर को कैसे दूर करें?
4. क्या मौत से डरना चाहिए?
5. डर के आगे क्या है?

डरना सही है: to be afraid it's okay?
Image by Alana Jordan from Pixabay

डर को एक व्यवस्था की तरह चलाया जाता है जहाँ, मनुष्य के जन्म से लेकर, उसके मरने के बाद तक के, डर दिखाए गए हैं| जिसके माध्यम से, सामाजिक व्यवस्था को नियंत्रित किया जाता है| हालाँकि, कुछ हद तक यह तरीक़ा कारगर होता है लेकिन, इससे अंधविश्वास को भी बढ़ावा मिलता है इसलिए, डर का कारण समझना मनुष्य के लिए अनिवार्य हो जाता है| आइए उपरोक्त बिंदुओं से डर का विश्लेषण करते हैं|

डर क्या है?

डर क्या हैः what is fear?
Image by Chen from Pixabay

सांसारिक विषय वस्तुओं के प्रति आसक्ति ही डर को जन्म देती है अर्थात, मोह से डर का जन्म होता है| उदाहरण से समझें तो, किसी नौकरी के प्रति आकर्षण होना, उस नौकरी के खोने का डर पैदा कर सकता है| अपने शरीर से अधिक मोह, मृत्यु का भय प्रकट करता है| किसी व्यक्ति के प्रति मोह रखना, उसके जाने का डर उत्पन्न करता है और इसी तरह दुनिया के किसी भी पदार्थ के प्रति जुड़ाव ही, डर की मुख्य वजह है|

डर कैसे पैदा होता है?

डर कैसे पैदा होता हैः How fear arises?
Image by Gerd Altmann from Pixabay

डर का मूल कारण अज्ञानता होती है अर्थात, जब हम स्वयं को नहीं जानते तो, हम किसी भी विषय वस्तु से मोह कर बैठते हैं तत्पश्चात, डर हमारे मन में आसरा ढूंढ लेता है| ज़रा ग़ौर से सोचिए क्या, आज तक आपको किसी ऐसे विषय से डर लगा है जिससे, आपका कोई लगाव न हो या, आप उससे पहले से परिचित न हों? डर की उत्पत्ति हमारे अतीत की जानकारियों से होती है| अगले चरण में आप अपने मन के डर को समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे|

डर को कैसे दूर करें?

डर को कैसे दूर करेंः How to overcome fear?
Image by Pete Linforth from Pixabay

मनुष्य का डर तब तक दूर नहीं हो सकता जब तक, वह अपने अहम से जुड़ा है अर्थात, आपकी पहचान ही आपका डर है जिसे, दूर करने का एकमात्र उपाय आध्यात्मिक ज्ञान है| अब आप सोच रहे होंगे कि, हमारे जीवन से जुड़े डर के लिए, अध्यात्म भला क्या कर सकता है? तो आपको बतादें, वास्तविक अध्यात्म ही मनुष्य की अज्ञानता दूर कर सकता है और मानव अज्ञान ही, भय का मुख्य कारण है| उदाहरण से समझें तो, यदि कोई व्यक्ति धन दौलत को अधिक महत्व देता है तो, उसका जुड़ाव संपत्ति के प्रति अधिक होगा और संपत्ति जाने का भय, उससे भी अधिक|

यदि कोई व्यक्ति मृत्यु के सत्य को नज़रअंदाज़ करके, अपने शरीर से अधिक जुड़ाव रखता है तो, छोटी सी बीमारी भी उसे भयभीत कर सकती है| उपरोक्त दोनों स्थितियों में, यदि अध्यात्म की गहराई को समझ लिया जाए तो, आप समझ सकेंगे कि, इस संसार में मौजूद हर विषय वस्तु मिटने वाली है तो, फिर मोह किसका करना लेकिन, हमारी अज्ञानता हमें आए दिन, भय के भँवरजाल में फँसाये रखती है और हमारा जीवन आनंद से वंचित रह जाता है|

क्या मौत से डरना चाहिए?

क्या मौत से डरना चाहिएः Should we be afraid of death?
Image by Keila Maria from Pixabay

मनुष्य अपने जीवन में कई बार मरता है और जन्म लेता है जिसे, पुनर्जन्म कहा जाता है| यहाँ पुनर्जन्म का अर्थ, मृत्यु के बाद किसी दूसरे शरीर में प्रवेश करने से नहीं है बल्कि, आपके निरंतर बदलाव से है| बचपन से आज तक आप कई भूमिकाओं में अभिनय कर चुके होंगे जिसे, आप सत्य समझ रहे हैं| उदाहरण से समझें तो, एक छोटा बच्चा पैदा होते ही, किसी का बेटा होता है और आगे चलकर किसी का भाई बनता है| किसी का पति बनता है और किसी का पिता बनता है| यहाँ सभी रिश्ते, द्विपक्षीय होते हैं अर्थात, एक पक्ष का मिटना ही, दूसरे पक्ष की मृत्यु होता है लेकिन, साधारण मनुष्य शरीर मिटने को ही, मृत्यु से जोड़कर देखते हैं जिससे, भयभीत होकर वह अपनी देह की सुरक्षा में, जीवन समर्पित कर देते हैं और अपनी वास्तविकता से अनभिज्ञ रह जाते हैं| हमारा जन्म ही दुख है और दुख का मिटना ही, हमारी मृत्यु कहलाती है अर्थात केवल सांसारिक बंधनों से मुक्ति ही, मृत्यु का भय समाप्त कर सकती है|

डर के आगे क्या है?

डर के आगे क्या हैः What's next to fear?
Image by intographics from Pixabay

आपने लोगों को कहते सुना होगा कि, डर के आगे जीत है लेकिन, यह बेबुनियाद बात है| अगर डर के पीछे हमारा अज्ञान है तो, डर के आगे हमारा भ्रम है अर्थात, भय से असुरक्षा का भाव उत्पन्न होता है और वह हमारी मति भ्रष्ट कर देता है|

यदि आप को बिना ड्राइविंग सीखे ही, चालक की सीट पर बैठा दिया जाए तो, आप भय से कांप जाएंगे लेकिन, यदि आपको गाड़ी चलाने का अनुभव है तो, यह आपके लिए सामान्य बात होगी| उसी तरह जीवन के किसी भी मोड़ पर, स्थिति की वास्तविकता को न देख पाना ही, डर की मुख्य वजह होती है| आपको यह समझना होगा कि, मनुष्य एक यंत्र है जिसे, संचालित करने की प्रक्रिया को आध्यात्मिकता के रास्ते से ही समझा जा सकता है अन्यथा, बाहरी परिस्थितियां ही हमारी नियंत्रक बनी रहेंगी| इसलिए मनुष्य को चाहिए कि, वह अपनी शक्ति को पहचानें दीनता और दरिद्रता से बाहर आए ताकि, आत्मसाक्षात्कार किया जा सके और भयमुक्त जीवन के साथ, परमानंद प्राप्त हो सके|

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