दुनिया (duniya explained in hindi):
प्रत्येक मनुष्य की अपनी एक निजी दुनिया होती है किंतु, उसकी तुलनात्मक मानसिकता इस रहस्य पर पर्दा डाल देती है| आपने देखा होगा, एक ही विद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थी, विभिन्न विचारों से ग्रसित होते हैं| किसी के लिए, शिक्षा अवसर की भांति होती है और किसी के लिए, मनोरंजन का बाधक बन जाती है| अब जो शिक्षा से प्रेम करता है उसकी दुनिया, आनंदित होगी और जो, शिक्षा में रुचिहीन है उसकी दुनिया, दुखदायी बन जाएगी| मनुष्य का अतीत, उसकी दुनिया की रचना करता है| दुनिया केवल व्यक्तिगत महत्व रखती है जिसे, काल्पनिक कहना ही उचित होगा अर्थात सभी को संसार, वैसे दिखाई नहीं देता जैसे, आप देख रहे हैं| किसी के लिए, दुनिया सुख का साधन है और किसी के लिए, दुख का सागर| वस्तुतः सभी सांसारिक वस्तुएँ, विभिन्न गुणों से सुसज्जित होती है| उन्हीं गुणों के प्रति आकर्षण ही, मनुष्य की व्यक्तिगत दुनिया का निर्माण करता है| जैसे, एक युवा पुरुष के लिए, स्त्री की शारीरिक सुंदरता, आकर्षण का माध्यम बन सकती है लेकिन, एक फ़िल्म-निर्देशक, उसी लड़की को कलाकार की भांति देखेगा| हाँ, यदि निर्देशक भी, अपने आपको पुरुष समझ रहा होगा तो, वह भी प्राथमिक तौर पर, लड़की से आकर्षित हो सकता है| यहाँ अंतर केवल, मानवीय प्रवृत्ति का है| निम्नलिखित प्रश्नों में इसका स्पष्टीकरण दिया गया है|
- दुनिया क्या है?
- दुनिया बनाने वाला कौन है?
- दुनिया इतनी बुरी क्यों है?
- क्या दुनिया खत्म हो जाएगी?
- दुनिया को कैसे बदल सकते हैं?
मनुष्य की दुनियाँ प्रतिक्षण परिवर्तनीय हैं जहाँ, इंद्रियों द्वारा उत्पन्न विषय या विवेक ही, इसे संचालित करते हैं| अब जब मनुष्य सांसारिक लोगों की बतायी हुई बातों के अनुसार, अपनी दुनिया की रचना करता है तो, वह संकुचित कर्मफल में फँस जाता है जिसे, केवल आत्मज्ञान से ही देखा जा सकता है| जब भी, आपने किसी से सांसारिक विषय में प्रश्न पूछे होंगे तो, उसने अपने अनुभवों के अनुसार, ही उत्तर दिए होंगे| जैसे, किसी व्यक्ति को खिलौनों के व्यापार से हानि हुई हो तो, वह अपने किसी संबंधी को, खिलौने से संबंधित व्यापार करने की राय नहीं देगा| अब यहाँ, खिलौना समस्या नहीं है बल्कि, उस व्यक्ति का अनुभव ही, उसकी दुनिया का निर्माण कर चुका है और उसके अनुसार, खिलौनों का व्यापार घाटा ही देता है तो फिर, कहाँ से वास्तविक दुनिया को देखा जा सकता है? आइए जानते हैं|
दुनिया क्या है?
वैज्ञानिक वैद्यता के अनुसार, ब्रह्माण्ड की भौतिक स्थिति ही दुनिया है जो, निरंतर रूपांतरित हो रही है| इसके अंतर्गत, सभी ग्रह, उपग्रह, तारे, नक्षत्र, वायु, अग्नि, जल इत्यादि भौतिक विषयों का समायोजन है किंतु, व्यक्तिगत रूप से सभी की दुनियाँ विभिन्न होती है अर्थात मनुष्य का व्यक्तिगत दृष्टिकोण ही, उसकी दुनिया का निर्माण करता है और दृष्टिकोण अतीत में प्राप्त हुई सूचनाओं से बनता है| एक छोटा बच्चा, फूल को खिलौने की भांति समझ सकता है लेकिन, उस फूल को एक फोटोग्राफर, आकर्षण का केंद्र समझेगा| एक वैज्ञानिक के लिए, वही फूल शोध का विषय बनेगा| मधुमक्खी के लिए, भोजन का माध्यम और प्रेमी प्रेमिका के लिए, उपहार का प्रतीक| अतः स्पष्ट है कि, दृष्टिकोण ही दृष्टि का जन्मदाता है| यदि किसी व्यक्ति को, किसी भी तरह की जानकारियां न दी जाए तो, वह कदाचित् अपने आस पास के क्षेत्र से बड़ी दुनिया की, कल्पना नहीं कर सकेगा| कुएँ में रहने वाला मेंढक, समुद्र से अनभिज्ञ होता है| उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य, अपने ज्ञान के अनुसार ही, अपनी दुनिया बना सकता है|
दुनिया बनाने वाला कौन है?
विज्ञान के अनुसार, दुनियाँ बिग बैंग का परिणाम है और यदि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो, सभी संप्रदायों ने एक विशेष शक्ति की कल्पना की है जिसे, न देखे जाने का दावा किया गया है जो, अनंत है वही, इस ब्रम्हाण्ड के रचयिता हैं| अब बात आती है, मानवीय जीवन के लिए, दुनिया बनाने वाले की क्या परिभाषा होनी चाहिए? तो, मनुष्य का आत्मज्ञान ही, उसकी दुनिया का रचयिता है| जब तक एक पत्थर को पत्थर की भांति, मनुष्य को मनुष्य की भांति और पशु पक्षी को उनके यथार्थ रूप में, न देखा जा रहा हो तो, स्पष्ट है कि, आप अपनी दुनियाँ, सांसारिक दृष्टिकोण के आधार पर, देखने का प्रयत्न कर रहे हैं जो, हास्यास्पद है| प्रत्येक मनुष्य की क्षमता विभिन्न होती है, अतः ज्ञान ही, हमारी दुनिया का विधाता बन सकता है तो फिर, किसी और की मान्यताओं के अनुसार, अपना दृष्टिकोण कैसे बनाया जा सकता है| शिक्षा ग्रहण न करने वाले व्यक्ति, संयोग से भले ही धन प्राप्त कर लें किंतु, दुनिया को देखने की दिव्य दृष्टि, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक विषय के संयुक्त अध्ययन से ही प्राप्त की जा सकती है|
दुनिया इतनी बुरी क्यों है?
यह आपकी व्यक्तिगत सोच हो सकती है लेकिन, दुनिया मनुष्य के निजी दृष्टिकोण पर निर्भर करती है| दुनिया अनंत गुणों से सराबोर है| जिनकी खोज निरंतर चल रही है| गुरुत्वाकर्षण जैसे नियम तो, विज्ञान का कुछ प्रतिशत ही हैं| आप प्रकृति के जिन गुणों को धारण करते हो, उसी के अनुसार आपकी दुनियाँ बन जाती है| एक छोटे से बच्चे के लिए, उसकी दुनिया माँ तक सीमित हो सकती है क्योंकि, उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति, माँ से हो रही है किंतु, जैसे जैसे वह बच्चा बड़ा होगा, उसके स्वार्थ का दायरा बढ़ता जाएगा और फिर, वह सांसारिक व्यक्तियों से जुड़कर, अपनी पह्चान बदलता रहेगा जिससे, उसकी दुनिया भी, समय के अनुसार, परिवर्तित होती रहेगी| बचपन में उसे, अपने दोस्त निस्वार्थी प्रतीत होंगे लेकिन, बढ़ती आयु के साथ, उनके प्रति विचार बदल जाएंगे| वस्तुतः मनुष्य की आवश्यकताएँ ही, उसके शरीर का संचालन करती हैं| जैसे, किसी लड़के को कोई लड़की, दोस्त के रूप में पसंद करती है किंतु, जैसे ही वह लड़का प्रेम का प्रस्ताव रखता है तो, कदाचित् लड़की के लिए वह लड़का बुरा बन सकता है और रातों रात, दोनों की दुनिया बदल जाएगी| इसलिए, दुनिया केवल आपके लिए बुरी हो सकती है, सभी के लिए नहीं| मनुष्य तो केवल कुछ लाख वर्षों से ही इस पृथ्वी में आए हैं तो, कैसे मानवीय विचारों से, दुनिया की कल्पना की जा सकती है| यह कैसे कह सकते हैं कि, आप जो देखते हैं, वही सच होता है? क्या आप जानते हैं, कई जानवरों को घास का रंग काला दिखाई देता है लेकिन, मनुष्य की प्रजाति घास का हरा रंग देख पाती है तो, यह कैसे कहा जाए कि, मनुष्य की दृष्टि प्रमाणित है| अब घास का नाम वैज्ञानिक हरा रखें या लाल क्या अंतर है| अतः स्पष्ट है कि, दुनिया न तो बुरी है और न ही अच्छी, यह व्यक्तिगत परिप्रेक्ष्य मत है|
क्या दुनिया समाप्त हो जाएगी?
मनुष्य के लिए, दुनिया उस दिन समाप्त होती है जिस दिन, वह अपनी देह त्याग देता है किंतु, यदि विज्ञान के दृष्टिकोण से देखा जाए तो, एक मानवीय शारीरिक संरचना के अनुकूल वातावरण ही, उसकी दुनिया सुरक्षित रख सकता है| यदि तापमान में वृद्धि या अत्यधिक गिरावट हो जाये तो, मनुष्य की दुनियाँ समाप्त हो सकती है लेकिन, पृथ्वी का अस्तित्व, मनुष्य के बाद भी रहेगा| जिस प्रकार डायनासॉर समय के साथ विलुप्त हुए, उसी प्रकार वातावरण के अनुसार, सभी प्रजातियां आकार विलुप्त होती रहती हैं| पृथ्वी का इतिहास तो, करोड़ों वर्षों का है| मनुष्य केवल कुछ समय का अतिथि है जिसे, पृथ्वी के प्रति स्नेह भाव रखते हुए जीना चाहिए|
दुनिया को कैसे बदल सकते हैं?
दुनिया बदलने के लिए, अपनी संगत बदलनी होगी| मनुष्य जिन व्यक्ति या वस्तुओं के पास होता है. उन्हीं का प्रतिबिंब रूप कहलाता है| स्त्री प्रेम में है तो, पुरुष| शिक्षा से स्नेह हैं तो, विद्यार्थी| परीक्षा में बैठे हैं तो, परीक्षार्थी और व्यापार में रूचि है तो, व्यापारी कहलाएगा| अब यदि कोई व्यक्ति, अपनी दुनिया बदलना चाहता है तो, उसे अपने आस पास के लोगों को बदलना होगा किंतु, बदलकर किसके समीप जाया जाए, यह दुविधापूर्ण प्रश्न है, जिसका उत्तर, मनुष्य के अंदर ही छुपा है लेकिन, वह तब तक दिखाई नहीं दे सकता जब तक, मनुष्य अपने वास्तविक रूप को न देख ले किन्तु, सांसारिक वातावरण को परिवर्तित करने की बात की जाए तो, बच्चों और युवाओं को, प्रकृति के प्रति प्रेम सिखाकर ही, शिक्षित किया जा सकता है| इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार की विचारधारा, संपूर्ण मानव जाति के लिए विनाशक है| किसी भी पशु पक्षी को देखने का उद्देश्य, प्रेम भी हो सकता है और मांस भक्षण करने की तीव्र लालसा भी, अंतर केवल मनुष्य की विचारधारा का है जिसे, सामाजिक शिक्षा से प्राप्त किया जाता है|
मनुष्य का जीवन सीमित समय के लिए प्राप्त हुआ है| अतः स्वयं को नर्क जैसी मानसिक अवस्था में रखना मूर्खता पूर्ण है| अपनी दुनिया का रचयिता, स्वयं ही बनना होगा| आज आप कह सकते हैं कि, महँगाई है किंतु, किसके लिए? जिसके पास धन नहीं है लेकिन, जो धनाढ्य है, उसके लिए व्यय करना सामान्य बात लगती होगी या जो विद्यार्थी, पढ़ने में रुचि रखते हैं उन्हें, परीक्षा के समय, आनंद का अनुभव होता होगा लेकिन, जो विद्यार्थी जीवन में दिशाहीन मार्ग पर हैं, वह निश्चित ही, परीक्षा से घृणा करेंगे| स्वयं को पहचाने बिना, किसी कार्य को धारण नहीं करना चाहिए| संसार को दिखाने के लिए, जीवन जीने वाले व्यक्तियों को, दुख की अधिकता का सामना करना पड़ता है| अतः स्वाध्याय का मार्ग, स्वर्ग से भी सुंदर दुनिया में भेज सकता है जिसे, प्रत्येक मनुष्य को अपनाना चाहिए तभी, अद्भुत दृष्टिकोण, आनंदित जगत की रचना करेगा|