मांसाहार (mansahar explained in hindi):
पृथ्वी में रहने वाले सभी जीवों के भोजन हेतु, प्रकृति ने एक व्यवस्था बनायी है जिसके अंतर्गत, शाकाहार और मांसाहार आते हैं| शाकाहार को तो मानवीय समाज से स्वीकृति मिल चुकी है किंतु, मांसाहार के लिए आज भी दोहरा रवैया है| कुछ लोग मांस खाने को पाप पुण्य से जोड़कर देखते हैं लेकिन, कुछ ऐसे मनुष्य भी हैं जो, इसे वैज्ञानिक आधार पर खाद्य श्रृंखला समझते हैं| जिनका मानना है कि, हमारा सबसे पहला धर्म, हमारे शरीर को बचाना है किंतु, वह भूल जाते हैं कि, मनुष्य का अंतिम उद्देश्य दुख से मुक्ति है, जिसकी तलाश में वह, शारीरिक वृत्तियों को अधिक महत्व देने लगते हैं| आज मांसाहार, न केवल मनुष्यों के लिए बल्कि, पूरी पृथ्वी के लिए विनाशकारी है| जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मांसाहार ही है| पूरे विश्व में खेती के लिए जंगल काटे जाते हैं और 80 प्रतिशत खेती, केवल पालतू पशुओं को पोषण देने हेतु की जाती है ताकि, उनसे मांस और दूध जैसे, आहार प्राप्त किये जा सकें| अनाज का अधिकतम उपभोग गाय, भैस, बकरी, मुर्ग़ी, मछली जैसे जीवों द्वारा किया जाता है और यह सारे जीव, मांसाहार के लिए ही विकसित किए जाते हैं| आज केवल पाँच प्रतिशत जंगली जानवर बचे हैं उनमें भी, माँस की पूर्ति हेतु ९५ प्रतिशत, कृत्रिम प्रक्रिया के तहत पैदा किए जाने वाले जानवर होते हैं| जिनका पोषण करने के लिए, बड़ी मात्रा में खेती की जाती है जिससे, प्रकृति का संतुलन अस्थिर हो रहा है| अगर मांसाहार नहीं रोका गया तो, यह पृथ्वी के लिए भयावह होगा हालाँकि, मांसाहार पर लोगों के सकारात्मक और नकारात्मक विचार हैं लेकिन, किसी की बात को तथ्यात्मक प्रमाणिकता नहीं दी जा सकती क्योंकि, यदि यह मान लिया जाए कि, जानवरों की हत्या करना पाप है तो, ऐसे स्थान में रहने वाले व्यक्तियों का क्या होगा जहाँ, अनाज का एक दाना तक नहीं होता| कुछ ऐसे हिम क्षेत्र हैं जहाँ, कई महीनों बर्फ़ की चादर ढकी होती है और वहाँ के निवासियों को, भोजन के लिए मछलियों या अन्य समुद्री जीवों पर आश्रित होना पड़ता है किंतु, जहाँ अनाज की उपलब्धता होते हुए भी, मांसाहार किया जाए क्या, वह सही है? हालाँकि, लोगों के पास विभिन्न प्रकार की सांप्रदायिक मान्यताएं हैं| जिनके अंतर्गत मांसाहार को, वैधता दी गई है तो, इसे कोई अनुचित कैसे कह सकता है| मांसाहार की तथ्यात्मक अध्ययन के लिए हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|
- मांसाहार क्या होता है?
- मांसाहार सही या गलत?
- शेर मांस क्यों खाता है?
- मनुष्य मांस क्यों खाते हैं?
- मांस क्यों नहीं खाना चाहिए?
- तुलनात्मक शारीरिक भिन्नता कैसी है?
- मांस खाने से कैसे छुटकारा पाएं?
इंटरनेट में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, विश्व की 70% जनसँख्या मांसाहार करती है जिनमें, अधिकतर लोग माँसाहार स्वाद से करते हैं और कुछ लोग, अपनी सेहत का हवाला देते हुए, मांसाहार पसंद करते हैं लेकिन, कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें, शाकाहार न मिलने की वजह से, मांसाहार का चुनाव करना पड़ता है| परिस्थितियां कैसी भी हों, सबके अपने अपने तर्क हैं किंतु, आज तक हम एक सही विचार तक नहीं पहुँच सके| जिसका संबंध, मनुष्य की चेतना से होना चाहिए न कि, उसके भोग से| तो भला यह कैसे पता किया जाए कि, मनुष्य के लिए किस समय क्या खाना सही होगा? निम्नलिखित बिंदुओं से समझने का प्रयत्न करते हैं|
मांसाहार क्या होता है?
पशु पक्षियों के माँस से बना हुआ भोजन, मांसाहार की श्रेणी में आता है| कुछ लोगों का मानना है कि, पालतु जानवरों का दूध भी शाकाहारी की श्रेणी में नहीं लिया जा सकता| केवल पेड़ पौधों से प्राप्त भोजन ही, शुद्ध शाकाहारी माना जाएगा हालाँकि, मांसाहार का प्रचलन मनुष्य की, आदिम वृत्तियों से है अर्थात जब मनुष्य वन में रहता था और जानवरों के शिकार से, अपना पेट भरता था| प्रारम्भ में मानव अनाज का उत्पादन करना नहीं जानता था तब से, मांस और कंदमूल फल खाने की शुरूआत हुई लेकिन, धीरे धीरे हमारा ज्ञान विकसित हुआ और हम जंगली फलों और खेती से प्राप्त शाकाहार भोजन करने लगे हालाँकि, आज के समय में अधिकतर खेती, पशुओं के भरण पोषण के लिए की जाती है ताकि, उन पशुओं के माँस से मनुष्य अपनी खाद्य पूर्ति कर सके|
मांसाहार सही या ग़लत?
इस संसार में सही-गलत जैसा कोई विषय नहीं होता| समय, स्थान, संयोग और करुणा से चुने गए सभी कार्य मानव के लिए उचित होते हैं| माँसाहार करना, न सही है, न गलत और न ही इसका संबंध, किसी तरह के पाप से है| वस्तुतः मनुष्य शुरुआती समय में, जानवरों की भांति जीवन जिया करता था जहाँ, वह कम भावनात्मक था किंतु, फिर भी वह मुख्यतः कंदमूल फल जैसे भोजन का ही चुनाव करता था| जैसे-जैसे ज्ञान प्राप्त हुआ, उसकी चेतना भी विकसित होने लगी| चेतना अर्थात् मनुष्य की बुद्धि को चलाने वाली शक्ति और इसी शक्ति की वजह से, मनुष्य ने प्रेम सीखा| प्रेम से सुख दुख जैसी भावनाओं जन्म हुआ। पहले एक इंसान, दूसरे इंसान को मारकर खा जाया करता था लेकिन, जब हमारी समझ विकसित हुई तो, हमने इंसानों को खाना छोड़ दिया किंतु, कुछ ऐसे भी मनुष्य थे जिनकी, चेतना और ऊपर उठी तो, उन्होने पशु पक्षियों को भी प्रेम देना प्रारंभ कर दिया| वह पूर्णता शाकाहारी बन गए और इस भाव से वह, अपने दुखों को कम करने के एक पायदान ऊपर आ गए| चूँकि, एक मांसाहारी संवेदनहीन होता है| अतः वह शांत चित्त से वंचित रह जाता है|
किसी जानवर के लिए मांस भक्षण करना भले ही उचित हो लेकिन, मनुष्य की चेतना के लिए यह नकारात्मक होता है अर्थात जो मनुष्य, स्वयं को प्राकृतिक जीवों से पराया समझता है उसे, मोह के बंधनों से मुक्ति कभी नहीं मिलती और वही बंधन उसका, सबसे बड़ा दुख बन जाते हैं| मांसाहार से केवल दो तरह के मनुष्य को दुख नहीं मिलता एक जो, पूर्णतः मूर्ख है और दूसरा जो, बहुत ज्ञानी है क्योंकि, एक ज्ञानी व्यक्ति मांस खाने का चुनाव, तभी करेगा जब, उसके पास किसी तरह का शाकाहार उपलब्ध न हो और मूर्ख व्यक्ति मांस खा भी ले तो, उसे अपनी चेतना ऊपर उठाने से कोई मतलब नहीं| वह अब पत्थर बन चुका है| न ही उसके दिल में प्रेम है और न ही किसी के लिए दया| वह तो, अपने सगे संबंधियों से भी प्रेम करना छोड़ चुका होगा किंतु, जो मनुष्य प्रेम समझते हैं उनके लिए, मांसाहार करना हानिकारक होता है क्योंकि, जब आप किसी जानवर की हत्या करते हैं या उसका कारण बनते हैं तो, इसका मतलब आप उसे पराया समझ रहे हैं और यदि वह पराया है तो, कोई आपका अपना भी होगा जिसे, आप दिल से प्रेम करते होंगे| आपका यही प्रेम, आपको केंद्रित मोह से जकड़ लेगा, फिर जब भी जीवन में थोड़ा उतार चढ़ाव आएँगे, वह आपके लिए अत्यधिक पीड़ादायक होंगे| इस बात का सीधा संबंध आत्मज्ञान से है| आगे आने वाले बिंदुओं से यह बात स्पष्ट होगी|
शेर मांस क्यों खाता है?
शेर एक जानवर है| जिसके अंदर कोई चेतना नहीं होती, वह सभी जानवरों की भांति, प्राकृतिक तौर पर शारीरिक आवश्यकताओं के लिए बाध्य है और वह उसी के अनुसार जीवन जीने के लिए विकसित हुआ है हालाँकि, इसमें उसकी शारीरिक संरचना की प्रमुख भूमिका है जिसका, स्पष्टीकरण आगे उपलब्ध है| जैसा कि, आप जानते हैं| प्रकृति ने एक खाद्य श्रृंखला बनायी है जिसमें, शेर एक ख़ूँख़ार जानवर है और उसका पाचन तंत्र, मांस पचाने के अनुसार विकसित हुआ है| जिसके अंतर्गत, वह छोटे से लेकर विशाल जानवर तक को, कच्चा ही खा सकता है| शेर के मन में शिकार करते समय, किसी तरह की करुणा नहीं होती लेकिन, मनुष्य की आवश्यकता प्रेम है जिसका, अन्तिम उद्देश्य शांति है इसलिए, मांसाहार खाने में मनुष्य की तुलना, शेर से नहीं की जा सकती| मनुष्य का पाचनतंत्र, शाकाहारी भोजन के लिए, सर्वाधिक अनुकूल है फिर भी, क्या मनुष्य के लिए मांसाहार करना सही है? इसे हम अगले बिंदु से समझने का प्रयास करते हैं|
मनुष्य मांस क्यों खाते हैं?
मनुष्य प्रकृति का सर्वाधिक बुद्धिमान जीव है जो, स्वयं को किसी भी तरह के भोजन के अनुकूल बना सकता है| मानव शरीर भले ही प्राकृतिक तौर पर मांस के प्रतिकूल हो किन्तु, वह आग की सहायता से उसे अपने पाचन तंत्र के अनुकूल बना कर खाता है जिसे, पाश्विक सोच की उत्पत्ति ही कहा जायेगा| मनुष्य का मांस खाया जाना प्राचीन काल से ही चला रहा है जहाँ, वह जंगल की आग में मरे हुए जानवर, खा जाया करता था| उस समय मानव शरीर की, सबसे पहली प्राथमिकता जंगल के बीच में रहते हुए, स्वयं को सुरक्षित रखने की थी| तब से मनुष्य, मांस भक्षण करता आ रहा है किंतु, यह कोई श्रेष्टता की बात नहीं| मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है कि, वह सृष्टि का न्यूनतम उपभोग करें जहाँ, वह छोटे पौधों को उनकी आयु समाप्त होने पर, भोजन के लिए उपयोग करें और वृक्षों से, बिना उन्हें हानि पहुँचाए, फल औषधि आदि ग्रहण करे| यह कोई नैतिकता की बात नहीं बल्कि, मानव जीवन की ख़ुशी के लिए, यह अत्यंत आवश्यक है जिसे, हम अगले बिंदु में समझते हैं|
मांस क्यों नहीं खाना चाहिए?
मनुष्य को चेतना रूपी शरीर प्राप्त हुआ है न कि, पशु रूपी अर्थात मनुष्य, अपने शारीरिक वृत्तियों के अनुसार निर्णय नहीं ले सकता| यदि वह ऐसा करता है तो, उसके जीवन में दुखों की अधिकता आवश्यक होगी| यदि मांस खाने वाला मनुष्य, अपने जीवन में प्रेम चाहता है तो, उसे भी अन्य जीवों के प्रति प्रेम भाव रखना चाहिए| मांस खाने से, किसी तरह का पाप नहीं लगता लेकिन, मनुष्य अपनी आंतरिक संवेदना खो बैठता है जिससे, वह मुक्ति के मार्ग में कभी प्रवेश नहीं कर सकता| मुक्ति वह मार्ग है जो, मनुष्य के जीवन से जुड़े हुए सभी तरह के बंधनों से, पृथक करने को प्रेरित करता है क्योंकि, बंधन ही मनुष्य का दुख हैं| आपने देखा होगा, आपके जीवन में उन्हीं व्यक्तियों से सर्वाधिक दुख मिला होगा, जिन्हें आप कभी अपना समझा करते थे| आख़िर क्या हुआ जो आपके अपने, बदल गए| इसका सबसे बड़ा कारण आपका मोह है| यदि आपने किसी विशेष व्यक्ति या वस्तु को, अधिक महत्व न देते हुए, सभी जीव जन्तुओं, पशु पक्षियों या इंसानों को अपना माना होता तो, कदाचित् आप किसी पर प्रेम के लिए आधारित नहीं होते और यही मुक्ति की प्रथम सीढ़ी है जो, मनुष्य के जीवन को आनंद से भर देती है| यदि आप किसी जानवर का मांस खाते हैं इसका मतलब, वह आपका अपना नहीं हैं और आपका यही भाव, आपको प्रकृति से दूर कर देता है जिससे, आपके दुख निरंतर बढ़ते रहते हैं किंतु, एक विशेष स्थिति में जहाँ, किसी तरह का भोजन उपलब्ध नहीं है लेकिन, आपको कुछ सार्थक कर्म के लिए, जीवित रहना है तो, निःसंदेह आप मांसाहार कर सकते हैं| कुछ प्राचीन कहानियों में तो, मनुष्य ने जीवन बचाने के लिए, अपने शरीर का मांस तक खिलाया है|
तुलनात्मक शारीरिक भिन्नता कैसी है?
शारीरिक बनावट के अनुसार भी यदि देखा जाए तो, मांसाहारी जानवरों में शाकाहारी की तुलना में, आँतों का आकार छोटा पाया जाता है ताकि, लंबे समय तक मांस उनके पाचन क्रिया का हिस्सा न रहे अन्यथा वह विष का कार्य करेगा किन्तु, शाकाहारियों की आँतें शरीर की लंबाई से, लगभग आठ गुना होती है ताकि, वह आराम से अपना भोजन पचाते रहें| मांसाहारी का जबड़ा, केवल ऊपर नीचे बड़े आकार में खुलता है| वहीं शाकाहारी का मुँह चबाने योग्य जबड़ों के साथ होता है| शाकाहारियों के पेट, शारीरिक अनुपात में छोटे आकार के होते हैं ताकि, वह थोड़ा थोड़ा खाते और पचाते रहें लेकिन, मांसाहारी बड़े पेट के साथ होते हैं जो, एक बार में अत्यधिक मात्रा में मांस ग्रहण करते हैं| यदि बात नुकीले दांतों की जाए तो. मांसाहारी जीव लंबे नुकीले दांतों के साथ विकसित हुए हैं किन्तु, शाकाहारी आनुपातिक तौर पर कठोर फल खाने योग्य दाँतों के साथ पाए जाते हैं| मांसाहारी जीवों की आंखें केवल दो रंग ही देख पाती हैं ताकि, वह भागते हुए जानवरों की गतिशीलता देख सकें किन्तु, शाकाहारियों में तीन विशिष्ट रंगों को पहचानने योग्य कोशिकाएं होती हैं जिसकी, सहायता से सभी रंग पहचाने जा सकते हैं और यही कारण है कि, शाकाहारी अपने भोजन के रंग देखकर उसकी स्थिति का पता लगा सकते हैं| मांसाहारी जानवरों के पंजे और नाख़ून शक्तिशाली होते हैं जिससे, माँस आसानी से नोचकर खाया जा सकता है वहीं, शाकाहारी सामान्य पंजों के साथ पाए जाते हैं जो, शाकाहारी भोजन के अनुकूल हैं| शाकाहारी जीवों की त्वचा ठंडा होने के लिए, पसीने का उत्सर्जन करती है किन्तु, मांसाहारी अपनी तीव्र श्वसन प्रक्रिया से ही, सामान्य तापमान में आते हैं| शाकाहारी जानवर श्वेतसार लार का उत्सर्जन करते हैं जो, मांसाहारी जानवर नहीं कर पाते हालाँकि, कुछ ऐसे शाकाहारी भी होते हैं जो समय, काल, परिस्थिति के अनुसार मांस भक्षण भी प्रारंभ कर सकते हैं किंतु, ऐसा एक लंबी विकास प्रक्रिया के तहत ही होगा| अब यहाँ यदि बात मनुष्यों की जाए तो, आप ही सोचिए कि, उनकी शारीरिक संरचना किसके साथ मिलती है? आशा है, आपको आपका उत्तर मिल गया होगा|
मांस खाने से कैसे छुटकारा पाएं?
मनुष्य का अहंकार ही, उसे मांस खाने पर विवश करता है| अहंकार, उन सूचनाओं का समूह होता है जो, संयोगवश हमारे जन्म से ही मिलना प्रारंभ हो जाती हैं| जहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी हम, मांस भक्षण को बढ़ावा देते रहते हैं हालाँकि, मांस का अपना कोई स्वाद नहीं होता| माँस पकाते समय, जिन मसालों का उपयोग किया जाता है उसी से, मांसाहार में स्वाद आता है और दूसरी बात, मांस खाने से मनुष्य की आयु भी नहीं बढ़ती तो, फिर मांसाहार कैसे उपयोगी हो सकता है? यदि मनुष्य, आत्मज्ञान की प्राप्ति कर ले अर्थात स्वयं को पहचान ले तो, निश्चित ही वह प्रकृति प्रेम में विचरण करने लगेगा| अभी एक सिमित सोच के तहत, वह अपने कुछ सगे संबंधियों को ही, अपना मानकर चलता है जो, निरंतर उसे कष्ट देते हैं हालाँकि, उसके जीवन में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो, अभी तो प्रेमपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं किंतु, आगे चलकर वह भी बदलने वाले हैं| इसे ही माया कहते हैं और यही मानव जीवन का सुख दुख का चक्र है जिससे, छुटकारा पाने के लिए मनुष्य, भांति भांति का मनोरंजन ढूंढता रहता है लेकिन, उसे वह कभी नहीं मिलता| जिसके प्राप्त होते ही, किसी की चाहत न बचे| जो अनंत हो, जिसके साथ जीवन भर आनंदित रहा जा सके| क्योंकि जब तक मनुष्य, अपने आपको शरीर के रूप में देखता रहेगा, उसे वह कभी नहीं मिल सकता, जिसकी वह तलाश कर रहा है| हाँ, यदि वह अपने आपको, संपूर्ण जगत समझने लगे तो, निश्चित ही उसके जीवन में अकल्पनीय परिवर्तन होंगे किंतु, ऐसा कर पाना स्वार्थी मनुष्य के लिए असंभव है|
मांसाहार से जीवों को जितना दर्द होता है, उससे कहीं अधिक समस्याओं से ग्रसित, मांस खाने वाले मनुष्य को होना पड़ता है| मांसाहार केवल मनुष्य के लिए ही हानिकारक नहीं बल्कि, इससे प्रकृति का भी संतुलन बिगड़ता है क्योंकि, पृथ्वी में अधिकतर क्षेत्र जल से भरा हुआ है जो, निरंतर बढ़ता जा रहा है अर्थात कृषि योग्य भूमि, संकुचित होती जा रही है और यदि शाकाहारी पशुओं को मांस के लिए तैयार करना है तो, उन्हें भी अनाज खिलाना आवश्यक होता है लेकिन, जब मनुष्य के लिए ही अनाज पर्याप्त नहीं तो, गाय भैस बकरी जैसे पशुओं को, अनाज कहाँ से प्राप्त होगा? भूमिगत क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए, प्रकृति ने शाकाहार भोजन की व्यवस्था की है किंतु, कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ पानी की अधिकता होती है या, मरूस्थलीय क्षेत्र होता है, वहाँ के मनुष्यों के लिए, मांसाहार करना अनिवार्य हो सकता है लेकिन, शाकाहारी भोजन की प्राथमिकता होना चाहिए चूँकि, मनुष्य केवल अपना शरीर ही सुरक्षित नहीं चाहता बल्कि, उसे अपने जीवन में शांति की आवश्यकता भी होती है इसीलिए, केवल विपरीत परिस्थितियों में ही मांसाहार किया जा सकता है| जिसे करने से, मनुष्य के मन में किसी तरह की ग्लानि न हो बल्कि, इसे वह अपनी विवशता मान सकता है| यदि भविष्य की प्राकृतिक आपदाओं से बचना है तो, मांसाहार को पूरी दुनिया में स्वेच्छा से त्यागना होगा हालाँकि, मनुष्य किसी तरह का दबाव बर्दाश्त नहीं कर सकता इसलिए, क़ानून बनाकर मांसाहार नहीं रोका जा सकता| केवल सही शिक्षा ही, मनुष्य का मन रूपांतरित सकती है|