अच्छाई और बुराई (achhai aur burai explained in hindi):
अच्छाई और बुराई मनुष्य की दो मनोवैज्ञानिक दशाएँ हैं जिन्हें, वह अपने पूर्वानुमान से परिभाषित करता है| एक व्यक्ति के लिए जो कुछ अच्छा होगा वही, दूसरे के लिए बुरा कहलाएगा| इस बात से निष्कर्ष निकलता है कि, अच्छे और बुरे का सच से कोई सरोकार नहीं बल्कि, अच्छाई और बुराई का आधार मनुष्य का अहंकार है| आपने अनुभव किया होगा, कोई इंसान किसी को अच्छा लगता है लेकिन, वही इंसान किसी और को नापसंद होता है| क्या गुणवत्ता, उस व्यक्ति के अंदर है या उसे देखने वाली आँखों में? यह एक रहस्यमयी सवाल है| उसी प्रकार किसी परिस्थिति को देखकर, हमें मधुरता का अनुभव होता है किंतु, वहीं कुछ के लिए नर्क होता है| उदाहरण से समझें तो, मानवीय समाज में कुछ ऐसे त्योहार भी हैं जहाँ, पशुओं की बलि दी जाती है| त्योहार मनाने वाले लोग तो, यहाँ ख़ुश होते हैं लेकिन, मारे गए पशुओं के लिए, यह नर्क का त्योहार बन जाता है| यदि त्योहारों में सत्यता होती तो, वह सभी के लिए लाभदायी होते| क्यों, उसी त्योहार में कुछ लोग दुखी और कुछ लोग सुख का अनुभव कर रहे हैं? यहाँ गलती त्योहार की नहीं बल्कि, त्योहार के महत्व को न समझने वालों की है जिन्होंने, स्वार्थ से केवल अपने भोग को ही प्राथमिकता दी है और यही कारण है कि, हमारे अच्छाई और बुराई के पैमाने भी खोखले हैं जिसे, नए सिरे से समझने के लिए हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|
- अच्छाई क्या है?
- बुराई क्या है?
- मेरे लिए क्या अच्छा है?
- क्या मैं अच्छा हूं?
- अच्छा कैसे बने?
इस संसार में अच्छा और बुरा कुछ नहीं होता| सभी प्राकृतिक गुण है जो, मनुष्य के अंदर अहंकार को बढ़ाते हैं और उसी से, प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन की रचना करता है| शराब के नशे में डूबे हुए मनुष्य को मदिरापान अच्छा लगेगा| पुत्र मोह में डूबे हुए पिता को, पुत्र की कमियां भी अच्छी लगेंगी और स्वार्थ में डूबे हुए मनुष्य को, धनार्जन अच्छा लगेगा| सभी उपरोक्त परिस्थितियों में, मनुष्य अपने अहंकार से ही अच्छाई को चिन्हित कर रहा है किंतु, यदि वास्तविकता से देखा जाए तो, सभी अनुचित है| फिर अच्छा क्या है? चलिए निम्नलिखित बिन्दुओं से समझने का प्रयत्न करते हैं|
अच्छाई क्या है?
मानव जीवन के अंधकार मिटाने वाला प्रत्येक कार्य अच्छा है अर्थात जो भी, मनुष्य के अहंकार को कम करने में सहायक हो, उसे अच्छा कहा जाएगा अहंकार अर्थात वह पहचान, जिससे मनुष्य स्वयं को पहचानता है| उदाहरण से समझें तो, एक शराबी के लिए शराब इसलिए बुरी है क्योंकि, वह उसे और भी अंधकार में धकेलती है लेकिन, यदि शराब का उपयोग औषधि बनाने हेतु किया जाए तो, यह बुरी नहीं कहलाएगी| यहाँ शराब में न अच्छाई है और न ही बुराई, केवल इसका उपयोग करने वाले व्यक्ति की परिस्थितियाँ ही, इसका निर्धारण कर सकती है| उसी प्रकार जब, इस सृष्टि में मनुष्य की प्रजाति कम थी तब, संतानोत्पत्ति सबसे श्रेष्ठ कार्य था किंतु, जैसे ही जनसंख्या विस्फोट हुआ तब, उसे नियंत्रित करना आवश्यक होगा| समय के अनुसार, अच्छाई और बुराई के मायने बदल जाते हैं इसलिए, पूर्वाग्रह रखना ही अज्ञान है| जब व्यक्ति शारीरिक वृत्तियों से ऊपर उठकर, परिस्थितियों का परीक्षण करता है तभी, उसे अच्छाई और बुराई का सही अर्थ पता चलेगा|
बुराई क्या है?
मानव चेतना के विकास में बाधा बनने वाला प्रत्येक तत्व बुरा है अर्थात जो भी, मनुष्य के जीवन में दुखों की वृद्धि करें, वह बुरा होगा| जैसे, सभी तरह के मोह बंधन बुरे हैं क्योंकि, वह मनुष्य को नई नई अभिलाषाएँ देते हैं जो, आगे चलकर उसके दुख का कारण बनती है| एक संन्यासी या निष्काम कर्मी के लिए, धन अर्जन करना अच्छा कहलाएगा लेकिन, एक लोभी के लिए धनार्जन बुरा होगा क्योंकि, संन्यासी का कमाया हुआ धन, परहित में व्यय होगा किंतु, लोभी स्वार्थ में स्वयं ही धन का भोग करने का इच्छुक होगा जो, आगे चलकर उसके दुखों का कारण बनेगा| यदि इसे विस्तृत रूप से कहा जाए तो, माया के इस संसार में मनुष्य का जन्म ही बुरा है जहाँ, बचपन से ही उसके अंदर, अपूर्णता का भाव उत्पन्न हो जाता है जो, उसे जीवन भर कमी का अनुभव कराता रहता है जिससे, मनुष्य अपने जीवन की उपयोगिता खो देते हैं परिणामस्वरूप उनका जीवन, दुखों से संलिप्त हो जाता है इसलिए, ज्ञानी पुरुष मनुष्य की भांति जन्म तो लेते हैं लेकिन, गुरू की कृपा प्राप्त करते ही, पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाते हैं अर्थात इस माया रूपी संसार की वास्तविकता देख, कुछ सार्थक कृत्य में जुट जाते हैं जो, उनके जीवन के लिए श्रेयस्कर सिद्ध होता है|
मेरे लिए क्या अच्छा है?
उपचार जानने से पहले, बीमारी का पता लगाना आवश्यक है अर्थात जब तक मनुष्य स्वयं को नहीं पहचानता, तब तक वह अपने लिए, अच्छे और बुरे का निर्णय नहीं कर सकता किंतु, यदि समान रूप से कहना हो तो, जो रिश्ते आपको बंधन में बाँध रहे हैं, वह बुरे हैं| जो मान्यताएं, आपको स्वार्थी बनाती है, वह बुरी हैं| जो काम, आपकी स्वतंत्रता में बाधक बने, वह बुरा है| जो त्योहार, आपके जीवन में प्रकाश न ला पाए, वो व्यर्थ है| जो भक्ति, आपको करुणामयी न बना सके, वह व्यर्थ है| अतः प्रत्येक विषय वस्तु, जिसका संबंध आपके दुख बढ़ाने से है निश्चित ही, वह आपके लिए बुरी है| वस्तुतः मनुष्य के जीवन का एक मात्र उद्देश्य आनंद है और उसे ही प्राप्त करने के लिए, वह अज्ञानतावश नए नए बंधनों में फँसता जाता है| इसे उदाहरण से समझते हैं| हम अधिक धन क्यों कमाना चाहते हैं? क्योंकि, हमें धन के लिए कभी काम न करना पड़े| हम विवाह क्यों करना चाहते हैं? क्योंकि, हमारे जीवन में अपूर्णता का भाव निहित है| हम दोस्त क्यों बनाते हैं? क्योंकि, हम अपने जीवन में अकेलापन अनुभव करते हैं| इसलिए जो भी आपको स्वतंत्रता से जीना सिखाए, वही आपके लिए अच्छा होगा| मनुष्य का जन्म ही बंधन है| मनुष्य जब पैदा होता है तो, संयोग से उसे कई तरह की पहचान मिलती हैं जिन्हें, वह बिना प्रश्न किए धारण करता है जिससे, वह मानवीय तुच्छता में फँस जाता है लेकिन, समय रहते ही यदि उसे सत्य का ज्ञान हो जाए तो, उसका जीवन दुखों के माया जाल में उलझने से बच जाएगा|
क्या मैं अच्छा हूँ?
यदि आप अपने जीवन के सभी निर्णय, अपने स्वार्थ को केंद्र में रखकर करते हैं तो, आप अच्छे नहीं है| अच्छाई की परिभाषा तभी सार्थक होती है जब, संबंधित व्यक्ति के जीवन के कष्ट कम हो सकें| यदि आपका जीवन दुखों से घिरा हुआ है तो, आप अपने जीवन के लिए बिलकुल भी अच्छे नहीं है| यहाँ आपको विचार करना आवश्यक है कि, आपके जीवन में क्या व्यर्थ है जिसे, आपने अपने स्वार्थ पूरे करने के उद्देश्य से अपनाया है क्योंकि, मनुष्य यदि शारीरिक तल पर स्वयं को प्राथमिकता देगा तो, निश्चित ही उसके जीवन का अंधकार बढ़ता जाएगा|
अच्छा कैसे बने?
आपको अच्छा बनने की आवश्यकता नहीं| आप जन्मे के पूर्व से ही अच्छे हैं किंतु, जैसे ही आपने मानव शरीर धारण किया तभी, आप बुर हो गए क्योंकि, सारे कष्ट शारीरिक तल की उपज हैं जहाँ, मनुष्य का अतीत उसे, भविष्य के चक्रव्यूह में फँसा लेता है लेकिन, ज्ञानी मनुष्य आत्मावलोकन करके अपने अतीत को मिथ्या मानकर, वर्तमान में रहते हुए, सत्य की राह में अग्रसर होते हैं| यदि आप अच्छा बनना चाहते हैं तो, सभी तरह की मान्यताएं भूलकर, सारे संसार को अपना शरीर समझ लीजिए, फिर सारे मतभेद समाप्त हो जाएंगे और आपके मन में किसी के प्रति द्वेष नहीं होगा जो, अनन्त शान्ति प्रदान करेगा और तभी आपके द्वारा किया गया कार्य, सार्वजनिक हित में होने लगेगा जिसे, निष्काम कर्म कहा जाएगा फलस्वरूप, आपका जीवन आनंद से खिल उठेगा और जब आप ऐसी अवस्था प्राप्त करेंगे तो, निश्चित ही औपचारिक सांसारिक प्रमाणिकता की आवश्यता शुन्य हो जायेगी|
मनुष्य का अहंकार ही उसका दुख है| यदि वह सृष्टि में अच्छाई और बुराई देखना बंद कर दे और स्थिति विशेष में, अपने विवेक से निर्णय करे तो, वह अपना जीवन दुखों से मुक्त अवश्य कर सकेगा| जैसे ही हम किसी को अच्छा कहते हैं, अनजाने में हम बहुत से लोगों को बुरा कह रहे होते हैं| किसी का अच्छा होना ही, बुरे का संकेत है| जैसे यदि मेरा पुत्र अच्छा है तो, बाक़ी लोगों के पुत्र मेरे लिए, अच्छे कैसे होंगे| यही से मतभेद की शुरुआत होती है जहाँ, प्रत्येक व्यक्ति अपने से जुड़ी विषय वस्तुओं को ही, अच्छा मानकर बाक़ी को तुच्छता के भाव से देखता है जिससे, आपसी सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता और संसार में क्लेश बढ़ते रहते हैं| कोई भी तभी अच्छा होगा जब, वह दूसरों के लिए अच्छा होगा| अतः ऐसे कर्मों में संलग्ता रखनी होगी जो, सर्वहित समर्पित हों|