आकर्षण (Akarshan explained in hindi):
किसी विषय वस्तु से आकर्षित होना, मानव इन्द्रिय दोष है या यूँ कहें कि आकर्षण ही, सांसारिक संचालक है जो, प्रकृतिगत जीवों की सहायता से संसार को संचालित करता है| प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन के सभी कार्य किसी न किसी से आकर्षित या भयभीत होकर ही करते हैं किंतु, क्या वास्तव में किसी से आकर्षित होना सही है या आकर्षण हमारे जीवन को संकुचित कर रहा है? एक तितली को फूलों का आकर्षण होना, एक छिपकली को कीड़े का आकर्षण होना और एक बंदर को फलों का आकर्षण होना, स्वाभाविक बात है लेकिन, क्या एक इंसान मानवीय गुणों पर चलता है|
आप सोचिए बचपन में जो विषय, आपको आकर्षित करता था| क्या आज भी, उसमें उतना आकर्षक शेष है या बदलते समय के साथ, आपका आकर्षण भी बदल चुका है? जब बाल्यावस्था में, आपका आकर्षण सही नहीं था तो, क्या आज आपका आकर्षण सही हो सकता है? मानवीय जीवन एक पहेली है| जिसका हल प्राचीन दार्शनिकों ने, अपनी किताबों में दिया है जिन्हें, निम्नलिखित बिंदुओं से समझने का प्रयत्न करते हैं|
- आकर्षण का नियम क्या है?
- आकर्षण क्यों होता है?
- आकर्षण में क्या बुराई है?
- आकर्षण की शक्ति क्या है?
- आकर्षण से कैसे बचें?

मनुष्य के लिए आकर्षण एक अभिशाप है| प्रत्येक मानव, अपने अतीत की जानकारियों के आधार पर, किसी भी विषय वस्तु से आकर्षित होता है| उदाहरण के तौर पर, हम किसी को सम्मान पाते देखते हैं तो, हमारे अंदर उसी के जैसा बनने की, चाहत उत्पन्न हो जाती है| वस्तुतः मनुष्य का सांसारिक भाव अहंकारी है इसलिए, वह अपने अहंकार को बढ़ाने के लिए, नित नए रास्ते खोजता रहता है| जैसे, सोशल मीडिया में बच्चे किसी भी विडियो से आकर्षित होकर, अपने भविष्य का चुनाव कर लेते हैं और बाद में उन्हें ,अपने ही निर्णय पर पछतावा होने लगता है क्योंकि, वह स्वयं के बारे में कुछ नहीं जानते थे| किसी से आकर्षित होकर लिया गया विवेकहीन निर्णय कभी सही नहीं हो सकता| इसे गहराई से समझने के लिए उपरोक्त प्रश्नों की ओर चलते हैं|
आकर्षण का नियम क्या है?

आकर्षण का नियम इस बात पर आधारित है कि, आप किस समय, क्या हो? जैसे यदि आप बच्चे हो तो, आपको खिलौनों का आकर्षण होगा| यदि आप बेरोजगार हो तो, किसी तरह के व्यवसाय या नौकरी का आकर्षण होना स्वाभाविक है किंतु, सभी के मूल में एक बात अवश्य है कि, आकर्षण सांसारिक मनुष्य को ही, अपनी ओर खींच सकता है| जब भी कोई व्यक्ति अपूर्णता का अनुभव करता है, स्वतः ही उसके अंदर, सांसारिक विषय वस्तुओं का आकर्षण उत्पन्न हो जाता है| आकर्षण ही मनुष्य का दुख है क्योंकि, जब तक मन को आकर्षित करने वाली, विषय वस्तु प्राप्त न हो जाए, तब तक मनुष्य का चित्त शांत नहीं होता लेकिन, यदि वह प्राप्त हो गई तो, उसे अपनी अपेक्षा अनुसार परिणाम नहीं दिखाई देते जो, उसके आंतरिक दुखों को और भी गहरा कर देता है और अगले ही पल, वह एक नया आकर्षण पाल लेता है और इसी तरह उसका जीवन, माया के चक्र में उलझ जाता है|
आकर्षण क्यों होता है?

आकर्षण का सबसे बड़ा कारण, मानव जीवन का अंधकार है अर्थात मनुष्य बिना आत्मज्ञान के यह नहीं समझ सकता कि, उसे इस संसार की किसी भी विषय वस्तु से तृप्ति नहीं मिल सकती| वह सीमित तल पर, अनंतता की तलाश में है| जब भी कोई व्यक्ति, अपने अंदर कमी का अनुभव करता है तभी, आकर्षण होता है| हालाँकि, उसे लगता है कि, यह उसका अपना विचार है किंतु, वह नहीं जानता कि, इसके पीछे उसकी पाशविक सोच है, जिसका जनक उसका अतीत है| जैसे कोई झुग्गी झोपड़ी में रहने वाला लड़का, एक बड़े घर के लिए आकर्षित होगा ही| एक कॉलेज में पढ़ने वाला लड़का, अपने आस पास के लोगों को देखकर ही, अपने भविष्य का चुनाव करेगा| वैसे तो, आकर्षण में कोई बुराई नहीं है लेकिन, जब यह किसी मनोकामना पूर्ति के लिए उत्पन्न होता है तब, अत्यधिक दुखदायी हो जाता है|
आकर्षण में क्या बुराई है?

आकर्षण की सबसे बड़ी कमी, उसके पूरे होते ही मिट जाने की है अर्थात आकर्षण, मनुष्य को कभी भी संतुष्टि प्रदान नहीं करता| एक आकर्षण, दूसरे आकर्षण को जन्म देता है जिससे, मानव जीवन मायाजाल में उलझ जाता है और उसे निरंतर, सुख दुख मिलते रहते हैं| उदाहरण के तौर पर, एक लड़का कॉलेज के समय किसी लड़की से आकर्षित होकर, उससे दोस्ती करना चाहता है किंतु, जैसे ही वह उससे दोस्ती करता है तो, उसकी उम्मीदें बढ़ने लगती है| यहाँ दो बातें होती हैं| या तो उसकी इच्छाओं की पूर्ति होगी या इच्छाएँ अधूरी हो जाएंगी| पूरी होने पर, अगली इच्छा का जन्म हो जाएगा और अधूरी रहने पर, क्रोध की उत्पत्ति होगी| दोनों ही दशाओं में, वह दुख से घिर जाएगा और तब उसे, अपने ही निर्णय में बुराई दिखाई देने लगेगी परिणामस्वरूप वह अवसाद से ग्रसित हो जायेगा|
आकर्षण की शक्ति क्या है?

आकर्षण में वह शक्ति है जो, रेत में पानी की भांति प्रतीत होता है| आकर्षण दूर से तो, मन को मोहित करने वाला होता है लेकिन, जैसे ही उसकी पूर्ति होती है, वह तत्व अपना आकर्षण खो देता है| आकर्षण में चुम्बकीय नियम काम करता है| जैसे ही, मनुष्य किसी विषय को निरंतर स्मरण में रखता है वह, उसी दिशा में बढ़ने लगता है| इसमें कोई चमत्कार नहीं, यह मनोवृत्तियों के अंतर्गत आता है अर्थात यह मनुष्य का आंतरिक गुण हैं जो, उसे सांसारिक माया की ओर भटकाता रहता है| हालांकि, यह कोई प्राकृतिक षड्यंत्र नहीं जिससे, मनुष्य को भ्रमित किया जा रहा है अपितु, यह तो एक संकेत है ताकि, मनुष्य अनुभव कर सके कि, उसका जीवन असत्य भले न हो किन्तु, मिथ्या अवश्य है| जिसका कोई आधार नहीं है| प्रत्येक मनुष्य सत्य की तलाश में है| वह एक ऐसा आकर्षण खोज रहा है, जिसके मिलते ही, उस पर ध्यान टिक जाए, मन इधर उधर न भटकें ताकि, जीवन में स्थिरता प्राप्त हो किंतु, उसकी यह चाहत, संसार की किसी भी विषय वस्तु से पूरी नहीं हो सकती| यह आनंद तो, परमार्थ मार्ग के चलने वाले व्यक्तियों को ही प्राप्त हो सकता है जो, अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर, सद्भावना रखते हुए, सृष्टि के सकारात्मक सृजन में, योगदान दे रहे हैं जो, निष्काम कर्म में डूब चुका है वही, आकर्षण से अछूता है|
आकर्षण से कैसे बचें?

स्वयं को जानकर (आत्मावलोकन) ही आकर्षण से बचा जा सकता है जो, मनुष्य अपने आंतरिक आनंद को देख लेता है उसे, बाहरी विषय वस्तु आकर्षित नहीं कर सकते लेकिन, यह तभी संभव है जब, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया जाए क्योंकि, विज्ञान केवल भौतिक तत्वों का ही अवलोकन कर सकता है किंतु, आकर्षण मनुष्य के मन की उपज है जो, एक अदृश्य विषय है जिसका, सीधा संबंध आत्मज्ञान से हैं अर्थात वह ज्ञान जो, मनुष्य के अहंकार को मिटा सके जिससे, यह दिखाई देने लगे कि, यहाँ सभी विषय क्षणिक ही अस्तित्व में आते हैं और फिर वह नष्ट हो जाते हैं|
यदि आकर्षित होना ही है तो, किसी ऐसी विचारधारा से होना चाहिए जो, जीवन को सार्थकता प्रदान कर सके ताकि, मन को घृणा से बाहर निकाला जा सके और सार्वजानिक हित में, किये जाने योग्य कर्म की प्राप्ति हो क्योंकि, वही मानव शरीर का श्रेष्ठतम उपयोग है| मनुष्य का शरीर एक गाड़ी की भांति है जिसे, चलाने वाला मन यदि बाहरी दुनिया को देखकर निर्णय लेगा तो, निश्चित ही वह आकर्षण में फँसेगा जो, उसे भ्रम में डाल देगा| लेकिन, यदि आंतरिक ज्ञान से, संसार को मिथ्या समझते हुए, विषय वस्तुओं का उपभोग न करने की बजाय, उपयोग किया जाए तो, जीवन को आनंदित किया जा सकता है|