बलि प्रथा (bali pratha explained in hindi):
बलि अर्थात भेंट, जिसे किसी के सम्मान में अर्पित किया जाए, प्राचीन काल से ही बलि की परम्परा चली आ रही है| कुछ लोग इसे धर्म मानते हैं| वही कुछ ऐसे भी लोग हैं जो, बलि में हो रही पशु क्रूरता का घोर विरोध करते हैं| लेकिन, आज तक हम किसी सही तर्क तक नहीं पहुँच सके हैं| बलि तो एक ऐसा कार्य था जिसका, मानव जीवन में सर्वाधिक महत्व होना चाहिए किंतु, जब बलि अपने स्वार्थ के लिए दी जाती है तो, इसके मायने रूपांतरित जाते हैं| धार्मिक ग्रंथों के, विपरीत परिस्थितियों में दिये गए व्याख्यान, मनुष्य के अहंकार को आधार देते हैं जैसे, किसी ग्रंथ में यदि किसी कार्य को करने से मना न किया गया हो तो, मनुष्य ऐसा समझेगा जैसे, उसे करना अनिवार्य है| बलि एक पवित्र कार्य है जो, मानव चेतना के विकास के लिए अति आवश्यक है| लेकिन, जैसी बलि मानव समाज देता आ रहा है, उसका संबंध मन की शुद्धता से न होकर, निजी स्वार्थ से है| बलि के महत्व को समझने के लिए हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|
- बलि प्रथा क्या है?
- पशु बलि क्यों दी जाती है?
- क्या बलि देना सही है?
- पशु बलि किस धर्म में है?
- पशु क्रूरता को कैसे रोका जा सकता है?

बलि का संबंध मनुष्य के आंतरिक अंधकार के त्याग से है| वस्तुतः मनुष्य के सभी कर्म, शरीर केंद्रित होते हैं| यही मनुष्य के जीवन का अंधकार है| मानव केवल शारीरिक पूर्ति के लिए नहीं जीता बल्कि, मन की शांति ही उसका प्रमुख उद्देश्य है किंतु, अज्ञान के कारण, वह मन की तृप्ति को शारीरिक भोग से प्राप्त करना चाहता है| जिसे मनुष्य की मूर्खता ही कहा जाएगा| मनुष्य को उसका ज्ञान ही सांसारिक जीवन से मुक्त कर सकता है लेकिन, जब बलि जैसे कर्मकांड को भी, अपने स्वाद का माध्यम बना लिया जाए तो, मनुष्य अपने जीवन के दुखों से कैसे मुक्त हो सकता है? निम्नलिखित बिन्दुओं से यह बात पूर्णतः स्पष्ट होगी|
बलि प्रथा क्या है?

बलि का संबंध त्याग से हैं अर्थात अपने आंतरिक स्वार्थ का तिरस्कार करना, बलि कहलाता है| बलि प्रथा सभी सम्प्रदायों का अभिन्न अंग है| कुछ लोग इसे, पारंपरिक प्रथा के अनुसार करते हैं और कुछ, आंतरिक मनोभाव से अपनी वृत्तियों का त्याग करके, अपने जीवन को प्रकाशवान करते हैं| बलि प्रथा मानवीय स्वार्थ के लिए प्रारम्भ नहीं की गई थी बल्कि, मनुष्य को सत्य की ओर दिशा देने के लिए, बलि प्रथा का जन्म हुआ था| उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति को किसी खाद्य सामग्री से विशेष लगाव है और वह उसे आवश्यकता से अधिक खा रहा है तो, उसे ऐसे खाद्य सामग्री की बलि देनी चाहिए ताकि, उससे जुड़ी हुई इच्छा का दमन किया जा सके और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े| धर्म में उपलब्ध किसी भी प्रथा या परंपरा का संबंध, मनुष्य की चेतना को ऊपर उठाने से होता है इसलिए, बलि का वास्तविक भाव समझते हुए, इसे अपने जीवन में अवश्य अपनाना चाहिए तभी, मानव जीवन सुगम हो सकता है|
पशु बलि क्यों दी जाती है?

पशु बलि का अर्थ मांस भक्षण के लिए, जानवरों की हत्या करना नहीं होता बल्कि, मनुष्य की पाश्विक वृत्तियों के नाश को, पशु बलि कहा जाता है| वस्तुतः सबसे पहले आदिमानव मांस से ही, अपने आहार की पूर्ति किया करते थे किंतु, जैसे जैसे आंतरिक ज्ञान का विकास हुआ तो, मनुष्य को एक रहस्य का पता चला कि, भले ही हम शरीर रूप में जन्म लेते हैं लेकिन, शारीरिक तल पर जीना दुखदायी होता है इसलिए, हमने खेती की शुरुआत की और पृथ्वी की न्यूनतम क्षति के साथ, जीवन जीने की कला सीखी| पूरी दुनिया में केवल, मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसे, चेतना रूपी शक्ति प्राप्त है अर्थात यदि वह, अपने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ले तो, निश्चित ही पशु योनी से मुक्ति पाई जा सकती है| पशु योनी, मनुष्य का बंधन है जिसे, दुख की संज्ञा दी गई है| अतः हम कह सकते हैं कि, अपने आंतरिक पशु की बलि देना ही, जीवन में आनंद ला सकता है| कई ग्रंथों में कहा जाता है कि, मनुष्य का जन्म कई योनियाँ के बाद होता है अर्थात केवल शरीर से, मनुष्य की भांति दिखने से आप मनुष्य नहीं हो जाते, कभी आप आक्रामक जानवर की भांति व्यवहार करते हैं कभी, आलसी पशुओं की भांति, अकारण ही आराम को महत्व देते हैं तो कभी, मन पक्षी की भांति उड़ान अनुभव करता है तो कभी, भूमि पर रेंगने वाले कीड़े की भांति, मनोबल गिर जाता है और जब इन सभी परिस्थितियों से त्रस्त होकर, आप दुख का अनुभव करते हैं तब, आप स्वयं के बारे में सोचते हैं और तभी, आप आत्मज्ञान की स्थिति पर विचाराधीन हो सकते हैं जो, एक ऐसी अवस्था है जहाँ, मनुष्य अपने श्रेष्ठतम शिखर को प्राप्त कर लेता है फिर, उसे किसी विषय वस्तु का लोभ नहीं रहता, वही पशु बलि को सार्थक कर सकता है|
क्या बलि देना सही है?

यदि बली अपने स्वार्थ के लिए दी जाती है तो, ऐसी बलि का कोई महत्व नहीं किंतु, यदि अपने जीवन के अंधकार को मिटाने के लिए, अपने अंदर बसे पशु की बलि दी जाए तो, जीवन में अकल्पनीय परिवर्तन होंगे| जैसे- अपनी बुरी आदतों का त्याग किया जाए या अपने मोह के बंधन से, मुक्ति प्राप्त की जाए| इसी प्रकार की बलियां, मानवीय जीवन के लिए लाभकारी सिद्ध होंगी क्योंकि, जब आप किसी जीवित की हत्या करते हो तो, आपकी संवेदनाएं नष्ट हो जाती है जिससे, मन आक्रामक हो जाता है और क्रोधाग्नि, जीवन की शांति को भंग कर देती है और वैज्ञानिक विचारधारा के अनुसार, भी वर्तमान समय में पशुओं की हत्या करना, जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण है| पशुओं के पोषण के लिए, खाद्यान्न पूर्ति गंभीर संकट है| जब आम मनुष्यों के लिए, खेती योग्य भूमि उपलब्ध नहीं तो, पशु पोषण के लिए अनाज की पैदावार, कहाँ से की जा सकेगी? क्योंकि, शाकाहारी पशु तो दूसरे पशुओं को खायेंगे नहीं और फिर इसके लिए, जंगल काटे जाएंगे जो, पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र प्रतिकूल कर देगा| इससे भयावह स्थिति का जन्म होगा इसलिए, पशु बलि तो निश्चित ही, मानव जीवन के लिए घातक है|
पशु बलि किस धर्म में है?

किसी भी धर्म में, जीव हत्या को सही नहीं ठहराया गया लेकिन, स्वार्थी मनुष्यों ने अपने स्वाद के लिए, जानवरों की हत्या को बलि से जोड़ दिया| यदि विभिन्न पशुओं की बलि का प्रावधान भी मिलता है तो, वह उन्हीं पशुओं को पोषित करने की ओर इंगित करता है जिससे, मनुष्य की पाश्विक वृत्तियाँ शांत हो सकें| कुछ ग्रन्थों में चींटी तक की बलि का उल्लेख है तो, क्या चींटी को मारकर खाने के लिए कहा जा रहा है? जी नहीं, यहाँ चीटियों के लिए आटा या शर्करा युक्त वस्तु आदि देने के लिए कहा जा रहा है, वह भी केवल इसलिये ताकि, छोटे जीवों की उपयोगिता भी स्मरणीय रहे और यदि किसी धर्म मे, अपनी सबसे पसंदीदा वस्तुओं का बलिदान देने को कहा गया है तो, वह अपने सबसे निकट की वस्तुओं के मोह त्याग से हैं क्योंकि, मनुष्य यहाँ से कुछ लेकर नहीं जा सकता तो, यहाँ की विषय वस्तु से जुड़ना भी उसके लिए उचित नहीं| इस रहस्य को बलि के रूप में बताने का प्रयास किया गया था किंतु, मनुष्य की अज्ञानता ने बलि का दुरूपयोग, मासूम पशु पक्षियों की हत्या को बढ़ावा देने के लिए किया| जरा सोचिए, सबसे शक्तिशाली देश का क्या कर्तव्य होना चाहिए, क्या वह छोटे देशों पर बेवजह अपने स्वार्थ के लिए, आक्रमण कर सकता है? यदि नहीं तो, फिर सबसे समझदार प्राणी, दूसरे प्राणियों का शोषण कैसे कर सकता है और तब जब, हम विज्ञान के माध्यम से अनाज का उत्पादन बढ़ाने में सक्षम है?
पशु क्रूरता को कैसे रोका जा सकता है?

मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो, केवल अपने स्वार्थ को प्राथमिकता देता है और इसी आधार पर उसने, प्रकृति का उपयोग करने की बजाए, उपभोग करना सीख लिया है| जहाँ पेड़ों से केवल फल लेना चाहिए, वह पूरा पेड़ ही काट लेता है जहाँ, जानवरों से स्नेह करना चाहिए, वह उन्हें अपने पेट का निवाला बना लेता है| यहाँ, कमी आध्यात्मिक ज्ञान की है लेकिन, समस्या तब होती है जब, आध्यात्मिकता के नाम पर, पशु क्रूरता को बढ़ावा दिया जाता है| धर्म का मतलब, मानव जीवन की शुद्धता से है अर्थात मनुष्य के जीवन में फैले अंधकार को मिटाने के लिए, धर्म के अलावा कोई और मार्ग उपलब्ध नहीं किंतु, जब मनुष्य अपने स्वार्थ को आगे रखकर, अपने अंधकार को मिटाने का प्रयास करता है तो, वह सांसारिक विषय वस्तुओं के उपभोग में, अपने आनंद की तलाश करता है जिसे, मनुष्य की अज्ञानता ही कहा जाएगा| किसी भी जीव को केवल अपने निजी स्वार्थ के लिए, हानि पहुँचाना स्वयं के लिए कष्टकारी होता है| वस्तुतः जब हम अपनी संवेदनाओं का त्याग कर देते हैं तो, हमारे अंदर छुपा प्रेम भी शिथिल हो जाता है और फिर हमारा मन, कभी शांति को प्राप्त नहीं हो सकता इसलिए, पशु क्रूरता न केवल व्यक्ति विशेष के लिए अपितु, पूरी पृथ्वी के लिए घातक है|
बलि कोई क्रिया नहीं बल्कि, एक साधना है जिसे, प्रत्येक मनुष्य को अपनाना चाहिए तभी, नेति नेति की प्रक्रिया अपनायी जा सकेगी| नेति नेति वह मार्ग है, जिसके उपयोग से, मनुष्य अपने जीवन के बंधनों को एक एक करके ‘यह नहीं, वह नहीं’ से नकारता जाता है और जब अंत में वह सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है तब, वह अपने यथार्थ तक पहुँचता है और तभी वह आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है| अतः हम कह सकते हैं कि, बलि एक श्रेष्ठ मार्ग है जो, मानव शरीर को मुक्ति तक पहुँचाने का माध्यम है| आपने देखा होगा, अधिकतर लोग किसी ऐसी विषय वस्तु की तलाश में रहते हैं, जिसके मिलते ही उन्हें, किसी और की इच्छा न बचे लेकिन, ऐसा नहीं होता क्योंकि, संसार में ऐसा कोई तत्व उपलब्ध ही नहीं जो, आपकी खोज पर पूर्णविराम लगा सके हाँ, जब आप यह समझ जाते हैं और अपनी खोज बंद कर देते हैं, तब आप अवश्य, अपने जीवन के असत्य को देख सकेंगे जो, सत्य का वास्तविक उद्घोष होगा|