सुख और दुख (sukh dukh explained)

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सुख और दुख (sukh dukh explained in hindi):

सुख और दुख जीवन के दो पहलू हैं जहाँ, सुखों में आनंद की अनुभूति होती है और दुख में, जीवन नर्क बन जाता है| हालाँकि, सांसारिक मनुष्य, सुख की ही आशा में अपने सभी कार्य करता है| अंततोगत्वा उसे, दुख ही प्राप्त होता है| सुख और दुख रंगों के समान है| जिस प्रकार रंगों में कोई अच्छाई बुराई नहीं होती, यह तो देखने वाले की आँखों में ही छुपी होती है, उसी प्रकार सुख और दुख की परिस्थितियां, एक समान है लेकिन, वह व्यक्तियों की विभिन्नता के कारण सुख और दुःख में परिवर्तित हो जाती हैं| उदाहरण से देखें तो, कोई नौकरी किसी का सपना हो सकती है किंतु, वही नौकरी किसी का बोझ होती है| यहाँ बात केवल अपने स्वार्थों की है| संसार में हमने पहले से ही अपने सुख और दुख तय कर लिये हैं जैसे, इतना पैसा हो जाएं तो, मेरा जीवन बदल जाए| अगर, वो नौकरी मिल जाए तो, लाइफ सेट हो जाए| यदि, उस लड़की से शादी हो गई तो, जीवन खुशियों से भर जाए और न जाने, कितने तरह के पूर्वानुमान हमारे मन में तय किए जा चुके हैं और वही हमारे दुख का कारण हैं| सुख और दुख के मापदंड समझने के लिए कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|

  1. दुख क्या है?
  2. सुख क्या है?
  3. दुख क्यों होता है?
  4. दुख कैसे दूर करें?
  5. सुखी जीवन का रहस्य क्या है?
सहानुभूति: Sympathy?
Image by Ryan McGuire from Pixabay

वस्तुतः दुख अपने सगे संबंधियों की, सहानुभूति प्राप्त करने की अच्छी युक्ति है| कई बार हमारा मन दुख व्यक्त करने में, गौरव की अनुभूति करता है क्योंकि उस समय हमारे आस पास कई लोग, हमारा हाल जानने पहुँच जाते हैं| सामान्य मनुष्यों का दुख और सुख काल्पनिक होता है| जिसका आधार तुलनात्मक होता है अर्थात एक व्यक्ति, दूसरे से तुलना करके ही, अपने सुख और दुख की गणना करता है अन्यथा, वह केवल अपनी परिस्थिति देखकर, अनुमान नहीं लगा सकता कि, वह सुखी है या दुखी| निम्नलिखित बिंदुओं से यह बात पूर्णतः स्पष्ट होगी|

दुख क्या है?

दुख क्या हैः what is sadness?
Image by Karen Nadine from Pixabay

दुख एक मानसिक परिस्थिति है, जिसका जन्म प्रतिकूल परिस्थितियों में होता है अर्थात सांसारिक मनुष्य भौतिक विषय वस्तुओं से सुख की चाह में लिप्त होता है लेकिन, जब उसे स्वेच्छानुसार परिणाम दिखाई नहीं देते तो, दुख का जन्म हो जाता है| दुख एक संकेत है जिससे, यह पता चलता है कि, हमने स्वयं को समझने में भूल की है| जब तक मनुष्य, सुख की कामना करता रहेगा तो, उसे निश्चित ही दुख प्राप्त होंगे| जैसे, जन्म और मृत्यु अटल सत्य है किंतु, हम यह भूल कर किसी विशेष व्यक्ति से मोह करते हैं तो, उसकी मृत्यु का भय, दुख का कारण अवश्य होगा है| मनुष्य को चाहिए कि, सभी को समभाव से देखना प्रारंभ करें तो, मृत्यु नामक दुख कभी प्रभावित नहीं कर सकेगा|

सुख क्या है?

सुख क्या हैः what is happiness?
Image by Amore Seymour from Pixabay

मनुष्य के हीन भाव की पूर्ति को सुख कहा जाता है अर्थात जन्म से ही, मनुष्य को अपूर्णता का भाव प्राप्त होने लगता है जहाँ, उसे अनुभव कराया जाता है कि, वह अभी बहुत दुर्बल है और जब वह सांसारिक विषय वस्तुओं को अर्जित करेगा तभी, उसे धन के साथ पूर्णता प्राप्त होगी| यदि, दूसरे शब्दों में देखें तो, दुख का अभाव ही सुख है| अतः यह कहा जा सकता है कि, मनुष्य का जन्म ही दुख है| बचपन से छोटी छोटी आवश्यकताओं की पूर्ति ही सुख कहलाता है| धीरे धीरे शारीरिक परिवर्तन के अनुसार, नवीन इच्छाओं का जन्म होता है जो, निरंतर सुख की आकांक्षा प्रकट करतीं हैं| उदाहरण के तौर पर, यदि कोई व्यक्ति अच्छी शिक्षा प्राप्त कर लेता है तो, उसे नौकरी की कमी का अनुभव कराया जाएगा| नौकरी प्राप्त करते ही, दाम्पत्य जीवन के लिए प्रेरित किया जाएगा और इसी भांति, मानव समाज एक दूसरे को नीचा दिखाकर सुख दुख के चक्रव्यूह में फँसा रहता है| कोई लड़की, कितनी भी होनहार हो लेकिन, उसे शारीरिक सुंदरता की कमी का अनुभव अवश्य होगा क्योंकि, बड़ी चालाकी से स्त्रियों के मन में यह भर दिया गया है कि, पुरुष के बिना उनका जीवन अधूरा है और पुरुष तो स्त्री की सुंदरता पर ही, आकर्षित होगा और ऐसे न जाने कितने तरह की कमियों का अनुभव, हमें दिन प्रतिदिन मीडिया के माध्यम से कराया जाता है| कोई उत्पादक ब्रांड अपने प्रचार से, हमारे जीवन में कमी दिखाकर, अपने कंपनी के उत्पाद से, उन कमियों की पूर्ति की बात कहता है जिसे, हम बड़ी आसानी से मान लेते हैं और उस ब्रांड के उत्पाद को प्राप्त करने को, अपना सुख समझने लगते हैं| इसी तरह हमारी सभी खुशियाँ, दूसरों के द्वारा जगायी हुई होती हैं जिन्हें, मिथ्या ही समझना उचित होगा|

दुख क्यों होता है?

दुख क्यों होता हैः Why does it hurt?
Image by Mohamed Hassan from Pixabay

भौतिक विषय वस्तुओं से आसक्ति ही दुख का प्रमुख कारण है अर्थात मनुष्य की मनोकामनाएं ही, उसका दुख बनती हैं| जैसे, कोई विद्यार्थी किसी विशेष नौकरी के लिए, बचपन से सपना देखता है किंतु, वह नौकरी में मिलने वाली परेशानियों से अवगत नहीं होता, वस्तुतः उसे सब कुछ सकारात्मक ही प्रतीत होता है| अब यहाँ दो तरह के दुखों का जन्म हो सकता है| पहला कि, वह नौकरी प्राप्त कर पाने में असमर्थ हो जाए और दूसरा नौकरी प्राप्त करने के बाद, उसे वह ख़ुशी न मिले, जिसकी उसने कल्पना की थी| तत्पश्चात नई इच्छाओं का जन्म होना ही, नई अभिलाषाओं का जन्मदाता होगा| सांसारिक मानव जीवन परिवर्तनीय है जिसे, बाहरी तौर पर तो देखा जा सकता है लेकिन, आंतरिक परिवर्तन देख पाना बिना आत्मावलोकन के असंभव है| किसी समय कोई वस्तु हमारे लिए, अत्यंत सुखदायी रही होगी किंतु, आज वही दुख का कारण बन चुकी होगी| मानव जीवन के सभी बंधन दुख हैं इसलिए, केवल एक सत्य को ही अपनी स्वतंत्रता समझना चाहिए जो, कभी नहीं बदलता| जो, सबके लिए एक जैसा है| जो, कभी नहीं मरता, वही स्वीकारने योग्य है|

दुख कैसे दूर करें?

दुख कैसे दूर करें: How to remove sadness?
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मनुष्य की अज्ञानता ही उसका दुख है| अतः सुख प्राप्ति की अभिलाषा का त्याग, दुख का अंत कर सकता है| कोई भी स्थिति, सुख और दुख नहीं होती| यह तो देखने वाले के ऊपर निर्भर करता है कि, उसका संभावित दृष्टिकोण क्या है| जैसे, किसी की नौकरी छूट जाए तो, वह दुखी होने लगेगा भले ही, उसे अपने काम से प्रेम न रहा हो या इससे भी अच्छी नौकरी, उसे मिल सकती हो किन्तु, कामना में अँधा मनुष्य, अपनी प्रतिभा से अनभिज्ञ होता है| मनुष्य के व्यक्तिगत अनुमानों को, जब भी चुनौती मिलती है तभी, उसके दुखों का जन्म होता है इसलिए, सभी तरह के पूर्वानुमानों का त्याग करके, वर्तमान में पूरे आनंद से जीने की कला सीखना अनिवार्य है जो, केवल आत्मज्ञान से ही सीखी जा सकती है| उदाहरणार्थ, यदि “थॉमस अल्वा एडिसन” बल्ब का आविष्कार, किसी कामना से कर रहे होते तो, निश्चित ही उन्हें, अपने हर असफल परीक्षण से, दुःख प्राप्त होता और वह 10000 बार दुःख नहीं सह पाते किन्तु, वह अपने सत्य कर्म से प्रेम करते है| उनका उद्देश्य दुनिया को, भौतिक प्रकाश प्रदान करना था| वस्तुतः एक आत्मज्ञानी मनुष्य के लिए, सुख दुख एक समान होते हैं| वह संयोग से मिले फल को, सदैव सकारात्मकता से देखता है हालाँकि, ऐसा कर पाना साधारण मनुष्य के लिए असंभव है| क्योंकि, हम बचपन से जो भी देखते हैं उसे, सच मान लेते हैं और धीरे धीरे वही, हमारी दुनिया बन जाता है| फिर हम, सभी सूचनाओं को उसी आधार पर ग्रहण करते हैं जैसा, हमारा अतीत था| हमारे सुख दुख हमारे अनुसार पहले से तय होते हैं| उसके अतिरिक्त सोच पाने की क्षमता, सांसारिक मनुष्यों में नहीं होती| हाँ, यदि वह रुक कर अपने जीवन का अवलोकन करे तो, निश्चित ही अपने जीवन की असत्यता से अवगत हो जाएगा|

सुखी जीवन का रहस्य क्या है?

सुखी जीवन का रहस्य क्या हैः What is the secret of happy life?
Image by pixabay.com

मनुष्य के जीवन का वास्तविक सुख संघर्ष है| वस्तुतः मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो, पेट भरने के बाद भी शांति से नहीं बैठ सकता| मनुष्य की सभी इंद्रियां उसे, सांसारिक विषयों की ओर सुख के लिए आकर्षित करती है| जैसे, पैसे के लिए नौकरी, प्रेम की प्राप्ति के लिए शारीरिक संबंध और मन की तृप्ति के लिए, भोगवादी वस्तुएँ ही आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है | वस्तुतः सांसारिक मनुष्य नहीं जानता कि, आनंद तो सुख की अभिलाषा का त्याग करने से ही प्राप्त हो सकता है किंतु, यदि सभी इच्छाओं का त्याग किया जाए तो, जीवन में करने को क्या बचेगा? इसलिए, अपने हृदय में छुपे सत्य को पहचानना अति आवश्यक है| सत्य की एक की परिभाषा है कि, जो कभी परिवर्तित न हो, वही सत्य है तो, अब आप तय कीजिए आपके जीवन में ऐसा क्या है जो, कभी नहीं बदलने वाला| भले ही आप इस दुनिया को छोड़कर चले जाएँ, वही आपका सत्य हो सकता है| जिसे ग्रहण करने के बाद, आपका जीवन निश्चित ही संघर्षपूर्ण आनंद से भाव विभोर हो उठेगा|

एक श्रेष्ठ पुरुष, सुख दुख की परिकल्पना में, अपना जीवन व्यतीत नहीं करता| उसके लिए, सभी स्थितियां उत्तम होती है| वह अपनी दरिद्रता का रोना नहीं होता और न ही, अपनी दुर्बलता का विलाप करता| वह अपनी अंतरात्मा में झांककर देखता है और प्रश्न करता है कि, क्या उसे यथार्थतः वही चाहिए था, जिसके पीछे वह भाग रहा है या सांसारिक आकर्षण ने उसे ऐसा सोचने पर विवश कर दिया और जब यह बात मनुष्य समझ लेते हैं तब, वह अपने पूर्वाग्रह से मुक्त हो जाते हैं जहाँ, पहले वह लोगों का सम्मान प्राप्त करने के लिए कार्य करते थे| अब वह, अपने चित्त की शांति के लिए, परमार्थी बन जाते हैं और जो उचित है, उसे करने में प्राथमिकता देने लगते हैं| यही सुखी जीवन का वास्तविक मंत्र है|

 

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