जलवायु परिवर्तन (Jalvayu parivartan explained)

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जलवायु परिवर्तन (Jalvayu parivartan explained in hindi):

पृथ्वी के लिए जलवायु परिवर्तन एक गंभीर मुद्दा है| आज चारों ओर प्राकृतिक आपदाएँ घटित हो रही हैं| कहीं बाढ़, कहीं सूखा, कहीं भूकम्प तो कही बर्फ़बारी आम बात हो चुकी है| क्या हालात हमेशा से ऐसे ही थे या मानव विकास प्रक्रिया ने, पृथ्वी को विराट क्षति पहुँचाई है| वैसे जो भी हो, इसका सबसे अधिक प्रभाव मनुष्य के जीवन पर ही पढ़ने वाला है| आज कई देश पोषण समस्याओं से ग्रसित हैं जहाँ, खेती करना कठिन होता जा रहा है| जलवायु परिवर्तन, फसलों को सीधे तौर पर प्रभावित करता है हालाँकि, जलवायु परिवर्तन के बहुत से कारण हैं लेकिन, इस मुद्दे पर सभी की प्रतिक्रियाएँ भिन्न हैं| कुछ लोग फैक्ट्रियों को आरोपित करते हैं, कुछ पेड़ काटने को तो, कुछ ऐसे भी लोग हैं जो, इसे ऊपर वाले की इच्छा मानकर, अपना दुर्भाग्य समझ लेते हैं| मनुष्य की भोगवादी नीति ही, जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है किंतु, इसे समझने के लिए हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|

  1. जलवायु परिवर्तन क्या है?
  2. जलवायु परिवर्तन के कारण क्या है?
  3. जलवायु परिवर्तन के परिणाम क्या है?
  4. जलवायु परिवर्तन को रोकने के उपाय क्या है?
वायुमंडल का तापमान: atmospheric temperature?
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मनुष्य आज विलुप्ति की कगार पर खड़ा है| क्या कभी आपने सोचा कि, यदि वायुमंडल का तापमान, कुछ डिग्री और बढ़ा तो प्रलय ला सकता है| हालाँकि ऐसी चेतावनियां, मनुष्य के लिए आम बात हैं| वस्तुतः मनुष्य का जीवन बहुत छोटा होता है जो, सृष्टि की तुलना में पलक झपकने मात्र है| कदाचित्, इसलिए मनुष्य केवल अपने बारे में सोच पाता है| उसे आभास ही नहीं कि, वह इस पृथ्वी का रक्षक है| यदि उसने अपना उत्तरदायित्व नहीं निभाया तो, आगे आने वाली पीढ़ी, पानी की एक एक बूँद के लिए तरस जाएगी| अनाज का एक दाना मिलना भी, सपने की भांति होगा और बचे हुए लोग, ऊँचे ऊँचे पहाड़ों में जाकर जीवन व्यतीत करेंगे| पृथ्वी का भूभाग जलमग्न हो जाएगा परिणामस्वरूप, मनुष्य का अस्तित्व इस पृथ्वी से, हमेशा हमेशा के लिए मिट जाएगा| आज मात्र कुछ लोग पूरे विश्व को नियंत्रित कर रहे हैं लेकिन, दुर्भाग्य की बात है कि, वह अपने अहंकार से निर्णय ले रहे हैं जहाँ, निजी स्वार्थ को प्राथमिकता दी जाती है फिर चाहे, प्राकृतिक संपदाओं का सर्वनाश ही क्यों न हो जाए| कई सालों से चल रहे खनन उद्योगों ने, पृथ्वी के संतुलन को प्रभावित किया है जिससे, वन्यजीव विलुप्ति की कगार पर खड़े हैं| मनुष्य यह भूल चुका है कि, जीव जन्तु पशु पक्षी और पेड़ पौधे उसी के बाह्य अंग है जिनके, नष्ट होते ही वह भी मिट जाएगा| आज मीडिया में जलवायु परिवर्तन, सबसे प्रमुख चर्चा का केंद्र होना चाहिए किंतु, सभी देश अपनी अर्थव्यवस्था बढ़ाने में लगे हुए हैं और उसका परिणाम यह है कि, कुछ लोगों ने पृथ्वी के सभी संसाधनों पर अपना आधिपत्य कर लिया है और शेष आबादी जो कि 90% से अधिक होगी, वह आज निर्धनता के निचले स्तर पर, जीवन व्यतीत कर रही है और यही गरीब लोग, जलवायु परिवर्तन की सबसे अधिक मार झेलने वाले हैं| तो क्या कोई ऐसा विकल्प है जिससे, जलवायु परिवर्तन को न्यूनतम स्तर तक लाया जा सके? जी हाँ, निश्चित ही ऐसा किया जा सकता है लेकिन, बिना आध्यात्मिक ज्ञान के यह कर पाना असंभव है| निम्नलिखित बिन्दुओं से यह बात पूर्णतः स्पष्ट होगी|

जलवायु परिवर्तन क्या है?

जलवायु परिवर्तन क्या हैः What is climate change?
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पृथ्वी का निर्माण विकास प्रक्रिया की देन है और उसी का उत्पाद मानव अस्तित्व भी है| प्रकृति में कोई भी विषय वस्तु तभी विकसित हो सकती है जब, वातावरण अनुकूलित हो| जैसे शुद्ध हवा, स्वच्छ पानी और पोषण युक्त भोजन मनुष्य के लिए, अनुकूलित वातावरण कहलाएंगे| यदि इनमें से कुछ भी परिवर्तित हुआ तो, इसके घातक परिणाम होंगे| आज मनुष्य का जीवन दुष्कर होता जा रहा है| कई देशों में जल समस्या और वायु प्रदूषण निरंतर बढ़ रहे हैं| जलवायु परिवर्तन का अर्थ वातावरण बदलाव होता है| जिसके लक्षण ऋतुओं का समय परिवर्तित होना, वायु की गति और दिशा बदलना, तापमान अधिकतम या न्यूनतम होना इत्यादि हैं| जलवायु परिवर्तन एक विनाशकारी समस्या है जिससे, अनगिनत जीव प्रजातियां प्रतिदिन विलुप्त होती जा रहीं हैं| वन्य प्राणियों का विलुप्तिकरण मानव जीवन को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहा है जिससे, खेती की उर्वरक क्षमता कम होती जा रही है| हानिकारक परजीवियों से वातावरण ग्रसित होता जा रहा है| यह जानवरों के साथ साथ मनुष्यों के लिए भी घातक होने वाला है| जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक तंत्र को नष्ट करे, उससे पहले मनुष्य को, अपनी जीवनशैली प्रवर्तित करनी होगी और उसे अपना उत्तरदायित्व समझते हुए, इस गंभीर समस्या को प्रकाशित करना होगा तभी, जलवायु परिवर्तन का मुद्दा गतिशील होगा|

जलवायु परिवर्तन के कारण क्या है?

जलवायु परिवर्तन के कारण क्या हैः What are the causes of climate change?
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पृथ्वी के भू भाग में किसी तरह का परिवर्तन करना, जलवायु परिवर्तन को भी प्रभावित करता है| चलिए कुछ मुख्य कारणों की चर्चा करते हैं| जैसे, मनुष्य की आबादी का बढ़ना, जलवायु परिवर्तन के लिए प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है| मनुष्य आम पशु पक्षियों की भांति पृथ्वी पर नहीं रहता| वह अपना घर बनाता है| वैज्ञानिक संयंत्रों का उपभोग करता है जिन्हें, प्राकृतिक संसाधनों से ही बनाया जाता है| मानव खाद्यान्न प्रक्रिया भी, वातावरण को क्षति पहुँचाने में पीछे नहीं हैं| मांसाहारी भोजन पृथ्वी के लिए विनाशकारी है| आपने मांसाहार करने वाले व्यक्तियों को कहते सुना होगा कि, पेड़ पौधों में भी जान होती है तो क्या अंतर है, शाकाहार और मांसाहार में? तो आपको बता दें, पेड़ पौधों के अंदर दर्द अनुभव करने का स्नायु तंत्र नहीं होता वहीं, दूसरी ओर एक जानवर को पूर्ण रूप से विकसित करने के लिए, बहुत से पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है| जिसका उत्पादन भी, खेती के माध्यम से किया जाता है इससे, शाकाहारी खाद्यान्नों के दाम निरंतर बढ़ते हैं| आप विचार कीजिए, एक बकरे को बड़ा होने के लिए कितना अनाज खिलाना होगा और वह पूर्ण विकसित होने के बाद, मांस के रूप में कितने लोगों की खाद्यान्न पूर्ति कर सकेगा? आप अंतर समझ जाएंगे| मांसाहार, केवल मनुष्य के लिए ही नहीं, पूरी पृथ्वी के लिए विनाशकारी है| मांसाहार भोजन सर्वाधिक कार्बन का उत्सर्जन करता है| मांसाहार के लिए खेती की 80% भूमि का उपयोग किया जाता है| जिसका पूरी मानव जाति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है किंतु, यह बात नैतिकता के मार्ग से नहीं समझायी जा सकती| मनुष्य अहंकार का पिटारा है| वह अपने पूर्वाग्रह से संलग्न होकर ही निर्णय लेता है इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति अपने इतिहास के खाद्य पद्धति को बदलना नहीं चाहता| भले ही उसने स्वयं को जंगल से निकाल कर, शहरों में बसा लिया हो लेकिन, आज भी वह आदिमानव प्रवृत्ति से ओत प्रोत है| आज कोई भी इंसान खाने को अपनी निजी मुद्दा समझता है किंतु, सार्वजनिक स्थानों में धूम्रपान को निषेध किया जाने की वकालत करने वाले लोगों की भी कमी नहीं है क्योंकि, धूम्रपान से तो आस पास के लोगों को भी समस्या हो सकती है| उसी प्रकार मांसाहार को भी वैश्विक समस्या समझा जाना चाहिए| कम से कम जिस जगह शाकाहार भोजन उपलब्ध है, वहाँ बदलाव किए जा सकें| लोगों को समझना होगा कि, आज की परिस्थिति में मनुष्य के लिए, अनाज पर्याप्त नहीं है| तो गाय, बैल, भैंस, बकरी, मुर्ग़ी, मछली इत्यादि जीवों के लिए खाद्यान्न कहाँ से आएगा तो, निश्चित है कि, इससे शाकाहारी भोजन की कमी होती जाएगी और वन्य क्षेत्र घटते जाएँगें| गाड़ी मोटर या कारखानों के प्रदूषण को तो आज सभी समझते हैं| इसीलिए, इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनायी जा रही है लेकिन, क्या वह कार्बन उत्सर्जन नहीं कर रहीं| अतः यह कब और कैसे रुकेगा यह चिंताजनक परिस्थिति है|

जलवायु परिवर्तन के परिणाम क्या है?

जलवायु परिवर्तन के परिणाम क्या हैः What are the consequences of climate change?
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जलवायु परिवर्तन पृथ्वी पर विराट संकट का उद्घोष है| यह कोई ऐसी परिस्थिति नहीं जिसे, मनुष्य अपने विज्ञान के द्वारा नियंत्रित कर सके क्योंकि, तकनीकीकरण भी जलवायु परिवर्तन का स्त्रोत है| आने वाला समय मनुष्य के लिए, भयानक महामारियों से ग्रसित होने वाला है| हवा में विष तैर रहा है जो, न केवल पशु पक्षियों के लिए बल्कि, मनुष्यों के लिए भी मृत्यु दायक है| स्थितियों के आकलन से 2050 तक पृथ्वी अपने विनाश के चरम पर पहुँच चुकी होगी| जिस गति से सभी देश अर्थव्यवस्थाओं के विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं, वो दिन दूर नहीं, जब यही विकास, विनाश का कारण बनेगा| मनुष्य यह भूल चुका है कि, उसका जीवन प्राकृतिक विषय वस्तुओं का समूह है| वह बिना स्वच्छ वातावरण जीवित नहीं रह सकता| जैसे जैसे, मनुष्य की जनसँख्या बढ़ेगी वैसे वैसे, मानव जाति कुपोषण की ओर अग्रसर होगी| भुखमरी, बड़ी जनसंख्या वाले देशों को, प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करेगी| पृथ्वी के भू भाग के अनुसार, आज मनुष्य की आबादी क्षमता से अधिक हो चुकी है| वहीं, जीव जन्तुओं की संख्या निरंतर घटती जा रही है जो, पारिस्थितिकी तंत्र के लिए चिंताजनक विषय है| आज हम कह सकते हैं कि, मनुष्य की अज्ञानता ही, जलवायु परिवर्तन का उत्पादक है| यदि मनुष्य ने, अपनी शिक्षा में विज्ञान के साथ साथ प्राकृतिक विषय वस्तुओं को भी महत्व दिया होता तो, कदाचित् आज घने वन, फलदार वृक्षों से लहलहा रहे होते, आसमान में विभिन्न प्रकार के पक्षी उड़ रहे होते, फूलों के आस पास रंगीन तितलियों का समूह नृत्य कर रहा होता और मनुष्य, प्रकृति से संयोजन करना सीख चुका होता किंतु, मनुष्य के स्वार्थ ने हरियाली से भरे जंगलों को, पूरी तरह बंजर कर दिया है| मानव माया के अंधकार में भूल चुके हैं कि, उन्हें केवल कुछ वर्षों का ही जीवन मिला है लेकिन, उनकी मूर्खता का परिणाम, आने वाली पीढ़ी भुगतने वाली है| कुल मिलाकर कहा जाए तो, जलवायु परिवर्तन से मानवीय विलुप्ति का मार्ग सिद्ध होगा|

जलवायु परिवर्तन को रोकने के उपाय क्या है?

जलवायु परिवर्तन को रोकने के उपाय क्या हैः What are the measures to prevent climate change?
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जैसा कि उपरोक्त बिन्दुओं से स्पष्ट है कि, मनुष्य ही प्रकृति के ऐसे हाल के लिए उत्तरदायी है| मानव समाज ने विषय वस्तुओं के उपभोग को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है| आपने देखा होगा, किसी भी व्यक्ति का सपना, अधिक धन अर्जित करने का होता है किंतु, उसके बाद वह करना क्या चाहता है, भोग? अतः मनुष्य की बढ़ रही आबादी को रोकने के साथ साथ, पृथ्वी पर रह रहे मनुष्यों को शिक्षित करना अनिवार्य है जहाँ, उनके कर्तव्य स्वार्थ के आधार पर तय न किए जाएं बल्कि, आंतरिक सत्य ही जीवन का उद्देश्य हो| मनुष्य को यह समझना होगा कि, यदि वह कई पृथ्वियों का शोषण भी कर ले तो, उसे आनंद प्राप्त नहीं होगा| आनंद सुख दुख के ऊपर की स्थिति को कहा जाता जहाँ, ख़ुशियों का उद्देश्य क्षणभंगुर न होकर, बृहद होता है| ऐसा मनुष्य पृथ्वी को अपना अंग समझ कर चलता है| वह सभी जीव जंतुओं को, अपने रूप में देखता है| उसके कर्म परमार्थी हो जाते हैं| वही वास्तव में, जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर मुखर होकर, अपना स्वर ऊँचा कर सकता है| हालाँकि यहाँ अधिकतर लोग, अपने निजी स्वार्थ से बाहर नहीं देख पाते| उनके लिए, उनका छोटा सा परिवार या कुछ लोग ही, प्रमुख होते हैं| ऐसे में पृथ्वी के भविष्य का उत्तरदायित्व, शिक्षा के माध्यम से ही समझाया जा सकता है|

आज मनुष्य उन्नति के चरम पर है| जिसका दुष्परिणाम यह है कि, नदियों का जलस्तर कम हो चुका है| समुद्र के तटीय क्षेत्र जलमग्न हो चुके हैं| धीरे धीरे वन्य क्षेत्र संकुचित होते जा रहे हैं| आज के समय को देखते हुए, पृथ्वी के विनाश का अनुमान लगाना संभव है| 1990 से लेकर 2024 तक पृथ्वी में कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर, दोगुने से अधिक हो चुका है| यदि यह इसी गति से बढ़ता रहा तो, कुछ ही वर्षों में मनुष्य को साँस के लिए भी संघर्ष करना होगा| बड़ी बड़ी कंपनियां, घरों में ऑक्सीजन टैंक बेचकर अधिक लाभ अर्जित करेंगी इसलिए, अभी से जागना होगा और एक होकर, जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाली संस्थाओं का समर्थन करना होगा ताकि, वातावरण के संकट से कुछ और समय सुरक्षित रहा जा सके| अंततः मृत्यु तो आनी है लेकिन, अपने जीवन को सार्थक करना मनुष्य के हाथ में है|

 

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