बेटा (Beta explained in hindi):
सोशल मीडिया के समय में बच्चों पर नियंत्रण रखना कठिन होता जा रहा है| माता पिता के लिए, उनका बेटा ही उनकी दुनिया होता है| जिसे लेकर वह कई सपने बुनते हैं| लेकिन जब बढ़ती आयु के साथ बेटा प्रतिकूल रूप से बदलने लगे तो, यह चिंताजनक विषय बन जाता है| यह एक ऐसी परिस्थिति है जहाँ, माता पिता अपनी आशा खोने लगते हैं| माता पिता भी सामान्य मनुष्य ही होते हैं जिन्हें, संसार का ज्ञान तो होता है किंतु, मानव शरीर के बारे में, कोई जानकारी नहीं होती और यही कारण है कि, वह अपने बच्चे को बचपन से ही, बाहरी दुनिया को सौंप देते हैं| हालाँकि, यहाँ दोनों तरह के परिवर्तन देखे जा सकते हैं| कुछ बच्चे अपनी शिक्षा पर विशेष ध्यान देते हैं और अपना जीवन संतुलित करने में सफल हो जाते हैं लेकिन, दूसरे तरह के बच्चे सांसारिक चमक दमक से आकर्षित होकर, अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं जिसका, परिणाम पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है|
दांपत्य जीवन में इच्छानुसार बच्चा होना, किसी वरदान से कम नहीं होता| माँ बाप के लिए, अच्छा बेटा होना गौरव की बात होती है किंतु, यदि बेटा बिगड़ जाए तो, यह उनके जीवन की सबसे बड़ी समस्या बन जाती है| किसी भी लड़के को समझने के लिए, उसके तंत्र को समझना होगा अर्थात किस आयु में, कैसे शारीरिक बदलाव हो रहे हैं, मानव जीवन पर, इसका सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है| बेटा निजी संपत्ति नहीं होता बल्कि, वह एक सांसारिक जीव है जिसे, जन्म से ही अपूर्णता का भाव मिला है और वह, संसार में जाकर पूर्ण होने का प्रयास कर रहा है और इसी कारण वह, ऐसी विषय वस्तुओं से संलिप्त हो रहा है जो, उसे सुख की अनुभूति प्रदान कर रहीं हैं किंतु, वह नहीं जानता कि, ये क्षणिक अनुभवयुक्त वेग् मात्र है जो, विपरीत परिस्थितियों में, प्रकट होकर उसका दुःख बनेगा| इसे समझने के लिए, हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|
- बेटा क्या होता है?
- मेरा बेटा बहुत जिद्दी है मैं क्या करूं?
- कमजोर बच्चों को मजबूत कैसे बनाएं?
- बच्चे की परवरिश कैसे करे?
- बच्चे समझदार कब होते हैं?
- बिगड़े हुए बेटे को कैसे सुधारे?
- बच्चे का भविष्य कैसे जाने?
जीवन से जुड़े प्रश्नों के उत्तर कई बार, माता पिता के पास भी नहीं होते| ऐसे में वह अहंकार के कारण, अपने निजी जीवन के अनुभवों से ही, मार्गदर्शन करने का प्रयास करते हैं जो, संयोग से ही उचित हो सकता है| वस्तुतः जीवन की गणित के बड़े सटीक पैमाने हैं जिन्हें, जाने बिना एक आनंददायक जीवन की, कल्पना भी नहीं की जा सकती| हाँ यदि, इन्हें समझ लिया जाए तो, अपने बेटे का जीवन, निश्चित ही बदला जा सकता है| चलिए, निम्नलिखित बिंदुओं इसे जानने का प्रयत्न करते हैं|
बेटा क्या होता है?
बेटा अर्थात पुत्र, माता-पिता का फैलाव है जिसे, विज्ञान की भाषा में स्त्री पुरुष के दैहिक संबंधों का उत्पादन भी कहा जा सकता है| माँ बाप के लिए, उनका बेटा ही उनकी आशा होता है जिसे, वह अपने उत्साह की कमी को पूरा करने के लिए, योग्य बनाना चाहते हैं| कुछ लोग बेटे में अपने सपने थोपने का भी प्रयास करते हैं हालाँकि, इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन, वही सपने उनके बेटे का जीवन दुखदायी बना देते हैं| वस्तुतः प्रत्येक मनुष्य शारीरिक तल पर तो समान होता है किंतु, आंतरिक सोच में भेद अवश्य होता है इसलिए, बेटा मोह का नहीं बल्कि करुणा का पात्र होना चाहिए जिसे, माता पिता शिष्य की तरह देखें, तो उत्तम होगा और तभी बेटे को समझ पाने में सहजता होगी|
मेरा बेटा बहुत जिद्दी है मैं क्या करूं?
किसी भी लड़के की जिद अचानक नहीं बढ़ती| बचपन से ही विभिन्न वस्तुओं से आकर्षित होकर वह, यहाँ तक पहुँचा होगा इसलिए, अब इसे रोकने का एक ही उपाय है और वह आत्मज्ञान है अर्थात् बच्चे को इस बात का अनुभव करवाना होगा कि, इस संसार में कोई भी ऐसी भौतिक वस्तु उपलब्ध नहीं जो, उसे हमेशा ख़ुशी दे सके| एक के बाद एक नई वस्तुओं की आवश्यकता तभी बनी रहती है जब, मन में अपूर्णता का भाव होता है| अतः एक सार्थक उद्देश्य ही उसे संतुष्टि प्रदान करेगा| आपका बेटा नई नई चीज़ों की ज़िद इसलिए करता है क्योंकि, वह आंतरिक तौर पर खोखला अनुभव कर रहा है और बाहरी विषय वस्तुओं से जुड़कर, अपने मन को शांत करना चाहता है जो, लगभग असंभव है इसलिए, आपका कर्तव्य है कि, उसे जीवन का वास्तविक महत्व समझाए लेकिन, यहाँ आपको स्वयं की शिक्षा पर ध्यान देना होगा| बहुत हद तक संभावना है कि, आज तक आप भी सांसारिक विषय वस्तुओं के आकर्षण में लिप्त थे| तो भला, आप इस बात को कैसे समझ सकेंगे? बच्चे की ज़िद का आधार अहंकार होता है जिसे, केवल आध्यात्मिक शिक्षा से ही समाप्त किया जा सकता है| आध्यात्मिकता ही त्याग का भाव जगा सकती है| आगे आने वाले बिंदुओं से आप इस बात को समझ सकेंगे|
कमजोर बच्चों को मजबूत कैसे बनाएं?
दुर्बलता दो तरह की होती है| मानसिक और शारीरिक किंतु, सबसे अधिक महत्व मानसिक बल को दिया जाना चाहिए| क्योंकि, सकारात्मक विचार ही, शरीर को परिश्रम करने पर विवश कर सकता है लेकिन, मानसिक विक्षिप्तता बलशाली शरीर को भी आलस से घेर सकती है| जब तक बच्चे के जीवन में, किसी लक्ष्य के प्रति प्रेम उत्पन्न नहीं होगा तब तक, उसे शारीरिक बल प्राप्त करने हेतु, प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता| मनुष्य का शरीर उसके विचारों से संचालित होता है और विचार, आध्यात्मिक ज्ञान से ही बदले जा सकते हैं क्योंकि, विज्ञान केवल बुद्धि की बढ़ोतरी तक सीमित है किंतु, उस बुद्धि का सदुपयोग करना तो विवेक की बात है जिसे, आध्यात्मिकता ही सिखाएगी| लेकिन आज के जमाने में हमने, अध्यात्म को निष्क्रियता से जोड़ दिया है जबकि, आध्यात्मिक मनुष्य सद्भावना को जन्म देता है जहाँ, वह दूसरों के लिए समर्पण भाव से जीने के कारण, स्वयं मज़बूती प्राप्त कर लेता है| हालाँकि, अधिकतर लोगों को लगता है कि, आध्यात्मिक व्यक्ति बिना किसी काम का हो जाता है किंतु, यह तो केवल आपका भ्रम है क्योंकि, एक सच्चा योद्धा ही वास्तविक अध्यात्म को समझ सकता है| यहाँ योद्धा से आशय, सार्वजनिक हितों के लिए, संघर्षशील व्यक्ति से है न कि, स्वार्थ के लिए लड़ाई करने वालों से|
बच्चे की परवरिश कैसे करें?
आपने देखा होगा, बच्चे अपने माँ बाप से विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछते हैं लेकिन, उसका उत्तर न होने पर, माता पिता उसे चुप करवा देते हैं या उसे उल्टा सीधा बोलकर, अपना पीछा छुड़ा लेते हैं| बच्चे के पहले गुरु माँ बाप ही होते हैं इसलिए, जानकारी न होने पर स्वयं ही, इसका पता लगाने का प्रयास करना चाहिए तभी, बच्चे को सही मार्गदर्शन दिया जा सकेगा| बच्चे की परवरिश करने से पहले, माता पिता को अपना जीवन देखना चाहिए यदि, वह अपने जीवन से संतुष्ट नहीं है तो, उन्हें अपने बच्चे को अपना ज्ञान देने का कोई अधिकार नहीं| हालाँकि, हमारे सामने कई उदाहरण ऐसे भी हैं जहाँ, कुछ माता पिता अशिक्षित होते हुए भी, अपने बेटे के लिए अच्छी शिक्षा का प्रबंध करते हैं किंतु, यह केवल संयोग की बात है| एक ज्ञानी ही दूसरे व्यक्ति को ज्ञान दे सकता है इसलिए, बच्चे की परवरिश करने के लिए, प्राचीन ग्रंथों का सहारा लिया जाना चाहिए हालाँकि, सांसारिक सूचनाओं ने हमारे मन को ऐसे दूषित कर दिया है जहाँ, हमारी सोच भोगवाद से प्रेरित है| हमें लगता है कि, गाड़ी बंगला और अच्छा व्यवसाय ही, बच्चों की मंज़िल होना चाहिए लेकिन, यहाँ हम यह भूल जाते हैं कि, एक सही कार्य ही जीवन की सारी समस्याएँ दूर कर सकता है किंतु, जब वह काम स्वार्थ भाव से उठता है तो, अच्छे परिणाम मिलना असंभव है| आध्यात्मिक जानकारियों के अभाव में, हम संसार के माया जाल में फँस जाते हैं जहाँ, हम दूसरे के बच्चों को देखकर, अपने बच्चे को उन्हीं की भांति बनाने का प्रयास करने लगते हैं|
जानवरों की प्रजातियां भले ही, एक समान बर्ताव करती हो| लेकिन मनुष्य, एक दूसरे से भिन्न होते हैं इसलिए, एक व्यक्ति का जीवन दूसरे के लिए, व्यर्थ भी हो सकता है| माँ बाप को अपनी सोच थोपने का प्रयास नहीं करना चाहिए क्योंकि, यह संभव है कि आप अपने लाचारियों को बच्चे के सामने रखकर, उसे भी दुर्बल कर दें| अगर हो सके तो, अपने अहंकार के कारण, बच्चे का मालिक बनने का प्रयास न करें और न ही, उससे किसी तरह की उम्मीद रखें क्योंकि, इस संसार में जब भी हम किसी विषय वस्तु को, कामनाओं के आधार पर, निर्माण करने का प्रयास करते हैं तो, परिणाम प्रतिकूल होते हैं इसलिए, उसे आध्यात्मिक ज्ञान के साथ विज्ञान की भी शिक्षा दें और कामनारहित, उसके पालन पोषण का ख्याल रखें| यही आपकी लिए उत्तम होगा|
बच्चे समझदार कब होते हैं?
यह सवाल आपको स्वयं से पूछना चाहिए| क्या, आप आज तक समझदार हो पाए हैं? यदि हाँ तो, आपके जीवन में खुशियां कहाँ है? क्यों आप दुख में जी रहे हैं? क्यों आपके लिए हुए निर्णय, अनुचित हो जाते हैं? क्यों आपको, आपकी इच्छानुसार परिणाम नहीं मिलते? आपको यह समझना होगा कि, इस संसार की विषय वस्तु परिवर्तनशील है| हम जो कामना वर्तमान में करते हैं, भविष्य में उसके मायने परिवर्तित जाते हैं इसलिए, बच्चे की समझदारी वर्तमान समय के सही उपयोग से ही, विकसित हो सकती है| यदि आपका बच्चा व्यर्थ की जानकारियां ग्रहण कर रहा है तो, निश्चित ही उसका जीवन निरर्थक हो जाएगा| बच्चे की समझदारी, विकसित करने के लिए, उसे परमार्थ कार्य करने वाले व्यक्तियों के जीवन से, शिक्षा ग्रहण करने को प्रेरित करना चाहिए| परमार्थ अर्थात दूसरों के लिए, जीवन समर्पित करने वाले को, परमार्थी कहा जाता है क्योंकि, स्वयं के अर्थ के लिए जीने वाले व्यक्ति, सदा ही दुख में जीवन व्यतीत करते हैं और उससे उनकी सोच संकुचित रह जाती है|
बिगड़े हुए बेटे को कैसे सुधारें?
इस संसार में अच्छा बुरा जैसा कुछ नहीं होता किंतु, फिर भी मनुष्य अपनी कल्पना में अच्छाई की एक तस्वीर बनाकर रखता है और फिर, जो भी उसके अनुसार न हो, वह उसे बिगड़ा हुआ मान लेता है| किसी के लिए, कुछ अच्छा है तो, दूसरे के लिए वही बुरा बन जाता है लेकिन, सत्य तो सभी के लिए, सही होना चाहिए| फिर लोगों की समझ में भिन्नता क्यों? वस्तुतः इस संसार में सभी के स्वार्थ अलग है जैसे, एक पिता अपने पुत्र को भविष्य में, अपने सहारे के रूप में देखना चाहता है किंतु, उसका दोस्त उससे मनोरंजन की आकांक्षा रखता है| अब यहाँ, यदि लड़का अपने पिता से सलाह ले तो, वह उसे नौकरी और रोज़गार के लिए, पढ़ने को कहेंगे लेकिन, दोस्त की सलाह घूमने फिरने की होगी| यहाँ दोनों ही व्यक्ति, अपने स्वार्थ के लिए सलाह दे रहे हैं किंतु, उस लड़के की वास्तविक शक्ति कोई नहीं पहचानता क्योंकि, जब तक मनुष्य स्वयं को नहीं जानता तो, वह अपने आस पास के लोगों की भांति बनने का प्रयास करता है और यहीं से, जीवन विपरीत दिशा में मुड़ जाता है जो, सारे परिवार को हतोत्साहित कर सकता है|
माता पिता को यह बात मन मस्तिष्क से निकाल देना चाहिए कि, हमारा बच्चा बिगड़ा हुआ है तभी, एक सुधार की उम्मीद की जा सकती है| क्योंकि, जब हम किसी को नकारात्मक भाव से देखते हैं तो, उसका इलाज कर पाना कठिन हो जाता है| मनुष्य का शरीर, उसके मन के विचारों से संचालित होता है इसलिए, माता पिता को सामान्य शिक्षा के साथ साथ, महापुरुषों का भी ज्ञान देना चाहिए तभी, आपके बेटे के जीवन में श्रेष्ठता का भाव उत्पन्न होगा और वह स्वयं ही, अच्छे रास्ते की ओर बढ़ जाएगा|
बच्चे का भविष्य कैसे बनाए?
जब तक आपके अंदर बच्चे के भविष्य की आशा होगी तब तक, परिणाम अच्छे नहीं आ सकते| हाँ लेकिन, यदि उसके वर्तमान पर ध्यान दिया जाए तो, भविष्य स्वतः ही श्रेष्ठ होता जाएगा| वर्तमान पर ध्यान देने से आशय, अपने अतीत की जानकारियों को हस्तांतरित करना नहीं बल्कि, अपने बेटे को सृष्टि के लिए, उसकी भूमिका बताना है किंतु, जब आप स्वयं ही, स्वार्थ का जीवन जी रहे हों तो, बच्चे को कैसे सार्वजनिक हितों के लिए, प्रेरित कर सकेंगे| कोई भी मनुष्य तभी सफल हो सकता है जब वह, निःस्वार्थ भाव से अपने कार्य से प्यार करे लेकिन, जब वह कार्य आर्थिक दबाव से करना पड़ता है तो, वह एक बोझ की भांति लगने लगता है और फिर जीवन हताश हो जाता है| सांसारिक सफलता फल प्राप्ति का नाम है किन्तु, आध्यात्मिक सफलता निष्फल होती है| बिना स्वयं को जाने, किसी भी कार्य का चुनाव दुखदायी होता है इसलिए, सर्वप्रथम बच्चे में अपनी पहचान न थोपें| हो सकता है आप, अपने समय में एक बड़ी हस्ती हों किंतु, इस पृथ्वी पर आपकी हैसियत बहुत छोटी है इसलिए, बच्चे को उसकी स्वयं की शक्ति, विकसित करने दें| जो केवल आंतरिक ज्ञान से ही, प्राप्त की जा सकती है| सामान्य शिक्षा के साथ साथ, आध्यात्मिक ज्ञान किसी भी इंसान को शक्तिशाली बना देता है जिससे, मनुष्य का जीवन सार्थक हो जाता है|
बच्चे को जन्म देने से पहले, माँ बाप को इस बात की पुष्टि कर लेना चाहिए कि, वह अपने बच्चे का बोझ उठा सकते हैं| क्योंकि, मनुष्य एक ऐसी प्रजाति है जिसे, शारीरिक पोषण के साथ साथ, मानसिक ज्ञान की भी आवश्यकता होती है| बिना ज्ञान के, कोई भी मनुष्य पशु भांति होता है जो, शारीरिक आवश्यकताओं के लिए, संसार में भटकता रहता है| ऐसे मनुष्य का जीवन, अत्यधिक दुखों से घिर जाता है| आत्मज्ञान ही, जीवन को सही दिशा प्रदान कर सकता है लेकिन, आत्मज्ञान के लिए स्वयं को जानना होगा और बिना श्रेष्ठ ग्रंथों के अध्ययन के, यह कर पाना कठिन है इसलिए, माता पिता को स्वयं ही श्रेष्ठ पुस्तकों का चयन करना चाहिए और अपने बच्चे को, उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए| श्रेष्ठ विचार ही, उत्कृष्ट जीवन का सृजन कर सकते हैं|