शिक्षा (shiksha explained in hindi):
संसार में कोई भी कार्य करने के लिए, उसका ज्ञान होना आवश्यक है| अतः सांसारिक कार्यों को आगे बढ़ाने हेतु, उनसे संबंधित शिक्षा दिए जाना अनिवार्य होता है| शिक्षा मानव जीवन को द्विपक्षीय प्रभावित करती है| एक स्वयं को समझने के लिए और दूसरा, संसार को जानने हेतु| वस्तुतः ज्ञान द्विपक्षीय है| देखने वाले व्यक्ति और देखे जा रहे विषय, जिसे दृष्टा और दृश्य से निरूपित किया जाता है| लेकिन, अधिकतर मनुष्य अपने जीवन में केवल सांसारिक शिक्षा का महत्व रखते हैं| लोगों का मानना है कि, दुनिया को जानना ही पर्याप्त होता है| कभी आपने सोचा कि, शिक्षा ग्रहण करने के बाद भी, मनुष्य का जीवन दुखी क्यों है? तो इसका कारण है, आत्मज्ञान का अभाव अर्थात संसार में कुछ करने से पहले, मनुष्य को अपनी क्षमताओं का ज्ञान होना चाहिए किंतु, समस्या यहाँ आती है जब, मनुष्य स्वयं को किसी सांसारिक पहचान से जोड़ता है तो, वह हीन भावना से ग्रसित हो जाता है| जैसे मैं लड़की हूँ, मैं निर्धन हूँ, मैं अपाहिज हूँ, मैं छोटे नगर में रहता हूँ इत्यादि| किसी भी तरह की पहचान, मनुष्य की दुर्बलता को जन्म देती है परिणामस्वरूप उसका जीवन भी, अपने आस पास के लोगों की भांति बीतता है| शिक्षा का उद्देश्य धन अर्जन या ज्ञान प्राप्ति नहीं होता क्योंकि, संसार ज्ञान का भंडार है और एक मनुष्य, अपना सम्पूर्ण जीवन देकर भी, उसे ग्रहण नहीं कर सकता| अतः एक बगुले की भांति केवल, अपने लिए उपयोगी विषय वस्तुओं को देखने की, दिव्यदृष्टि होना अनिवार्य है जिसे, कुछ प्रश्नों के माध्यम से समझने का प्रयत्न करेंगे|
- शिक्षा क्या है?
- शिक्षा का महत्व क्या है?
- शिक्षा का उद्देश्य क्या है?
- शिक्षा कितने प्रकार की होती है?
- शिक्षा कैसे प्राप्त करें?

एक जानवर के बच्चे को शारीरिक कार्य सिखाने नहीं होते| वह ज्ञान उसके DNA में पहले से ही उपस्थित है किंतु, मनुष्य की विकास प्रक्रिया विभिन्न विचारधाराओं से प्रभावित होती है जिससे, मनुष्य का ज्ञान समय, स्थान और संयोग के अनुसार, परिवर्तनीय है| जैसे, किसी स्थान पर कोई वस्तु उपयोगी होगी किंतु, वही किसी और स्थान पर घृणात्मक श्रेणी में सम्मिलित होगी| ऐसा कैसे हुआ? तो आपको बता दें कि, संसार में सभी मनुष्यों का स्वार्थ विभिन्न है| जिसके कारण, लोगों का ज्ञान भी विभाजित हो चुका है| एक मनुष्य को किसी और की भांति बनने और दिखने के लिए, शिक्षा नहीं चाहिए बल्कि, स्वयं को आनंदित रखने के लिए, शिक्षा का महत्व द्वि-तलीय होता है जहाँ, हम विद्यालयों के माध्यम से, सांसारिक ज्ञान प्राप्त करते हैं जो, शारीरिक लालन पालन के लिए, अति आवश्यक होता है किंतु, शिक्षा का एक दूसरा पक्ष भी है जिसे, अध्यात्म कहा जाता है अर्थात अपनी आत्मा का ज्ञान जिसे, वेदांत और दर्शनशास्त्र के सहज अध्ययन से, प्राप्त किया जा सकता है| जिसकी चर्चा निम्नलिखित बिंदुओं में की गई है|
शिक्षा क्या है?

ज्ञान का अनुसरण ही शिक्षा कहलाता है| शिक्षा को सीख का शुद्धतम रूप माना जाता है| यदि सरल शब्दों में कहा जाए तो, शिक्षा वह प्रकाश है जो, मानव जीवन के अंधकार को मिटाने के लिए, अति आवश्यक है| सांसारिक शिक्षा के कई उद्देश्य होते हैं जिनमें से, सबसे प्रमुख शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है| सांसारिक शिक्षा के अंतर्गत, भौतिक विषय वस्तुओं से संबंधित ज्ञान, सम्मिलित किया गया है जिसे, अविद्या भी कहा जाता है| वहीं, दूसरी ओर आध्यात्मिक शिक्षा का उद्देश्य, स्वयं को जानना होता है ताकि, संसार से सौहार्द्रपूर्ण संबंध स्थापित किए जा सकें जिसे, विद्या कहते हैं| जब तक मनुष्य विद्या और अविद्या के तलों पर, ज्ञानार्जन नहीं कर लेता तब तक, उसके जीवन में दुख कम नहीं हो सकते और शिक्षा का उद्देश्य, तभी पूरा होगा जब, वह व्यक्तिगत जीवन को आनंद से ओतप्रोत करे| शिक्षा के माध्यम से ही, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दृष्टिकोण उत्कृष्टता के शिखर पर पहुँचता है|
शिक्षा का महत्व क्या है?

शिक्षा मनुष्य को दृष्टि प्रदान करने के लिए अति आवश्यक है अर्थात किसी भी विषय को समझने के लिए, उसका ज्ञान होना अनिवार्य होता है, केवल देखने मात्र से, समझ की उत्पति नहीं होती| आपने अनुभव किया होगा, छोटे नगर में रहने वाले अधिकतर लोगों की सोच, संकुचित होती है किंतु, कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो, इतिहास में अपना नाम अंकित कर जाते हैं| अब यहाँ, अंतर केवल शिक्षा का है| छोटे से नगर में रहने मात्र से, कोई प्रभाव नहीं पड़ता| प्रभाव तो, उस वातावरण का पड़ता है जिसके, आस पास मनुष्य का जीवन बीतता है| यदि अवांछनीय स्थान में भी रहना पड़े तो, किताबों के माध्यम से, विचारों में उत्कृष्टता प्राप्त की जा सकती है| शिक्षा के आभाव में, मनुष्य अपने भोजन का पता तक नहीं लगा सकता तो, जीवन जीना तो दूर की बात है| शिक्षा किसी भी माध्यम से, प्रदान की जा सकती है, मौखिक या लिखित| शिक्षा ग्रहण करने के लिए, मनुष्य की पाँच ज्ञानेन्द्रिय उपयोगी होती हैं| आँख, नाक, कान, जीभ और त्वचा जिनके द्वारा, प्राप्त सूचनाओं को, मानव मस्तिष्क निष्कर्षण प्रदान करता है जिसके लिए, अवलोकन विषय संबंधित शिक्षा का होना अनिवार्य है|
शिक्षा का उद्देश्य क्या है?

मानव समाज को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए, शिक्षा आवश्यक है किंतु, शिक्षा का दायरा केवल सांसारिक ज्ञान प्राप्ति तक सीमित नहीं हैं बल्कि, मानव जीवन मुक्ति के लिए ही, संपूर्ण शिक्षा आवश्यक है| शिक्षा वह मार्ग है जिसके द्वारा, एक मनुष्य अपने ज्ञान को प्रसारित कर पाता है| यदि किसी मनुष्य को, सांसारिक शिक्षा प्राप्त हो चुकी है और फिर भी, वह अपने जीवन को समझ पाने में असमर्थ है तो, निश्चित ही उसकी शिक्षा अधूरी है क्योंकि, शिक्षित मनुष्य आंतरिक और बाह्य दोनों ही बिंदुओं पर, विचार करता है| मानव जीवन को, सुख सुविधाएँ देने के लिए, आज विज्ञान की गतिशीलता किसी से छुपी नहीं है और इन सुविधाओं की व्यवस्था बनाए रखने के लिए भी, शिक्षा उपयोगी होती है किंतु, सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि, ये संसार किसके लिए है? आपके लिए तो, शिक्षा उपयोगी भी तभी कही जाएगी जब, वह आपका जीवन आनंददायक बनाने में सहायक हो| इसके विपरीत यदि जीवन, समस्याओं से जूझ रहा है तो, समझना चाहिए कि, अभी आपने केवल बाहरी संसार को देखा है| स्वयं को देखना अभी शेष है अर्थात विद्या और अविद्या का संयुक्त अध्ययन ही, शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य को श्रेष्ठतम संभावनाओं तक पहुँचा सकता है|
शिक्षा कितने प्रकार की होती है?

किसी भी विषय वस्तु का वर्गीकरण किया जाए तो, उसे कई आधारों पर विभाजित किया जा सकता है जैसे, शिक्षा के लिए सांसारिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो, अलग अलग विभागों के लिए, पाठ्यक्रम की रचनाएँ की जा चुकी है जिन्हें, विद्यालयों के माध्यम से, विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है| विद्यालय में विद्यार्थी, अपनी रुचि के अनुसार, अपने विषय का चुनाव करते हैं और फिर, उसी से संबंधित विभाग में नौकरी या व्यवसाय करके, अपना जीवन यापन करते हैं| कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिन्हें, विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने के अवसर प्राप्त नहीं होते| ऐसे व्यक्ति, आम बोल चाल में या स्वाध्याय करके भी, शिक्षित होते हैं हालाँकि, यह बात सरल लग रही होगी किंतु, यह केवल आपका भ्रम है अर्थात शिक्षा, केवल दो भागों में विभाजित की जानी चाहिए| एक उसके लिए, जिसे आप देखते हैं और दूसरा, स्वयं के लिए, जिसके द्वारा संसार देखा जा रहा है| क्योंकि, मनुष्य की आँखों में जैसा चश्मा होगा, वैसा ही संसार उससे प्रतीत होगा| यहाँ चश्मा से आशय, विचारधाराओं से लिया गया है| आपने अनुभव किया होगा जो, व्यक्ति जिस समूह, दल, जाति, वर्ग या परिस्थिति से आता होगा, उसकी विचारधारा उसके अनुरूप ही होगी| अतः यह कहा जा सकता है कि, उसने विशेष वर्ग का चश्मा पहना हुआ है और इन्हीं चश्मों को उतारना ही, शिक्षा का उद्देश्य होता है| जब मनुष्य किसी भी स्थान पर जन्म लेता है तो, वह संयोग होता है| जिस पर उसका कोई अधिकार नहीं| यहाँ तक कि, वह अपनी इच्छा से, भोजन का चुनाव भी नहीं कर सकता तो भला, उसे कैसे पता कि, वह जो पहचान धारण करके, संसार को देख रहा है, वह सही है और अगर वह सही नहीं तो, किसे सही कहा जाए? जब, ऐसे प्रश्न एक मनुष्य के मस्तिष्क में उत्पन्न होने लगते हैं तब, शिक्षा का दूसरा आयाम, निखरकर सामने आ जाता है जिसे, आध्यात्मिक जिज्ञासा कहते हैं| स्वयं को जानने की प्रबल इच्छा ही, एक सच्चे विद्यार्थी को जन्म दे सकती है| सांसारिक विषयों में आकर्षित होकर, उन्हें प्राप्त करने की अभिलाषा से, शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र छात्राएँ, दुखदायी जीवन जीते हैं| अतः संसार को देखने के लिए, सभी चश्मे उतारने होंगे| किसी भी तरह की पहचान धारण करने वाला मनुष्य, उसके पक्ष में ही खड़ा हो जाता है फिर, चाहे बात धर्म की हो या अधर्म की, उसे दिखाई नहीं देता| यही काम धृतराष्ट्र ने भी, अपने पुत्र दुर्योधन के अपराधों को अनदेखा करके किया था जिसने, कुरुक्षेत्र जैसे द्वंद्वात्मक परिस्थिति की उत्पत्ति की परिणामस्वरूप धृतराष्ट्र के कुल का नाश हो गया इसलिए, मनुष्य को केवल सांसारिक ज्ञान नहीं रखना चाहिए अपितु, उसे अपनी मानवता का ज्ञान भी होना आवश्यक है अन्यथा परिणाम भयावह होते हैं|
शिक्षा कैसे प्राप्त करें?

शिक्षा प्राप्त करने के लिए साधारणतः विद्यालयों का निर्माण किया गया है किंतु, विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा, देश की अर्थव्यवस्था को केंद्र में रखकर दी जाती है जहाँ, एक मनुष्य को समझने की बजाए, देश के लिए क्या आवश्यक है वही, सिखाया जाता है इसलिए, विश्व में दी जाने वाली सांसारिक शिक्षा, बाहरी पक्ष को जानने के लिए, उपयोगी हो सकती है किंतु, मनुष्य को अपने आंतरिक दृष्टिकोण को विकसित करने के लिए, दर्शनशास्त्र का ज्ञान होना आवश्यक है| दृष्टा द्वारा दृश्य देखें जाना दर्शन कहलाता है| आम तौर पर संसार को देखने की क्षमता समय, स्थान और संयोग पर निर्भर करती है अर्थात् मनुष्य का जन्म, कब और कहाँ हुआ है, कैसे व्यक्तियों के आस पास उसका जीवन बीता है और सबसे प्रमुख उसकी शिक्षा का स्तर क्या रहा है? जैसे, कोई व्यक्ति विज्ञान में शिक्षित नहीं तो, तकनीकी कार्यों में उसकी रुचि नहीं बढ़ सकती| आज का युग सूचना प्राप्ति की दृष्टि से, सबसे तीव्र माना जाता है किंतु, जानकारियों की शुद्धता पर संदेश भी, वर्तमान में अधिक पाया जाता है फिर, यहाँ कैसे अपने लिए, उपयोगी शिक्षा का मार्ग खोजा जा सकेगा? तो, आपको बतादें, सांसारिक शिक्षा भले ही, किसी भी विद्यालय से ली जा सकती है किंतु, संसार को देखने का दृष्टिकोण प्राप्त करना, सामान्य बात नहीं| प्राचीन काल से ही, मनुष्य को उसके वास्तविक दृष्टिकोण तक पहुँचाने के लिए, कई दार्शनिकों ने अपना योगदान दिया है| जिसके प्रयासों से, आज हम सभी धर्म का मार्ग देख पा रहे हैं किंतु, उस पर चलना, तभी संभव होगा जब, मनुष्य स्वयं अपने दुखों को चुनौती देने का प्रयास करेगा मतलब, उसका दुख ही, उसे शिक्षा लेने के लिए, प्रेरित कर सकता है| शिक्षित मनुष्य, जीवन के सभी मानकों पर खरा उतरता है| एक व्यक्ति को पहचानने के लिए, स्वयं शिक्षित होना अनिवार्य है ताकि, संसार किसी भी प्रकार से, बंधक न बना सके| बंधन ही मनुष्य का दुख है जिससे, मुक्ति प्राप्त करने के लिए ही, मानव अपना जीवन समर्पित करता है|
शिक्षा ग्रहण किए बिना, मनुष्य पशुतुल्य होता है अर्थात वह केवल, अपने शारीरिक तल पर, आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही, अपने कार्य का चुनाव करता है जिससे, वह अपने श्रेष्ठतम अवसर तक पहुँचने से, वंचित रह जाता है| केवल धन अर्जित कर लेने या सांसारिक सूचनाओं की अधिकता हो जाने मात्र से, मनुष्य शिक्षित नहीं कहलाता बल्कि, शिक्षित मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होती है| सरल शब्दों में कहा जाए तो, सत्य की दिशा में समर्पित कोई भी कार्य करने वाला मनुष्य, शिक्षित कहा जाना चाहिए| भले ही धन के माध्यम से, सुख सुविधाएँ प्राप्त की जा सकती हों किंतु, शारीरिक सुख आनंद की उच्चतम स्थिति प्रदान नहीं कर सकते| जीवन को सदा आनन्दित रखने के लिए, एक सार्थक कर्म की आवश्यकता होती है और इसीलिए, मनुष्य का जन्म हुआ है| अतः प्रत्येक मनुष्य को, अपनी प्रतिभा को समझते हुए, संसार के किसी एक पक्ष का चुनाव करना आवश्यक होता है| किसी के साथ खड़े न होने वाले मनुष्य को, अधर्म के साथ खड़ा हुआ समझा जाता है| यह संसार एक युद्ध क्षेत्र है जहाँ, अर्जुन की भांति अपना कृष्ण खोजना होगा या हनुमान की भांति, किसी राम के कार्य में अपना जीवन समर्पित करना होगा| यही विधि का विधान है लेकिन, जब मनुष्य संसार में जन्म लेता है तो, वह सब कुछ भूल जाता है| उसे केवल अपने जन्म के बाद की घटनाओं का ही, बोध होता है| प्रत्येक जीव ईश्वर की शक्ति का प्रसार है जिसे, अपने ईश्वर को केंद्र में रखकर ही कर्म का चुनाव करना होगा| यदि अज्ञानता में, संसार को सच मानकर विषयवस्तुओं को, कामना की दृष्टि से देखा गया तो, निश्चित ही जीवन दुखदायी होगा| संसार मनुष्य के उपयोग के लिए है, उपभोग के लिए नहीं| इस तथ्य का बोध होना ही, संपूर्ण आध्यात्मिक शिक्षा का सार है|
Click for Insult- father and son short story with moral
Click for घृणा (moral stories in hindi)- जादुई जलपरी की कहानी
Click for निष्काम कर्म (nishkam karma)
Click for स्वर्ग नर्क (swarg narak in hindi)