रिश्ता (rishta explained in hindi):
मानव समाज में रिश्तों का विशेष महत्व है| अधिकतर रिश्ते संयोग से बनते हैं लेकिन, कुछ ऐसे संबंध भी हैं जिन्हें, हम स्वयं चुनते हैं जैसे- दोस्त, कर्मचारी, नियोक्ता, ग्राहक, विक्रेता इत्यादि| सभी रिश्ते द्विपक्षीय होते हैं जहाँ, एक का होना दूसरे पर आधारित होता है| कुछ रिश्तेदार ऐसे होते हैं, जिनसे मिलते ही, मन आनंदित हो उठता है और इसके विपरीत, कुछ ऐसे रिश्ते भी हो सकते हैं, जिन्हें निभाना बोझ की भांति होता है| ऐसे हालात में संबंधित व्यक्ति उलझकर रह जाता है| वह निर्णय नहीं कर पाता कि, समाज के अनुसार रिश्तों को ढोता रहे या रिश्ता तोड़कर, अपने जीवन को दुखों से मुक्त करे| मनुष्य के जीवन का अंतिम उद्देश्य, आनंद प्राप्ति है अर्थात कोई भी व्यक्ति, अपने रिश्ते में सच्चाई देखना चाहता है ताकि, वह आँख बंद करके विश्वास कर सके| तभी वह अपने रिश्तेदार के सामने, अपना दिल खोलकर रख सकेगा लेकिन, ऐसा हो पाना संभव नहीं होता| कभी न कभी रिश्तों में दरार आ ही जाती है| फिर हमें अपने अतीत में किये गये कार्यों से पछतावा होता है| रिश्ते और रिश्तेदारों को समझना इतना आसान नहीं है, अगर होता तो, भगवद्गीता जैसे महान ग्रंथ की आवश्यकता नहीं होती जहाँ, अर्जुन के विरोध में उसके रिश्तेदार ही खड़े थे| कुछ तो है ऐसा, जिसे हम नहीं जानते और नादानी में समस्याओं से उलझ जाते हैं? चलिए इसे कुछ प्रश्नों के माध्यम से समझने का प्रयत्न करते हैं|
- रिश्ता क्या कहलाता है?
- रिश्तेदार क्या होता है?
- रिश्तेदार कैसा होना चाहिए?
- रिश्ता कैसे निभाए?
- रिश्ता कैसे होना चाहिए?
संबंध केवल प्रेम पर आधारित होने चाहिए, प्रेम ही रिश्ते में आनंद का भाव उद्दीप्त करता है लेकिन, सामाजिक बंधनों में प्रेम होना लगभग, असंभव है| प्रेम की उत्पत्ति, सत्यता से ही हो सकती है| जिन रिश्तों में स्वार्थ हो, वहाँ प्रेम खोजना रेत के ढेर में सुई ढूँढने जैसा है| हालाँकि, कुछ संबंधी ऊपरी तौर पर प्रेम का दिखावा करना भलीभाँति जानते हैं जिससे, वह प्रेम पूर्वक अभिनय कर सकते हैं लेकिन, समय आने पर वह अपना रंग दिखा ही देते हैं| यदि आप यह जान सकें कि, कौन से रिश्ते आपके लिए उत्तम है और कौन से दुखदायी तो, आपका जीवन निश्चित ही बदल जाएगा लेकिन, इसके लिए आपको स्वयं को जानना होगा कि, आप कौन हैं? उसी के अनुसार, बनाए गए रिश्ते जीवन को आनंदित कर सकते हैं| निम्नलिखित बिंदुओं से इसे समझने का प्रयास करते हैं|
रिश्ता क्या कहलाता है?
दो लोगों के बीच सामाजिक या सांसारिक तौर पर बनाए हुए संबंधों को रिश्ता कहते हैं| सामाजिक रिश्ते संयोग से बनते हैं| जिन्हें निभाना कई बार लाचारी भी होती है किंतु, ऐच्छिक रिश्ता आंतरिक प्रेम भाव से बनता है जिसे निभाना सरल होता है| मनुष्य के जीवन में रिश्तों का अहम महत्व होता है लेकिन, जब रिश्तों में बंधन अनुभव होने लगे तब, यह बोझ बन जाते हैं| संसार में सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता माँ बेटे का होता है जिसका संबंध, मानव शरीर के जन्म से होता है और उसी के आधार पर अतिरिक्त रिश्तों का निर्माण होता है|
रिश्तेदार क्या होता है?
सांसारिक जीवन की सामाजिक व्यवस्था सञ्चालन हेतु, स्थापित किए गए संबंधों का, पालन करने वाले व्यक्ति, रिश्तेदार कहलाते हैं| प्रत्येक रिश्ता पूर्वनिर्धारित नियमावली है जैसे, रिश्ते में चाचा, मामा, दादा कहलाने वाले व्यक्ति का क्या कर्तव्य है यह, पारंपरिक समाजिक समझ है जो, बढ़ती आयु के साथ प्राप्त होती है| रिश्तेदार, मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं पहले, वह जो जन्म के साथ ही प्राप्त हों और दूसरे वह जिन्हें, संयोग से चुना जाता है| जन्म से जुड़े रिश्तों को रक्त संबंध कहा जाता है| जिसका मनुष्य के जीवन में, प्राथमिक महत्व होता है हालाँकि, यह व्यक्ति की प्रकृति पर निर्भर करता है कि, वह किन रिश्तेदारों को अपने जीवन में उपयोगी समझता है और उनसे रिश्तेदारी निभाता है| वैसे आज का सबसे बड़ा रिश्तेदार स्वार्थ है और उसी के आधार पर रिश्ता भी निभाया जाता है|
रिश्तेदार कैसा होना चाहिए?
मनुष्य के जीवन में किसी भी रिश्ते का महत्व तभी है, जब वह रिश्ता, उसके जीवन को ऊपर उठाने में सहायता प्रदान कर रहा हो| अतः वास्तविक संबंधी वही होते हैं जिनके मिलते ही, मन का दुःख कम हो जाए और उनकी सलाह से, जीवन सत्य की ओर बढ़ने लगे किंतु, आज सांसारिक रिश्तेदारी केवल स्वार्थ तक सीमित है जहाँ, एक दूसरे को उपहार भी तोल मोल कर दिए जाते हैं| निर्धन व्यक्ति को छोटा उपहार और धनवान के यहाँ बड़ा उपहार देना, रिश्तेदारी निभाने की अद्भुत सामाजिक रीति है| हालाँकि, मनुष्य अपने जीवन में सभी रिश्तेदारों से तालमेल बनाकर नहीं रख पाता इसलिए, उसे ऐसे ही रिश्तेदारों को महत्व देना चाहिए, जिनकी बातों में अहंकार न हो और न ही स्वार्थ की अधिकता न हो| वही व्यक्ति संबंध बनाने योग्य है क्योंकि, प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक निजी स्वार्थ होता है और यदि, आपके रिश्तेदारों के स्वार्थ के आगे, आप बाधक होंगे तो, निश्चित ही वह आपसे ईर्ष्या करेंगे और समय आने पर, वह अपनी भावना व्यक्त करके, रिश्तेदारी समाप्त कर लेंगे| यही मानवीय प्रवृत्ति है|
रिश्ता कैसे निभाए?
किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए, उसे समझना अनिवार्य होता है लेकिन कैसे, जब एक मनुष्य, स्वयं के बारे में नहीं जानता तो भला, वह किसी और के बारे में कैसे बता सकेगा? एक व्यक्ति का जीवन उसके रिश्तेदारों की विचारधारा से पूर्णतः प्रभावित होता है| जैसे एक पिता अपने बेटे को भी, अपने रिश्तेदारों के बेटों से तुलना करके ही, कुछ न कुछ बनाना चाहता है| यह बात भयावह है क्योंकि, पिता नहीं जानता कि, वह अनजाने में किसका अनुगमन करना चाहता है और अपने जीवन में दुख होने बनिस्बत, वह अपने बेटे को अपनी विचारधारा से, प्रभावित करने का प्रयास अवश्य करता है| यही मानव स्वार्थ छुपा होता है कि, वह किसी न किसी माध्यम से इस संसार में सदैव रहना चाहता है| फिर चाहे वह श्रेष्ठ कार्य करके किसी स्मारक के तौर पर हो या अपने बेटे को, अपनी भांति बनाकर अतः स्वार्थ निजी है| हालाँकि, आधुनिक युग में, विज्ञान ने लोगों की सोच को परिवर्तित किया है जहाँ, लोग रिश्तेदारों की सलाह न मानकर, सोशल मीडिया इनफ्लुएंसरों को, अपना रिश्तेदार समझ बैठे हैं और उन्हीं की बताई दिशा चलने लगे हैं किंतु, जो लोग रिश्तों में बँधे हुए हैं, उन्हें इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि, उनके रिश्ते में सत्य निहित हो और प्रेम का आधार स्वार्थ न होकर, परमार्थ हो अर्थात सभी के हित में हो क्योंकि, सलाह तो शकुनी ने भी, दुर्योधन को दी थी लेकिन, उसमें केवल दुर्योधन और शकुनी का ही स्वार्थ छुपा था| यहाँ तक कोई बुराई नहीं है किंतु, जब स्वार्थ किसी और के हितों का दमन करके पूर्ण हो तो, निश्चित ही वह धर्म विरुद्ध होता है इसलिए, ऐसी सलाह देने से बचना समझदारी होगी और यही रिश्ता निभाने का सुगम मार्ग है|
रिश्ता कैसा होना चाहिए?
रिश्ता ज्ञान के साथ होना चाहिए न कि, मोह निहित परंपरा आधारित| वस्तुतः जब भी हम किसी रिश्ते में, सच की उपेक्षा करते हैं वहाँ, प्रारंभिक सुख भले ही दिखाई दे लेकिन, वही रिश्ते अन्ततः दुखदायी होते हैं| रिश्ते धृतराष्ट्र की भांति आँख बंद रखकर नहीं निभाए जाते अन्यथा कुरुक्षेत्र, किसी भी समय उत्पन्न हो सकता है| रिश्तों के बीच पूरी समझदारी होना अनिवार्य है किंतु, समझदार वही मनुष्य हो सकता है जिसने, स्वार्थ पर विजय प्राप्त कर ली हो और अपने जीवन में सत्य को, श्रेष्ठतम स्थान देना प्रारंभ कर दिया हो उसे ही, समझदार कहा जाएगा चूँकि, सांसारिक मनुष्य की समझ, उसके स्वार्थ की पूर्ति होने के पश्चात ही जन्म लेती है| अतः एक सही रिश्ता निभाने वाला व्यक्ति मिलना दुर्लभ है|
संसार में बनाया हुआ कोई भी रिश्ता या रिश्तेदार समाप्त हो जाते हैं इसलिए, ज्ञानियों ने मनुष्य को बंधन मुक्ति का मार्ग सुझाया था और यदि रिश्ता जोड़ना ही है तो, केवल सत्य से जोड़ना होगा अर्थात ब्रह्म जिसे शून्यता या अनंत भी कहा जा सकता है| रिश्ता केवल परंपरा नहीं बल्कि, एक पहचान है जो, अपने साथ कई नियम संजोए हुए होती है और उनका पालन न करने पर, रिश्ते असंतुलन प्राप्त करते हैं| उदाहरण के तौर पर, यदि किसी व्यक्ति का कोई भांजा है तो, उसे मामा की पहचान प्राप्त होगी और मामा बनते ही, उसे समाज के अंतर्गत, मामा के कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा अन्यथा भांजे से मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं| संसार भले ही, आपको अनगिनत रिश्तो में बाँधने का प्रयास करे लेकिन, आपको केवल उन्हीं रिश्तों को महत्व देना चाहिए जो, आपकी जीवन यात्रा को सुगम बनाने में उपयोगी सिद्ध हो रहे हों इसके विपरीत, जिन रिश्तों से मन दुखी और चिंता ग्रस्त हो अवश्य ही, वह त्याज्य हैं| मनुष्य के पास जितने अधिक रिश्तेदार होते हैं, उतना ही वह हीन भावना और दुख से भरा होता है हालाँकि, कुछ अपवाद हो सकते हैं जो, प्रारंभिक तौर पर रिश्तेदारों की बढ़ती संख्या पर गर्व का अनुभव कर रहे हों किंतु, यह भी अहंकार को बढ़ाने का एक माध्यम ही होगा जो, समय के साथ समाप्त हो जाएगा| मनुष्य की सबसे बड़ी मनोकामना, चित्त की स्थिरता है जिसे, वह रिश्तों के माध्यम से प्राप्त करना चाहता है और न ही, संसार के किसी भी व्यक्ति के माध्यम से पूरी नहीं की जा सकती हाँ, एक परमार्थी मनुष्य का ज्ञान अवश्य ही लाभदायी सिद्ध हो सकता है इसलिए, व्यर्थ के रिश्तों में समय देने से उत्तम, एक सही रिश्ते का चुनाव करें जो, सत्य की दिशा में अग्रसर हो| इसके अतिरिक्त, आत्मावलोकन से सभी को एक एक करके त्यागना ही उत्तम मार्ग है| यदि जन्म अकेले हुआ है तो, अकेले रहने में समस्या ही क्या और फिर जाना भी अकेले ही तो है किंतु, यह बात कहने में जितनी सरल है, उसे स्वीकार करना उतना ही कठिन| मनुष्य के रिश्ते ही, उसका अहंकार है जिसे, मनुष्य की पहचान समझा जाता है| किसी व्यक्ति से मिलने के लिए, पहचान का होना अनिवार्य होता है जैसे, एक व्यक्ति अपने बेटे से पिता रूपी पहचान धारण करके ही मिलेगा| अपनी पत्नी से पति के रूप में और दुकानदार से, ग्राहक के रूप में ही संबंध स्थापित करेगा जिससे, वह संबंधों की वास्तविकता कभी नहीं देख सकेगा| नदी में रहकर उसका प्रवाह नहीं देखा जा सकता बल्कि, बाहर रहकर ही पूर्णअवलोकन किया जा सकता है| उसी प्रकार सांसारिक मायाजाल से बचना, आध्यात्मिक क्षेत्र की बात है जिसे, सामाजिक ज्ञान से नहीं समझा जा सकता| जिस प्रकार प्रत्येक मनुष्य अपने स्वार्थ को प्राथमिकता देता है उसी प्रकार, समाज भी अपनी संख्या बढ़ाने के लिए, रिश्तों का महिमामंडन करता है और तो और, साधारण व्यक्ति को भगवान का दर्जा तक दे दिया जाता है जो, हास्यास्पद है| केवल रिश्तों में पूज्य होने से, कोई व्यक्ति झुकने योग्य नहीं हो जाता बल्कि, सामाजिक योगदान ही सम्मान का परिचायक होता है अतः ज्ञान ही श्रेष्ठ है और ज्ञानी परम पूजनीय जो, जीवन को कृतज्ञता प्रदान कर सकें| किसी के सहायता करने या न करने से, यह तय नहीं किया जा सकता कि, रिश्तेदार अच्छा है क्योंकि, सहायता तो कर्ण ने दुर्योधन की भी की थी लेकिन, परिणाम विध्वंसक सिद्ध हुए इसलिए, कभी कभी किसी कार्य में सहायता न करने वाला व्यक्ति भी, हमारे लिए सही हो सकता है किंतु, मनुष्य का अहंकार उसे, उस समय देख नहीं पाता| सच देखने के लिए सच्चा बनना पड़ता है क्योंकि, झूठ तो मनुष्य का जन्म ही है और यही जीवन की यात्रा का सार|