स्त्री पुरुष (stri purush explained in hindi):
स्त्री पुरुष संसार की रचना में बराबर के सहभागी हैं| स्त्री संसार का प्रतीक है और पुरुष एक भाव है जो, किसी भी शरीर में पाया जा सकता है| हालांकि, स्त्री पुरुष लिंगात्मक पहचान भी है किन्तु यह पूर्ण सत्य नहीं| आपने देखा होगा, कई लड़के लड़कियों की भांति आचरण करते हैं और कई लड़कियाँ लड़कों की भांति| यहाँ शरीर की उपयोगिता समाप्त हो जाती है और केवल मनोभाव होता है जिससे, ग्रसित होने के बाद मनुष्य, स्वयं को उसी पहचान से जोड़ लेता है| सामाजिक दृष्टिकोण से स्त्री पुरुषों को लिंग आधारित, भेद का सूचक माना जाता है जहाँ, शारीरिक भिन्नताओं के अनुसार, स्त्री और पुरुष को परिभाषित किया गया है किंतु, आध्यात्मिकता के अंतर्गत, प्रत्येक मनुष्य को पुरूष ही कहा गया है फिर चाहे वह स्त्री हो या किन्नर| जो मनुष्य सांसारिक विभिन्नताओं को सत्य समझकर, उनकी कामना करता है वह पुरुष है और जिसकी कामना की जा रही है, उसे स्त्री कहा जाता है| चाहे वह घर, गाड़ी, पुरूष या कोई वस्त्र ही क्यों न हो और यही दोनों मिलकर सृष्टि की रचना भी करते हैं| यदि कामना नहीं होगी तो, मनुष्य शून्य हो जाएगा और मानव स्थिरता विज्ञान की प्रगति रोक देगी हालाँकि, विज्ञान ने जितना लाभ पहुंचाया है, उससे कई गुना अधिक, पृथ्वी के विनाश के लिए भी उत्तरदायी है लेकिन, मनुष्य की भोग करने की अभिलाषाएँ, विज्ञान की करतूतों पर पर्दा डाल देती है| भौतिक वस्तुओं के उत्पादन ने, खनन से लेकर वन तक और पठार से लेकर सागर तक, विध्वंस मचाया है किंतु, बढ़ रही जनसंख्या कहीं न कहीं, विज्ञान के लिए अनुकूल परिस्थिति है जहाँ, लोग यह देखना ही भूल चुके हैं कि, आज लगभग 50 प्रतिशत से अधिक पृथ्वी समाप्ति की ओर है जिसका, पुनर्निर्माण करना असंभव है| ब्रम्हाण्ड में उपलब्ध कोई भी ग्रह, तारा, नक्षत्र, जीव जन्तु यहाँ तक कि, एक कण भी अपनी रक्षा नहीं कर सकता| सब कुछ मिट रहा है जिसे, हमारी आंखें नहीं देख पा रही और हमारा पुरुष भाव, स्त्री की कामना में सृष्टि का सर्वनाश करने पर उतारू है| स्त्री और पुरुष के संबंधों को कैसे स्थापित किया जाए कि, जीवन सुख दुख से बाहर होकर, आनंद की स्थिति में स्थापित हो जाए? निम्नलिखित बिंदुओं में इसका स्पष्टीकरण उपलब्ध है|
- स्त्री क्या है?
- पुरुष क्या है?
- स्त्री और पुरुष में क्या अंतर है?
- स्त्री पुरुष आकर्षण मनोविज्ञान क्या है?
- स्त्री पुरुष का संबंध कैसे होता है?
स्त्री और पुरुष के संबंधों में, प्राकृतिक चुम्बकत्व होता है जो, पुरुष को स्त्री की ओर आकर्षित करता है| प्रकृति को आगे बढ़ाने के लिए स्त्री और पुरुष का मिलन अनिवार्य है हालाँकि, मनुष्य को अपनी बाल्यावस्था में, लिंग अनुभव नहीं होता| वह केवल खेल में आनंद प्राप्त करता है लेकिन, सामाजिक व्यवस्था को बढ़ाने के लिए, बच्चे को लिंगभेद सिखाया जाता है ताकि, विपरीत लिंग से आकर्षण बढ़ाया जा सके| आपने देखा होगा जो, विषय जितना छुपाया जाएगा वह, उतना ही आकर्षित करेगा किंतु, समाज और प्रकृति के लिए तो, स्त्री और पुरुष का संबंध आवश्यक है| मनुष्य के लिए, प्रकृति का दायित्व निभाने तक तो, ऐसा संबंध ठीक है लेकिन, मन की शांति के लिए आवश्यक नहीं कि यह लाभकारी हो| जैसा कि, उपरोक्त शीर्षक में यह बात स्पष्ट है कि, स्त्री और पुरुष गुण मात्र हैं जिनके, संपूर्ण रहस्य को समझने के लिए कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|
स्त्री क्या है?
आम बोलचाल की भाषा में, स्त्री मानव शरीर का परिचायक होती है| सांसारिक मनुष्य कन्याओं या महिलाओं को स्त्री की कोटि में रखते हैं किंतु, वास्तव में स्त्री सांसारिक आकर्षण का एक गुण मात्र है| जिसका संबंध सृष्टि प्रवर्द्धन से हैं अर्थात सांसारिक निरंतरता के लिए, आकर्षण और प्रजनन होना अनिवार्य है ताकि, सृष्टि का संचालन होता रहे| यदि आध्यात्मिक रूप से समझा जाए तो, आपके लिए यह सारा संसार ही स्त्री होना चाहिए, जिसका आकर्षण और विकर्षण आपके लिए सदा बना रहेगा अर्थात व्यक्तिगत रूप से, एक मनुष्य स्वयं को पुरूष समझकर, इस संसार को स्त्री भाव के प्रभाव से ही देखता है| वह जिस भी विषय वस्तु की कामना करता है, उसके अंदर स्त्री गुण उद्भूत हो जाते हैं| एक के बाद एक, इच्छाओं का जन्म ही, स्त्रीत्व प्रगट करता है| जैसे, यदि आप सुख की कामना करते हैं तो, धन प्राप्ति की अभिलाषा का जन्म होगा तत्पश्चात् धन अर्जित के लिए, व्यवसाय या नौकरी की मनोकामना का उदय होगा और उसके प्राप्त होने पर, नित्य नवीन लालसाओं का जन्म होते रहना ही स्त्रीत्व है और यदि, मानव रूपी स्त्री की बात की जाए तो, वह केवल एक मनुष्य हैं जो कि, सामाजिक जानकारियों के अनुसार, स्वयं को महिला समझ बैठी है| कोई भी मनुष्य स्त्री या पुरुष नहीं होता बल्कि, उसे अपूर्ण चेतना कहना उत्तम होगा| बाहरी तौर पर भले ही, शारीरिक संरचना किसी भी प्रकार की हो, उसके विचार ही उसे पह्चान प्रदान करते हैं अर्थात एक लड़का अपने विचारों से, स्वयं को लड़की की भांति समझ सकता है और इसके विपरीत, एक लड़की भी लड़की की भांति अनुभव कर सकती है और फिर रही बात लिंग की तो, विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि, लिंग परिवर्तन सहजता से किया जा सकता है अतः बात केवल विचारों की है, शारीरिक नहीं| इस संसार में स्वयं को कुछ मानना ही, दुख को जन्म देता है जैसे, किसी ने स्वयं को स्त्री माना तो उसे, सामाजिक आधार पर सभी तरह के बंधन स्वीकार करने होंगे लेकिन, यदि वह अपने आपको केवल एक मनुष्य माने तो, कदाचित् वह किसी पुरुष की भांति सर्वश्रेष्ठ कार्य करने योग्य, सक्षम होगी इसलिए, स्वयं को केवल मानव ही समझा जाए तो उत्तम होगा|
पुरुष क्या है?
संसार में जन्म लेने वाला अहंकार ही पुरूष कहलाता है जिसे, विषय वस्तु रूपी, स्त्रीत्व की मनोकामना होती है ताकि, वह सुख की प्राप्ति कर सके लेकिन, जब उसकी वह मनोकामना पूर्ण नहीं होती तो, दुख उत्पन्न हो जाता है तत्पश्चात अपने दुख के दमन के लिए, नए सुख की लालसा पुनः आकार लेती है और यह चक्र निरंतर चलता रहता है| सांसारिक दृष्टिकोण से पुरुष केवल, लिंग आधारित पहचान है जो, मानव शरीर के जन्म से ही प्राप्त होती है| एक मनुष्य के लिए, स्वयं को पुरुष समझना व्यर्थ अहंकार को जन्म देता है| मानव समाज में पुरुष को स्त्रियों और बच्चों की तुलना में, श्रेष्टता का स्थान प्राप्त है जबकि, ज्ञान का कोई पैमाना नहीं होता| एक छोटा सा बच्चा या स्त्री भी, श्रेष्ठतम कार्य कर सकते हैं फिर, अहंकार कैसा? केवल संतान उत्पत्ति करने योग्य हो जाने से कोई व्यक्ति, पुरुष या स्त्री नहीं कहलाता| अतः जो भी इस संसार को देखता है वह, पुरुष है| फिर वह छोटी सी बच्ची ही क्यों न हो, जब तक मन संसार की ओर हाथ फैलाए खड़ा होगा तब तक, आप पुरूष ही होंगे| मनुष्य शरीर नहीं होता चेतना ही सत्य है| इसके अतिरिक्त जो भी, एक मनुष्य विचार करता है वह, समय और संयोग से ही जन्म लेते हैं| जैसे बाल्यावस्था में चर्चा का विषय, खिलौने होते हैं किंतु, बड़े होते भौतिक व्यक्ति या वस्तुओं या अधिक से अधिक एक प्रभावशाली कार्य करने का भाव उत्पन्न होता है| जैसे जैसे नए विषय संपर्क में आते हैं तो, उनका प्रभाव व्यक्तिगत जीवन में होता रहता है जिससे, अहंकार देख नहीं सकता| यही प्रक्रिया मनुष्य का पुनर्जन्म कहलाती है| हर बार वह सुख की कल्पना में, दुख को ही अपनाता है किंतु, एक ज्ञानी मनुष्य संसार से सुखों की कामना नहीं करता बल्कि, अपने आंतरिक आनंदमय जीवन में स्थापित होकर, सुख दुख से बाहर आ जाता है अर्थात वह स्वयं को पुरुष नहीं समझता, उसके जीवन में स्त्री भी सत्य के रूप में ही होती है जैसे, श्रीराम के जीवन में देवी सीता, किसी स्त्री के रूप में नहीं बल्कि, उन्हीं के अंश रूपी सत्य में स्थापित थीं| पुरुष के लिए आवश्यक है कि, वह अपने आपको केवल एक मानव की दृष्टि से देखने का प्रयास करें तभी, वह अपने जीवन के श्रेष्ठतम शिखर तक पहुँच सकेगा| वस्तुतः लिंग आधारित पहचान ही, सामाजिक बंधन है| वहीं से सभी तरह के कष्टों का जन्म होता है| जब भी कोई मनुष्य, अपने आपको पुरुष समझता है तो, वह अन्य पुरुषों से स्वयं की तुलना करने लगता है और उन्हीं के अनुसार, वह भी अपने जीवन में प्रेम से लेकर विवाह तक की यात्रा, अज्ञानता में ही करता है| आम लोग केवल संतानोत्पत्ति करने वाले, सक्षम पुरुष को ही, वास्तविक पुरुष समझते हैं जबकि, आज विज्ञान ने बिना किसी पिता के ही संतानोत्पत्ति का मार्ग खोज लिया है और वो दिन दूर नहीं जब, मनुष्य को पैदा करने के लिए, न स्त्री की आवश्यकता होगी और न ही पुरुष की| इसलिए, एक मनुष्य को अपने मन की शांति के लिए, किसी भी पहचान से बाहर आना ही होगा अन्यथा वही पह्चान उसका बंधन बनेगी और तुलनात्मक जीवन नर्क का अनुभव कराएगा फिर, आरोप भगवान पर लगाएं या संसार पर, कष्ट तो व्यक्तिगत ही होगा|
स्त्री और पुरुष में क्या अंतर है?
स्त्री और पुरुष में भले ही शारीरिक विभिन्नताएँ हो किंतु, चेतना के स्तर पर दोनों एक ही होते हैं अर्थात दोनों अपूर्ण है और संसार में पूर्णता प्राप्ति के भाव से निहार रहे हैं| यदि कुछ प्राप्त हो भी जाए तो, वह सुख नहीं मिलता जिसकी, कामना की गई थी और यदि मिल भी गया तो, अधिक समय तक स्थिर नहीं रह पाता| स्त्री पुरुष को अपने सभी तरह के भेदभाव समाप्त करने होंगे तभी, उत्कृष्ट समाज का निर्माण किया जा सकेगा| वैसे भी, आज विज्ञान का समय है जहाँ, शारीरिक बल से अधिक, मानसिक क्षमता की आवश्यकता होती है जो, केवल ज्ञान से ही प्राप्त की जा सकती है और ज्ञान तो किसी भी लिंग का मनुष्य ग्रहण कर सकता है इसलिए, भेद कैसा किंतु, मनुष्य को विभाजित करने में समाज का लाभ अवश्य होता है और यहाँ समाज का मतलब, सभी लोगों से नहीं बल्कि, कुछ लोगों से है जो, आज पूरे विश्व की संपत्ति के स्वामी बन बैठे हैं| वह चाहते हैं कि, लोग उनके अनुसार ही, जीवन जीएं और यह है हर युग में होता रहा है जहाँ, धनवान लोग अपने अनुसार, पृथ्वी को चलाना चाहते हैं| इस तंत्र में राजनेता, व्यवसायी या कई संस्थाएं भी सम्मिलित हो सकती हैं| आपने देखा होगा. जो देश स्त्री और पुरुष में जितना कम भेद रखता है, वह आज उतना ही शक्तिशाली है किंतु, जो देश स्त्री पुरुष में अंतर कर रहा है वह उतना ही पिछड़ता जा रहा है क्योंकि, किसी ने स्वयं को पुरुष समझा तो, अब उसके जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य, विवाह करना होगा चूँकि, पुरुष है तो, स्त्री ही उसके विपरीत होगी जो, उसे पूर्ण करेगी और इसके विपरीत, यदि कोई महिला भी अपने आपको स्त्री समझती है तो, उसका जीवन भी पुरुष के बिना अधूरा ही होगा| चाहे वह अपने जीवन में बड़ी से बड़ी सफलताएं प्राप्त कर ले किंतु, उसका मन हमेशा अधूरेपन का भाव, अनुभव करता रहेगा| यहाँ यदि वह अपने आपको केवल मनुष्य की भांति मानकर, सहजता से जीवन जीए और सार्थक कर्म में जुटे तो, उसके जीवन की विराट सम्भावनाएँ बाहर आ जाएँगीं| आज किसी भी क्षेत्र में महिलाओं के लिए अवसर हैं लेकिन, उसके लिए आधुनिक शिक्षा अनिवार्य है| स्त्री और पुरुष को यह भ्रम निकाल देना चाहिए कि उनकी भावनाएँ अलग अलग हैं क्योंकि, भावनाएँ समाज, समय और संयोग के द्वारा परिवर्तित होती रहती हैं| बचपन से लेकर आज तक, आप स्वयं अपने बदलते स्वरूप को देख सकते हैं| बाल्यावस्था में जो महत्वपूर्ण था, वह आज नहीं है लेकिन, समाज चाहता था कि, बचपन में बच्चों को खिलौने और शिक्षा आवश्यक हो ताकि, उसे सब के बीच रहने लायक बनाया जा सके लेकिन, उसकी भी नियमावली होती है अर्थात समाज जब चाहेगा तब, आप शारीरिक संबंध बना सकेंगे| इसके पहले बनाएँ तो, आपको चरित्रहीन का दर्जा दे दिया जाएगा| जिस आयु तक समाज चाहेगा उस तक, आपको विवाह करना ही होगा अन्यथा लोग आपको सामाजिक नहीं समझेंगे| यदि संक्षेप में कहा जाए तो, किसी भी तरह की पहचान, कुछ सुविधाएँ तो दिलवा सकती है किंतु, उसका मूल्य अपने जीवन को बंधक बनाकर चुकाना पड़ता है| स्त्री और पुरुष का संबंध सत्य आधारित होना चाहिए न कि, शारीरिक तल पर किंतु, ऐसा प्रेम तो कृष्ण और राधा जैसे, व्यक्तित्व के परस्पर ही संभव है| आम मनुष्य तो प्रेम भी, अपने अनुसार करते हैं जब, उनकी इच्छाओं की पूर्ति न हो तो, उनका प्रेम नष्ट हो जाता है और जो विषय वस्तु बदल जाए या नष्ट हो जाए, निश्चित ही वह असत्य होगी क्योंकि, सत्य कभी नहीं मिटता| कुछ लोगों का कहना होता है कि, स्त्री और पुरुष का वैवाहिक संबंध कई जन्मों का साथ होता है इससे, इसका अर्थ यह है कि, पति पत्नी एक दूसरे की किसी भी परिस्थितियों में साथ देंगे जैसा कि, कई लेखों से आप समझ चुके होंगे कि पुनर्जन्म का सिद्धांत व्यक्ति के विचार परिवर्तन से है न कि, शरीर के दोबारा जन्म लेने से|
स्त्री पुरुष आकर्षण मनोविज्ञान क्या है?
कोई भी विषय वस्तु विपरीतलिंगी से आकर्षित होती है या विकर्षण रखती है किंतु, यहाँ विषय में कोई शक्ति नहीं होती बल्कि, मनुष्य के मन में उसकी आवश्यकताओं के अनुसार, वह विषय महत्वपूर्ण बन जाता है| जिस प्रकार चुंबक के दो हिस्से, एक दूसरे के प्रति आकर्षण और विकर्षण दोनों गुण रखते हैं उसी प्रकार, स्त्री पुरुष भी एक दूसरे से आकर्षित होते हैं और कभी, एक दूसरे से हीन भावना भी रखते हैं किंतु, जब कोई अपने आपको लिंग की पह्चान से नहीं जोड़ता तो, आकर्षण नहीं होता| जैसे, आपने देखा होगा, छोटे से बच्चे में लड़की के प्रति आकर्षण नहीं होता क्योंकि, वह अपने आपको केवल बच्चा समझ रहा होता है| यहाँ लिंग का महत्व नहीं होता इसलिए, उसका सुख उसे खेलने में प्राप्त होता है| हाँ किंतु, यदि उसे बचपन से ही, उसके लिंग का अनुभव करा दिया जाए तो, निश्चित ही कम आयु में ही विपरीतलिंगी के प्रति, आकर्षण या विकर्षण होने लगेगा| यहाँ केवल बात विचारों की है| वस्तुतः सांसारिक मनुष्य सदा आनंदित रहना चाहता है किंतु, वह भूल जाता है कि, उसे संसार की कोई भी वस्तु या विषय पूर्णता प्रदान नहीं कर सकते| सांसारिक मनुष्यों का सोचना है कि, अपनी सम्पूर्णता तभी प्राप्त की जा सकती है जब, दोनों का मिलन हो और मिलन में स्त्री, पुरुष में समा जाए अर्थात पुरुष भाव, समाप्त हो जाए फिर, किसी और की आवश्यकता न हो किंतु, ऐसा नहीं होता| इंसान कभी पुरुष बनता है, कभी व्यापारी, कभी खिलाड़ी तो, कभी अधिकारी किंतु, कोई भी पहचान अधिक दिनों तक स्थिर नहीं रहती| पुनः नई दिशा का उदय हो जाता है जो, मृत्योपरांत सुख दुख के चक्कर में उलझाए रखने के लिए उत्तरदायी है|
स्त्री पुरुष का संबंध कैसे होता है?
स्त्री और पुरुष दो अलग अलग भाव है| जिनका संबंध एक दूसरे की पूर्ति करने के लिए होता है| किसी भी विषय वस्तु से संबंध बनाने के लिए, एक केंद्र का होना आवश्यक होता है जैसे, दो व्यक्ति दोस्ती तभी करेंगे जब, उनकी कोई न कोई बाद मिलती होगी| वैसे ही, स्त्री और पुरुष एक दूसरे से परस्पर संबंध तभी स्थापित करेंगे जब, उन दोनों में कोई न कोई विषय एक हो| सरल शब्दों में कहें तो, स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक होते हैं किंतु, उनके संबंध कई आधारों पर स्थापित होते हैं जैसे, स्त्री पुरुष मित्र हो सकते हैं| भाई बहन हो सकते हैं| माँ बेटे हो सकते हैं| क्रेता विक्रेता हो सकते हैं किंतु, सभी में कोई एक विषय स्थायी तौर पर जुड़ा होगा और उस विषय के समाप्त होते ही, संबंध भी समाप्त हो जाते हैं| शारीरिक रूप से स्थापित प्रेम, संबंध ढलती आयु के साथ निष्क्रियता या गतिशीलता प्राप्त हैं किंतु, ज्ञान रूपी प्रेम का आकर्षण सदा बना रहता है क्योंकि, सत्य ही स्थायी है जो, हमेशा अडिग रहता है| अतः स्त्री और पुरुष के संबंधों में सत्य का केंद्र होनी चाहिए|
सृष्टि संचालन के लिए भले ही स्त्री पुरुष का संबंध शारीरिक तल पर स्थापित हो किंतु, मनुष्य की शांति के लिए यह संबंध लाभकारी नहीं होता क्योंकि स्त्री शक्ति का स्वरुप है जिसकी, आराधना की गयी तो, सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे किन्तु, यदि इसे भोगने का प्रयास किया गया तो, जीवन कष्टकारी होगा| शारीरिक रूप से प्राप्त किए गए सुखों की आयु न्यून होती है जो, दुख के हल्के से प्रभाव से मिट जाते हैं| अतः व्यक्ति को अपने वास्तविक स्वरूप में स्थापित होकर ही निर्णय लेना चाहिए| एक ज्ञानी मनुष्य चाहे किसी से भी संबंध बनाए, उसके संबंधों का स्तर श्रेष्ठ होता है क्योंकि, उसके संबंध सत्य निहित होते हैं, स्वार्थ आधारित नहीं फिर, संबंध शारीरिक तल पर भी बनें तो, वह बोध में स्थापित होते हैं न कि, वासना में| वस्तुतः सुखों की कल्पना मनुष्य के आंतरिक मन में होती है न कि, सांसारिक विषय में| आपने अनुभव किया होगा, एक स्त्री किसी व्यक्ति को आकर्षित कर सकती है और किसी को, उससे घृणा भी हो सकती है| यहाँ मनुष्य की व्यक्तिगत सोच काम करती है, जिसकी उत्पत्ति मनुष्य के अतीत से होती है| यहाँ स्पष्ट है कि, मनुष्य का जैसा भाव होगा वह, वैसे ही संबंध स्थापित करेगा| स्त्री पुरूष केवल देह मात्र है व्यक्तित्व नहीं, अतः मनुष्यों के लिए, इसे धारण करना अनुपयोगी है|