रामायण (ramayan explained in hindi):
रामायण आज भी लोगों के लिए रहस्य हैं| कुछ लोग राम को अंध भक्ति की भांति पूजते हैं किंतु, जब उनके जीवन के कष्ट कम नहीं होते तो, उनकी भक्ति कम होने लगती है| वस्तुतः लोग जानते ही नहीं कि, राम क्या है? आज भी लोगों के मन में संशय है कि, क्या वास्तव में रामायण हुई थी? क्या राम सच में थे और न जाने कितने तरह के सवालों से आमजन जूझ रहे हैं? कभी आपने सोचा, इतिहास में कई राजा महाराजा हुए लेकिन, अवतार कुछ लोगों को ही क्यों माना जाता है और यदि राम का जन्म हुआ तो, उसका समय क्या था| जब इतिहास में सभी घटनाओं की तिथि बतायी गई हैं तो, भला राम की जन्मतिथि क्यों नहीं? लेख के प्रारम्भ में यह बात स्पष्ट कर दें कि, आज आप अपने सभी पूर्वानुमानों से बाहर आने वाले हैं| आप राम को जो समझते हैं, राम वह नहीं हैं और न ही रामायण का उद्देश्य, केवल आपका मनोरंजन करना था| राम यदि मनुष्य होते हुए, आज भी अमर हैं तो, यह कोई आम बात नहीं| अमरता का अर्थ मनुष्य की शारीरिक मृत्यु के बाद भी, वर्तमान काल में उसके विचारों का होना है| संसार में सभी अपना जीवन जीते हैं किंतु, जब आपका जीवन आदर्श बनता है तो, लोग उसका अनुसरण करने स्वयं ही आ जाते हैं| वस्तुतः जन्म से ही प्रत्येक मनुष्य, पशुत्व भाव में होता है जिसे, केवल अपनी शारीरिक आवश्यकताएँ ही दिखाई देती हैं| जिनके चक्कर में वह सांसारिक विषय वस्तुओं की ओर, आकर्षित होकर भटकता रहता है और इसलिए, वह अपने सम्पूर्ण जीवन में दुखों में लिप्त रहता है| हालाँकि, मनुष्य के अज्ञान से उठे दुख और सुख क्षणिक होते हैं जो, उसकी कल्पनाओं में ही जन्म लेते हैं| जिनका वास्तव में कोई महत्व नहीं होता| हाँ, मनुष्य के अहंकार को इसका प्रभाव अवश्य होता है| जिससे मानव जीवन प्रभावित होता है| जीवन की संभावनाओं से अवगत होने के लिए ही, रामायण और भगवद्गीता जैसी रचनाएँ की गई थीं लेकिन, हम उन्हें भी अपने स्वार्थों को पूरा करने के उद्देश्य से पूजना चाहते हैं जो, हास्यास्पद है| जिन राम ने धर्म की रक्षा हेतु, अपना राजपाठ त्याग दिया हो, वह भला सांसारिक विषय वस्तुओं की ओर आकर्षित होने की प्रेरणा कैसे बन सकते हैं किंतु, आज ऐसा हुआ है और इसका सबसे बड़ा कारण, मनुष्यों की अज्ञानता या उसके अहंकार की चाल ही कही जाएगी| जिसने अपने निजी लाभ के लिए, ग्रंथों के अर्थ को अनर्थ कर दिया| राम तो वह ज्ञान है जिसे अपनाते ही, किसी भी मनुष्य का जीवन, असाधारण रूप से परिवर्तित हो जाएगा और रामायण एक ऐसी शिक्षा है जो, मानव जीवन के सारे तथ्यों से अवगत कराती है| राम की महिमा समझने के लिए, हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|
- राम कौन है?
- हनुमान कौन है?
- रावण कौन था?
- जय श्री राम का अर्थ क्या है?
- रामायण क्या है?
- रामायण क्यों लिखी गई?
- राम ने सीता का त्याग क्यों किया?
- राम से क्या सीख मिलती है?
कुछ लोग राम को चमत्कारिक शक्तियों का स्वामी समझते हैं तो, कुछ अवतार लेकिन, राम के जीवन से जो शिक्षा लेनी चाहिए, उससे अधिकतर लोग अनभिज्ञ रह जाते हैं| इतिहास की घटनाओं और उनसे जुड़े हुए व्यक्तियों को, हम तभी याद रखते हैं जब, वह हमें वर्तमान प्रभावित करते हैं| जैसे राम को याद किया जाता है, जीवन में सत्य पाने के लिए और रावण को याद किया जाता है, मन के अहंकार से विजय प्राप्त करने के लिए| रामायण सीधे तौर पर भले ही हमसे संबंधित न हो किंतु, रामायण से मिली हुई शिक्षा, निश्चित ही हमारे जीवन को सुगम बनाने हेतु अत्यंत उपयोगी है| जिसे निम्नलिखित बंधुओं द्वारा समझने का प्रयत्न करते हैं|
राम कौन है?
राम को अयोध्या के राजा और दशरथ के पुत्र के रूप में जाना जाता है| राम ने अपने पराक्रम से, अधर्मी राजा लंकापति रावण का वध किया था और अपनी पत्नी, सीता के साथ वहाँ रहने वाली जनता को भी, कष्ट से मुक्ति दिलायी थी| ये कहानी तो, आपने कई बार सुनी होगी लेकिन, वास्तविक राम को हम आज तक नहीं जान पाए| राम कोई मानवीय शरीर नहीं जिसे, शारीरिक तल पर देखा जाए, जिसे मनुष्य अपने अनुसार परिभाषित कर सकें बल्कि, राम तो वह चेतना है जो, ह्रदय के सत्य भाव से उत्पन्न होती है| राम वह मार्गदर्शन हैं जो, जीवन की यथार्थता से अवगत कराते हैं| राम ही वह बिंदु हैं जहाँ, हमारे दुखों का अंत होता है किंतु, कैसे? क्योंकि, लोगों ने राम को केवल एक शरीर की भांति ही, मूर्ति के रूप में जाना है जिन्हें, वह अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजते हैं जबकि, राम त्याग के श्रेष्ठतम प्रतीक हैं जिन्होने, सत्य की स्थापना हेतु, अपना संपूर्ण व्यक्तिगत जीवन समर्पित कर दिया और यही एक श्रेष्ठ पुरूष की पहचान है|
हनुमान कौन है?
रामायण एक श्रेष्ठ महाकाव्य है| जिसकी रचना मानव उत्थान के लिए की गई थी| अतः रामायण में वर्णित सभी पात्र, मानव जीवन के लिए शिक्षा का अद्भुत स्रोत हैं| उसी क्रम में हनुमान भी, मनुष्य के दुखों का बेड़ा पार लगा सकते हैं लेकिन, कैसे? क्योंकि, वह कहानी तो बीत चुकी, अब भला वर्तमान में उसकी क्या उपयोगिता? जी नहीं, यदि आज अनगिनत पुस्तकों में रामायण का अस्तित्व शेष है तो, अवश्य ही यह ज्ञान चिरंजीवी है| वस्तुतः राम भक्त हनुमान कोई बंदर नहीं बल्कि, वन में रहने वाले नर अर्थात बलवान वानर थे किंतु, वह जंगल में जीवन व्यतीत करने के बनिस्बत, एक श्रेष्ठ ज्ञानी थे| सामान्य मनुष्यों को हनुमान, उस चेतना के रूप में अपनाने चाहिए जो, अपने स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि, राम जैसे किसी सत्य चरित्र के चरणों में, समर्पित होकर गौरान्वित होते हैं| हनुमान कभी अपने लिए नहीं जीते है बल्कि, परमार्थ के लिए अग्रसर होते हैं| जिस व्यक्ति के जीवन में स्वयं का कोई उद्देश्य न हों, उसे हनुमान की भांति सेवा भाव से समर्पित होना ही होगा अन्यथा, वह तामसिक गुणों के प्रभाव से, कष्टदायक जीवन प्राप्त करेगा| हनुमान तो वह पुरूष हैं जिन्होने, बचपन में ही अपनी कामवासना रूपी अग्नि को निगल लिया था जिसे, सूर्य के प्रतीक में वर्णित किया गया है| हनुमान भले ही कितने शक्तिशाली रहे हो लेकिन, समय आने पर वह भी अपना मनोबल खो बैठे थे| तब जामवन्त के शब्दों द्वारा प्रोत्साहित होकर, पुनः यथास्थिति लौटे थे| उसी प्रकार मनुष्य भी भले कितना ही बुद्धिमान हो जाए किंतु, उसे भी जगाने के लिए एक जामवन्त की आवश्यकता होती ही है|
रावण कौन था?
रामायण का सबसे घृणित पात्र, जिसे दशानन रावण कहा जाता है| कहानी में बताया गया है कि, रावण के दस मस्तक थे अर्थात वह दस सिरों का स्वामी था| सामान्य मनुष्य एक समय में एक ही कार्य पर केंद्रित हो सकता है लेकिन, रावण एक समय दस विभिन्न प्रकार के विचार कर सकता था| फिर भी वह धर्मयुद्ध में, राम से पराजित हुआ| अतः ज्ञानी मनुष्य भी यदि विभिन्न दिशाओं में अपनी बुद्धि को दौड़ाता रहेगा तो, निश्चित ही वह अपने अहंकार में सत्य का विरोधी बनेगा| अतः मनुष्य को अपनी बुद्धि से नहीं अपितु, अपने ज्ञान से निर्णय लेना चाहिए क्योंकि, बुद्धि इन्द्रियों के वशीभूत होकर प्रतिक्रिया करती है जो, कई बार विनाशकारी भी होता है|
जय श्रीराम का अर्थ क्या है?
वैसे तो जय श्रीराम का शाब्दिक अर्थ, श्रीराम की विजय होता है किंतु, वास्तव में इसका संबंध मनुष्य के पुरुषार्थ की जीत से है अर्थात कोई भी मनुष्य, अपने जीवन में जो भी कार्य करता है उसे, राम को समर्पित करके करना चाहिए| यहाँ राम कोई व्यक्ति या भगवान नहीं बल्कि, आंतरिक सत्यता का स्वर हैं| जिसका अनुभव आत्मज्ञानी मनुष्य ही कर सकता है लेकिन, आज स्वार्थ में डूबी हुई दुनिया, अपने अहंकार को बड़ा करने के लिए, राम के नाम का उपयोग कर रही जिसे, निंदनीय ही कहा जाएगा| कहते हैं, राम तो कण कण में हैं किंतु, उन्हें देख पाने का सामर्थ्य अज्ञानी मनुष्यों में नही हो सकता जो, यह तक नहीं जानता कि, वह यहाँ केवल कुछ समय के लिए आया है और यहाँ से कुछ लेकर जा नहीं सकता| फिर भी सारा जीवन, वस्तुओं के संचयन में लिप्त रहता है| वह राम के अमूर्त सत्य को भला कैसे प्राप्त कर सकता है? राम की महिमा तो केवल, निष्काम कर्मयोगी ही स्पर्श कर सकते हैं| जिसने स्वयं के लिए जीना छोड़ दिया हो और संपूर्ण जगत को, अपना अंग मान कर सर्वहित कर्म में जुट गया हो, वही जय श्रीराम बोलने का अधिकारी है|
रामायण क्या है?
रामायण एक महाकाव्य हैं| जिसकी रचना महर्षि वाल्मीकि द्वारा की गई थी| वैसे तो, इसे पवित्र ऐतिहासिक कहानी समझा जाता है जिसे, धर्म की सच्ची व्याख्या के रूप में प्रदर्शित किया गया है लेकिन, इसका उद्देश्य केवल धार्मिक मनोरंजन नहीं था बल्कि, रामायण में श्रेष्ठ व्यक्तित्व का वर्णन है जैसे, राम जिन्होंने धर्म की स्थापना के लिए, अपने पिता की प्रतिज्ञा निर्वहन हेतु, सारा राज्य त्याग दिया| हनुमान जिन्होंने, अपना संपूर्ण जीवन राम की सेवा में समर्पित कर दिया| विभीषण जिन्होंने, धर्म के लिए अपने वंश का विरोध किया| सीता जिन्होंने, विपरीत परिस्थितियों में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा| भरत जिन्होने राम के अद्भुत प्रेम में, पश्चाताप किया और न जाने ऐसे कितने उदाहरण हैं जिससे, मनुष्य अपने निजी जीवन के समाधान प्राप्त कर सकता है| रामायण कब लिखी गई? किसने लिखी, यह बात महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि, रामायण से मनुष्य के जीवन में क्या परिवर्तन लाया जा सकता है? यह चर्चा युक्त विषय होना चाहिए जिसे, अगले बिंदु में स्पष्ट किया गया है|
रामायण क्यों लिखी गई?
श्रीराम के चरित्र का वर्णन करने के लिए, रामायण की रचना हुई किंतु, रामायण के प्रचलन का मुख्य कारण, वर्तमान में उसकी उपयोगिता है| रामायण में गूढ़ रहस्य छुपे हुए हैं जैसे, हनुमान का लंका मार्ग में शक्तिशाली होते हुए भी, त्रिजटा को विनम्रतापूर्वक नमन करना, कोई सामान्य बात नहीं| यदि शक्तिशाली मनुष्य, किसी कार्य पर जा रहा हो और रास्ते में उसे कोई रोकने का प्रयास करेगा तो, निश्चित ही वह क्रोधित होकर प्रत्युत्तर देगा| दोनों स्थितियां एक ही है लेकिन, दोनों के निर्णय विरोधाभासी अर्थात एक ज्ञानी मनुष्य वही है जो, सत्य के कार्य में अपने अहंकार को न आने दे| यह तो केवल एक परिस्थिति थी जिससे, इतना कुछ सीखने को मिलता है| यदि रामायण की प्रत्येक घटना और पात्रों का गूढ़वाचन किया जाए तो, निश्चित ही मानव जीवन की, सभी समस्याओं का निवारण किया जा सकता है| आज यदि मनुष्य अपना अहंकार त्याग कर, अंतरात्मा से सत्य समर्पित मनुष्य या सत्य कर्म का चुनाव कर ले तो, अवश्य ही उसके जीवन से दुख कम किए जा सकते हैं| हालाँकि, दुख तो श्रीराम को भी था| दशरथ को भी था किंतु, दोनों दुख विभिन्न तल से उत्पन्न हुए हैं जहाँ, पिता अपने पुत्र मोह में दुखी थे लेकिन, राम सत्य की रक्षा के लिए द्रवित हुए इसलिए, राम का दुख सत्य है और दशरथ का दुःख माया से आच्छादित| हालाँकि, राम जन्म से ही भगवान नहीं हुए बल्कि, रावण जैसे, दुर्दान्त अधर्मी राजा के अत्याचार से, प्रताड़ित जनता को मुक्त करवाने के लिए, राम को श्रेष्ठ पुरुष माना जाता है| सत्य के लिए जो भी कुछ किया जाए, वह धर्म बन जाता है इसलिए, राम का जीवन संदेह युक्त नहीं हो सकता, भले ही उनसे जुड़ी कुछ बातें, एक साधारण मानव की भांति प्रतीत हो रही हों| यहाँ सबसे बड़ी समस्या यह है कि, कहानियाँ हमारे संपूर्ण जीवन को प्रदर्शित करती हैं किंतु, अवतार आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद ही बना जाता है इसलिए, किसी मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन को एक जैसा नहीं देखा जा सकता| मनुष्य अपने जीवन में कई योनियाँ रूपांतरित कर, वास्तविक ज्ञान प्राप्त करता है, जिसके पश्चात वह राम, कृष्ण और बुद्ध की भांति परमार्थ मार्ग में जुट जाता है| ऐसे में पूर्व जीवन की झलक, मानवीय शिक्षा का आधार कैसे बन सकती है इसलिए, रामायण के लिखे जाने का उद्देश्य ही, मानव जीवन के अंधकार को मिटाना है ताकि, सांसारिक चक्र से बच कर, प्रत्येक मनुष्य अपना पद प्रदर्शन कर सकें|
राम ने सीता का त्याग क्यों किया?
आपके मन में भी यह सवाल होगा कि, यदि राम और सीता अद्भुत प्रेम की प्रेरणा हैं तो भला राम, सीता के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? तो सुनिए, राम की श्रेष्टता उनके शारीरिक कृत्यों से नहीं बल्कि, आध्यात्मिक ज्ञान से है| जिसके कारण उन्होंने, अपने जीवन में निजी स्वार्थों की अपेक्षा, सत्य को प्राथमिकता दी| वस्तुतः राम केवल सीता के पति ही नहीं थे अपितु, वह राज्य के राजा भी थे और एक महान राजा का मुख्य कर्तव्य, अपनी प्रजा का विश्वास जीतना है| श्रीराम ने भी उसी दिशा में अपनी प्रजा के लिए, सीता के मोह का त्याग कर दिया क्योंकि, इसके दूरगामी परिणाम थे| यदि श्रीराम ऐसा नहीं करते तो, सीता से उत्पन्न होने वाली संतानों को संदेह की दृष्टि से देखा जाता जो, सीता के लिए अत्यंत दुखदायी होता लेकिन, राम के इस निर्णय ने, सीता की अस्मिता को आंच नहीं आने दी| एक सामान्य व्यक्ति अपने परिवार के लिए, भले ही स्वार्थ में निर्णय ले सकता है किंतु, जब वह सार्वजनिक हित के लिए, वचनबद्ध है तो, उसे अपनी निजी भावनाओं को पीछे रखकर, जनता के हित सर्वोपरि रखने होंगे| तभी आने वाली पीढ़ी, उन्हें ऐतिहासिक आदर्शवादी प्रतिबंध के रूप में अंकित करेगी|
राम से क्या सीख मिलती है?
राम को पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है| जिससे स्पष्ट होता है कि, उनका सम्पूर्ण जीवन ही प्रेरणादायक है| साधारण मनुष्य का जीवन शारीरिक तल पर होता है अर्थात वह केवल अपने और अपने से जुड़ी हुई विषय वस्तुओं के लिए ही, कर्म करता है और इसी स्वार्थ में वह, कुछ अच्छे कार्य भी कर देता है लेकिन, राम ने अपने जीवन के सभी कार्य, पूर्ण चेतन होकर सत्य के सानिध्य में किए| चाहे उनके निजी जीवन में कितनी भी आपदाएँ आयी हों किंतु, उन्होंने कभी धर्म का मार्ग नहीं छोड़ा| धार्मिक मनुष्य वह नहीं जो परंपरा निभाता हो या मान्यताओं पर चलता हो, वास्तविक धार्मिक आचरण तो वह है जो, संसार के अंधकार पर प्रहार करता हो ताकि, मनुष्य के दुख कम करते हुए, सद्भावना का प्रसार किया जा सके| राम ने सदा ही धर्म के साथ, परहित नीति का पालन किया जहाँ, त्याग को केंद्रित कर्म के रूप में देखा गया|
मनुष्य अपना सम्पूर्ण जीवन दुख में व्यतीत करता है| जिसके पास कुछ नहीं है, वह कुछ अर्जित करने के लिए भटकता है तो, जिसके पास सब कुछ है, वह आनंद की तलाश में सांसारिक वस्तुओं से आकांक्षा रख, निरंतर दुख प्राप्त करता रहता है| वस्तुतः मनुष्य पैसे कमाने का मार्ग तो स्वयं ही विकसित कर सकता है लेकिन, पैसे से प्रसन्नता प्राप्त की जा सके, यह समझ पाना अत्यंत दुर्लभ है क्योंकि, यदि धन दौलत में आनंद छुपा होता तो, राम १४ वर्ष का वनवास न चुनते और न ही राजा सिद्धार्थ, अपना सब कुछ छोड़कर, गौतम बुद्ध बनते| कोई तो बात होगी जो, त्याग से ही सीखी जा सकती है| जैसे जन्म से अंधे व्यक्ति को, यह नहीं बताया जा सकता कि, कौनसी वस्तु किस रंग की है| उसी प्रकार बिना निष्काम कर्म अपनाए, पुरुषार्थ प्राप्त नहीं किया जा सकता| प्रभु श्रीराम एक आदर्श जीवन का उदाहरण हैं| यदि सांसारिक मनुष्य, प्रभु श्री राम की भांति, अपने जीवन में सत्य को प्राथमिकता देने लगे तो, वह अपने जीवन की कलह से मुक्त हो जाएगा| किंतु बिना अपने बंधनों को त्यागे, वास्तविक आनंद आत्मसात करना अकल्पनीय है| अंत में एक विशेष बात, राम को केवल परमार्थ मार्गी ही प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि, राम का संबंध भौतिकता से नहीं बल्कि, आध्यात्मिकता से है इसलिए, राम को उनके ज्ञान के साथ ही अपनाया जा सकता है अन्यथा, उन्हें पाने की सभी पारंपरिक विधियाँ भी व्यर्थ हो जाएंगी|
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