धन (Dhan explained in hindi):
धन मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता है लेकिन, उसे कमाना उतना ही संघर्षपूर्ण होता है| कुछ लोग धन अर्जित करने के लिए, किसी भी तरह का मार्ग अपनाते हैं जिससे, उनका सारा जीवन भय से ग्रसित हो जाता है| मानव जीवन में, धन की उपयोगिता निश्चित है किंतु, क्या केवल धन का उद्देश्य रखकर, पर्याप्त धन अर्जित किया जा सकता है? क्या हम जानते हैं कि, हमें धन क्यों कमाना है, कैसे कमाना है और कितना कमाना है? आपने देखा होगा, जिस धन राशि का सपना आप कभी देखा करते थे, कदाचित् आज उतना आप कुछ ही समय में अर्जित कर लेते हो| लेकिन फिर भी, वह आपकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं होता| जैसे जैसे जीवन बढ़ता है, धन की आवश्यकता भी बढ़ती जाती है| आख़िर क्यों, हम एक समय पर आकर यह नहीं बोल पाते कि, बस अब हमें धन की कोई आवश्यकता नहीं? धन कमाने वाले व्यक्ति, सम्मान प्राप्ति के लिए और अधिक धनार्जन करने में लगे रहते हैं और निर्धन व्यक्ति भी धन की चाह में, छोटे छोटे काम करके अपने जीवन को उलझनों में फँसा लेता है जिससे, दोनों प्रकार के व्यक्तियों का जीवन, स्थिरता प्राप्त नहीं कर पाता| तो, क्या धन न कमाया जाए? जी नहीं, धन के बिना जीवन संभव नहीं लेकिन, केवल धन के लिए जीवन जीना, दुखदायी अवश्य होता है| धन के तथ्यात्मक अध्ययन के लिए, हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|
- धन क्या है?
- धन की आवश्यकता क्यों होती है?
- धन कैसे कमाए?
- क्या धन से सुख प्राप्त होता है?
- धन का उपयोग कैसे किया जाता है?
धन कमाने का उद्देश्य सुख प्राप्ति होता है किंतु, जब वही धन दुखदायी बन जाता है तो, अपने किए हुए कार्य पर पछतावा होने लगता है| धन की कमी होना दुख की बात है लेकिन, उससे भी अधिक दुखी जीवन, निरुद्देश्य धनवान व्यक्ति का होता है| धन के पीछे भागना, धन प्राप्त करना, फिर उसे अनावश्यक व्यय कर देना और फिर, धन चले जाने का वियोग करना| यही आम मनुष्य की जीवनशैली है| आपने देखा होगा, कुछ लोग अपने सारे जीवन, धन अर्जित करने के बनिस्बत हर्षित नहीं होते| उनके जीवन में भी बहुत सी कमियां रह जाती हैं| जिसकी पूर्ति वह मरते दम तक नहीं कर पाते| जब धन दौलत से संसार की सभी वस्तुएँ, क्रय की जा सकती हैं तो, भला खुशियाँ क्यों नहीं हालाँकि, कुछ लोग अभी इस बात से सहमत नहीं होंगे क्योंकि, प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन का आनंद, भविष्य की कल्पनों में खोजता है तो, स्वाभाविक है, एक निर्धन व्यक्ति धनार्जन किये बिना, धनवान का दुःख कैसे समझेगा| वस्तुतः सांसारिक मनुष्य, विषय वस्तुओं के भोग से ही सुख प्राप्त करना चाहता है| जिसके लिए, वह धन को महत्वपूर्ण समझता है और धनार्जन में ही, अपना जीवन समर्पित कर देता है| जिससे उसे, न ही संतुष्ट करने योग्य धन की प्राप्ति होती और न ही, अच्छा जीवन मिलता| क्या कोई ऐसी बात है, जिसकी अनभिज्ञता के कारण, हम धन के सही महत्व को नहीं समझ पा रहे? चलिए, कुछ बिंदुओं से धन के रहस्य को समझने का प्रयत्न करते हैं|
धन क्या है?
द्रव्य योग्य, मूल्यवान विषय वस्तुओं को, धन की संज्ञा दी जाती है अर्थात जिसका विनिमय किया जा सके, जिसका कोई भौतिक मूल्य हो, उसे धन कहा जाएगा| जैसे- पालतू पशु, भूमि, धातु, रत्न, हुनर, अविष्कार इत्यादि धन कहलाते हैं| कुछ लोग समय को भी धन की ही श्रेणी में रखते हैं किंतु, मनुष्य के लिए सर्वश्रेष्ठ धन, आध्यात्मिक ज्ञान है वस्तुतः धन एक दोधारी तलवार है जिसका सही उपयोग न जानने वाले व्यक्ति, विनाशकारी परिणाम प्राप्त करते हैं किंतु, आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात, मनुष्य का जीवन एक नई दिशा से की ओर मुड़ जाता है जहाँ, वह धन की सदुपयोग समझ सकता है| आज के समय धन मनुष्य का अभिमान हैं| धनवान व्यक्ति, अपने अहंकार को जितना बढ़ाता है उतना, उसे नकारात्मक परिणाम झेलने पड़ते हैं हालाँकि, कुछ ऐसे धनवान मनुष्य भी हैं जो, श्रेष्ठ व्यक्तित्व के धनी होते हैं| उनके ह्रदय में सबके प्रति प्रेम होता है| वह अपने छोटे से लाभ के लिए, सांसारिक क्षति नहीं करते बल्कि, अपनी सफलता दूसरों का हित करने में देखते हैं और अपने व्यापार को, सर्वहित समर्पण के सिद्धांत पर, स्थापित करके जीवन सार्थक कर लेते हैं, वही वास्तव में आनंदित जीवन के अधिकारी होते हैं|
धन की आवश्यकता क्यों होती है?
प्राचीन काल की विनिमय व्यवस्था के कारण, धन का महत्व भले न रहा हो लेकिन, आज के युग में मौद्रिक धन के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है किंतु, मनुष्य अपनी जिन आवश्यकताओं के कारण, धन अर्जित करना चाहता है वह व्यर्थ हैं| अधिकतर लोग अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए ही धन अर्जित करते हैं| हालाँकि, मूलभूत आवश्यकताओं के लिए धनार्जन किया जाना अनिवार्य है लेकिन, जब ऐशो-आराम के लिए धन की कामना की जाती है तो, वह कष्टकारक सिद्ध होती है| धन का वास्तविक व्यय भोजन, शिक्षा और रक्षा हेतु ही होता है| अब यहाँ, निर्धन मनुष्य तो अपने परिवार के लिए यह करता ही है किन्तु, फिर भी वह दुखी है क्योंकि, वह स्वार्थ का भाव रखकर ही, उनके लिए खर्च कर रहा है| यहाँ बात, निस्वार्थ भाव से अपनी क्षमता के अनुसार व्यय किया जा सकता है| एक धनवान अपने परिवार साथ साथ, और भी लोगो के लिए यही काम, बिना दिखाये करे तो, वह निस्वार्थ होगा| किन्तु, यदि सहायता किसी कामना हेतु की गयी तो, निश्चित ही वह दुखदायी होगी| आपने देखा होगा कि, सोशल मीडिया में कुछ लोग अपने पैसों का आडंबर, बड़ी धूमधाम से करते हैं किंतु, कुछ ही सालों बाद, उनकी रोती हुई तस्वीर, प्रदर्शित हो जाती है| वस्तुतः हम धन से सुख प्राप्त करने वालों की, कुछ ही झलकियाँ देख पाते हैं इसलिए, धन का वास्तविक अवलोकन करने में गलतियां कर बैठते हैं| आपको दो तरह के धनवान व्यक्ति मिलेंगे, एक वो जो सारे काम धन के लिए ही करते हैं और एक वो, जो काम ही ऐसा करते हैं जिससे, धन की बारिश होती है| यहाँ यदि काम परहित में किया गया हो और उसके बाद धन की वर्षा हुई हो तो, निश्चित ही ऐसा मनुष्य धन अर्जन में आनंददायक पलों का अनुभव करेगा लेकिन, जिसने अपना जीवन धन को केंद्रित करके व्यतीत किया हो, वह प्रतिक्षण चिंताजनक जीवन का अनुभव कर रहा होगा|
धन कैसे कमाए?
धन कमाने का एक सीधा सा मंत्र है| जितना अधिक आप सेवा करेंगे, उतना अधिक आप कमायेंगे अर्थात कम से कम समय में, अधिक से अधिक लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करना ही, अच्छे व्यवसाय का जन्मदाता है हालाँकि, कुछ लोग धन के लिए नौकरी भी करते हैं या नौकरी की तलाश में हैं| हाँ यदि खाने पीने के लाले पड़े हैं तो, किसी भी तरह के काम में कोई बुराई नहीं क्योंकि, मनुष्य का सबसे पहला कर्तव्य, अपने शरीर की सुरक्षा होता है किंतु, उसके बाद मन की शान्ति अनिवार्य बन जाती है और बिना प्रेम के चुना गया कार्य, ख़ुशियाँ नहीं दे सकता चूँकि, हमारा काम ही हमारा जीवन है इसलिए, इसका चुनाव आंतरिक चेतना से किया जाना चाहिए न कि, अपने स्वार्थ से हालाँकि, जो लोग पहले से दरिद्रता में ही जीवन जी रहे हों, वह भले ही धन केंद्रित कार्य का चुनाव कर सकते हैं क्योंकि, भूखे मनुष्य के लिए मन की शांति से आवश्यक, तन की तृप्ति होती है लेकिन, यदि बात छात्र छात्राओं की हो तो, उन्हें समाज को देखकर अपने पथ का निर्धारण नहीं करना चाहिए| बल्कि, अपने विवेक के साथ परिस्थियों के अनुसार ही, निर्णय किया जाना चाहिए| आपने देखा होगा, कई विद्यार्थी अपने लक्ष्यों का चुनाव, किसी व्यक्ति या वस्तु से प्रभावित होकर कर लेते हैं| भले ही दिल से वह कुछ और करना चाहते थे और यह वर्तमान में जाग्रत न रहने का परिणाम है जो, विवेक की निष्क्रियता के बाद उत्पन्न होता है| ऐसी परिस्थितियां ही दुख को जन्म देती हैं| विद्यार्थियों को चाहिए कि, वह पहले से अपने भविष्य का निर्धारण न करें| स्वयं को अतीत के चश्मे से न देखें| अपने आपको दुर्बल न समझें क्योंकि, मुर्गियों के साथ यदि बाज के बच्चे को भी रखा जाए तो, वह आसमान की ऊंचाइयों तक कभी नहीं पहुँचेगा और आप अपने कुछ पीढ़ियों के पारिवारिक इतिहास को देखकर अपनी शक्तियों की कल्पना करते हैं और उसी के अनुसार थोड़ा ऊपर नीचे अपना करियर चुन लेते हैं जबकि हमारे इतिहास में जितने भी श्रेष्ठ मनुष्य हुए वह अपने अतीत को छोड़ने की वजह से ही हुए| अतीत केवल सूचनाएँ प्राप्त करने के लिए है ताकि, वर्तमान अन्वेषण किया जा सके और तुलनात्मक अध्ययन से, श्रेष्ठ जीवन का चुनाव संभव हो| राम ने अपना सारा साम्राज्य त्याग दिया, गौतम बुद्ध ने भी सांसारिक सुखों को तुच्छ समझा| यहाँ उनका त्याग महान नहीं अपितु, त्याग के पश्चात उन्होंने आदर्श समाज की नींव रखी, यह पूज्यनीय कार्य है| अतः केवल अपने लिए, उच्चतम प्रबंध कर लेना ही, मानव जीवन का उद्देश्य नहीं और न ही, उससे आत्मशांति मिलने वाली| परमार्थ ही परमानंद का मार्ग है किन्तु, जब तक मनुष्य अपने अतीत को पकड़कर चलता रहेगा, उसकी उलझने बनी रहेंगी| न कोई परंपरा, न कोई धारणा और न ही कोई कामना| बस वर्तमान समय के लिए जो आवश्यक है, वही मेरा कर्म है| यही विद्यार्थी जीवन का अद्भुत मंत्र होना चाहिए| विद्यार्थियों के पास शिक्षा ग्रहण के कई माध्यम है किंतु, कौन सी शिक्षा उपयोगी है? यह अपने स्वार्थ के अनुसार तय नहीं करना चाहिए बल्कि, अपनी अंतरात्मा से पूछें कि, वह ऐसा क्या करें कि, उसका जीवन दूसरों के लिए, प्रकाश बन सके| वस्तुतः यहाँ दूसरों का अर्थ अपने रिश्तेदारों से नहीं बल्कि, उन लोगों से हैं जिनसे, आपका कोई सामाजिक संबंध नहीं है अर्थात् मानव जीवन की उपयोगिता तभी है, जब वह सार्वजनिक हितों के कार्य का चुनाव करता है और यही धन के साथ, सुख समृद्धि प्राप्त करने का करने का सुगम मार्ग है|
क्या धन से सुख प्राप्त होता है?
धन जब भी परहित में कमाया जाएगा तो, निश्चित ही सुखद अनुभव प्राप्त होंगे लेकिन, यदि भोग विलास के लिए धन अर्जित किया गया तो, वह कष्टकारी होगा हालाँकि, भोग करने में कोई बुराई नहीं किंतु, जिस मन की तृप्ति के लिए, सांसारिक विषय वस्तुओं से संबंध बनाया जा रहा है, उसका मिलना असंभव है क्योंकि, हमारा मन केवल अनंतता में ही तृप्त हो सकता है और संसार में उपलब्ध, कोई भी भौतिक पदार्थ नश्वर होता है अर्थात एक न एक दिन, उसे मिटना या अरुचिकर हो जाना है इसीलिए, मन को शांत होने के लिए, ऐसा विषय चाहिए जो, आपकी शारीरिक मृत्यु के बाद भी जीवित रहेगा और उसी मार्ग से अर्जित किया हुआ धन सुख का अनुभव दे सकता है|
धन का उपयोग कैसे किया जाता है?
अधिकतर लोग, भोग विलास में अपना धन व्यय करते हैं और कुछ अपने मन की शांति के लिए दान भी देते हैं लेकिन, दोनों धन का सदुपयोग नहीं जानते| नैतिकता के आधार पर हम, किसी की सहायता कर सकते हैं किंतु, वह सहायक सिद्ध नहीं होगा क्योंकि, जब तक हम बीमारी नहीं जानते तो, इलाज कैसे कर सकते हैं? उसी प्रकार धन की चाह रखने वाले प्रत्येक मनुष्य को, धन देना भी मूर्खतापूर्ण हो सकता है| जैसे शराबी को पैसे देना, विशुद्ध मूर्खता होगी| भले ही वह आपका मित्र ही क्यों न हो| वस्तुतः धन का प्राथमिक उपयोग, अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए किया जाना चाहिए जिसमें पोषण, शिक्षा और सुरक्षा सबसे प्रमुख हैं| उसके उपरांत बचे हुए धन को, निष्काम उद्देश्यपूर्ण कार्य के लिए उपयोग किया जाना चाहिए| कोई भी मनुष्य जब तक अपनी इच्छानुसार अपने कर्म का चुनाव करेगा तो, निश्चित ही वह निजी उद्देश्यों को प्राथमिकता देगा इसलिए, धन प्राप्त करने से पहले, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया जाना चाहिए तभी, धन का सदुपयोगी मार्ग खोजा जा सकेगा| बचपन से ही हमें यह शिक्षा दी जाती है कि, जवानी में धन दौलत एकत्रित करो और बाद में जीवन का आनंद लेना जो, मूर्खतापूर्ण बात है क्योंकि, जीवन प्रतिक्षण आनंदित रहने के लिए मिला है तो, फिर सांसारिक माया में भटक कर, अपने जीवन को अंधकार में क्यों धकेलना? वस्तुतः मन को आनंदित रखना और धन कमाना, दोनों ही समानांतर होनी चाहिए तभी, आदर्श जीवन की कल्पना की जा सकती है|
उपरोक्त बिन्दुओं से तो हम यह समझ गए कि, धन का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए नहीं करना है और न ही, किसी निरर्थक कार्य से धन अर्जित करना है लेकिन, ऐसा क्यों? तो, इसे छोटी सी कहानी के माध्यम से समझाया गया है|
एक विद्यालय में कई छात्र पढ़ते थे| उन्हीं में से दो विद्यार्थी राहुल और सुनील भी थे जो, बचपन के दोस्त थे| दोनों बड़े होकर सफलता प्राप्त करना चाहते थे| धीरे धीरे दोनों की शिक्षा पूरी हुई| राहुल ने रुपयों को ध्यान में रखते हुए, एक बड़े नगर में अच्छी नौकरी का चुनाव किया किंतु, सुनील अपने गाँव के लोगों के लिए, कुछ करना चाहता था इसलिए, उसने अपनी पढ़ाई का उपयोग, किसानों की स्थिति सुधारने के लिए करना आवश्यक समझा| दोनों अपने अपने काम में व्यस्त हो गए जिससे, दोनों में दूरियां बढ़ गयी| कुछ सालों बाद राहुल की समस्या बढ़ने लगी| वह अपने काम में इतना व्यस्त था कि, उसे अपने परिवार के लिए समय ही नहीं मिलता था| राहुल शादीशुदा हो चुका था और उसका एक बेटा भी था जिसे, वह बिलकुल समय नहीं दे पाता था| राहुल ने अपार संपत्ति एकत्रित कर ली थी लेकिन, वह अपने जीवन में चिंताओं से जूझता रहता था| एक दिन आंतरिक समस्याओं की वजह से, राहुल का कंपनी के मालिक से झगड़ा हो जाता है जिससे, उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है हालाँकि, राहुल के पास इतने पैसे थे कि, वह अपना व्यवसाय प्रारम्भ कर सकता है इसलिए, उसने मालिक के सामने झुकना ज़रूरी नहीं समझा और कुछ दिनों में ही, एक रेस्टोरेंट खोल दिया| राहुल का बेटा भी बड़ा हो चुका था किंतु, बचपन से ही वह खर्चीला और लापरवाह था जो, राहुल की एक भी बात नहीं मानता था| ऐसा करते हुए कई साल बीत गए| राहुल अब बूढ़ा हो चुका था और उसके पास काम करने के लिए, शारीरिक क्षमता भी नहीं बची थी इसलिए, रेस्टोरेंट अपने बेटे को सौंपना चाहता था लेकिन, उसके बेटे ने उससे कहा कि, “मैं आपकी भांति ये छोटा मोटा काम नहीं करूँगा| मुझे कोई और काम करना है, जिसके लिए मुझे बहुत से पैसे चाहिए|” राहुल की आय अब उतनी नहीं थी इसलिए, वह अपने बेटे को समझाने का प्रयास करता है किंतु, जब बेटा नहीं मानता तो, उसे लाचारी में अपना रेस्टोरेंट बेचना पड़ता है| आख़िर उसने ये सब अपने बेटे के लिए ही तो कमाया था? लेकिन, पैसे मिलते ही बेटे ने एक अलग रास्ता अपना लिया और अपने परिवार को छोड़कर, एक लड़की से विवाह कर लिया और घर छोड़कर चला गया| अपने बेटे के जाने के बाद, राहुल दुखी रहने लगा| वह प्रतिदिन अपने आपको कोसने लगा कि, जिस बेटे के लिए मैंने इतना कुछ कमाया वही, मुझे अकेला छोड़ गया| राहुल की पत्नी भी, इस बात से बहुत दुखी थी किंतु, दोनों अपने दयनीय हालातों से मजबूर थे| तभी, राहुल ने अपनी पत्नी से कहा, “मैं मरने से पहले, अपने बचपन के दोस्त से मिलना चाहता हूँ| क्या तुम मेरे साथ, उसके गाँव चलोगी?” उसकी पत्नी चलने के लिए तैयार हो गई| अगले ही दिन, राहुल अपने दोस्त से मिलने उसके गाँव निकल पड़ा| कई साल बीत चुके थे इसलिए, राहुल को गाँव का रास्ता याद नहीं था| जैसे तैसे करके, वह गाँव पहुँचा तो, गाँव की चमक दमक देखकर दंग रह गया| वह धीरे धीरे कुछ लोगों के पास पहुँचा और उनसे पूछने लगा, “यह गाँव इतना विकसित कैसे हो गया? यहाँ तो, पानी तक की उपलब्धता नहीं थी लेकिन, आज चारों ओर हरे भरे खेत दिखाई दे रहे हैं|” तभी एक व्यक्ति ने राहुल से कहा कि, “इस गाँव में एक महापुरुष थे जिन्होने, आस पास के सभी गांवों को, धन धान्य से संपूर्ण कर दिया उन्होंने, विज्ञान की तकनीक का उपयोग करके, सभी किसानों का जीवन रूपांतरित कर दिया| जिसके कारण उन्हें आज भी सभी लोग याद करते हैं और उनके सम्मान में, उसकी बड़ी बड़ी मूर्तियां भी बनायी गई हैं| तभी राहुल ने आश्चर्य चकित होते हुए कहा, “कौन है वो देवता?” तभी, उस व्यक्ति ने गाँव के मुख्य द्वार की ओर इशारा किया जिसमें, उसके दोस्त का नाम लिखा था “स्वर्गीय सुनील” जिसे पढ़ते ही, उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई और आँखों से आँसू आ गए| उसे अपने दोस्त से न मिल पाने का अत्यंत दुख था| जैसे ही, राहुल को सुनील की उपलब्धियों का पता चला तो, उसका सीना गर्व से चौड़ा हो गया| वह जोर जोर से, अपनी पत्नी को बताने लगा कि, “देखा मेरा दोस्त, कितना महान था|” राहुल को अपने दोस्त के काम पर अभिमान था किंतु, मन ही मन अपने जीवन से पछतावा भी, राहुल अब समझ चुका था कि, जीवन का सदुपयोग क्या होता है|