चरित्र (charitra explained in hindi):
कहते हैं, अच्छे चरित्र का व्यक्ति महान होता है लेकिन, कैसे किसी का चरित्र पहचाना जाए क्योंकि, जो अंदर होता है वह, बाहर दिखाई नहीं देता| सभी मनुष्यों के जीवन में, चरित्रहीनता की परिभाषा अलग अलग है जिसे, सामाजिक या स्वरचित रुप में धारण किया गया है| जैसे, कुछ समाजों में पति, किसी और स्त्री से संबंध बनाए तो, चरित्रहीनता समझी जाएगी किंतु, वहीं कुछ ऐसी मानवीय प्रजातियाँ हैं जो, इसे महानता का दर्जा देगीं| अलग अलग क्षेत्रीय संस्कृति के अनुसार, चरित्र की रचना की गई है| जैसे, एक पति का चरित्र क्या होना चाहिए? एक पत्नी का चरित्र कैसा होना चाहिए? एक कर्मचारी का बर्ताव कैसा होगा या पुत्र और पिता के बीच क्या मर्यादाएं होंगी और न जाने, कितने चरित्रों का चित्रण किया जा चुका है? मनुष्य जब जिस रूप में होता है, उसी के अनुसार अभिनय करना, सच्चरित्र कहलाता है| जैसे, एक कर्मचारी को अपने कार्यालय में अनुशासन का पालन करना ही होगा| एक पिता को अपने पुत्र से प्रेम प्रदर्शित करना ही होगा अन्यथा उसे, एक अच्छा पिता नहीं समझा जाएगा| हमें कब कैसा चरित्र धारण करना चाहिए, यह एक रहस्य है| जिसकी जानकारी के अभाव में, मनुष्य विभिन्न विचारों का समर्थन करता है फिर भी, वह समाज में सद्चरित्र नहीं कहलाता| मानव जीवन में चरित्र का महत्व समझने के लिए, हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|
- चरित्र क्या है?
- चरित्र बल क्या है?
- चरित्र कैसा होना चाहिए?
- अच्छा चरित्र कैसे बनता है?
मनुष्य के स्वार्थ को जब हानि होती है तब वह, हानि कर्ता को चरित्रहीन समझने लगता है| जैसे, यदि आपका दोस्त आपका साथ नहीं देगा तो, आप उसे अच्छा नहीं समझोगे| भले ही आपका दोस्त, उस जगह पर सही हो| एक विद्यार्थी अपनी शिक्षा में ध्यान न दें कर कहीं और रुचि लेता है तो, यह उसके चरित्र का हनन होगा| अच्छा चरित्र अच्छे मनुष्य की पहचान है लेकिन, कोई भी व्यक्ति अच्छा है, यह कैसे तय किया जाए? क्योंकि यहाँ सभी के सत्य में विभिन्नताएँ हैं| किसी संप्रदाय में कुछ श्रेष्ठ है तो, अन्य के लिए वह, निकृष्टता की श्रेणी में आता है| वस्तुतः मनुष्य एक प्रतिक्रियात्मक यंत्र है जो, भौतिक विषय वस्तुओं के अनुसार, अपने चरित्र का प्रदर्शन करता है| भले ही आंतरिक मन से वह, किसी और चरित्र का निर्वहन कर रहा हो| हालाँकि, सामने वाले मनुष्य को भ्रमित किया जा सकता है किंतु, स्वयं को भ्रमित करना उचित नहीं| यदि मनुष्य आत्मज्ञान से, अपना चरित्र चित्रण करें तो, निश्चित ही उसका जीवन, रूपांतरित हो जाएगा| निम्नलिखित बिंदुओं से यह बात स्पष्ट होगी|
चरित्र क्या है?
चरित्र का आशय ‘सत् चरित्र’ प्रदर्शन से है| वस्तुतः सांसारिक मनुष्य स्वयं के विवेक से संचालित नहीं होते अपितु, उन्हें बालक की भांति, नियमावली प्रदान की जाती है जिसे, बचपन से ही सीखना आवश्यक होता है अन्यथा मनुष्य अपनी आधारशिला से नीचे गिर जायेगा परिणामस्वरूप, मानवीय विकास पद्धति पर, नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जो, निश्चित ही भयावह स्थिति का जनक होगा| अतः यह समझना आवश्यक है कि, संसार में मनुष्यों को आध्यात्मिक ज्ञान नहीं होता इसलिए, वह बाहरी आचरण देखकर ही, किसी के बारे में विचार बना पाते हैं| अज्ञानी मनुष्यों के अभिनय की अभिव्यक्ति को, चरित्र कहा जाता है अर्थात् जिस समय आप, जो भूमिका निभा रहे हैं, उसी का आचरण ही, चरित्र कहलाता है| संसार में सभी मनुष्यों के चरित्र समय, संयोग या परिस्थिति अनुकूल परिवर्तनीय हैं जो, व्यक्ति पहले प्रेम दिखाता है वही, घृणा भी प्रदर्शित करने लगता है| स्थिर चरित्रवान केवल, आत्मज्ञानी मनुष्य ही हो सकता है क्योंकि, केवल वही जानता है कि, उसे किस समय कैसे और क्या करना है| सामान्य मनुष्य तो, अपनी इच्छाओं के अनुसार किसी भी दिशा में मुड़ जाते हैं| यही दिशा भ्रम उन्हें, प्रतिपल अपमानित अनुभव करवाता है|
चरित्र बल क्या है?
चरित्र बल विचारों से उद्भूत होता है अर्थात मनुष्य को, अपने चरित्र पर ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि, उसे अपने अहंकार को त्यागना चाहिए तभी, वह बिना किसी दिखावे के, वास्तविकता का प्रदर्शन कर सकेगा| सामान्य मनुष्य, अपने अभिनय में अच्छे चरित्र का आडंबर करते हैं लेकिन, आंतरिक तौर पर वह कुछ और ही होते हैं| उदाहरण के तौर पर, एक नेता मंच पर शिष्टाचार का प्रदर्शन करता है किंतु, जब वह अपने निजी जीवन में आता है तो, यथार्थता प्रकट हो जाती है| इसी प्रकार अपरिचित व्यक्तियों के सामने, हमारा व्यवहार कुछ और होता है लेकिन, जिन्हें हम पहचानते हैं, उनके सामने कुछ और ही हो जाते हैं| सच्चाई के लिए, जीवन जीने वाले को, अच्छे चरित्र का दिखावा नहीं करना पड़ता क्योंकि, उसके द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य, सर्वहित समर्पित होता है, जिन्हे सच्चरित्र ही माना जाता है| एक चेतन मनुष्य जो भी करें, वह उचित ही होगा किंतु, एक अज्ञानी मनुष्य मंदिर में जाकर भी, अपना स्वार्थ ढूँढ लेगा|
चरित्र कैसा होना चाहिए?
हमारे समाज में विभिन्न भूमिकाओं के लिए, चरित्र चित्रण किया जा चुका है| जिसके अनुसार, मनुष्य अपना बर्ताव करता है| एक अमीर व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ दिखाने का प्रयत्न करता है लेकिन, वास्तव में वह अपनी तुच्छता से परिचित है| मनुष्य के चरित्र में सत्यता होनी चाहिए न कि, खोखला प्रदर्शन| हालाँकि, कोई भी मनुष्य लंबे समय तक चरित्र का आडम्बर नहीं कर सकता| एक न एक दिन, वह अपने वास्तविकता में अवश्य प्रतीत होगा और तभी उसे, अपमानित होना होगा| किसी के कर्तव्यों को देखकर भी, उसका चरित्र नहीं बताया जा सकता क्योकि, एक नेत्रवान मनुष्य को, नेत्रहीन नहीं देख सकता| अतः उच्चतम चरित्र पहचानने योग्य एक आत्मज्ञानी ही हो सकता है| परमार्थ मार्ग में चल रहे मनुष्यों के कर्म, दुश्चरित्र नहीं कहे जा सकते|
अच्छा चरित्र कैसे बनता है?
इस संसार में अच्छा और बुरा कुछ नहीं होता और अगर इसे माने भी तो, वह केवल व्यक्ति विशेष से संबंधित होता है अर्थात किसी के लिए, कुछ अच्छा होगा तो, किसी और के लिए वही बुरा कहलाएगा| अतः आप अपने चरित्र को अच्छा करने के बजाए, अपने कर्मों पर विशेष ध्यान दें क्योंकि, स्वार्थों में लिए गए निर्णय और निजी लाभ के लिए, किए गए कर्म सदैव दुखदायी होते हैं| श्रेष्ठतम कार्य का चुनाव ही, अच्छे चरित्र का जन्मदाता है|
चरित्र एक धोखा है अर्थात बाहरी अभिनय को देखकर, नहीं बताया जा सकता कि, किसी व्यक्ति की आंतरिक प्रवृत्ति क्या है? हम जैसे होते हैं, वैसी ही हमें दुनियाँ दिखाई देती है इसलिए, हम किसी भी व्यक्ति को अपने स्तर तक ही जाँच सकते हैं लेकिन, बिना आत्मज्ञान के, एक श्रेष्ठ मनुष्य की पहचान कर पाना असंभव है| अतः हम कह सकते हैं कि, मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होती है न कि, उसके चरित्र से हालाँकि, कुछ समय के लिए तो श्रेष्ठता का अभिनय करके, लोगों को भ्रमित किया जा सकता है किंतु, जीत सदा सत्य की ही होती है|