आस्तिक नास्तिक (Aastik nastik explained in hindi):
वैसे तो आस्तिक और नास्तिक एक दूसरे के विपरीत हैं लेकिन, आज जो अपने आपको आस्तिक कह रहे हैं वही, सबसे बड़े नास्तिक है जो, अपने अनुसार ईश्वर की छवि बनाकर, अपने स्वार्थ पूर्ति की कामना कर रहे हैं| हाँ, कुछ अपवाद अवश्य हो सकते हैं जो, मन में सत्य की छवि धारण करके, बाहर मूर्ति को भी उसी रूप में देख पाते हैं वही, आत्मज्ञानी भी होते हैं| सामान्य मनुष्य भगवान को मानते अवश्य हैं लेकिन, जानते कुछ नहीं| भगवान मान्यता का नहीं बल्कि, चिंतन का विषय है| आपने देखा होगा. जो लोग ईश्वर पर विश्वास करते हैं वह, बाहर कहीं उसकी तलाश में लगे हैं और जिन्हें ईश्वर पर विश्वास नहीं वो तो, ईश्वरीय सत्ता को ललकार रहे हैं जो, हास्यास्पद है| हालाँकि, असत्य को सत्य मानने से श्रेष्ठ, सत्य को नकारना ही होता है| आपने देखा होगा, जो मनुष्य भगवान की भक्ति में लगे हैं, उनका जीवन भी दुख से भरा हुआ है लेकिन, कुछ ऐसे लोग भी होंगे जो, भगवान की ओर देखते तक नहीं लेकिन, फिर भी उनके पास धन धान्य की कोई कमी नहीं| भगवान की भक्ति करने वाले मनुष्य को दुख कैसे हो सकता है कहीं, यह भगवान को न समझ पाने का दुष्परिणाम तो नहीं? हमें यह जानना होगा कि, आस्तिकता क्या है और क्या यदि सत्य न मिले तो, नास्तिक होना ही सही है| ये सवाल भले ही, सामान्य प्रतीत हो रहें हों लेकिन, मनुष्य के जीवन पर इनका प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है| निम्नलिखित बिन्दुओं से यह बात पूर्णतः स्पष्ट होगी|
- आस्तिक का अर्थ क्या है?
- नास्तिक कौन है?
- क्या नास्तिक बनना पाप है?
- नास्तिक होने के क्या लाभ हैं?
- नास्तिक से आस्तिक कैसे बने?
कुछ ऐसे महानुभाव भी हैं जिन्हें, ईश्वर से अधिक विज्ञान पर विश्वास है| निश्चित रूप से विज्ञान, मानव उपयोगी रहा है किंतु, उसकी तुलना अध्यात्म से नहीं की जा सकती चूँकि, विज्ञान की उत्पत्ति भी मानव मस्तिष्क से हुयी है जिसे, प्राकृतिक कहा जायेगा| आध्यात्म एक ऐसे क्षेत्र का अध्ययन हैं जहाँ, विज्ञान कभी नहीं पहुँच सकता क्योंकि, विज्ञान केवल भौतिक विषयवस्तुओं का अवलोकन कर सकता है अर्थात जो प्रकट है वही, विज्ञान का क्षेत्र है किन्तु, अध्यात्म शून्यता से अनंत तक जाने का मार्ग है जो इस सृष्टि में है ही नहीं, उसे विज्ञान कैसे खोज पाएगा| इस कथन को एक उदाहरण से समझते हैं| एक कमरे में एक टेबल पर, कुछ फल रखे हुए हैं| अब यदि विज्ञान को कमरे के अंदर निरीक्षण करने को कहा जाए तो, विज्ञान फल और टेबल का गहनता से अध्ययन कर सकेगा यहाँ तक कि कमरे के वातावरण में उपलब्ध वायु को भी विज्ञान देख सकेगा किंतु जो, उपस्थित ही नहीं अर्थात कुछ है तो, कुछ नहीं भी होगा? वही रिक्तता ईश्वर है इसीलिए, कहा जाता है, स्त्री और पुरुष अर्थात शिव शक्ति मिलकर, सृष्टि की रचना करते हैं| स्त्री भौतिक स्वरूप है किंतु, पुरुष अभौतिकता का परिचायक है और दोनों के मिलन से ही, ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है| ब्रम्हाण्ड में भी कुछ है और कुछ नहीं| जो है, वह सीमित है जिसका, मूल्यांकन किया जा सकता है किंतु, जो नहीं वही अनंत है| अतः ईश्वर अनंत, अकल्पित, निर्गुणी और निराकार है| न उसकी कोई छवि है, न ही उसका कोई नाम फिर भी, उसे याद रखने के लिए, किसी भी तरह के नाम का प्रयोग किया जा सकता है| सभी मनुष्यों ने अपने अपने अनुसार उसके नाम तो रखे हैं किंतु, जब तक उन्हें ईश्वर की समझ नहीं है तो, इसे नास्तिकता ही कहेंगे| आस्तिकता एक रहस्यमयी विषय है जिसे, निर्विकल्प होकर ही समझना चाहिए| चलिए निम्नलिखित प्रश्नों के माध्यम से, इसे जानने का प्रयत्न करते हैं|
आस्तिक का अर्थ क्या है?
ईश्वर में आस्था रखने वाले मनुष्य को, आस्तिक कहा जाता है किंतु, आस्था और अंध श्रद्धा में अंतर होता है| आज की आस्तिकता परंपराओं का पालन करने से अधिक कुछ नहीं है| यदि एक सामान्य व्यक्ति से, ईश्वर के बारे में प्रश्न किया जाए तो, निश्चित ही उसका उत्तर अतार्किक मान्यताग्रस्त होगा भले ही, वह वर्षों से पूजा पाठ करता चला आ रहा हो| आस्तिकता इस बात को मान लेना नहीं कि, ईश्वर है बल्कि, यह समझना है कि, ईश्वर क्या नहीं है| ईश्वर की भक्ति के मार्ग परिवर्तनीय हैं जो, समय स्थान और परिस्थितियों के अनुरूप बदल जाते हैं| जैसे- भारत में पूजा पद्धति में जो सामग्री उपयोग की जाएगी, वही सामग्री विदेश में उपलब्ध न होने पर भी, पूजा उसी प्रकार संपन्न समझी जाएगी| प्राचीन काल से चली आ रही परंपराएँ, वर्तमान में लगभग समाप्ति की कगार में हैं| वैज्ञानिक विचारधारा मनुष्य की प्राथमिकता बन चुकी है जहाँ, उत्पादों का भोग जीवन का आधार है इसलिए, ईश्वर को भी अपनी इच्छा पूर्ति का सूचक माना जाता है चूँकि, मनुष्य अपनी परिस्थितियों के अनुसार, अपनी भक्ति के मार्ग बदल लेता है इसलिए, आज सच्चा आस्तिक व्यक्ति ढूँढना असंभव है और वैसे भी, एक ज्ञानी को पहचानने के लिए, स्वयं ज्ञानी होना होता है| जिस प्रकार एक मूर्ख व्यक्ति, तार्किक विचारों को नहीं समझ सकता उसी प्रकार, एक अहंकार युक्त मनुष्य आत्मज्ञानी पुरूष को नहीं पहचान सकता| संसारियों का निजी स्वार्थ होता है और उसकी पूर्ति करने वाले को ही, वे भगवान का स्थान दे देते हैं| सांसारिक मनुष्यों के बीच, भगवान से अधिक उनकी माया लोकप्रिय है जैसे, किसी निर्धन व्यक्ति को धनी मनुष्य द्वारा धन दौलत दे दी जाए तो, निर्धन के लिए वही भगवान बन जाएगा| अतः स्पष्ट है, सांसारिक मनुष्य भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले को भगवान की भांति पूजते हैं जो, एक अर्थ में उसके लिए भगवान् का ही रूप होता है चूँकि, भगवान् विष्णु के सभी अवतार पालन-पोषण, रक्षण और शिक्षण हेतु ही अवतरित हुए हैं| यही स्थिति मनुष्य के नए बंधनों को भी जन्म देती है जिससे, जीवन दूसरों के अनुकम्पा पर टिक जाता है और सहायता प्राप्त न होने पर, मन भी दुखी होता है| संघर्ष के बिना प्राप्त फल, मानसिक शांति नहीं दे सकता| आस्था, भावनाओं का विषय नहीं बल्कि, ज्ञान का बिन्दु है जिसे, अहम् नहीं देख सकता|
नास्तिक कौन है?
ईश्वरीय श्रद्धाविहीन मनुष्य ही नास्तिक है अर्थात जो व्यक्ति, ईश्वर की सत्ता को अस्वीकार करता है वही, नास्तिक होता है| सभी मनुष्यों का ईश्वर एक है किंतु, मनुष्यों के स्वार्थ ने उसका भी विभाजन कर लिया जो, मानवीय मतभेदों का सबसे बड़ा कारण है| नास्तिक केवल ईश्वर को न मानने वाले ही नहीं होते बल्कि, वह भी होते हैं जो, ईश्वर को मानते हैं| आप सोच रहे होंगे ये कैसी बात है, स्वीकारना और नकारना एक समान, कैसे? जी हाँ, ईश्वर आंतरिक चिंतन है जिसका संबंध पूर्ण चेतना से होता है जिसे, बोध भी कहा जाता है| जिस प्रकार किसी जानवर की पूरी प्रजाति का एक ही स्वभाव होता है उसी प्रकार, सभी मनुष्यों का मूल स्वभाव ठहराव है| जिसकी प्राप्ति, विचार शून्यता के पश्चात ही होती है और मुक्ति केवल, आत्मज्ञान से ही धारण की जा सकती है जो, सही मायनों में ईश्वरीय स्वीकारता कहलाएगी|
क्या नास्तिक बनना पाप है?
जिस कर्म से जीवन दुखी हो वह पाप है और जिससे, मन आनंदित हो वही पुण्य है किंतु, सांसारिक मनुष्य के अनुसार पाप का अर्थ, मृत्योपरांत मिलने वाले नर्क का जन्मदाता होता है अर्थात जीवन भर जो भी, दुष्कर्म किए जाएं और उसकी सजा मरने के बाद ही मिलेगी जोकि, हास्यास्पद कथन है क्योंकि, जो आप करते हो, उसका परिणाम तुरंत भुगतना होता है भले ही, उसकी पीड़ा प्रारम्भ में प्रकट न हो| यदि किसी व्यक्ति ने चोरी की तो, वह चोर बन गया अब उसे, इसी पहचान के सहारे जीना होगा जो कि, उसके लिए नर्क का द्वार कहलाएगी हालाँकि, मनुष्य अपनी प्रकृति के अनुसार, जीवन में अनगिनत बार जन्म और मृत्यु को प्राप्त होता है जैसे, कभी वह बच्चा होता है| कभी विद्यार्थी, कभी दोस्त, कभी पिता, कभी बेटा और न जाने कितनी ही पहचाने, मनुष्य अपने जीवन में धारण करता है किंतु, शरीर केवल एक बार ही मरता है और उसके बाद वह मिट्टी में बदल जाता है| मिट्टी पुनः नया जीवन उत्पन्न कर देती है| यही पृथ्वी का चक्र है| अतः अध्यात्म इसके लिए नहीं है कि, मरने के बाद क्या होगा बल्कि, आध्यात्म तो अपने मन को दुख से बाहर रखने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है जिसे, वर्तमान में ही अपनाना होगा तभी, मानव वास्तविक आनंद का अनुभव कर सकेंगे| नास्तिक बने रहना, किसी गौरव की बात नहीं बल्कि, एक मूर्खता है क्योंकि, जिसे आप नहीं जानते, उसे जानने का प्रयास किये बिना, आँख बंद कर लेना, बुद्धिमत्ता नहीं| निश्चित ही आज, अधिकतर जनसंख्या अंधविश्वास की समर्थक है| वह अंधों की भांति परंपरा निभाने को ही आस्तिकता समझते हैं किंतु, जो लोग विज्ञान को सर्वश्रेष्ठ बताने का प्रयास करते हैं वह भी, अपने जीवन को समझ नहीं पाते| अतः आज ईश्वर केवल मानवीय कल्पना बन कर रह गया है| जिसे मानने और न जानने वाले नास्तिक ही कहे जाएंगे| हालाँकि, कुछ अपवाद भी होंगे जिन्हें, कण कण में ईश्वर दिखाई देता है वही, आस्तिकता के पथप्रदर्शक है|
नास्तिक होने के क्या लाभ हैं?
किसी भी मनुष्य के लिए, ईश्वर को नकारना दुविधाग्रस्त होता है किंतु, नास्तिक बनने से संसार के लोग, ईश्वर के नाम पर ठगे नहीं जा सकते| नास्तिक मनुष्य, झूठे भगवान से बचा रहता है किंतु, यदि वह सांसारिक विषय वस्तुओं को श्रेष्टता का स्थान देगा तो, उसका जीवन दुखदायी होगा अतः जब तक, किसी ज्ञानी से ईश्वर के बारे में तर्कसंगत वार्तालाप न हो और तार्किक उत्तर न मिल जाए तब तक, ईश्वर को नकारना ही उत्तम होगा क्योंकि, यदि बिना समझें ईश्वर पर विश्वास किया गया तो, निश्चित ही धार्मिक आडंबर, भ्रम जाल में फँसा लेगा परिणामस्वरूप जीवन, मिथ्यात्व से ग्रसित हो जाएगा फिर, चाहे मंदिर जाओ या तीर्थ, सत्य प्राप्त नहीं होगा| नास्तिक व्यक्ति ही सच्चा आस्तिक बन सकता है क्योंकि, जो मान्यताओं और परंपराओं को अपना ईश्वर मानते हैं, उन्हें सत्य से अवगत कराना असंभव है| मनुष्य का मन, विचारों के बंधन में होता है और विचार हमें, हमारी पहचान से प्राप्त होते हैं जैसे- कोई लड़का, छात्र है तो, उसे मन से भी विद्यार्थी की भांति ही जीना होगा और शिक्षा को प्राथमिक कर्म समझना होगा| यदि इसके विपरीत कार्य किये गये तो, जीवन दुखदायी होगा| यही जीवन का ज्ञान है| अपने कर्म में ही ईश्वर होना चाहिए| उसे ही आस्तिकता कहा जाएगा| केवल कुछ पलों की भक्ति कर लेने से, ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती| पूरा जीवन ध्यान में होना ही सच्ची श्रद्धा है|
नास्तिक से आस्तिक कैसे बने?
सांसारिक आस्तिकता भी नास्तिकता के ही समतुल्य है अर्थात मन कल्पित ईश्वर की पूजा करना भी, नास्तिक होने का सूचक होता है| निश्चित ही ईश्वर को देखा नहीं जा सकता और न ही, उन्हें पाया जा सकता क्योंकि, मनुष्य का दैहिक भाव ही, ईश्वर प्रेम का बाधक है| अतः जब तक संसार में ईश्वर को ढूंढा जाएगा तो, वह नहीं मिलेंगे| किंतु हाँ, उनकी माया अवश्य आपका जीवन प्रभावित करेगी| ईश्वर के प्रभाव से कोई नहीं बच सकता, भले आप उन्हें माने या न माने किंतु, ईश्वर संपूर्णता का भाव है| जिसकी प्राप्ति के लिए, मनुष्य का मन विचलित रहता है इसलिए, नास्तिक व्यक्ति भी ईश्वर की महिमा के बिना, दुखों से मुक्त नहीं हो सकता हालाँकि, स्वघोषित नास्तिक मनुष्य ईमानदार होता है| वह सामान्य मनुष्यों की भांति, बिना जाने सर नहीं झुकाता जिससे, कभी कभी नास्तिक अति अहंकारी भी बन जाता है और स्वयं को ही ईश्वर से ऊपर रखने की भूल कर बैठता है जो, उसके पतन का कारण बनता है, जिसका उदाहरण, हिरण्यकश्यप और नरसिंह अवतार की कथा में मिलता है| नास्तिक को आस्तिक बनना ही होगा है किंतु, कैसे? जब यहाँ ईश्वर है ही नहीं तो, भला उसे प्राप्त कैसे किया जा सकेगा तो, आपको बता दें कि, ईश्वर आंतरिक विषय है न कि, बाहरी प्रदर्शन| संसार में उपस्थित भौतिक अणुओं के अतिरिक्त, जो भी रिक्त है उसे ईश्वर कहा जाता है| यह बात सुनने में अतार्किक लग रही होगी किंतु, यही परम सत्य है| विज्ञान भले ही, उपस्थित अणु परमाणु का अवलोकन कर सके किंतु, ब्रम्हाण्ड की रिक्तता तक पहुँचना, विज्ञान के वश में नहीं| ब्रह्माण्ड की सीमा क्या है? यह कोई नहीं जानता और न ही, उसका पता लगाया जा सकता क्योंकि, मनुष्य की आंखें केवल उसे ही देख सकती हैं जो है किंतु, जो उपस्थित नहीं है, उसे देख पाना विज्ञान के वश भी नहीं| ईश्वर के रहस्य का वेदों में अद्भुत वर्णन मिलता है जहाँ, सृष्टि की पूजा से लेकर, मिथ्या घोषित करने तक के वृत्तांत मिलते हैं| शरीर के लिए भले ही यह संसार सत्य हो किंतु, मन के लिए निश्चित ही यह मिथ्या है| अतः इसे सत्य समझना अज्ञानता ही कही जाएगी|
मनुष्य जो भी देखता है उसे, अपनी बुद्धिमत्ता के अनुसार ही, अवलोकित कर सकता है जैसे, एक फूल को वैज्ञानिक देखेगा तो, उसके आंतरिक गुणों का वर्णन करेगा किंतु, यदि उसी फूल को कवि के द्वारा वर्णित किया गया तो, दोनों के विचार भिन्न होंगे| ये संसार प्रत्येक क्षण परिवर्तनीय है| आप जो देख रहे हैं, कल वह बदल जाएगा किंतु, इस बदलाव से आपका मन दुखी आवश्यक होगा| इसके लिए कहा भी गया है जो, आया है वो जाएगा| यहाँ, किसी से जुड़कर मुक्ति नहीं मिल सकती और न ही जीवन आनंददायी हो सकता हाँ, किंतु भयभीत चित्त अवश्य प्राप्त होगा जो, मन के विचारों को विस्मित कर देगा| ईश्वर भक्ति ही, वह नाव है जो, मनुष्य को उसके दुखों के सागर से किनारे पर लाएगी लेकिन, आस्तिकता इस लेख में लिखी गई बातों को मान लेने में नहीं है बल्कि, वेदों और उपनिषदों के स्वाध्याय से, ईश्वर को समझें जाना अनिवार्य है| यह एक ऐसा रहस्य है जो, किसी भी मनुष्य का जीवन परिवर्तित कर सकता है| संसार के परिवर्तन से, मन को सुरक्षित रखने का मार्ग, केवल आध्यात्मिक स्थिरता ही है| एक आध्यात्मिक व्यक्ति द्वारा अर्जित किया हुआ धन, आनंददायक होता है लेकिन, सांसारिक मार्ग से अर्जित की हुई संपत्ति, सुख दुख के चक्र में फँसा देती है| अतः ईश्वर को जानकार ही, संसार में प्रवेश करना चाहिए| अन्यथा ये दुनिया, प्रतिक्षण भ्रमित करेगी| एक आस्तिक मनुष्य का जीवन संघर्ष से भरा, आनंद से आच्छादित, मन को शांति देने वाला, निष्काम कर्म से विभूषित तथा मानवता के लिए समर्पित होता है|