भक्ति (bhakti explained)

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भक्ति (bhakti explained in hindi):

भक्ति को लेकर हमारे मन में बहुत सी धारणाएँ बनी हुई है| आपने अनुभव किया होगा कि भक्ति में डूबे हुए लोगों के जीवन में भी, दुखों का प्रभाव होता है फिर, भक्ति करने से क्या लाभ? आपको बतादें, वास्तविक भक्ति एक ऐसा चमत्कार है जो, मनुष्य के सभी दुखों को हर सकता है लेकिन, इसके लिए भक्ति के मार्ग की गहराई समझनी होगी| भक्ति अर्थात समर्पण एक ऐसा योग है जो, सभी तरह के आकर्षणों को समाप्त कर मन स्थिर कर देता है| भक्ति करने की कई विधियाँ बतायी गई हैं| मानवीय इतिहास में भक्ति का सर्वाधिक प्रचलन रहा है लेकिन, बदलते समय के साथ मानव समाज, भक्ति के महत्व को भूल गया है और जो लोग आज अपने आप को भक्त समझ रहे हैं वह, अज्ञानतावश अंधविश्वासी विषय वस्तुओं में फँसे हुए हैं| चूँकि, भक्ति ही एकमात्र रास्ता है जहाँ, मनुष्य के दुख समाप्त होते हैं लेकिन, आज लोगों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है| लोग भक्ति के नाम पर केवल परंपराओं को निभाने पर ही केंद्रित है| जिसे, करने से मनुष्य के दुख तो नहीं कटते हाँ, उलझने अवश्य बढ़ जाती हैं| भक्ति के सही महत्व को समझने के लिए, हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|

  1. भक्ति क्या है?
  2. भक्ति कैसे करें?
  3. क्या भक्ति से कर्म कटते है?
  4. भक्ति का उद्देश्य क्या है?
  5. किसकी भक्ति करनी चाहिए?
वास्तविक आनंद अनुभव: real pleasure experience?
Image by Dean Moriarty from Pixabay

भक्ति किसी और के दिखावे के लिए नहीं की जातीं बल्कि, अपने चित्त की शांति के लिए की जाती है क्योंकि, शांतचित्त ही जीवन के वास्तविक आनंद को अनुभव कर सकता है| भक्ति का अर्थ बिना शर्त समर्पण होता है जहाँ, मनोकामनाओं की कोई जगह नहीं होती किंतु, आज भक्ति केवल कुछ प्राप्त करने के लिए ही की जा रही है जिससे, मनुष्य के दुख बढ़ते ही जा रहे हैं| कभी आपने सोचा कि, भक्ति करने से भी आपके दुख क्यों नहीं कट रहे? कहीं कुछ कमी तो अवश्य है| भक्त के जीवन में संघर्ष तो होता है लेकिन, दुख उसके उत्साह के सामने दब जाता है फिर, आपका हाल ऐसा क्यों है? निम्नलिखित बिन्दुओं से इसे समझने का प्रयत्न करते हैं|

भक्ति क्या है?

भक्ति क्या हैः what is devotion?
Image by Dean Moriarty from Pixabay

भक्ति अहम् की मृत्यु का दूसरा नाम है| कुछ लोग भक्ति को पूजापाठ से जोड़कर देखते हैं लेकिन, यह तो भक्ति का केवल बाह्य स्वरूप है| वास्तविक भक्ति तो सत्य के प्रति, संपूर्ण समर्पण है सत्य अर्थात् अनंत जिसे सारी ज़िंदगी, प्राप्त न किया जा सके| उसी की भक्ति किये जाने योग्य हैं| किसी को सत्य मूर्ति में दिखता है तो, किसी को मंत्रों में, और तो और, कुछ लोग तो स्वयं के अंदर, सत्य देखने का प्रयत्न करते हैं| विधि कोई भी हो, लक्ष्य सभी का मुक्ति ही होता है|

भक्ति कैसे करें?

भक्ति कैसे करें: How to do devotion?
Image by Mohd Rahish from Pixabay

भक्ति करने के पहले अपने अहंकार से मुक्त होना पड़ता है| सारा जगत माया है| यहाँ कुछ भी ऐसा प्राप्त नहीं हो सकता जहाँ, वास्तविक आनंद छुपा हो हाँ, लेकिन अहम् का आत्मा से मिलन, जीवन रूपांतरित अवश्य कर सकता है| प्रकृति में उपलब्ध विषय वस्तु क्षणिक सुख ही दे सकते हैं और बाद में वही, सुख दुखों में परिवर्तित हो जाते हैं, इसी चक्र से बाहर आने के लिए, भक्ति मार्ग अपनाना मनुष्य की विवशता है| भक्ति असत्य को नकार कर प्रारंभ होती है| असत्य अर्थात वह जीवन जिससे आप लिप्त हैं और जहाँ, आप अपना अस्तित्व खोज रहे हैं| भक्ति का आरम्भ तभी हो सकता है जब, व्यक्ति को अनुभव हो जाए कि, वह अपने सारे प्रयत्न करके देख चुका है किंतु, उसे वह ख़ुशी नहीं मिल रही, जिसकी वह तलाश कर रहा है और तब, जन्म होता है एक ऐसी सार्थकता का जिस ओर चलते हुए, मनुष्य अपना सब कुछ समर्पित कर दे और बचे हुए प्रसाद को ग्रहण करके, अपने जीवन की नई दिशा निर्धारित करें और दिए की बाती की भाँति जलकर, सबको प्रकाश प्रदान करे परिणामस्वरूप स्वयं नष्ट हो जाए, यहाँ स्वयं के नष्ट होने का आशय, अहंकार के विघटन से है न कि, शारीरिक निष्क्रियता से|

क्या भक्ति से कर्म कटते है?

क्या भक्ति से कर्म कटते हैः Can devotion reduce karma?
Image by Jeff Jacobs from Pixabay

भक्ति ही मनुष्य का अहंकार मिटा सकती है और अहंकार ही, कर्म को भोगने वाला होता है अर्थात मनुष्य का जन्म ही दुख है और उन्हीं दुखों से मुक्त होने के लिए, वह सांसारिक विषय वस्तुओं के पीछे भागता रहता है| किंतु जो व्यक्ति, अपने शरीर की मृत्यु से पहले समझ जाता है कि, यहाँ कुछ भी नहीं जो, उसे तृप्त कर सके वही, वास्तविक भक्ति में प्रवेश कर सकता है, इसके विपरीत जो, अभी भी संसार के प्रति मनोकामनाओं का भाव रखता है वह, भक्ति को प्राप्त नहीं हो सकता और ऐसे व्यक्ति के कर्म नहीं कट सकते| उदाहरण से समझें तो, यदि आप अपने आपको पिता मानकर बैठे हैं तो, अपने बेटे की परिस्थितियों से, आपके जीवन में भी सुख दुख आते रहेंगे, उत्तम होगा कि, आप अपना अहंकार मिटा दें और अपने आपको केवल एक मानव शरीर समझें और फिर, अपने कर्म करें तभी, आप अपने बेटे के सुख दुख से प्रभावित नहीं होंगे और एक पिता को मिलने वाले दुखों से, आप बच जाएंगे| उसी प्रकार पति या पत्नी अपने आपको केवल, एक मनुष्य मानकर कर्म करें तो, उनके जीवन में अपने जीवनसाथी के दुखों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन, यह भाव केवल भक्तिमार्ग से ही जगाया जा सकता है|

भक्ति का उद्देश्य क्या है?

भक्ति का उद्देश्य क्या हैः What is the purpose of devotion?
Image by Mohamed Hassan from Pixabay

भक्ति का एकमात्र उद्देश्य, दुख मिटाना है| संसार में किसी भी विषय से, आसक्ति ही मनुष्य का दुख है| हम जो चाहते हैं, वह मिल जाए तो, हमारा मोह और लालच बढ़ जाता है और यदि न मिले तो, क्रोध या दुख होता है| सभी स्थितियां, मनुष्य के लिए कष्टदायक है इसीलिए, भक्ति मार्ग अपनाने वाले मनुष्य, सुख दुःख के चक्र से मुक्त हो जाते हैं और अपने जीवन के वास्तविक आनंद को अनुभव कर पाते हैं| भक्ति करना और भक्ति में होना, दोनों ही भिन्न स्थितियाँ हैं| जो मनुष्य भक्ति का स्वाद चख लेता है वह, स्वयं ही इसका गुणगान प्रारंभ कर देता है अर्थात एक जलता दीपक ही, दूसरे को जला सकता है| मीरा की कृष्णभक्ति, एक अद्भुत उदाहरण है जहाँ, भक्ति के मर्म का अनुभव किया जा सकता है|

किसकी भक्ति करनी चाहिए?

किसकी भक्ति करनी चाहिएः Whom should we worship?
Image by Dulce Villada from Pixabay

भक्ति करने के लिए आप किसी भी माध्यम का चुनाव कर सकते हैं किंतु, सभी का आधार सत्य होना चाहिए अर्थात् इसका संबंध आपकी कल्पनाओं से न होकर, वास्तविकता से होना चाहिए| किसी को सत्य मूर्ति में दिखता है तो, किसी को मंदिर में, किसी को गिरजाघर में तो, किसी को गुरूद्वारे में और तो और, कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें, अपने कार्य में ही सत्य के दर्शन होने लगते हैं| उनके लिए, उनका काम ही भक्ति बन जाता है| आपने देखा होगा कि, कुछ लोग स्वयं को नास्तिक कहते हैं और वह किसी के सामने सर नहीं झुकाते लेकिन, फिर भी उन्हें जीवन के सारे आनंद प्राप्त होते हैं| वस्तुतः अनजाने में ही वह, अपने काम को ही अपना इष्ट मानकर समर्पित हो जाते हैं और उनका जीवन आनंद से भर जाता है| सारा संसार माया है और यहाँ वही व्यक्ति आनंदित हो सकता है जिसे, सत्य का सहारा प्राप्त हो चुका हो, इसके अतिरिक्त जो लोग बाहरी मनोरंजन में ख़ुशी अनुभव करते हैं, उनकी खुशियाँ कुछ पलों की अतिथि होती हैं जो, दुख की एक लहर से बिखर जाती हैं|

बिना संपूर्ण समर्पण किए, भक्तिभाव में प्रवेश नहीं किया जा सकता है अर्थात भक्ति के लिए, एक ऐसे विषय का चयन करना आवश्यक है जहाँ, आप पूरी तरह डूब सकें किंतु, सच्चाई तक पहुँचना इतना आसान नहीं क्योंकि, सच एक हीरे की भांति है जिसके ऊपर मनुष्य के अहंकार की धूल जमी हुई है| जिसके हटते ही, वह बाहर आ जाएगा लेकिन, इसके लिए नकार की प्रक्रिया अपनानी होगी अर्थात आपके जीवन में जो कुछ भी मिथ्या है उसे, अपने मन से बाहर करना होगा और जब आप एक एक करके, अपने मोह बंधनों को काटते जाएंगे तो, सत्य प्रकाशित हो उठेगा और ऐसे व्यक्ति ही, भक्ति का रसपान कर सकेंगे|

 

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