अवतार (avatar explained in hindi):
हमारे बीच अवतारों का प्रचलन आदिकाल से रहा है| सहस्रों वर्ष से कितने देव पुरुष अवतरित हुए, जिनकी कई कथाएं प्रचलित है किंतु, आज भी अवतारों को समझ पाना एक पहेली है जिन्हें, कुछ लोग विशेष चमत्कारी शक्तियों का धनी समझते हैं और कुछ लोग, अंधविश्वास कहकर अपने अहंकार को बढ़ावा देते रहते हैं| अवतारों के रहस्य को समझने के लिए, हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|
- अवतार क्या है?
- अवतार और जन्म में अंतर क्या है?
- अवतार में कौन सी शक्ति होती है?
- क्या मनुष्य अवतार बन सकते हैं?
- मैं अवतार कैसे बन सकता हूं?
अवतार, साधारण मनुष्यों के बीच एक, असाधारण सोच का महापुरुष होता है जो, अपनी प्रबल इच्छा शक्ति से कठिन से कठिन कार्य कर दिखाता है| सामान्य मनुष्य अवतारों को श्रेष्टता के भाव से पूजकर, स्वयं की तुच्छता उजागर करते हैं जहाँ, वह अपनी कमियों पर पर्दा डालने के लिए, अवतारों को चमत्कारी कहकर ऊपर बैठा देते हैं ताकि, उनकी जीवनशैली में खोट न निकाली जा सके| यदि मनुष्य अवतार की सत्यता को समझ सके तो, उसकी ज़िंदगी में नाटकीय ढंग से परिवर्तन होंगे, निम्नलिखित बिन्दुओं से यह बात स्पष्ट की जा सकेगी|
अवतार, साधारण मनुष्यों के बीच एक, असाधारण सोच का महापुरुष होता है जो, अपनी प्रबल इच्छा शक्ति से कठिन से कठिन कार्य कर दिखाता है| सामान्य मनुष्य अवतारों को श्रेष्टता के भाव से पूजकर, स्वयं की तुच्छता उजागर करते हैं जहाँ, वह अपनी कमियों पर पर्दा डालने के लिए, अवतारों को चमत्कारी कहकर ऊपर बैठा देते हैं ताकि, उनकी जीवनशैली में खोट न निकाली जा सके| यदि मनुष्य अवतार की सत्यता को समझ सके तो, उसकी ज़िंदगी में नाटकीय ढंग से परिवर्तन होंगे, निम्नलिखित बिन्दुओं से यह बात स्पष्ट की जा सकेगी|
अवतार क्या है?
अवतार मनुष्य की वह चेतना है जो, आत्मयोग से सत्य के मार्ग पर बढ़ने लगती है| संसार में उपलब्ध प्रत्येक जीव जन्तु, अपने शारीरिक तल पर ही जीवन जीते हैं| केवल एकमात्र मनुष्य ही, ऐसा प्राणी है जिसके अंदर, चेतना का वास होता है लेकिन, वह जन्म लेते ही सांसारिक मोहमाया में भ्रमित हो जाता है और अपने जीवन को सत्य समझ लेता है जिससे, वह अपने देहभाव में फँस जाता है अर्थात वह केवल अपने स्वार्थ से संबंधित, विषय वस्तुओं की पूर्ति में जुटे रहने वाला मनुष्य बनकर रह जाता है और इसी कारण, विश्व में शांति का हरण भी होता है किंतु, तभी हमारे बीच से कोई ऐसा व्यक्ति उठ खड़ा होता है जो, अपने शारीरिक मोह को त्याग चुका है जिसका, प्रत्येक कार्य परमार्थ के लिए घटित होता है जिसकी, कोई निजी अभिलाषा नहीं जो, अपने सभी बंधनों से मुक्त है, वही अवतार कहलाता है| अवतारों को साधारण मनुष्य नहीं देख सकते क्योंकि, आम लोग किसी भी काम को तभी करते हैं जब, उनके स्वार्थ पूरे हो रहे हों लेकिन, अवतार बिना किसी मनोकामना के, अपना त्याग करता है| वह एक दीये की भाँति, स्वयं जलकर दूसरों को प्रकशित करता है|
अवतार और जन्म में अंतर क्या है?
जन्म सभी मनुष्यों का होता है किंतु, अवतार अहंकार की मृत्यु के पश्चात ही बना जा सकता है| मनुष्य की प्रारंभिक शिक्षा उसे भौतिक जगत के विषय से अवगत कराती है लेकिन, आध्यात्मिक शिक्षा उसे आत्मावलोकन करना सिखाती है और बिना आध्यात्मिक ज्ञान के कोई अवतार नहीं बन सकता| कुछ ऐसे बुद्धिजीवी हुए जिन्होंने, संगीत के माध्यम से ज्ञान का प्रसार किया उन्हें भी, अवतार कहा गया| अवतार प्रत्येक वह व्यक्ति है जो, संसार में फैले अंधकार को मिटाने के लिए, अपना जीवन समर्पित करता है| यहाँ उन लोगों को अवतार नहीं कहा जा सकता जो, किसी स्वार्थ से जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं| निःस्वार्थ भाव से कर्म करने वाले, योगी पुरुष को ही अवतार की श्रेणी में रखा जाएगा|
अवतार में कौन सी शक्ति होती है?
अवतार में कौन सी शक्ति होती हैः दृढ़ संकल्प, निडरता, सत्यता ही अवतार के आभूषण है| वैसे तो अवतार निर्गुनि होता है किन्तु, पानी में डूबने वाले को बचने के लिए, पानी में उतरना ही पड़ता है अतः अवतार भी सांसारिक गुणो का निर्वहन करते प्रतीत होते हैं| अवतार कोई चमत्कारी व्यक्ति नहीं होता बल्कि, वह भी सामान्य मनुष्यों की भांति दुखी होता है, उसे भी चोट लगती है और दर्द होता है| उसे भी मानवीय वृत्तियाँ प्रभावित करती हैं| वह भी क्रोधित होता है| उसे भी भ्रम होता है किंतु, वह पूरे जाग्रति से इनके प्रवाह को झेल लेता है और सत्य के मार्ग से नहीं हटता उसका यही गुण, उसे मनुष्य की तुलना में अवतार बनाता है|
क्या मनुष्य अवतार बन सकते हैं?
आज तक जितने अवतार हुए, वह सभी मनुष्य ही थे| अवतार का मतलब ही होता है श्रेष्ठ मनुष्य अर्थात वह व्यक्ति जिसने काम, क्रोध, मोह, लोभ इत्यादि पर विजय प्राप्त कर ली हो और अपने जीवन को एक सार्थक कर्म में झोंक दिया हो| यदि कोई मनुष्य अपनी शारीरिक वृत्तियों के ऊपर, उठकर सांसारिक परमार्थ में संलग्न होता है तो, वह भी अवतार कहलाने योग्य होगा लेकिन, अवतार की पहचान उसके जाने के बाद ही हो सकती है क्योंकि, जीतेजी बहुत से अहंकारी मनुष्य, अवतारों को पहचान नहीं पाते और अज्ञानतावश उनका विरोध करते हैं किंतु, अगली पीढ़ी आते ही सत्य निखरकर सामने आ जाता है और अतीत के महापुरुष, दिखाई देने लगते हैं जिसके, मार्गदर्शन पर बहुत से अनुयायी चलने लगते हैं| इतिहास में अवतारों की हत्या तक की गई थी लेकिन, उन्हें मिटाया नहीं जा सका| अवतार, किसी शरीर को नहीं कहा जाता बल्कि, मानवीय निष्कामता को अवतार की संज्ञा दी जाती है| मनुष्य के कई जन्म होते हैं| बचपन में वह पुत्र के रूप में, अपनी पहचान देखता है| धीरे धीरे वह दोस्त, पति, कर्मचारी, पिता और न जाने कितने रूप धारण करता है किंतु, परम ब्रह्म की कृपा से, किसी व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हो जाता है जिससे, उसकी चेतना जागृत हो जाती है परिणामस्वरूप उसके जीवन को एक नई दिशा मिलती है और मनुष्य अवतार बन जाता है|
मैं अवतार कैसे बन सकता हूँ?
जब तक आप का अहंकार अर्थात “मैं” जीवित है, आप अवतार नहीं बन सकते| एक सच्चा अवतार वही होगा जो, स्वयं को अवतार न माने| अवतार बनने से पहले, अपने स्वार्थ को त्यागकर, परमार्थ का मार्ग अपनाना पड़ता है जिससे, आपके जीवन में एक अद्भुत संघर्ष का जन्म होता है और उसी संघर्ष के योग से, आप अपनी शारीरिक मनोवृत्तियों से बाहर आ जाते हैं| धीरे धीरे आप अपने आपको शरीर की भांति नहीं बल्कि, विचारधारा की भांति देखना प्रारंभ कर देते हैं जिसे, अवतार बनने का संकेत समझा जाता है लेकिन, अवतार का जीवन सुखों से आच्छादित नहीं होता बल्कि, वीरता से सुसज्जित होता है| अतः स्पष्ट है कि, अवतार का जीवन कष्टों से भरा होगा किंतु, इसके बनिस्बत अवतार आम मनुष्यों से कई गुना अधिक आनंद अनुभव करते हैं|
आज के बढ़ते हुए अत्याचारों से पूरी सृष्टि प्रभावित है| जब एक मनुष्य इन्हीं अत्याचारों का विरोध करने बढ़ता है या समाज के अंधकार को मिटाने का प्रयास करता है तो, अवतारों की उत्पत्ति का संयोग बनता है लेकिन, समस्या यह है कि, आज का मनुष्य अपने स्वार्थ में इतना अंधा हो चुका है कि, उसे याद ही नहीं कि, वह यहाँ से कुछ लेकर नहीं जा सकता| उसे कुछ समय के लिए, इस पृथ्वी पर मानव शरीर मिला है किंतु, वह उसका उपयोग धन संचय के लिए, करने लगता है जिससे, उसका जीवन दुखों के भँवर में फंसकर रह जाता है| एक ज्ञानी कृष्ण को चुनता है किन्तु, अहंकारी कृष्ण की माया का ही चुनाव करेगा| एक मनुष्य जन्म से पशु होता है| उसकी शिक्षा ही उसे इंसान बनाती है किन्तु, आत्मज्ञान ही अवतरित बना सकता है|