धोखा (dhokha explained in hindi):
धोखा जिसे छल, कपट या विश्वासघात भी कहा जाता है| किसी से धोखा प्राप्त होना या किसी को धोखा देना, दोनों ही स्थितियां मन की अस्थिरता से जुड़ी हैं| मानव अपने जीवन में कितनी भी सतर्कता से चले किंतु, उसके साथ धोखा अवश्य होता है| क्या धोखे के जिस रूप को हम जानते हैं, केवल उतना ही ज्ञान पर्याप्त है या इससे परे, कुछ और ही रहस्य है, जिसके अभाव में मनुष्य निरंतर धोखों का शिकार होता रहता है? वस्तुतः किसी भी व्यक्ति की नियत विपरीत समय आने पर ही प्रगट होती है| आपने अनुभव किया होगा, जब तक सामने वाले व्यक्ति के स्वार्थ सिद्ध हो रहे हैं, वह मधुर व्यवहार करेगा किंतु, जैसे ही उसके स्वार्थों पर चोट लगे तो, निश्चित ही वह विरोध व्यक्त करेगा| तो फिर, पहले से किसी व्यक्ति के बारे में कैसे बताया जा सकता है कि, वह आगे चलकर विश्वासघात करेगा या नहीं और बिना किसी से मित्रता रखें, जीवन जीना भी तो कठिन है? वस्तुतः यह आत्मज्ञान का विषय है जिसे, समझने के लिए कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|
- धोखा क्या होता है?
- धोखा क्यों मिलता है?
- सबसे बड़ा धोखा कौन देता है?
- धोखा देने का फल क्या है?
- धोखेबाज आदमी की पहचान क्या है?
धोखा केवल उसे ही दिया जा सकता है, जिसकी सांसारिक विषयों से आसक्ति है| मनुष्य जब भी किसी, भौतिक तत्व से जुड़ता है, उसकी कुछ अभिलाषाएँ होती है जो, व्यक्तिगत कल्पना से प्रकट होती हैं| जिनकी पूर्ति के लिए, वह निरंतर प्रयासरत होता है किंतु, जब उसे मन वांछित फल प्राप्त नहीं होता तो, वह निराश हो जाता है| अंततः मन ठगा हुआ, अनुभव करने लगता है जिसे, धोखे के रूप में वर्णित किया जा सकता है| निम्न बिन्दुओं में इसका स्पष्टीकरण उपलब्ध है|
धोखा क्या होता है?
मानवीय अपेक्षाओं का विघटन ही धोखा कहलाता है अर्थात सांसारिक विषय वस्तुओं से, आशाओं की पूर्ति न होना ही, धोखे का प्रतिबिंब है| धोखा एक सतत प्रक्रिया है, जिसका प्रदर्शन पीड़ादायक होता है| जैसे, दो प्रेमियों में कोई एक, अपने प्रेमी के अतिरिक्त किसी और से गुप्त संपर्क रखता है तो, निश्चित ही वह, संबंधित व्यक्ति के मन को प्रभावित करेगा और इसे ही धोखा कहा जाएगा| विश्वासघात मनुष्य के स्वार्थ की पहचान है जहाँ, दोनों ही पक्ष अपने स्वार्थ के कारण ही, ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करते हैं जो, बेईमान व्यक्तित्व को जन्म देती हैं|
धोखा क्यों मिलता है?
धोखा मनुष्य के अहंकार की पहचान है| जब भी मनुष्य के स्वार्थ पर आघात पहुँचता है, उसे धोखे का अनुभव होता है| सांसारिक लक्षणों को अपना व्यक्तित्व समझना ही, धोखा मिलने वाली अवस्था प्रदान करता है| यदि मनुष्य स्वयं को किसी से जोड़ने के बजाय, सत्य से संबंधित कार्यों से जुड़े तो, उसे धोखा नहीं दिया जा सकता चूँकि, धोखा तभी अपना प्रभाव छोड़ता है जब, मनुष्य अपने जीवन की वास्तविकता से परिचित नहीं होता अपितु, सांसारिक पहचान ही, उसके जीवन की वास्तविकता बन जाती है और उसका सारा जीवन, उसी के इर्द गिर्द मंडराने लगता है| मनुष्य को धोखा तभी दिया जा सकता है जब, वह किसी पर आधारित हो क्योंकि, स्वतंत्र व्यक्ति अपने ज्ञान के अलावा, किसी और पर निर्भर नहीं होता जिससे, धोखे मिलने के अधिकतर मार्ग बंद हो जाते हैं किंतु, फिर भी मनुष्य सांसारिक विषयों से पूर्णतः विलग नहीं हो सकता जिससे, कहीं न कहीं श्रेष्ठ मनुष्य के जीवन में भी, धोखे की आशंका बनी रहती है किन्तु, उससे उसका मनोबल प्रभावित नहीं होता|
सबसे बड़ा धोखा कौन देता है?
सबसे बड़ा धोखा स्वयं के द्वारा ही दिया जाता है जहाँ, मनुष्य अज्ञानता में अपने आप को, वह समझ कर घूम रहा होता है जो, वह नहीं है और उसका यही भ्रम, उसे निरंतर कपटी मनुष्यों के फेर में फँसाता रहता है| जन्म से मिली हुई पहचान, धारण करना ही धोखे का प्रारम्भ है जहाँ, हम सामाजिक सम्बन्धों को सत्य समझ बैठते हैं इसलिए, अपनी आत्मा की पवित्रता को, प्राथमिकता देना चाहिए| सांसारिक भौतिकता की परछाई बनने से क्या लाभ? जबकि, यहाँ कोई भी तत्व स्थिर नहीं| तो फिर, उससे जुड़ी हुई पहचान कैसे स्थिरता प्रदान करेगी? उदाहरण के तौर पर, यदि आप किसी नौकरी से अपने आप को जोड़कर, स्वयं को वही समझ रहे हैं तो, यह आपका भ्रम है जो, आपके सेवानिवृत्त होते ही टूट जाएगा या किसी व्यक्ति के साथ होने को ही आप, अपना जीवन समझ रहे हैं तो, उसके बदलते ही आपकी दुनियाँ भी बदल जाएगी| अतः अपनी आत्मा से जुड़ना ही श्रेयस्कर मार्ग होगा|
धोखा देने का फल क्या है?
किसी को धोखा देने से, मनुष्य अपने अंदर की सत्यता खो बैठता है जिससे, उसका जीवन अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होता है| धोखा देना प्रारम्भ में भले ही, लाभकारी प्रतीत हो रहा हो किंतु, यह मन की विक्षिप्तता का जनक होता है| अपने स्वार्थ को सुरक्षित रखने के लिए, किसी और की भावनाओं का अनादर करना ही, सांसारिक मनुष्य की पहचान है| आज जो आपके साथ है, विपरीत समय आने पर निश्चित ही वह बदल जाएगा जिसे, आप छल का नाम दे सकते हैं हालाँकि, अधिकतर लोगों का जीवन, अन्धविश्वास पर आधारित होता है जो, संयोग से किसी ऐसे व्यक्ति से आसक्त होते हैं जिसकी, मनोकामना न्यूनतम हो| वही अपने स्वार्थों से अधिक, अपने से संबंधित व्यक्तियों की चिंता करेगा किंतु, आवश्यक नहीं कि, उस पर पूर्ण विश्वास किया जा सके|
धोखेबाज आदमी की पहचान क्या है?
धोखा देना किसी व्यक्ति का स्वभाव नहीं होता यह तो, परिस्थिति मात्र का परिणाम है| सांसारिक विषयों में डूबा हुआ व्यक्ति, अपने निजी जीवन से जुड़े हुए मनुष्यों को ही प्रेम कर पाता है और उसकी यही चुनावी प्रक्रिया, बेईमान मनुष्यों के बीच फँसा देती है और कोई भी व्यक्ति जो, अपने स्वार्थ को प्राथमिकता देता हो, वह समय आने पर धोखा अवश्य देगा| आपने लोगों को कहते सुना होगा, “भाई ये तो मेरा जीवन है और मैं, इसे अपने अनुसार ही जीता हूँ” ऐसे प्रत्येक व्यक्ति, विश्वास के पात्र नहीं होते क्योंकि, जो मनुष्य अपनी स्वार्थी सोच के आधार पर निर्णय लेता है वह, गलती कर बैठता है| मनुष्य का दृष्टिकोण उसके विचारों के आधार पर बनता है और विचार हमारे आस पास के लोगों के द्वारा ही प्राप्त होते हैं तो, यह कैसे कहा जा सकता है कि, जो ज्ञान हमने अपने अतीत से ग्रहण किया, वह सत्य की कसौटी पर खरा उतरेगा? सत्य का दामन पकड़ना कठिन अवश्य हैं किंतु, असंभव नहीं, केवल अपने स्वार्थों का त्याग कर, मूलभूत आवश्यकताओं के साथ, कर्म का चुनाव करने वाला मनुष्य ही, सत्य मार्गी कहलाता है और ऐसा ही मनुष्य, संगत योग्य है|
यदि, आप एक पत्थर हवा में उछले तो, क्या वह आसमान को लगेगा, नहीं न? अतः आघात उसे ही पहुँचता है जहाँ, कुछ होता है| यदि मनुष्य किसी व्यक्ति या वस्तु के अंदर, अपनी खुशी तलाश रहा है तो, यह उसका सबसे बड़ा भ्रम है क्योंकि, अपनी खुशी किसी और के अंदर देखना, उसी कहानी की याद दिलाता है जिसमें, एक राजा की जान तोते के अंदर थी और तोते के मरते ही, राजा भी जीवित नहीं रह सका इसलिए, अपने आनंद को, स्वयं के अंदर ही प्रकट करना चाहिए न कि, सांसारिक विषयों में लिप्त होकर, सुख की कामना करना| जैसा कि आप जानते हैं, मनुष्य का शरीर और उसका मन, विभिन्न तत्वों का प्यासा होता है जैसे, शरीर की भूख, पोषक आहार से मिटती है लेकिन, मन की प्यास, अच्छे विचारों से ही, नियंत्रित की जा सकती है लेकिन, सांसारिक मनुष्य, शरीर को पहले महत्व देते हैं जो, एक अर्थ में उचित भी है किंतु, इसका एक निश्चित समय होना चाहिए| शरीर को शरीर तक ही महत्व दिया जाना चाहिए| उसे अपना गुरु बना लेना, मूर्खतापूर्ण विचार होगा| इस जीवन में, एक अभिनेता की भांति नहीं बल्कि, निर्देशक की भूमिका में होना चाहिए अर्थात अपने शरीर को, एक अभिनेता समझते हुए, मन के पीछे से विवेकपूर्ण निर्देश देते हुए, जीवन जिया जा सकता है लेकिन, विवेकपूर्ण निर्देश देने के लिए, दर्शन का होना अनिवार्य है जिसे, दृष्टिकोण कहा जाता है| जब आप स्वयं ही संसार के बारे में नहीं जानते तो, भला कैसे अपने शरीर को निर्देशित कर सकेंगे? अतः संसार को पहचानने से पहले, अपने नेत्रों को उचित बिंदु पर स्थापित करना होगा तभी, दुनिया सही अर्थों में प्रकट होगी| अभी जो आप देख रहे हैं, वह आपके अतीत में दिया हुआ ज्ञान है| जिसका महत्व केवल, बाह्य तल पर है| आंतरिक सत्य सत्ता होना ही, मनुष्य के जीवन की श्रेष्ठ साधना है| जिसका पालन कपटी मनुष्य के प्रकोप से, सुरक्षित रखने के साथ साथ, स्वयं को भी दिशाहीन होने से बचाए रखता है|