समाज (samaj explained)

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समाज (samaj explained in hindi):

मानव संगठित समूह को, समाज के रूप में वर्गीकृत किया गया है जहाँ, भाषा और रंग की विभिन्नताओं के अनुरूप, समाज भी बँटे हुए हैं| विश्व में कई सामूहिक दल हैं जो, सामाजिक नियमों के अनुसार, जीवन व्यतीत करते हैं| समाज के अंतर्गत आने वाले मनुष्यों को, बंधनों में रहना आवश्यक है जैसे, एक समाज दूसरे समाज से बिना किसी समस्या के, वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं कर सकता| एक निश्चित आयु में विवाह करना अनिवार्य होता है इत्यादि| समाज कार्य विभाग हेतु भी निर्मित किये गये हालाँकि, जो देश समाज को नहीं मानते, वह इन मूल्यों को भी नहीं निभाते| सांसारिक मनुष्य का मन पशु प्रवृत्ति का होता है जो, अपने इन्द्रियों के अनुसार सक्रिय होता है इसलिए, सामाजिक नियंत्रण अति आवश्यक होता है| समाजों के द्वारा बनाए गए नियम, नैतिकता के मानक मूल्यों के अंतर्गत बनाए गए हैं जहाँ, मनुष्य को सांसारिक सुख भोगने हेतु, समय सीमा निर्धारित की गई है ताकि, मनुष्य को आरामदायक जीवन दिया जा सके लेकिन, जब वह समाज मन की मुक्ति का बाधक बनने लगें तो, उसे त्यागना ही उत्तम होता है| इस सृष्टि की कोई भी विषय वस्तु, मनुष्य के दुखों को कम करने तक ही महत्वपूर्ण होती है| उसके विपरीत यदि, दुख बढ़ने लगे तो, वह असत्य आधारित ही होगा जो, निश्चित त्याज्य है| समाज की उपयोगिता समझने के लिए, हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|

  1. समाज क्या है?
  2. समाज का निर्माण कैसे होता है?
  3. समाज की आवश्यकता एवं महत्व क्या है?
  4. समाज की अवधारणा क्या है?
  5. समाज को कैसे सुधारें?
सामाजिक गठन: social formation?
Image by Gerd Altmann from Pixabay

कोई भी मनुष्य सामाजिक शिक्षा के बिना, जानवरों की भांति बर्ताव करेगा जो, पूरी पृथ्वी के लिए, विनाशकारी हो सकता है इसलिए, सामाजिक गठन सभी देशों का प्राथमिक मुद्दा है| जानवरों के लिए, नियम आवश्यक नही होते क्योंकि, वह अपनी प्रकृति से बाहर नहीं जाते| जैसे- शेर मांस छोड़कर, घास नहीं खाएगा और घोड़ा घास छोड़कर, मांस नहीं खाएगा लेकिन, मनुष्य नीचता के निम्न स्तर तक जा चुका है| इतिहास में कई ऐसी घटनाएँ उपलब्ध हैं जहाँ, लोगों ने मानवता की सारी हदें पार कर दी हालाँकि, पहले सामाजिक बर्बरता भी सामान्य बात थी लेकिन, विज्ञान के युग ने सभी मनुष्यों को जोड़ दिया है| अतः अब यह कहना सही होगा कि, मनुष्य का समाज सोशल मीडिया है जिसके, ट्रैंड के अनुसार मानव विचारधारा संचालित होती है| समाज को कहाँ तक महत्व देना चाहिए और कहाँ तक नहीं, यह एक तार्किक विषय है जिसे, निम्न बिन्दुओं में समझाया गया है|

समाज क्या है?

समाज क्या हैः what is society?
Image by Gerd Altmann from Pixabay

समाज मानवीय बंधन है जिसका, निर्माण प्राचीन मान्यताओं के अनुसार होता है किंतु, यदि व्यक्तिगत तौर पर देखा जाए तो, सभी का अलग समाज होता है अर्थात जिसकी जैसी संगत, उसका वैसा समाज| यदि साधारण शब्दों में कहें तो, जिस प्रकार की परंपराओं और व्यक्तियों को आप अपने जीवन में महत्व देते हैं वही, आपका समाज बन जाते हैं| सार्वजनिक दृष्टि से समाज को, जातिगत या सांप्रदायिक आधार पर विभाजित किया जाता है|

समाज निर्माण कैसे होता है?

समाज निर्माण कैसे होता हैः How society is formed?
Image by Dedy Eka Timbul Prayoga from Pixabay

मानवीय विचार समाज का निर्माण करते हैं| कालांतर के साथ, मनुष्य की सोच भी परिवर्तित होती है और उसी आधार पर, वह आधुनिकता अपनाकर, अपने समाज की रचना करता है| आदिकाल से ही, मानव समूह बनाकर रहने को प्राथमिकता देता आ रहा है जिसे, कुछ व्यक्तियों तक परिवार तथा परिवारों के समूह को, समाज कहा जाता है| एक देश में कई समाज हो सकते हैं| समाज मनुष्य को नहीं बनाता बल्कि, सांसारिक मनुष्य समाज को बनाते हैं| अतः समाज की सभी परिस्थितियों के लिए, वर्तमान मानव प्रजाति ही उत्तरदायी है हालाँकि, समाज के अंतर्गत रहने वाले लोगों के परस्पर राजनैतिक, आर्थिक और भावनात्मक स्वार्थ होते हैं जो, उन्हें समाज से जुड़े रहने पर विवश करते हैं| आपने देखा होगा जो, व्यक्ति अधिक धन अर्जित कर लेता है या कोई बड़ी सफलता अर्जित करता है तो, समाजिक लोगों के बीच श्रेष्ठ रहने का दिखावा करता है| हाँ, कुछ अपवाद आवश्यक होंगे जो, आर्थिक सक्षमता के बनिस्बत, अपने पारिवारिक स्वार्थ के कारण, समाज में बने रहते हैं थोड़ा सोचिए, यदि कोई व्यक्ति विवाह के लिए आमंत्रित करें और भोजन के लिए न पूछे तो, अहंकार को कितनी चोट लगेगी? वस्तुतः मनुष्य का स्वार्थ और लाचारी ही, उसे सामाजिक बंधनों में बाँधे रखती है जिससे, समाज की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी तो होती है लेकिन, सामाजिक विकास गतिहीन हो जाता है|

समाज की आवश्यकता एवं महत्व क्या है?

समाज की आवश्यकता एवं महत्व क्या हैः What is the need and importance of society?
Image by pixabay.com

बिना ज्ञान के मनुष्य पाश्विक होता है| अतः लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाना अनिवार्य है जो, समाज का प्रथम कर्तव्य भी है| समाज से कई रिश्तेदार प्राप्त होते हैं जो, वास्तव में सामाजिक परंपराओं के अंतर्गत एक दूसरे से जुड़े हुए हैं जिसे, बंधन या रिश्ता कहा जाता है जिससे, मनुष्य को औपचारिक सम्मान भी प्राप्त होता है जो, सांसारिक मनुष्य के लिए आवश्यक है| हालाँकि, विवाह संबंध से लेकर, आर्थिक स्थिति सुचारु करने तक में, समाज की मुख्य भूमिका होती है किंतु, सामाजिक व्यक्तियों को, अपने समाज से बाहर जाकर कुछ करने की अनुमति नहीं होती जिससे, उनका दायरा सीमित हो जाता है जिसके, परिणाम नकारात्मक होते हैं और यही, स्थिति संकुचित सोच को जन्म देती है|

 

समाज की अवधारणा क्या है?

समाज की अवधारणा क्या हैः What is the concept of society?
Image by Flickr

समाज विकासशील प्रक्रिया के तहत कार्य करता है अर्थात समाज अपने नागरिकों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए, कठोर नियम बनाकर रखता है| जिनका पालन करना अनिवार्य होता है| हालाँकि, कई समाज प्राचीन परंपराओं को त्याग चुके हैं किंतु, कुछ ऐसे भी देश हैं जहाँ, समाज अति पिछड़े हैं| समाज मनुष्य का मौलिक बंधन है जिसे, रीति रिवाज़ों के समन्वय से नियंत्रित किया जाता है| सभी समाजों की अवधारणा, स्वयं को श्रेष्ठ बताने की होती है जिससे कई बार सामाजिक मदभेद इतना बढ़ जाता है कि, आपसी सौहार्द मानवीय अहंकार की भेंट चढ़ जाता है|

समाज को कैसे सुधारें?

समाज को कैसे सुधारें: How to improve the society?
Image by Wikimedia Commons

मनुष्य का निजी स्वार्थ ही, समाज की बर्बादी का कारण होता है और स्वार्थ ही, आध्यात्मिक अज्ञानता का परिचायक है जो, अहंकार से उत्पन्न होता है| समाज को सुधारने के लिए, सृष्टि के श्रेष्ठतम मूल्यों को समझना होगा जिससे, विचारों की संकीर्णता समाज को प्रभावित न करें हालाँकि, आज मानव नियंत्रण उसके समाज के द्वारा नहीं बल्कि, सोशल मीडिया द्वारा किया जा रहा है| आज व्यक्ति उसी की चर्चा करते हैं जो, सोशल मीडिया पर चर्चित मुद्दा होता है| समाज को बदलने का कार्य, शैक्षणिक विचारधारा से ही किया जा सकता है| आज हम भले ही वैज्ञानिक शिक्षा पर पूर्णता आधारित हैं किंतु, समाज को सुधारने के लिए, आध्यात्मिक शिक्षा का होना अनिवार्य है| विज्ञान मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सहायक होता है किंतु, मनुष्यता का गुण सीखना पड़ता है| उसे मानवता भी कहते हैं और जिसे, आध्यात्मिक मार्ग से ही अपनाया जा सकता है|

समाज मानव सीमा है जिसे, तोड़कर ही मुक्त स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है| अपने वास्तविक स्वभाव तक पहुँचने के लिए, अपनी शून्यता तक जाना होगा जहां, अहंकार मिटाकर ही पहुँचा जा सकता है| अहंकार मनुष्य की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक या भौतिक पहचान होती है जैसे, अर्जुन नाम का व्यक्ति पुलिस अधिकारी है तो, उसका नाम और पद उसकी पहचान कहलाएंगे| और तो और, उसका लिंग भी उसकी पहचान ही होगा जिसे, मनुष्य का अहंकार भी कहा जाता है| वस्तुतः किसी भी तरह की सांसारिक पहचान, शक्ति के साथ दुर्बलता भी देती है इसीलिए, ग्रंथों में कहा गया है कि, सत्य से जुड़िए लेकिन, सांसारिक मनुष्य अपने इन्द्रियों का बंधक है जो, अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए, अपना अहंकार बचाए रखना चाहता है हालाँकि, मनुष्य की प्राथमिक पहचान, उसके समाज से ही मिलती है इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक अनुशासन को महत्त्व देता है| आरंभिक जीवन के लिए, समाज भले ही उपयोगी हो लेकिन, मानवता के संपूर्ण विकास के लिए, समाज रोड़ा होता है| सामाजिक व्यक्ति की सोच संकुचित हो जाती है अतः वह संपूर्ण मानवता के लिए, समभाव नहीं रख पाता जो, सामाजिक अशांति का जनक है| अतः सभी जीवों और मनुष्यों को, अपना सामाजिक अंग समझना ही, श्रेस्कर मार्ग होगा|

 

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