मेरा जीवन (Mera jeevan explained in hindi):
हम सभी संसार के बारे में तो अच्छी जानकारी रखते हैं किंतु, जब अपने बारे में पता करना हो, तब भी किसी और के कथन पर विश्वास करना, हमारी लाचारी बन जाता है| क्यों हम दूसरे की आँखों से, स्वयं को देखना चाहते हैं? क्या यह करना उचित है? यदि अधिकतर लोगों ने हमें यह अनुभव करवा दिया कि, हम दुर्बल है तो, यह बात हमें सच लगने लगती है| आपने अनुभव किया होगा, जब आप तैयार होकर निकलते हैं और कोई आपको कह दे कि, आप में कोई कमी है तो, आपका मन विचलित हो जाता है| फिर भले ही, वह उपहास कर रहा हो| जब तक आप अपने आंतरिक अनुभवों से, स्वयं को देखना प्रारंभ नहीं करेंगे तब तक, जीवन के हर पड़ाव पर गलतियाँ होना स्वाभाविक है| इसे समझने के लिए, हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|
- मेरा जन्म क्यों हुआ है?
- मन को कैसे खुश रखे?
- मुझे क्या करना चाहिए?
- काम करना क्यों जरूरी है?
- मानव जीवन का उद्देश्य क्या है?
आपने लोगों को कहते सुना होगा कि, यह संसार मोह माया है लेकिन, आपको यह बात हास्यास्पद प्रतीत हुई होगी| अधिकतर युवाओं का मानना है कि, संसार को मोह माया बुजुर्ग होने के बाद ही समझना चाहिए, जब तक जवानी है तब तक, इसका मजा ले लेना चाहिए किंतु, जब वही मज़ा दुख के रूप में वापस लौटता है तब, हमें अपने किए पर पछतावा होता है| क्यों न ऐसा हो जाए कि, जीवन के किसी भी निर्णय से पहले हमें, उसका परिणाम पता हो तो, कदाचित् हम पहले से ही दुख को सहन करने की क्षमता प्राप्त कर सकें या उस दिशा में न जाए जहाँ, दुख मिलने की संभावना है लेकिन, यह तभी संभव हो सकता है जब, आप स्वयं को किसी और के अनुसार नहीं बल्कि, अपने आंतरिक ज्ञान के आधार पर देखना प्रारंभ करेंगे| अब यहाँ सवाल है कि, आपका जन्म एक संयोग था जिसे, आपने धारण कर लिया है और अब वही आपकी सच्चाई बन चुका है तो, आपको जो भी पहचान मिली है उससे, एक तरह का रिश्ता बन चुका है जिसे, कुछ पल के लिए आपको भूलना होगा तभी, आप इस लेख में लिखे शब्दों को समझ सकेंगे| चलिए एक एक करके सभी बिंदुओं की चर्चा करते हैं|
मेरा जन्म क्यों हुआ है?
आपके शरीर ने भले ही जन्म ले लिया हो किंतु, आपने आज तक जन्म नहीं लिया| कभी आप किसी के बेटे थे| कभी किसी के दोस्त बने| कभी पति हुए और कुछ हद तक आप कर्मचारी या व्यापारी भी रहे होंगे लेकिन, यह सभी पहचान बाहरी व्यक्तियों के द्वारा दी हुई थी जिन्हें ,आपके जीवन का संयोग ही कहा जाएगा| आपके शरीर का उद्देश्य तो, आप भलीभाँति समझते हैं क्योंकि, प्रकृति के निर्माण के लिए DNA का विकास होते रहना आवश्यक है| उसी प्रक्रिया को पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य आगे बढ़ा रहे हैं किंतु, मानवीय चेतना की ओर हमारा ध्यान कभी नहीं जाता| हम जन्म लेते ही इस माया में उलझकर रह जाते हैं| हमें लगता है कि, यही हमारा संसार है जबकि, यह एक भ्रम मात्र है इसलिए, इसे माया का रूप दिया गया है क्योंकि, कोई भी रिश्ता लंबे समय तक नहीं चलता| आपने बचपन से लेकर आज तक कई तरह के रिश्तों को जिया होगा लेकिन, उसमें से किसी भी जगह पर आप नहीं थे| अगर होते तो, आप उनके टूटने के बाद जीवित नहीं रहते हालाँकि, यह बातें आपको विचाराधीन कर रही होंगी किंतु, धीरे धीरे आप स्वयं की सत्यता से अवगत होंगे|
मन को कैसे खुश रखें?
आपने सुना होगा कि, मनुष्य का मन चंचल होता है जो, किसी एक विषय वस्तु पर नहीं टिकता| क्या आप जानते हैं यहाँ, गलती आपके मन की नहीं बल्कि, आपकी समझ की है? जब भी आप संसार की किसी भी विषय वस्तु पर पूर्णतः केंद्रित होने का प्रयास करेंगे तो, कुछ ही समय में आप उससे निराश हो जाएँगे, फिर चाहे कोई भौतिक वस्तु हो, व्यक्ति हो या कोई जगह हो, आप स्थिर नहीं हो सकते| आपको यह समझना होगा कि, इस दुनिया में प्रत्येक विषय वस्तु प्रतिक्षण परिवर्तनशील है जिसे, आप अहम् के चलते अनुभव नहीं कर सकते लेकिन, जब वह बदलाव आपके अहंकार को चुनौती देने लगता है तब, आपकी आंखें खुलती हैं| आप जो भी सोचकर, किसी को चुनेंगे कुछ ही समय में वह स्थितियां, परिवर्तित हो जाएंगी फिर, बढ़ती हुई मनोकामनाओं के तले, आपका दुख पनपने लगेगा जिससे, आपको मनचाहे परिणाम प्राप्त नहीं होंगे और आपका मन किसी और दिशा में भागने लगेगा| यही माया का चक्र है| आपका जन्म ही दुख है जब तक, आपको इस सत्यता का बोध नहीं होता तब तक, आपका जीवन आनंदित नहीं हो सकता|
मुझे क्या करना चाहिए?
दुनिया में प्रत्येक मनुष्य अपनी ख़ुशी के लिए ही, कुछ न कुछ करना चाहता है किंतु, जब सब कुछ करने के बाद भी, ख़ुशी नहीं मिलती तो, जीवन दुखों के सागर में गोते लगाने लगता है फिर, हमें अनुभव होता है कि, कदाचित् हमने कुछ पाप किए होंगे और उसी की सजा भुगत रहे हैं| संसार में पाप और पुण्य जैसा कुछ नहीं होता, प्रकृति के सभी गुण माया हैं फिर चाहे, कोई अच्छा हो या बुरा, यह भेद तो केवल आपकी दृष्टि में है| सबसे पहले आपको बाहरी पहचान से मुक्त होना होगा| आप वह नहीं है जो, लोग आपको समझ रहे हैं| यहाँ प्रत्येक व्यक्ति के अपने निजी स्वार्थ हैं और उसी स्वार्थ के चश्मे को पहनकर, लोग आपकी ओर देखते हैं जैसे, एक बकरे को कसाई मांस के रूप में देख रहा होगा लेकिन, यदि वह बकरा भी, इसे सत्य मान ले और जाकर कसाई के सामने लेट जाए तो, क्या यह सही होगा उसी भांति, हम भी दुनिया की दी हुई पहचान को धारण कर लेते हैं और ज़िंदगी भर, संसार के बंधनों को ढोते रहते हैं| जिसका परिणाम दुख होता है| आपका सबसे प्रथम कर्तव्य, अपने सांसारिक मोह बंधनों से मुक्ति है तभी, आप बिना पक्षपात के अपने आप तक पहुँच सकेंगे जिससे, आपकी चेतना का जन्म होगा और दुनियाँ की वास्तविकता प्रतीत होने लगेगी|
काम करना क्यों जरूरी है?
मनुष्य बिना कार्य किए नहीं रह सकता और यही उसका दुर्भाग्य है| मानव शरीर को प्रकृति ने कर्म से जोड़कर बनाया है जहाँ, वह बचपन से ही अपनी इन्द्रियों का उपयोग करना प्रारंभ कर देता है जिसका, संचालन सत्त्व रज तम प्रकृति के तीन गुण ही करते हैं किंतु, मनुष्य स्वयं को कर्ता मानकर, अनावश्यक श्रेय लेने का प्रयत्न करता है जिससे, वह परिणाम को भोगने वाला बन जाता है| यदि आप चेतन मन से अपने कर्म का चुनाव नहीं करेंगे तो, प्रकृति के तीनों गुण आपको कर्म का चुनाव करने पर विवश करेंगे जो, आपको दुखों के दलदल में धकेल देगा| संसारियों द्वारा माया को सत्य मान लेना ही, उनके दुख का आधार है इसलिए, निष्काम भाव से किसी सार्थक कर्म का चुनाव करन अनिवार्य है अर्थात् बिना किसी मनोकामना के चुना गया कार्य, जन्म मरण के चक्र से मुक्त कर देता है और तभी, मन स्थिरता को प्राप्त हो सकता है|
मानव जीवन का उद्देश्य क्या है?
जैसा कि उपरोक्त बिन्दुओं से स्पष्ट है कि, मानव जन्म ही दुख है तो, उसका सबसे प्रथम उद्देश्य दुखों से मुक्ति है इसलिए, आपने देखा होगा प्रत्येक मनुष्य ख़ुशी की तलाश में, यहाँ वहाँ भटकता रहता है| वह भूल जाता है कि, उसके बंधन ही दुख हैं जिन्हें, वह अज्ञानतावश अपना समझ रहा है लेकिन, ज्ञानी पुरुष संसार के छल को पूर्व ही भाँप लेते हैं ताकि, एक सही दिशा की ओर, बिना किसी हस्तक्षेप के बढ़ा जा सके और मानव जीवन व्यर्थ न जाए|
सांसारिक मनुष्य कर्म बंधनों से ग्रसित है और उसकी लाचारी है कि, जीवन का आनंद लेने का मार्ग, इस माया रूपी संसार से ही खोजना होगा क्योंकि, आप इसे त्यागकर भाग नहीं सकते अन्यथा जीवन और भी कष्टों से घिर जाएगा| यहाँ आपको एक ऐसा कार्य चुनना होगा जिसे, आप प्रार्थना भाव से कर सके अर्थात् जिस कार्य में स्वार्थ का भाव नहीं बल्कि, परोपकार का भाव छुपा हो| जिसका उद्देश्य अपने हितों की पूर्ति नहीं, दूसरों के जीवन की समस्याओं का समाधान करना हो तभी, आप अपने जन्म की सार्थकता को समझ सकेंगे और आपका जीवन, आनंदमय हो उठेगा| अब आप सोच रहे होंगे कि, दूसरों के लिए काम करने से हमें क्या हासिल होगा? तो आपको बता दें, यदि आप जन्म से नेत्रहीन हैं तो, नेत्रों का मूल्य नहीं समझ सकते| आपको दिए की भांति स्वयं जल कर दूसरों के जीवन के अंधकार मिटाने होंगे तभी, आपका जीवन अन्धकारमुक्त होगा और आप अपने सभी दुखों की पीड़ाओं से मुक्त हो जाएंगे|