संन्यास (Sanyas)- (renunciation explanation)

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संन्यास (Sanyas)- (renunciation explanation in hindi)

मनुष्य के जीवन में संन्यास (Sanyas) का एक अद्भुत महत्व है इसीलिए, संन्यासी बहुत प्रचलित उपाधि मानी जाती है| कुछ लोगों के मन में संन्यासी की छवि, जंगल में भटकने वाले निर्धन मनुष्य की भाँति होती है जो, सांसारिक जीवन से विरक्त, वन या पर्वतों में बैठकर तपस्या करता है जिसे, अपूर्ण सत्य कहना उचित होगा| अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो कदाचित आप भ्रमित हैं| संन्यास का सही अर्थ, आपके जीवन में अद्भुत परिवर्तन ला सकता है| एक संन्यासी ही, संघर्षपूर्ण जीवन के वास्तविक आनंद को अनुभव करता है लेकिन, मानव समाज ने संन्यासी और उसके संन्यास की कल्पना ही व्यर्थ की है जहाँ, जीवन से हारे हुए कुछ लोग अपने आपको संन्यासी समझ बैठते हैं जिससे, मानव समाज में अंधविश्वास को बढ़ावा मिलता है| संन्यास के सही अर्थ को समझने के लिए हमें कुछ प्रश्नों की ओर चलना होगा|

 

  1. सन्यासी कौन है?
  2. संन्यास क्या होता है?
  3. सन्यास के नियम क्या है?
  4. संन्यास के लाभ क्या है?
  5. सन्यासी कैसे बने?
संन्यास (Sanyas)- (renunciation explanation in hindi)
Image by Sonali from Pixabay

संन्यास के नाम से अज्ञानतावश भ्रम फैलाया गया है| एक सच्चा संन्यासी ही, नि स्वार्थ भाव से सार्वजनिक हित में, कार्य कर सकता है किंतु, जब कोई व्यक्ति निष्क्रियता को संन्यास से, जोड़कर देखना प्रारंभ कर देता है तो, उसका जीवन श्रेष्टता से वंचित रह जाता है जहाँ, वह अपने जीवन में वास्तविक संन्यास उतारकर, आनंदित हो सकता था वहीं, संन्यासी की अनुचित परिभाषाओं से वह शारीरिक दुखों के चक्रव्यूह में फँस जाता है| सत्यवादी संन्यास, मनुष्य को जन्म मरण के चक्र से मुक्त कर देता है| संन्यास की जीवन में अद्भुत उपयोगिता है जिसे, निम्नलिखित बिंदुओं से स्पष्ट किया गया है|

संन्यासी कौन है?

संन्यासी कौन हैः Who is a Sanyasi?
Image by Jörg Peter from Pixabay

सत्य के मार्ग में अग्रसर, निष्काम कर्मयोगी संन्यासी कहलाता है अर्थात मनोकामनाओं से रहित, दूसरों के लिए जीवन जीने वाला, प्रत्येक व्यक्ति संन्यासी है| यहाँ दूसरों का अर्थ अपने रिश्तेदारों या मित्रों से नहीं है बल्कि, संपूर्ण जगत से है जिनसे, कोई रिश्ता न हो, कोई मोह न जुड़ा हो और न ही, उनसे किसी तरह का स्वार्थ सिद्ध होता हो| ऐसे लोगों के लिए, समर्पण ही संन्यास मार्ग है| उदाहरण से समझें तो, एक वैज्ञानिक परमार्थ भाव से, जीवन समर्पित करे तो, वह संन्यासी होगा| एक राजा, सार्वजनिक हितों के लिए, कार्य करें तो संन्यासी कहलाएगा| संन्यासी समय आने पर, किसी भी भूमिका में अभिनय कर सकता है लेकिन, उसका उद्देश्य ख्याति प्राप्त करना नहीं बल्कि, अपने जीवन का त्याग करके लोगों को सत्य से प्रकाशित करना है|

संन्यास क्या होता है?

संन्यास क्या होता हैः What is Sannyasa?
Image by vocablitz from Pixabay

सही समय पर सही कार्य करना ही, संन्यास है| किंतु यह कैसे तय किया जा सकता है कि, मनुष्य के द्वारा किया गया कार्य, कब उचित होगा और कब अनुचित? इसलिए, सर्वप्रथम स्वयं को जानना अनिवार्य है तभी, वह अपने जीवन के अनुरूप, सार्थक कर्म का चुनाव कर सकेगा| सार्थक कर्म अर्थात मनुष्य के जीवन को संघर्षपूर्ण गौरव प्रदान करने योग्य कार्य जिसका एकमात्र उद्देश्य सांसारिक शांति स्थापित करना होता है| वेदों और उपनिषदों जैसे, महान ग्रंथों की रचना सन्यासियों के ही, परिश्रम का परिणाम है| संन्यास वह मानवीय गुण है जिसका, जन्म मनुष्य के अहंकार के विघटन के पश्चात होता है अर्थात केवल अपने लिए और अपनों के लिए जीने वाली भावना से मुक्ति ही संन्यास है| जब मनुष्य, अपने जीवन के यथार्थ से, परिचित हो जाता है तो, उसे अपने स्वार्थी जीवन से, घृणा होने लगती है तत्पश्चात् बोध की उत्पत्ति होती है जिससे, एक साधारण मनुष्य सार्वजनिक हितों में , अपना जीवन समर्पित कर देता है जिसमें, उसे वास्तविक आनंद की अनुभूति होती है|

संन्यास के नियम क्या है?

संन्यास के नियम क्या हैः What are the rules of retirement?
Image by Brigitte Werner from Pixabay

संन्यासियों के लिए, कई तरह की नियमावली प्रकाशित की गई है लेकिन, एक सच्चे संन्यासी के लिए किसी तरह के नियम की पाबंदी नहीं होती| वह जो कुछ भी करता है, पूरे बोध के साथ करता है| नियम क़ानून तो, शारीरिक तल में जी रहे सांसारिक मनुष्यों के लिए बनाए जाते हैं जिनकी, चेतना अहंकार की चपेट में आकर दम तोड़ देती है| जिनका स्वयं का कोई विवेक नहीं होता जो, स्वार्थ संचालित होते हैं| जागरूक व्यक्ति के लिए, उसका जीवन ही आदर्श विचारधारा होता है| सन्यासी सृष्टि के हित के लिए, मनुष्य द्वारा बनाए नियम तोड़ भी सकते हैं| एक संन्यासी, शिव की भांति शून्य, विष्णु की भांति सांसरिक और ब्रह्मा की भांति रचयिता भी हो सकता है| उसके लिए, किसी तरह का बंधन नहीं होता| वह संसार को प्रकाशित करने हेतु, प्रत्येक संभव प्रयास करता है|

संन्यास के लाभ क्या है?

संन्यास के लाभ क्या हैः What are the benefits of retirement?
Image by NVD from Pixabay

मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य, उसकी आध्यात्मिक अज्ञानता है| जिसके कारण वह अपनी इंद्रियों को, नियंत्रित नहीं कर पाता और उसके तीन गुण सत्त्व, रज, तम उसे कामी पुरुष बना देते हैं अर्थात वह, अपने स्वार्थ से पूर्णतः संलग्न हो जाता है परिणामस्वरूप उसका प्रत्येक कार्य मनोकामनाओं से आच्छादित होता है जिससे, उसका जीवन दुख से ग्रसित हो जाता है| संन्यास ही मनुष्य को सुख दुख के चक्र से बाहर निकाल सकता है| संन्यास का मतलब अपने उत्तरदायित्व से भागना नहीं होता बल्कि अपने बिखरे हुए बल को, केंद्रित कर सही दिशा में लगाना होता है किंतु, वह दिशा मनुष्य के अंहकार से तय नहीं होनी चाहिए बल्कि, उसके आत्मज्ञान से निर्धारित होनी चाहिए| मनुष्य अपने अतीत की सूचनाओं से घिरा होता है जिसमें, वह अपने निजी स्वार्थ को प्राथमिकता देते हुए ही निर्णय करता है और इसीलिए, मानवीय मतभेद उसके मस्तिष्क को, विष से संक्रमित कर देता है परिणामस्वरूप वह वास्तविक आनंद से, वंचित रह जाता है जिसे, प्रेम कहते हैं|

संन्यासी कैसे बने?

संन्यासी कैसे बनेः How to become a monk?
Image by pixabay.com

संन्यासी बनना नहीं, होना पड़ता है अर्थात जब तक मनुष्य का अहंकार जीवित है, तब तक वह संन्यासी नहीं बन सकता यदि, दिखावे के लिए संन्यास मार्ग अपनाया गया तो, जीवन और भी अधिक दुखों में डूब जाएगा| शारीरिक तप बाह्य संन्यास का परिचायक है लेकिन, वास्तविक संन्यास तो, सत्य के प्रति समर्पण है जो, आंतरिक भाव से उत्पन्न होता है न कि, संन्यास का अभिनय करने से|

संन्यास मार्ग अकल्पित होता है अर्थात पूर्वानुमान से, संन्यासी के भविष्य का आकलन नहीं किया जा सकता हाँ, संन्यासी का जीवन संघर्षपूर्ण आनंद से विभूषित अवश्य होता है| मानव समाज में बढ़ रहे अंधकार को मिटाने के लिए, सर्वांगीण सांसारिक क्षेत्र में संन्यासियों की आवश्यकता है|

 

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