मैं कौन हूँ? main kaun hun- Know yourself:
दुनिया में कोई भी इंसान अपनी प्राथमिक पहचान अपने जन्म से जुड़ी यादों से करता है किंतु, धीरे धीरे आयु के साथ हर किसी की पहचान परिवर्तित होती रहती है| कभी वह बेटा था, कभी पति बना, कभी पिता और यह चक्र निरंतर चलता रहा लेकिन, इस प्रतिक्षण परिवर्तित दुनिया में हम स्वयं तक नहीं पहुँच पाते और सामाजिक, आर्थिक या अन्य माध्यमों से दी गई पहचान के तले दबकर, अपने मूल्यवान जीवन को नष्ट कर देते हैं| वस्तुतः आगे आने वाली बातों को गहराई से समझते ही, आप अपने जीवन में पूरी सूझ-बूझ के साथ निर्णय ले सकेंगे| नीचे कुछ सवालों की सूची दी हुई है जैसे,
1. मेरा नाम क्या है?
2. अपने नए रिश्ते की शुरुआत कैसे करूँ?
3. मुझे गुस्सा क्यों आता है?
4. मैं दुखी क्यों होता हूँ?
5. मुझे खुशी कहाँ मिलेगी?
6. मैं आलसी क्यों हूँ?
7. किसी काम में मन क्यों नहीं लगता है?
8. मुझे सफलता कैसे मिलेगी?
9. मुझे क्या करना चाहिए जिससे मेरा जीवन बदल जाए?
प्रत्येक मनुष्य का जीवन अलग अलग मान्यताओं पर टिका होता है| मान्यताएं हमें इतिहास से मिलती हैं जो, इन्सानों को बंधक बना लेती हैं और इन्हीं बंधनों से मुक्ति ही, एक श्रेष्ठ जीवन की पहचान हैं| इस तथ्य की गहराई तक पहुँचने के लिए, हम एक एक करके ऊपर दिए गए सभी सवालों को अपने जीवन से जोड़कर समझने का प्रयास करते हैं।
मेरा नाम क्या है?
आपका नाम कई मायनों में विशेष महत्व रखता है| नाम, किसी व्यक्ति की लिंगआत्मक, क्षेत्रआत्मक और संयोगात्मक पहचान होती है| जिसके माध्यम से, व्यक्ति के लिंग की पहचान, संप्रदाय संबंधी पहचान और उसके क्षेत्र की पहचान की जाती है किंतु, सवाल यह है कि, मेरा नाम क्या है?
क्या, वह नाम वास्तविक है जो, मेरे परिवार के द्वारा दिया गया था या वह नाम जो बदलते हुए समय के साथ, मैंने अपना लिया? वस्तुतः किसी भी नाम से आपका संबंध, बाहरी होना चाहिए| आंतरिक तौर पर हमारा कोई नाम नहीं हो सकता क्योंकि पहले हम जन्म लेते हैं और नाम बाद में दिये जाते हैं या, यूँ कहें हम अनाम हैं जिसे, कोई नाम दिया न जा सके| जैसे ही आप किसी नाम को अपनी पहचान बनाते हैं तो, उस नाम से संबंधित दुर्बलता भी आपको धारण करनी पड़ती है| उदाहरण के तौर पर, यदि किसी का इतिहास निर्धनता से जुड़ा है तो, वह अपने आपको लाचार समझता रहेगा| वहीं किसी का रिश्ता अतीत के अपराधों से है तो, भविष्य में भी वह उन्ही अपराधों का बोझ ढोता रहेगा जिससे, वह अपनी वास्तविक शक्तियों को कभी समझ नहीं सकेगा और उन्हीं धारणाओं की वजह से जीवन मानसिक पराधीनता में ही बीतता है जिसे, आप स्वयं अपनाते हैं और इसी कारण, आप अपने जीवन के उच्चतम आनंद से वंचित रह जाते हैं| वैसे से तो एक चेतन मन् को दृष्टा की भांति केवल वर्तमान में निर्लिप्त होना चाहिए किन्तु, यह इतना सहज नहीं है|
तो क्या, हम बिना नाम के रहे? जी नहीं, नाम केवल बाहरी पहचान तक रहने दीजिए और बदलते समय के साथ, अपने आपको कोई ऐसा नाम दीजिए जिसमें, पूरी सृष्टि का समावेश हो क्योंकि, वही नाम आपको, सभी बंधनों से मुक्त करते हुए, बिना भेदभाव के दुनिया को, देखने योग्य आंखें प्रदान कर सकता है और यही गुण, किसी भी इंसान को श्रेष्ठ कार्य के लिए प्रोत्साहित करता है|
अपने नए रिश्ते की शुरुआत कैसे करूँ?
कुछ रिश्ते जन्म के साथ ही मिल जाते हैं और कुछ रिश्ते हमारी परिस्थितियों के संयोग से बनते हैं लेकिन, कोई भी रिश्ता ऐसा नहीं होता जिसे, पूरी बुद्धिमत्ता से चुना गया हो| बचपन में अच्छे खिलौने देखकर, हम दोस्त बना लेते हैं और जवानी में, विपरीत लिंग की ओर आकर्षण ही, हमारे मुख्य रिश्ते का आधार हो जाता है किंतु, जैसे ही बुढ़ापा आता है हमें, अपने सारे रिश्ते खोखले लगने लगते हैं| वस्तुतः जब भी रिश्ते, भविष्य की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं, वह हमेशा दुख देते हैं| जब भी रिश्तों में कुछ पाने की इच्छा का समावेश हो, तभी दुख आसरा ढूंढ लेता है| इस पृथ्वी में ऐसा कोई नहीं जिससे, रिश्ता चल सके| कभी आप बदल जाएंगे और कभी आपकी परिस्थिति, जिससे आपको मनचाहा प्रेम, प्राप्त नहीं होगा| यदि रिश्ता बनाना ही है तो, अपने आप से बनाना सीखो क्योंकि, आपने स्वयं से रिश्ता तोड़ दिया है और अब संसार की कठपुतली बनकर नाच रहे हैं और उसी नृत्य को, अपना जीवन समझ रहे हैं जिससे, आप क्षणिक सुखों की नाव के सहारे, दुखों के सागर में गोते लगा रहे हैं|
मुझे गुस्सा क्यों आता है?
मोह के बाद उत्पन्न हुआ तत्व, क्रोध कहलाता है| जब भी हमसे जुड़ी हुई विषय वस्तु दूर होती है तो, गुस्सा आता है| उदाहरण के तौर पर, किसी बच्चे का मनचाहा खिलौना टूट जाना या, युवाओं का प्रेम प्रसंग टूटना और ऐसे न जाने अनगिनत परिस्थितियों के अनुसार, क्रोध का जन्म हो सकता है| इस संसार की किसी भी विषय वस्तु से, विशेष लगाव ही ग़ुस्से का आधार है इसलिए, मोह का त्याग करके, बुद्धि और विवेक के साथ, भावनाओं को नियंत्रित रखते हुए, आगे बढ़ना चाहिए तभी, आप अपने ग़ुस्से से पूर्णता मुक्त हो सकते हैं|
मैं दुखी क्यों होता हूँ?
क्रोध के बाद उत्पन्न हुआ विकार, दुख कहलाता है| जैसे कि ऊपर दिए हुए, ग़ुस्से से जुड़े सवाल के निष्कर्ष से, यह बात पता चलती है कि, मोह का सीधा संबंध, दुख से भले न हो लेकिन दुख, क्रोध के बाद आने वाली, अगली सीढ़ी अवश्य है| दुखी होने के कई कारण हो सकते हैं किंतु, जब भी दुख व्यक्तिगत होगा, वह अंधे मोह से ही उत्पन्न होता है| दुख का अपना एक व्यक्तिगत स्तर होता है जैसे, छोटा बच्चा केवल अपने से जुड़े हुए, दुख को अनुभव कर सकता है और उसके माता पिता, अपने बच्चे के दुखों को भी समझ सकते हैं| एक कम्पनी का मालिक, अपने कंपनी से जुड़े हुए दुखों को समझने में सक्षम हो सकता है लेकिन, एक मुक्त पुरूष के दुःख की सीमा, व्यक्तिगत न होकर, सम्पूर्ण जगत तक फैली हो सकती है किंतु, सामान्य व्यक्ति अपने स्वार्थी जीवन से जुड़ी हुई बातों से ही दुखी होता है और इसी कारण से, दुख क्षणिक रह जाता है और हम दुखों की गहराई को, नहीं समझ पाते और पुनः सम्बन्धों के चुनाव में भूल कर बैठते हैं जिससे, जीवन लगातार दुखों के भवर में उलझा रहता है| वस्तुतः सांसारिक विषयों को प्राप्त करने की लालसा या प्राप्त हो चुकी वस्तु को सुरक्षित, बनाए रखने का भय ही दुखद होता है परिणामस्वरूप व्यक्तियों के अंदर, असुरक्षा का भाव उत्पन्न हो जाता है जो मानवीय दुःख का सबसे बड़ा कारण है |
मुझे खुशी कहाँ मिलेगी?
मनुष्य अपने अतीत के आधार पर खुशी का चयन करता है| उदाहरण के तौर पर यदि कोई अतीत में निर्धन है तो, कुछ पैसे कमा लेना ही, उसके लिए ख़ुशी का कारण बन सकता है लेकिन, धनी व्यक्ति के लिए, उतने ही पैसे दुख का कारण बन सकते हैं| किसी बुद्धिमान विद्यार्थी के लिए 60% अंक निराशाजनक हो सकते हैं किन्तु वहीं एक सामान्य विद्यार्थी के लिए, यह आंकड़ा सुख का कारण बन सकता है| इसका आशय यह है कि, सुख हमारे मन की कल्पना मात्र है जिसे, हम अपने मान्यताओं के अंतर्गत, मनचाहे ढंग से तैयार करते हैं| यदि वास्तविक स्थिति को पहचानना है तो, केवल वर्तमान में जाग्रत रहना ही उच्चतम मार्ग है| जैसे एक छोटा बच्चा, किसी खिलौने के मिलने से ख़ुश हो जाता है किंतु, कुछ ही समय बाद बच्चे का आकर्षण खिलौने से हट जाता है और उसकी ख़ुशी के मायने बदल जाते हैं और यह चक्र पूरी ज़िंदगी निरंतर चलता रहता है| तो सवाल यह है कि, फिर हम कहाँ खुशी ढूंढ सकते हैं? वस्तुतः भौतिक तत्व निरंतर परिवर्तित होते हैं| अतः इस संसार में कोई भी ऐसी भौतिकवादी विषय वस्तु नहीं है जो, आपको निरंतर आनंदित रख सकें| जब आप किसी व्यक्ति या वस्तु से रिश्ता बनाते हो तो, रिश्ता बनते ही दोनों बदल जाते हैं जिससे, दोनों की ख़ुशी के मायने भी बदल जाते हैं| जैसे यदि काले रंग को, सफ़ेद रंग से प्रेम हो जाए तो, दोनों के मिलन होते ही, न ही काला रह जाएगा और न ही सफ़ेद| इसी तरह से, हमारी ज़िंदगी होती है| किसी से रिश्ता बनते ही, हमारा पुराना जीवन परिवर्तित हो जाता है और अपने साथी का रंग चढ़ने लगता है लेकिन, यदि हम उस बदले हुए रूप को पहचानते हुए, आगे बढ़ते रहें तो, हमारा जीवन आनंदित हो सकता है|
मैं आलसी क्यों हूँ?
आलस हमारी आदत नहीं बल्कि, हमारी प्रकृति है| साधारणतः आपने अनुभव किया होगा कि, जब आपको मनचाहे परिणाम प्राप्त होते हैं तो, आलस दूर दूर तक नहीं भटकता वहीं दूसरी ओर मज़बूरी और ज़िम्मेदारी के बोझ तले दबा हुआ काम, आलस की ओर मोड़ देता है| उदाहरण के तौर पर, यदि किसी व्यक्ति को लॉटरी लग जाए और उसे बैंक में कई घंटों की प्रतीक्षा के बाद भी पैसे मिलें तो, उसे आलस अनुभव नहीं होगा किंतु, वहीं लिए गए ऋण की किस्त जमा करने का काम होगा तो, मन आलस से घिर जाएगा| एक विद्यार्थी पढ़ाई करते समय, आलस का आभास करता है क्योंकि, उसे पढ़ाई के दौरान वर्तमान का आनंद प्राप्त नहीं होता बल्कि, भविष्य में कुछ बनने के सपने दिखाए जाते हैं और वह भविष्य की आस में, अपने वर्तमान के आनंद से वंचित रह जाता है जिससे, वह अपने जीवन की पूरी संभावना तक, कभी नहीं पहुँचता इसलिए अधिकतर विद्यार्थी शिक्षा को बोझ समझने लगते हैं| लेकिन बुद्धिमान विद्यार्थी शिक्षा में ही आनंद प्राप्त करते हैं| उन्हें उनकी पढ़ाई के अनुसार, मनचाहे परिणाम प्राप्त होते रहते हैं जिससे, उनका मनोबल निरंतर बढ़ता रहता है| आलस मिटाने के लिए, अपने जीवन के महत्व को समझना होगा और जैसा कि इस पूरे लेख का उद्देश्य ही, स्वयं की पहचान करना है| तभी आलस जैसे विकार, हमें अपना शिकार नहीं बना सकेंगे|
किसी काम में मन क्यों नहीं लगता है?
वस्तुतः हमारा मन चंचल होता है और यह हमेशा बदलता रहता है किंतु, वहीं कुछ लोग जीवन भर किसी एक लक्ष्य की ओर केंद्रित रहते हैं और अपार सफलता हासिल करते हैं| तो, ऐसा क्या होता है जहाँ, कुछ भटकते हुए मन के साथ ज़िंदगी जीने पर विवश हैं और कम लोग ही कामयाबी की राह पर चलते हुए, जीवन का आनंद ले पाते हैं? वस्तुतः मनुष्य के कार्य, उसके दिल के केंद्र से होते हैं| उदाहरण के तौर पर, युवाओं को प्रेम होने पर अपने प्रेमी से बात करते हुए, पूरा दिन भी लग जाए तो, चिंता नहीं लेकिन, यदि पढ़ने को कह दिया जाए तो, कुछ ही समय में घूमने का मन होने लगता है| अतः जब कोई विषयवस्तु लाचारी बनेगी तो, निश्चित ही उसमें मन नहीं लग सकता किन्तु, यदि वह अनिवार्य जाए तो, उससे मन हटा पाना असंभव होगा और यदि दबाव देकर, मन लगाने का प्रयास किया गया तो, इसके विपरीत परिणाम भी हो सकते हैं इसलिए, विद्यार्थियों को चाहिए कि, सर्वप्रथम अपनी शिक्षा के महत्व को समझें तत्पश्चात, पढ़ाई प्रारंभ करें| अन्यथा, पढ़ाई केवल एक बोझ बन कर रह जाएगी| वहीं युवा अपनी जीविका का चयन करने से पहले, उस कार्य के महत्व को समझें, अन्यथा नौकरी या व्यापार गीले कपड़ों की गठरी की भांति लगेगी और कुछ ही वर्षों में, वर्तमान काम से मन उठ जाएगा परिणामस्वरूप, बदलाव के विचार उत्पन्न होने लगेंगे और आप अपने जीवन के उच्चतम लक्ष्य को खो देंगे| जिस भांति एक गोलाकार आकृति बनाने के लिए, केंद्र में बिंदु रखना अनिवार्य है, उसी प्रकार जीवन की सही रचना करने के लिए, सत्यसम्बन्धित उद्देश्य को दिल में स्थायी करते हुए ही, आगे बढ़ा जा सकता है| यदि आप निरंतर अपने दिल के केंद्र बिंदु को बदलते रहेंगे है तो, आपका जीवन आनंद से वंचित रह जाएगा|
मुझे सफलता कैसे मिलेगी?
सफलता का कोई निश्चित समय नहीं होता अर्थात, जिसे आप सफलता समझते हैं, उसके निकट पहुँचते ही, उसके मायने बदल चुके होते हैं| इस प्रश्न की जगह यह पूछना सही है कि, “मैं अपने काम में आनंद का अनुभव कैसे करूँगा, जो प्रति पल सफलता की अनुभूति कराता रहेगा?” यदि सही काम का चुनाव कर लिया जाए तो, सफलता हर क्षण में छुपी होती है| यदि भौतिक वस्तु प्राप्त करना ही, आपकी दृष्टि में सफल होना है तो, आप अनुचित दिशा में बढ़ रहे हैं और इसी कारण आप, हमेशा सफलता के लिए, तरसते रहेंगे क्योंकि, इस ब्रम्हाण्ड में ऐसी कोई भी विषय वस्तु नहीं है जो, लगातार आपको सफल बनाए रखने में भूमिका निभा सके| हाँ किंतु कुछ और है जो, आपको सफलता से भी श्रेष्ठ, बिंदु की ओर केंद्रित करेगा| इस बिंदु की पहचान के लिए चलते हैं, अपने अंतिम पड़ाव की ओर|
मुझे क्या करना चाहिए जिससे, मेरा जीवन बदल जाए:
यह एक ऐसा सवाल है जो, सभी के जीवन में पहेली की भांति है| लोगों को मृत्यु तक पहुँचते हुए भी, इसका उत्तर नहीं मिल पाता| हम में से अधिकतर लोग, अपनी पूरी ज़िंदगी जीने के बाद भी, अपने समय की बर्बादी के लिए पछताते रहते हैं| वस्तुतः हमारे आस पास एक ऐसा वातावरण बनाया गया है जिसमें, वस्तुओं को प्राप्त करना ही सफल माना जाता है जहां, गाड़ी, बांग्ला जैसी भौतिक वस्तुओं को पाना ही, सफलता का पैमाना है जिसके, अंतर्गत आपकी सोच संकुचित हो जाती है और आप अपने घर परिवार या, अधिक से अधिक अपने रिश्तेदारों के बारे में ही सोच पाते हैं और यही आपकी दुर्बलता है क्योंकि, जितना संकुचित आपकी दृष्टि होगी, उतना ही संकुचन आपके जीवन में होगा| आपको ये समझना होगा कि, आप सामाजिक जीव नहीं बल्कि, एक चेतना है जिसमें, पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है| इस प्रकृति का एक एक कण, आप में विद्यमान् है जिसे, तृप्ति की तलाश है और अज्ञानतावश, भ्रमित होकर उस परमानंद के लिए, सामान्य व्यक्तियों के बीच भटक रहे हैं|
वस्तुतः यह अटल सत्य है कि, इस पृथ्वी पर हम सभी अतिथि है और केवल कुछ ही समय के लिए, हमें मानवरूपी शरीर प्राप्त हुआ है जिसका उद्देश्य भोग बिलास में डूबना नहीं बल्कि, शरीर का उपयोग एक सार्थक उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए, गाड़ी की भांति किया जाना चाहिए लेकिन, हम अपनी गाड़ी की मरम्मत में ही, पूरा जीवन व्यतीत देते हैं और एक दिन वह गाड़ी भी, अस्पताल की चारपाई में दम तोड़ देती है| अब सवाल आता है, क्या है सार्थक उद्देश्य?
तो आपको बता दें, इसका उत्तर आप स्वयं ढूढ़ सकते हैं| बस इसके लिए, आपको स्वार्थ भरी सोच से ऊपर उठना होगा| तभी अपनी विशालता को पहचानने वाली आंखें प्राप्त होंगी क्योंकि, अपनी रणभूमि के आप स्वयं ही योद्धा है और युद्ध भी, आपको ही लड़ना होगा| बस ध्यान रहे कि, कोई भी ऐसा कार्य जो, आपके अहंकार को बढ़ावा दे, उसे शीघ्र अतिशीघ्र विदाई देने में ही, आपका आनंद छुपा हुआ है| मुझे पूरी आशा है, देर सवेर आपको एक ऐसा मार्ग अवश्य मिलेगा जिसमें, आपका निजी स्वार्थ न छुपा हो और न ही, भविष्य में लाभ प्राप्त करने की आशा का समावेश हो बल्कि, वर्तमान में ही उसमें आनंद की अनुभूति हो रही हो, एक ऐसा काम जिसे करना, आपकी विवशता नहीं बल्कि, आवश्यकता हो और निश्चित ही इसके बाद, आपका जीवन अकल्पनीय ढंग से रूपांतरित हो जाएगा|