बीमार (beemar explained)

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बीमार (beemar explained in hindi):

शरीर के लिए बीमारी अथवा रोग किसी अभिशाप से कम नहीं| बीमार मनुष्य हताशा युक्त जीवन व्यतीत करता है| कई बार तो रोगी का पूरा जीवन ही, बीमारी की देख रेख करने में बीत जाता है| न वह, संसार को देख पाता और न ही, जीवन का आनंद उठा पाता| मानसिक चिंताओं से ग्रसित, किसी बीमार व्यक्ति का कष्ट, एक स्वस्थ मनुष्य नहीं समझ सकता लेकिन, रोगी नर्क युक्त वेदना अनुभव करता है| प्रतिक्षण मृत्यु की ओर बढ़ने का भय, सभी सुखों पर पर्दा डाल देता है| फिर चाहे, धनी हो या निर्धन, सभी बीमारी से सुरक्षित रहने का प्रयास करते हैं| हाँ किंतु, अधिकतर ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जो, रोग होने के बनिस्बत रोग वृद्धि विषयों से दूर नहीं रह पाते परिणामस्वरूप वह, बेसुध रहकर अपने दुख से मुँह छुपाते हुए, मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं| एक गंभीर बीमारी मनुष्य का पूरा जीवन परिवर्तित कर देती है| बड़े से बड़ा खिलाड़ी भी, बीमारी के आगे हार मान लेता है अपवादस्वरूप कुछ ऐसे मनुष्यों के उदाहरण उपलब्ध हैं जिन्होने, बीमार शरीर होने के साथ ही, श्रेष्ठतम कर्म को साकार किया तो, क्या बीमारी शरीर का बाधक नहीं और क्या बीमारी के रहते हुए, आनंदित होकर जिया जा सकता है? यह चर्चा युक्त विषय है| आपने दोनों तरह के लोगों को देखा होगा| एक रोगी, हँसता खेलता हुआ दिखता है और दूसरा, बिस्तर में पड़े पड़े मौत को गले लगा लेता है| चलिए इस विषय को समझने के लिए, कुछ प्रश्नों की ओर चलते हैं|

  1. बीमार क्या होता है?
  2. बीमारी से क्या आशय है?
  3. बीमारी से कैसे बचे?
  4. मुझे जानलेवा बीमारी क्यों है?
  5. बीमारी में अपना मनोबल कैसे बढ़ाए?
रोगी होने का कारण: reason for being sick?
Image by Alexandra_Koch from Pixabay

वैसे तो, बीमारी शरीर को होती है व्यक्ति को नहीं लेकिन, सांसारिक मनुष्य अपने देह को प्राथमिकता देता है इसलिए, उसका प्रभाव उसके मन पर भी हावी होता है| क्या कोई व्यक्ति अपनी बीमारी से, अपना मन हटा सकता है जबकि उसे प्रतिदिन दवाओं का सेवन याद रखना होगा? वस्तुतः रोग होने के कई कारण होते हैं किंतु, रोगी होने का कारण केवल, आध्यात्मिक अज्ञानता है| यह बात भले ही तर्कसंगत न लग रही हो किंतु, यही गूढ़ सत्य है| इसका स्पष्टीकरण निम्न बिन्दुओं में उपलब्ध है|

बीमारी से क्या आशय है?

बीमारी से क्या आशय हैः What is meant by disease?
Image by Pete Linforth from Pixabay

शारीरिक या मानसिक क्षमता कम होना ही बीमारी है| मानव आहार और वातावरण, शारीरिक स्थिति का सूत्रधार होता है हालाँकि, मानसिक रोगों को भी शरीर का रोग ही कहा जाएगा| मन मस्तिष्क की उत्पत्ति है अर्थात बिना शरीर के मन नहीं हो सकता| शारीरिक बीमारी का पता लगाने के लिए, वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग किया जाने लगा है प्राचीन काल में सभी तरह के रोगों का निदान, केवल कुछ औषधियों से हो जाया करता था किंतु, आज प्रत्येक अंग के लिए अलग विशेषज्ञ होते हैं तब भी, बीमारिया नहीं रोकी जा सकती| हवा, पानी और भोजन प्रदूषित होने से, मानव स्वास्थ्य निरंतर बिगड़ रहा है| आज शारीरिक रोगों के लिए, सभी मनुष्य अस्पतालों पर ही आधारित है जहाँ, कृत्रिम दवाओं से रोगों का उपचार किया जाता है जो, कई बार नित्य नए रोगों को जन्म देने का मार्ग बनता है|

बीमार क्या होता है?

बीमार क्या होता हैः What is sick?
Image by Grae Dickason from Pixabay

सामान्य शब्दों में, किसी रोग से ग्रसित शरीर को बीमार कहा जाता है किंतु, बीमार कौन नहीं है| जन्म लेते ही बच्चा जितना स्वस्थ होता है, उतना वह कभी नहीं हो पाता| बढ़ती हुई आयु के साथ साथ, शारीरिक अंग अशुद्ध होना स्वाभाविक है| माँ के दूध से अधिक शुद्धता, किसी आहार में नहीं होती| अतः सभी मनुष्यों का शारीरिक परीक्षण किया जाए तो, एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिलेगा जिसे, किसी तरह की बीमारी न हो किंतु, अंतर केवल सोच का है| किसी खिलाड़ी के लिए निश्चित ही, स्वस्थ शरीर आवश्यक होगा किंतु, श्रेष्ठ कार्यों के लिए, मन की स्थिरता अतिआवश्यक है जो, शरीर के बीमार होने के बनिस्बत भी प्राप्त की जा सकती है|

बीमारी से कैसे बचे?

बीमारी से कैसे बचेः How to avoid disease?
Image by Monoar Rahman Rony from Pixabay

शारीरिक बीमारियों के उपचार के लिए, चिकित्सा की आवश्यकता होती है किंतु, सामान्य व्यक्तियों को स्वस्थ रहने के लिए, पौष्टिक आहार, शुद्ध वायु और थोड़ा व्यायाम पर्याप्त है| रोग होने पर, किसी भी मनुष्य का मनोबल टूट सकता है| कई रोग अत्यंत पीड़ादायक भी होते हैं जिनका कष्ट क्षमता के बाहर हो सकता है| ऐसी स्थिति में भला, अपना मानसिक संतुलन ठीक कैसे रखा जा सकता है लेकिन, बीमारी से ग्रसित व्यक्ति, सारा दिन यदि अपने रोग के बारे में ही सोचता रहेगा तो, वह कैसे जी सकेगा? मानसिक चिंताएँ, रोग में वृद्धि करने का कारण बन सकतीं हैं| अतः शरीर को चिकित्सक की चिंता बनने दें, अपनी नहीं| आप अधिक से अधिक, अपनी दवाओं का नियमानुसार सेवन कर सकते हैं, इसके अतिरिक्त सब पर्यावरण पर निर्भर करता है|

मुझे जानलेवा बीमारी क्यों है?

मुझे जानलेवा बीमारी क्यों हैः Why do I have a life-threatening illness?
Image by Jan Bergman from Pixabay

चिंता मत कीजिए, यह कोई पिछले जन्मों वाली काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि, जानलेवा बीमारियों के कई कारण हो सकते हैं जो, वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति में बताए गए हैं हालाँकि, जानलेवा बीमारी इतनी भी बुरी नहीं क्योंकि, मरना तो सभी को है| फिर कोई जल्दी जाए या बाद में, महत्व नहीं रखता| महत्व तो केवल सार्थक कर्म का है और कर्मों में सार्थकता लाने के लिए, स्वस्थ शरीर की आवश्यकता नहीं होती बल्कि, देह भाव मुक्त मन आवश्यक होता है| आज तक जितने भी महान लोग हुए, वह अपनी न्यूनतम आयु में ही, शरीर त्यागकर चले गए| फिर चाहे वह स्वामी विवेकानंद हो या गौतम बुद्ध, इससे यह बात स्पष्ट होती है कि, लंबा जीवन आनंद का आधार नहीं बल्कि, सच्चा जीवन ही मनुष्य को बीमार होने के बनिस्बत भी, आनंददायक पल प्रदान कर सकता है| स्वस्थ मनुष्य के लिए आवश्यक है कि, वह भी अपने शरीर भाव में न रहें अर्थात शारीरिक कामनाओं के अनुसार न चले अन्यथा शांति प्राप्त नहीं की जा सकती है तो फिर, जानलेवा बीमारी होने वाले मनुष्य के लिए, मृत्यु का भय होना अतार्किक है| हालाँकि, लोग अपनी मृत्यु में स्वयं के लिए दुखी नहीं होते बल्कि, अपने से जुड़े लोगों की चिंता करके दुखी होते हैं इसलिए, कहा जाता है कि, मरने से पहले सभी बंधनों से मुक्त हो जाना चाहिए अन्यथा मृत्यु की शय्या दुखदायी होगी| बंधनमुक्त मनुष्य के लिए मृत्यु उपहार होती है| जैसे, अपने देश की रक्षा के लिए बलिदान देने वाले सैनिक, मृत्यु को अपना पुरस्कार समझते हैं लेकिन, एक सामान्य व्यक्ति ऐसी सोच नहीं रख पाता| उसका कारण, मन का केंद्र है अर्थात सैनिकों के लिए, उनका देश प्राथमिक महत्व रखता है लेकिन, एक मनुष्य के जीवन में अनंत विषय वस्तु हो सकते हैं जो, उसके दुख का सबसे बड़ा कारण होते है लेकिन, वह इन्हें ही अपने दुख कम करने का माध्यम समझता है जो, किसी भी मनुष्य की विकट परिस्थिति है| लेख के निष्कर्ष में इसका स्पष्टीकरण उपलब्ध है|

बीमारी में अपना मनोबल कैसे बढ़ाएं?

बीमारी में अपना मनोबल कैसे बढ़ाएं: How to boost your morale during illness?
Image by Elias from Pixabay

कोई भी घातक बीमारी, केवल धन की हानि नहीं करती, मन को भी क्षति पहुँचाती है किंतु, मनोबल बढ़ाना तो, स्वस्थ मनुष्य के वश की बात भी नहीं, तो भला बीमार व्यक्ति कैसे, प्रोत्साहित रह सकता है? आपने देखा होगा, मनुष्य की चाहे कोई भी शारीरिक स्थिति हो, वह अपनी कमी का बहाना ढूंढ ही लेता है किंतु, कुछ उदाहरण ऐसे भी उपलब्ध है जहाँ, व्हील चेयर पर बैठे व्यक्तियों ने भी, बड़े बड़े कारनामे कर दिखाए| भिन्नता केवल व्यक्तिगत दृष्टिकोण की है| आप विपरीत परिस्थितियों को कैसे लेते हैं? निर्धन होना, विकलांग होना या किसी भी प्रकार की शारीरिक समस्या, केवल बाहरी होती है जिसे अपने जीवन का केंद्र नहीं बनाना चाहिए किंतु, मनुष्य का जीवन उसके मन से चलता है| वही घर बचपन में, चिंता मुक्त आनंद से भरा हुआ प्रतीत होता है किंतु, आयु बढ़ते ही विचार बदल जाते हैं| व्यक्ति वही, स्थान वही फिर, निराशा क्यों? वस्तुतः मनुष्य अपनी कल्पनाओं में ही जीता है अर्थात वह अपने सुख और दुख पहले से तय करके रखता है| जैसे, अपनी सोच के अनुसार, नौकरी का चुनाव करना और फिर उसी नौकरी में परेशानी अनुभव करना, आम बात है| किसी भी व्यक्ति को, अपना मनोबल बढ़ाने के लिए, सत्य का चुनाव करना होगा और प्रत्येक व्यक्ति का सत्य, उसके अहंकार के पीछे छुपा होता है| संसारी कहीं न कहीं यह बात जानता है कि, वह वास्तव में क्या करना चाहता था, उसे वही करना चाहिए| लेकिन, ध्यान रहे कि, कर्म, स्वार्थ निहित न हो क्योंकि, अपने स्वार्थ के लिए, बनाये गए बड़े बड़े महल भी, एक दिन खंडहर में बदल जाते हैं इसलिए, सांसारिक विषय वस्तुओं को अर्जित करना या उनकी प्राप्ति की कामना करना, मूर्खतापूर्ण विचार होगा| वस्तुतः श्रेष्ठतम भोग भी, मन को तृप्त नहीं कर सकता| अतः मनुष्यों को समर्पण का भाव रखकर, अपने कर्म का चुनाव करना चाहिए और उसी में अपनी अंतिम श्वास लगा देना ही, जीवन जीने का सर्वोत्तम मार्ग होगा|

मनुष्य को प्रशंसा की अभिलाषा नहीं होना चाहिए क्योंकि, जो लोग सम्मान देते हैं वही, सम्मान छीनने के अधिकारी भी बन जाते हैं| जैसे, कोई व्यक्ति आपको कई सालों से नमस्ते कर रहा है और अचानक, एक दिन वह मुँह फेर लेता है तो, निश्चित ही आप अपमानित अनुभव करेंगे| इसलिए, संसार में किसी के हाथ अपनी डोर न देना ही, बुद्धिमत्ता है| जो भी करना, विवेक से करना और सब के लिए करना, यही परमार्थ मार्ग है जिसे, सभी मनुष्यों को अपनाना चाहिए फिर चाहे, वह बीमार हो या स्वस्थ दोनों के लिए, आनंददायी है|

मृत्यु तक अस्पतालों के चक्कर लगाने से कोई लाभ नहीं और यदि दो गुनी आयु दे दी जाए तो, जैसा इतिहास था वैसा ही, भविष्य भी होगा| यदि किसी व्यक्ति ने आनंददायक जीवन जीया है तो, उसे मृत्यु का भय नहीं होगा लेकिन, भोग के अभिलाषी व्यक्ति को, अपने शरीर से सर्वाधिक मोह होता है| मानव शरीर एक वाहन है जो, केवल मुक्ति तक पहुँचाने का माध्यम है और मुक्ति की तलाश तो सभी करते हैं लेकिन, वह सांसारिक विषयों में आधिपत्य स्थापित करके, स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहते हैं जो, लगभग असंभव है| अपने घर की कामना होना, सामान्य बात है लेकिन, उसे अपना समझना अज्ञानता है| यहाँ, कुछ भी अपना नहीं, सब कुछ पीछे छूट जाएगा| शरीर को भी बाहरी विषय समझना चाहिए जो, कुछ दिनों के लिए साथ है और फिर सांयोगिक कारण से, वह मिट जाएगा तो, चिंता करना व्यर्थ है| अपने शरीर को महत्व देने के बजाए, सार्थक कर्म ही मानव मुक्ति मार्ग है| ज्ञानी मनुष्य दीए की भाँति जलकर, सभी का जीवन प्रकाशित करते हैं| यही मानव जीवन का उद्देश्य है जो, बीमार मनुष्य को भी अपनाना चाहिए|

 

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