मन (mann explained)

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मन (mann explained in hindi):

विज्ञान ने भले ही उन्नति का शिखर छू लिया हो लेकिन, आज भी वह मनुष्य के मन को नहीं पढ़ पाया| कभी आपने सोचा कि, आपका मन किसी एक स्थान पर नहीं टिकता बल्कि, निरंतर विषय वस्तुओं को परिवर्तित करता रहता है| बचपन में खिलौने पसंद आते हैं किंतु, बड़े होते ही उनकी ओर देखने का मन ही नहीं होता| उसी प्रकार कोई व्यक्ति एक समय मनमोहक लगता है लेकिन, परिस्थितियां बदलते ही अनुभव भी परिवर्तित हो जाते हैं| दुनिया का बड़े से बड़ा मनोवैज्ञानिक भी, मनुष्य के मन को नहीं समझ सकता| आज चारों ओर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बोलबाला है किंतु, क्या वास्तव में इस पर विश्वास किया जा सकता है| जिसका आधार ही सांसारिक ज्ञान से तैयार किया गया हो, वह भला शुद्धता का प्रमाण कैसे दे सकता है| कहने का आशय है कि, मनुष्य का दोहरा विकास होता है जहाँ, शरीर के साथ साथ बुद्धि को भी बढ़ना होता है लेकिन, जब आधुनिक ज्ञान का आभाव हो तो, बुद्धि शरीर के अनुपात में कम रह जाती है इसलिए, कई बार वयस्क मनुष्य भी, बच्चों की भांति बर्ताव करता है किंतु, AI की तकनीक मनुष्य के सांसारिक बुद्धि के उच्चतम पैमाने को आधार बनाता है| अतः AI से बनाए हुए रोबोट, किसी भी शारीरिक मनुष्य के अनुसार बर्ताव कर सकते हैं लेकिन, जब बात शारीरिक तल से ऊपर की होगी अर्थात आध्यात्मिक होगी, वहाँ रोबोट के लिए निर्णय ले पाना असंभव होगा| मनुष्य जो भी सोचता है, जो भी करता है, वह उसे समाज के द्वारा सिखाया गया है और समाज केवल पूँजीपतियों के षड्यंत्र से ही चलाया जाता है| वर्तमान में यह कार्य सोशल मीडिया के पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा किया जा रहा है जैसे, कोई उत्पादक कम्पनी अपने उत्पादों को बाज़ार में लाने से पहले, उसका प्रचार करती है| वही प्रचार हमारे मन में स्थान पाकर हमारी विचारधारा में परिवर्तित हो जाता है| अतः हम कह सकते हैं कि, आज तक मनुष्य ने जो भी ज्ञान अर्जित किया है, वह विज्ञान के दृष्टिकोण से भले ही सही है किंतु, मनुष्य के लिए अपूर्णता का स्रोत है| आइए कुछ प्रश्नों के माध्यम से इसे समझने का प्रयत्न करते हैं|

  1. मन क्या है?
  2. मन कैसे काम करता है?
  3. मन की अवस्थाएं कितनी होती है?
  4. मन चंचल क्यों होता है?
  5. मन को एकाग्र कैसे करें?
  6. मन को कैसे खुश रखे?
बुद्धिमान व्यक्ति: intelligent person?
Image by vat loai from Pixabay

मनुष्य का शरीर उसी दिशा में भागता है जहाँ, उसका मन होता है| आपने देखा होगा, एक बच्चे को खेलने के लिए प्रेरित नहीं करना पड़ता लेकिन, पढ़ने के लिए अवश्य दबाव देना होता है| उसी प्रकार वयस्क पुरुषों को स्त्री या मनोरंजन की ओर आकर्षित करने के लिए, बाध्य नहीं करना होता किंतु, व्यवसाय और नौकरी में मन लगाने के लिए भय का होना अनिवार्य है| आज बड़े से बड़ा बुद्धिमान व्यक्ति, अपनी इच्छाओं की पूर्ति होने के पश्चात भी, दुख का अनुभव कर रहा है| आज भी वह कुछ पाने के लिए परेशान है लेकिन, मनुष्य नहीं जानता कि, जो वह भौतिकता में खोज रहा है वह, उसे आध्यात्मिकता से ही प्राप्त हो सकता है किंतु, समस्या तो यहाँ है कि, जितने मनुष्य उतनी विचारधाराएँ| सांसारिक व्यक्ति निजी स्वार्थों के प्रभाव में, अपनी दुनिया की रचना करता है| इसके लिए कुछ व्यक्ति छोटे से गाँव में रहकर भी बड़े सपने देखते हैं लेकिन, अधिकतर लोग बड़े नगर में रह कर भी, संकुचित विचारों का ही अनुसरण करते हैं| किसी भी इंसान को बाहर से देखकर नहीं बताया जा सकता कि, वह कितना शक्तिशाली है किंतु, समाज में लोगों को उनके धन के आधार पर आँका जाता है| जो जितना धनाढ्य, वह उतना बुद्धिमान लेकिन, बुद्धि के ऊपर भी कोई है जिस तक, अहंकार का पहुँच पाना असंभव है| अहंकार मन की वही स्थिति है जहाँ, मनुष्य अपने आपको सत्य मानकर जी रहा है| इस लेख में मन का अद्भुत स्पष्टीकरण किया गया है| आइए विगतवार मानसिक रहस्य को सुलझाने का प्रयत्न करते हैं|

मन क्या है?

मन क्या हैः What is mind?
Image by Gerd Altmann from Pixabay

मनुष्य के शरीर और बुद्धि को दिशा देने वाला तत्व मन का कहलाता है| मन भी शरीर का ही एक अंग है जिसकी उत्पत्ति मस्तिष्क से होती है| मस्तिष्क ही इन्द्रियों की सहायता से सांसारिक सूचनाएँ एकत्रित करके, मन का निर्माण करता है| मन को मिथ्या भी कहा गया है अर्थात मनुष्य का मन झूठ से ग्रसित होता है| न उसके दुख असली है और न ही सुख| उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति का मन कार लेने के लिये उत्साहित होता है किंतु, जैसे ही वह कार उसे मिल जाती है तो, कुछ ही दिनों में उसका उत्साह कम होने लगता है| वस्तुतः मनुष्य अपने सुख दुख की कल्पना संसार के आधार पर करता है| जैसे समाज ने कहा फलानी आयु तक स्त्री पुरुष का विवाह हो जाए तो, अच्छी बात है तो, प्रत्येक व्यक्ति एक निश्चित आयु आते ही, अपना विवाह न होने का दुख अनुभव करने लगेगा क्योंकि, समाज का प्रत्येक व्यक्ति उसी बात को लेकर चर्चा करेगा जो, समाज के अनुरूप नहीं होगी और यही मनुष्य के लिए पीड़ादायक अनुभव देने वाला होता है फलस्वरूप, वह व्यक्ति किसी भी अनुपयोगी विषय वस्तु से जुड़ कर, अपने जीवन के लिए दुखदायी परिस्थितियों का निर्माण कर लेता है| वैसे तो आध्यात्मिक दृष्टि से सांसारिक मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं होता| वह केवल जानकारियों का एक गुच्छा है| जिसके अनुसार वह अभिनय कर रहा है| वर्तमान में रोबोट तकनीक के माध्यम से मनुष्य की जानकारियों को भरकर, शारीरिक अभिनय करवाया जा सकता है| कब रोना होना है, कब हँसना है और कब क्रोधित होना है? सभी तरह के करतब, रोबोट के माध्यम से दिखलाए जा सकते हैं| अतः यह बात पूर्णतः स्पष्ट है कि, मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन असत्य का प्रतीक है जिसे, विज्ञान सदृश चित्रित कर सकता है|

मन कैसे काम करता है?

मन कैसे काम करता हैः How the mind works?
Image by vat loai from Pixabay

मानव मस्तिष्क एक जटिल पहेली है| जिसे समझने के लिए, शारीरिक तल से ऊपर उठना होता है अर्थात स्वयं की सूचनाओं को शून्य करके ही, मन के गुढ़ रहस्य को समझा जा सकता है| मन को तीन स्थितियों में वर्गीकृत किया गया है| सात्विक, राजसिक और तामसिक जिन्हें, सूक्ष्म रूप में सत्त्व-रज-तम कहा जाता है अर्थात किसी भी मनुष्य का मन, केवल इन्हीं तीन गुणों के संयोजन से ही संचालित होता है जहाँ, रज और तम सांसारिक ज्ञान की उपज हैं किंतु, सत्त्व बुद्धि के तल के ऊपर की बात है जिसे, केवल आध्यात्मिक मार्ग से ही प्राप्त किया जा सकता है| सत्त्व की अधिकता रज और तम का दमन कर सकती है| चूँकि, सत्त्व की उत्पत्ति सच्चे ज्ञान से होती है| अतः सत्त्व सबसे बलवान है| मनुष्य की कार्यशैली को देखकर यह बताया जा सकता है कि, उसके अंदर किस गुण की अधिकता है जैसे, निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए भाग दौड़ करने वाले व्यक्ति का मन, रजो गुणी होगा| चाहे वह अरबपति बन चुका हो, वहीं जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के बजाए, उनसे मुँह छुपाता है और नशे या बेहोशी में अपना जीवन व्यतीत कर रहा है| उसे तमोगुणी कहा जाता है| व्यर्थ समय व्यतीत करने वाले को भी इसी श्रेणी में रखा जाएगा लेकिन, एक तीसरे तरह का व्यक्ति भी होता है जो, अपने कार्य सत्य की दिशा में करता है| उसके जीवन का उद्देश्य, भौतिक न होकर पराभौतिक होता है| मनुष्य के किसी भी गुण को स्थाई नहीं समझा जा सकता क्योंकि, माया के प्रभाव में सतोगुणी भी रजोगुणी बन सकता है| कई बार आपने देखा होगा, बचपन में अच्छी पढ़ाई करने वाला बच्चा, बड़े होकर नशे में लिप्त हो जाता है या बचपन में बिगड़ा हुआ बच्चा, बड़े होकर सुधर जाता है| इसे ही गुणों का परिवर्तन कहते हैं|

मन की अवस्था कितनी होती है?

मन की अवस्था कितनी होती हैः What is the state of mind?
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मनुष्य का मन पाँच अवस्थाओं के अनुसार मूल्यांकित किया जा सकता है| जिनके अंतर्गत नीच मनुष्य से लेकर, श्रेष्ठतम योगी पुरुष तक का वर्णन मिलता है| सभी मनुष्य अपने जीवन में सुख की कामना करते करते दुख के माया जाल में बंदी बन जाते हैं| इसका सबसे बड़ा कारण मनुष्य का झूठा ज्ञान है जो, उसे संसार के स्वार्थ से प्राप्त होता है| अतः मन को समझने के लिए, उसकी सभी अवस्थाओं का ज्ञान होना अनिवार्य है| आइए विगतवार इसकी चर्चा करते हैं|

मूढ़ अवस्था:

१. मूढ़ अवस्थाः Stupid state?
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इस अवस्था में रहने वाला मनुष्य, तामसिक प्रवृत्ति का होता है जिसमें, सत्त्व और रज गुण न्यूनतम होते हैं| ऐसा व्यक्ति सांसारिक मोह में लिप्त, आलसी, असहाय, डरपोक, भ्रमित और आराम चाहने वाला होता है| बंधनों से जकड़ा हुआ मनुष्य, जो कई दिशाओं में भागता हुआ प्रतीत हो, उसे मूढ़ अवस्था में ग्रसित मानना चाहिए| यह व्यक्ति अज्ञानी होता है जो काम, क्रोध, मोह, लोभ के प्रभाव में अधर्म का मार्ग चुनता है| ऐसे व्यक्तियों का जीवन निरर्थक होता है| हालाँकि, इनके जीवन में दुखों का कोई स्थान नहीं होता अर्थात ये लोग, दुख अनुभव करना बंद कर चुके होते हैं ताकि, वह अंधकारमयी जीवन में आत्मसम्मान खोकर भी, अपने अहंकार को जीवित रख सकें|

क्षिप्त अवस्था:

२. क्षिप्त अवस्थाः latent state?
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आम सांसारिक मनुष्य, क्षिप्त अवस्था के मन का स्वामी होता है| इस अवस्था में रहने वाला मन, रजो गुण प्रधान होता है जहाँ, सत्त्व और तम गुण लेशमात्र होते हैं अर्थात ऐसा व्यक्ति दुख से ग्रसित, चिंता और शोक से युक्त, सांसारिक कामों में डूबा हुआ तथा बंधनों से प्रभावित, अहंकारी और बदले की भावना रखने वाला, चंचल चित्त का धारक होता है| इस अवस्था में, धर्म अधर्म एक समान प्रतीत होता है| ऐसे व्यक्ति ऐश्वर्य भोग विलास या विपरीत परिस्थितियों में अथवा ज्ञान और धर्म के प्रभाव में वैराग्य भी धारण कर सकते हैं| इन्हें अपने जीवन में सदा ही अपूर्णता का अनुभव होता है| कुछ पाने की जिज्ञासा निरंतर, सांसारिक जागरूकता हेतु बाध्य करती है| इस श्रेणी में व्यापारी, अधिकारी, कर्मचारी, शासक इत्यादि आते हैं|

विक्षिप्त अवस्था:

विक्षिप्त अवस्थाः Deranged state?
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मन की वह स्थिति जहाँ, सत्त्व गुण प्रधान हो और रज तम सूक्ष्म रूप में प्रकट होते हों, उसे विक्षिप्तावस्था कहा जाता है| इस अवस्था वाले व्यक्ति का जीवन, दुख में नहीं बीतता बल्कि सुख, प्रसन्न्ता, क्षमा, श्रद्धा, धैर्य, चैतन्यता, उत्साह, दान और दया से ओतप्रोत रहता है| हालाँकि, यह व्यक्ति कुछ बंधनों से अवश्य घिरा हो सकता है किंतु, फिर भी वह एकाग्रता के साथ, समाधि धारण करने का प्रयास भी करता है| इसे श्रेष्ठ मनुष्यों की संज्ञा दी जाती है जो, अति जिज्ञासु भी होते हैं| मुख्यतः यह धर्म के मार्ग से नहीं भटकते, इनके जीवन में ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य का समावेश होता है| यह निष्काम कर्मयोगी स्वरूप, सत्य के लिए मनोकामना रहित कार्य करने में समर्पित होते हैं|

एकाग्र अवस्थाः

एकाग्र अवस्थाः Concentrated state?
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इस अवस्था में स्थिर मन, सत्त्व गुण प्रधान होता है जहाँ, रज और तम वृत्ति मात्र होते हैं| ऐसा व्यक्ति सुख दुख से परे, तटस्थता को प्राप्त हो जाता है| वह योगियों की भाँति, वैराग्य धारण करके संसार का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करता है| इसका मन विचार शून्य होता है जो, मनुष्य के स्वाभाविक गुण अर्थात शांति में स्थायित्व ग्रहण करता है| एकाग्र अवस्था धारण किया मनुष्य, संसार पर आधारित नहीं होता बल्कि, स्वसत्ता में ही आनंदित होता है|

 

निरुद्ध अवस्थाः

निरुद्ध अवस्थाः Restrained state?
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निरुद्ध अवस्थाः यह मानव मन की सर्वश्रेष्ठ स्थिति है जहाँ, वह गुणों के बाहर निकल जाता है अर्थात निर्गुणी मन को प्राप्त करता है| उसका चित्त सत्त्व गुण की निरोध अवस्था धारण कर, सर्वव्यापी हो जाता है| इसका जीवन बंधनों से मुक्त स्वाभाविक और अस्वाभाविक वृत्तियों से परिपूर्ण होता है| अतः यह आम सांसारिक मनुष्य से लेकर, योगियों तक किसी भी रूप में कर्म करता हुआ प्रतीत हो सकता है| उदाहरण के तौर पर, यह शिक्षक भी हो सकता है और रक्षक भी, भोगी भी हो सकता है और योगी भी, अर्थात जैसी परिस्थितियां होंगी, वैसा इसका अभिनय होगा| ऐसे श्रेष्ठ मनुष्य को, आमजन धूर्त भी समझ सकते हैं| इन्हें पहचानने के लिए, दिव्यदृष्टि का होना अनिवार्य है जिसे, आत्मज्ञान कहा जाता है|

मन चंचल क्यों होता है?

मन चंचल क्यों होता हैः Why does the mind become restless?
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मन की चंचलता, मनुष्य की प्रकृति पर निर्भर करती है अर्थात सांसारिक मनुष्य का मन, अज्ञानतावश विषय वस्तुओं की ओर आकर्षित होता है जहाँ, उसकी कामना तृप्ति की होती है लेकिन, अहंकारी मनुष्य माया के प्रभाव में सत्य नहीं देख पाता| यदि मनुष्य अपने स्वार्थों को आधार बनाकर, शरीर के अनुसार कर्म करेगा तो, वह कभी मन की स्थिरता प्राप्त नहीं कर सकता| मन, प्राप्त जानकारी के प्रभाव में ही, विचार उत्पन्न करता है| जिनका नियंत्रण, इन्द्रियों के हाथ में होता है| उदाहरण के लिए, भूखे होने पर ही स्वादिष्ट व्यंजनों की इच्छा उत्पन्न होगी| वयस्क होने पर ही, विपरीतलिंगी का आकर्षण बढ़ेगा| अतः कोई कहे कि, मुझे उस लड़की या लड़के से प्यार है तो, समझिए यह शारीरिक वेग मात्र है क्योंकि, प्रेम तो ज्ञान से ही प्राप्त होता है इसलिए, सांसारिक व्यक्तियों का प्रेम परिवर्तित होता रहता है| सच्चे प्रेम में शरीर की उपयोगिता नष्ट हो जाती है| अतः मनुष्य की कामना ही उसे चारों ओर भटकने को विवश करती है जो, मोहवश उत्पन्न एक कल्पना मात्र है|

मन को एकाग्र कैसे करें?

मन को एकाग्र कैसे करें: How to concentrate the mind?
Image by Pablo chaves from Pixabay

मन की सभी अवस्थाओं का ज्ञान ही, मन को एकाग्र कर सकता है किंतु, सबसे बड़ी समस्या यह है कि, मन किसी भी सांसारिक विषय वस्तु में स्थायित्व नहीं प्राप्त कर सकता| मानव शरीर भले ही भोग से अर्थात खाना पीना घूमना फिरना और आलिंगन करने से, संतुष्टि प्राप्त कर सकता हो लेकिन, उसका मन सदा ही विचलित रहता है| आपने देखा होगा बड़े से बड़ा ऐशो आराम भी, मनुष्य को निरंतर आनंदित नहीं रख पाता| कोई न कोई चिंता जीवन में बनी ही होती है| यही असत्य के चुनाव का परिणाम है| अतः मनुष्य को अपने जीवन में सत्य उतारना चाहिए ताकि, योगियों की भाँति दृढ़ता प्राप्त की जा सके| जब भी हम लोगों की सलाह या व्यक्तिगत आकर्षण देखकर, अपने जीवन का निर्णय लेते हैं तो, निश्चित ही वहाँ मन नहीं लग सकता| मन एक अनंत विषय की तलाश में हैं जो, केवल आत्मज्ञान से ही खोजा जा सकता है| अतः अपने अतीत से बाहर आकर, स्वयं को ढूंढने का प्रयास करें, देर सवेर ह्रदय में छुपा हुआ सत्य प्रकाशित हो उठेगा|

मन को कैसे खुश रखें?

मन को कैसे खुश रखें: How to keep the mind happy?
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मन को कैसे खुश रखें: साधारण मनुष्यों का मन क्षणिक होता है जो, किसी भी अवस्था में लंबे समय तक स्थायी नहीं रह सकता अर्थात मनुष्य को मिलने वाले सुख दुख, उसकी कल्पना मात्र होते हैं| कोई किसान बारिश होने से दुखी हो सकता है| वहीं दूसरा किसान बारिश न होने से दुखी हो सकता है| बस बात परिस्थितियों की है| अतः मनुष्य को अपने शारीरिक सुख की कामना नहीं करनी चाहिए बल्कि, मन को अनंतता से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए| वही परमानंद की स्थिति है| मनुष्य भले ही शरीर के रूप में जन्म लेता है किंतु, शारीरिक सुख सुविधाएँ उसे तृप्त नहीं कर सकतीं इसलिए, आध्यात्मिक ज्ञान अति आवश्यक होता है जो, वास्तविक आनंद से अवगत कराता है|

मनुष्य का मन, उसके तन की उत्पत्ति है जिसे, संघर्ष की चाहत है लेकिन, जीवन की सही दिशा न होने के कारण, मन आलस से ग्रसित हो जाता है जो, निरंतर दुख वृद्धि करता है| वैसे तो मनुष्य का मूल स्वभाव शांति में स्थापित होने का होता है और इसलिए, वह नई नई दिशाओं में मौन प्राप्ति के लिए, प्रयासरत भी रहता है| पुरुष को लगता है, स्त्री मिल जाए तो, शांति मिलेगी| स्त्री को लगता है, पुरुष मिले तो, कदाचित् जीवन में कुछ अच्छा होगा| वहीं युवाओं को लगता है कि, नौकरी मिल जाए तो, जीवन रूपांतरित हो जाएगा और वृद्ध को लगता है, संतान अच्छी निकल जाए तो, सुख प्राप्त हो जाएगा किंतु, यह तो मनुष्य की कल्पनाएँ है जो, कभी पूरी नहीं होती और अगर पूरी हुई भी तो, उनसे वह सुख प्राप्त नहीं होता जिसकी, कामना की गई थी| वस्तुतः वास्तविक आनंद, आंतरिक खोज का विषय होना चाहिए किन्तु, वह बाहरी जिज्ञासा का वाहक बन चुका है| यह संसार मिथ्या है लेकिन, यह बात बिना आत्मज्ञान के समझ पाना असंभव है| जब तक संसार को सत्य माना गया तो, दुख भी अति वेदना कारक होंगे इसलिए, मानव जीवन का प्रथम लक्ष्य स्वयं तक पहुँचना है| जिसके प्राप्त होते ही, मन अनंत स्थिरता को धारण कर लेता है|

 

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