मैं कौन हूँ? (main kaun hun)

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मैं कौन हूँ? main kaun hun- Know yourself: 

दुनिया में कोई भी इंसान अपनी प्राथमिक पहचान अपने जन्म से जुड़ी यादों से करता है लेकिन, धीरे धीरे उम्र के साथ हर किसी की पहचान बदलती रहती है| कभी वह बेटा था, कभी पति बना और कभी पिता| और यह चक्र निरंतर चलता रहा लेकिन, इस पल पल बदलती दुनिया में हम स्वयं तक नहीं पहुँच पाते और सामाजिक, आर्थिक या अन्य माध्यमों से दी गई पहचान के तले दबकर, अपने क़ीमती जीवन को नष्ट कर देते हैं| दोस्तों आगे आने वाली बातों को गहराई से समझते ही, आप अपने जीवन में पूरी सूझ-बूझ के साथ निर्णय ले सकेंगे| नीचे कुछ सवालों की सूची दी हुई है जैसे,
1. मेरा नाम क्या है?
2. अपने नए रिश्ते की शुरुआत कैसे करूँ?
3. मुझे गुस्सा क्यों आता है?
4. मैं दुखी क्यों होता हूँ?
5. मुझे खुशी कहाँ मिलेगी?
6. मैं बहुत आलसी क्यों हूँ?
7. क्यों किसी काम में मन नहीं लगता है?
8. मुझे सफलता कैसे मिलेगी?
9. मुझे क्या करना चाहिए जिससे मेरा जीवन बदल जाए?

मैं कौन हूँ main kaun hun- Know yourself: 
Image by Nanne Tiggelman from Pixabay

दोस्तो हर किसी का जीवन अलग अलग मान्यताओं पर टिका होता है| मान्यताएं हमें इतिहास से मिलती हैं जो, इन्सानों को बंधक बना लेती हैं और इन्हीं बंधनों से आज़ादी ही, एक श्रेष्ठ जीवन की पहचान हैं| इस तथ्य की गहराई तक पहुँचने के लिए, हम एक एक करके ऊपर दिए गए सभी सवालों के हल को, अपने जीवन से जोड़कर समझने का प्रयास करते हैं।

मेरा नाम क्या है?

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Image by Ivana Tomášková from Pixabay

आपका नाम कई मायनों में विशेष महत्व रखता है| नाम, किसी व्यक्ति की लिंगआत्मक, क्षेत्रआत्मक और धर्मात्मिक पहचान होती है| जिसके माध्यम से, व्यक्ति के लिंग की पहचान, धर्म की पहचान और उसके क्षेत्र की पहचान की जाती है लेकिन, सवाल यह है कि, मेरा नाम क्या है?
क्या, वह नाम वास्तविक है जो, मेरे परिवार के द्वारा दिया गया था या, वह नाम जो बदलते हुए वक़्त के साथ, मैंने अपना लिया? दोस्तों, किसी भी नाम से आपका संबंध, बाहरी होना चाहिए| आंतरिक तौर पर हमारा कोई नाम नहीं हो सकता क्योंकि, पहले हम जन्म लेते हैं और नाम बाद में दिये जाते हैं या, यूँ कहें हम अनाम हैं जिसे, कोई नाम दिया ना जा सके| जैसे ही आप किसी नाम को अपनी पहचान बनाते हैं तो, उस नाम से जुड़ी हुई कमजोरियां भी आपको धारण करनी पड़ती है| उदाहरण के तौर पर, यदि किसी का इतिहास ग़रीबी से जुड़ा है तो, वह अपने आपको ग़रीब समझता रहेगा| वहीं किसी का रिश्ता अतीत के अपराधों से है तो, भविष्य में भी वह उन्ही अपराधों का बोझ ढोता रहेगा जिससे, वह अपनी वास्तविक शक्तियों को कभी समझ नहीं सकेगा और उन्हीं धारणाओं की वजह से, आपका जीवन मानसिक ग़ुलामी में ही बीतता है जिसे, आप स्वयं अपनाते हैं और इसी कारण, आप अपनी ज़िंदगी के उच्चतम आनंद से वंचित रह जाते हैं|
तो क्या, हम बिना नाम के रहे? जी नहीं, नाम सिर्फ़ बाहरी पहचान तक रहने दीजिए और बदलते वक़्त के साथ, अपने आपको कोई ऐसा नाम दीजिए जिसमें, पूरी सृष्टि का समावेश हो क्योंकि, वही नाम आपको, सभी बंधनों से मुक्त करते हुए, बिना भेदभाव के दुनिया को, देखने योग्य आंखें प्रदान कर सकता है और यही गुण, किसी भी इंसान को श्रेष्ठ कार्य के लिए प्रोत्साहित करता है|

अपने नए रिश्ते की शुरुआत कैसे करूँ?

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Image by Gerd Altmann from Pixabay

कुछ रिश्ते जन्म के साथ ही मिल जाते हैं और कुछ रिश्ते हमारी परिस्थितियों के संयोग से बनते हैं लेकिन, कोई भी रिश्ता ऐसा नहीं होता जिसे, पूरी बुद्धिमत्ता से चुना गया हो| बचपन में अच्छे खिलौने देखकर, हम दोस्त बना लेते हैं और जवानी में, विपरीत लिंग की ओर आकर्षण ही, हमारे मुख्य रिश्ते का आधार हो जाता है लेकिन, जैसे ही बुढ़ापा आता है हमें, अपने सारे रिश्ते खोखले नज़र आने लगते हैं| दोस्तों जब भी रिश्ते, भविष्य की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं, वह हमेशा दुख देते हैं| अगर रिश्तों में कुछ पाने की इच्छा का समावेश हो जाता है, तभी आपके दुखों की शुरूआत हो जाती है| इस पृथ्वी में ऐसा कोई नहीं जिससे, रिश्ता चल सकें| कभी आप बदल जाएंगे और कभी आपके हालात| जिससे आपको मनचाहा प्रेम, प्राप्त नहीं होगा| यदि रिश्ता बनाना ही है तो, अपने आप से बनाना सीखो क्योंकि, आपने स्वयं से रिश्ता तोड़ दिया है और अब भौतिक दुनिया की कठपुतली बनकर नाच रहे हैं और उसी नृत्य को, अपना जीवन समझ रहे हैं जिससे, आप क्षणिक सुखों की नाव के सहारे, दुखों के सागर में गोते लगा रहे हैं|

मुझे गुस्सा क्यों आता है?

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मोह के बाद उत्पन्न हुआ तत्व, क्रोध कहलाता है| जब भी हम से जुड़ी हुई विषय वस्तु दूर होती है तो, गुस्सा आता है| उदाहरण के तौर पर, किसी बच्चे का मनचाहा खिलौना टूट जाना या, युवाओं का प्रेम प्रसंग टूटना और ऐसे न जाने अनगिनत परिस्थितियों के अनुसार, ग़ुस्से का जन्म हो सकता है| इस संसार की किसी भी विषय वस्तु से, विशेष लगाव ही ग़ुस्से का आधार है इसलिए, मोह का त्याग करके, बुद्धि और विवेक के साथ, भावनाओं को क़ाबू में रखते हुए, आगे बढ़ना चाहिए तभी, आप अपने ग़ुस्से से पूर्णता मुक्त हो सकते हैं|

मैं दुखी क्यों होता हूँ?

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क्रोध के बाद उत्पन्न हुआ विकार, दुख कहलाता है| जैसे कि ऊपर दिए हुए, ग़ुस्से से जुड़े सवाल के निष्कर्ष से, यह बात पता चलती है कि, मोह का सीधा संबंध, दुख से भले न हो लेकिन दुख, क्रोध के बाद आने वाली, अगली सीढ़ी ज़रूर है| दुखी होने की कई वजह हो सकती है लेकिन, जब भी दुख व्यक्तिगत होगा, वह अंधे मोह से ही उत्पन्न होता है| दुख का अपना एक व्यक्तिगत स्तर होता है जैसे, छोटा बच्चा केवल अपने से जुड़े हुए, दुख को महसूस कर सकता है और वही उसके माता पिता, अपने बच्चे के दुखों को भी समझ सकते हैं| एक कम्पनी का मालिक, अपने कंपनी से जुड़े हुए दुखों को समझने में सक्षम हो सकता है लेकिन, एक मुक्त पुरूष के दुखी होने का दायरा, व्यक्तिगत ना होकर, सम्पूर्ण जगत तक फैला हो सकता है लेकिन, सामान्य व्यक्ति अपने स्वार्थी जीवन से जुड़ी हुई बातों से ही दुखी होता है और इसी वजह से, दुख क्षणिक रह जाता है और हम दुखों की गहराई को, नहीं समझ पाते और फिर से भूल कर बैठते हैं जिससे, व्यक्तियों का जीवन लगातार, दुखों के भवर में फ़सा रहता है| दरअसल, संसार में मौजूद विषय वस्तु को प्राप्त करने की लालसा या प्राप्त हो चुकी वस्तु को सुरक्षित, बनाए रखने का भय ही दुखद होता है जिसके, परिणामस्वरूप व्यक्तियों के अंदर, असुरक्षा का भाव उत्पन्न हो जाता है जो, दुख की सबसे बड़ी वजह है|

मुझे खुशी कहाँ मिलेगी?

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हर व्यक्ति अपने अतीत के आधार पर खुशी की वजह का चयन करता है| उदाहरण के तौर पर यदि कोई अतीत में ग़रीब है तो, कुछ पैसे कमा लेना ही, उसके लिए ख़ुशी का कारण बन सकता है लेकिन, धनी व्यक्ति के लिए, उतने ही पैसे दुख का कारण बन सकते हैं| किसी बुद्धिमान विद्यार्थी के लिए 60% अंक निराशाजनक हो सकते हैं लेकिन, वहीं एक सामान्य विद्यार्थी के लिए, यह आंकड़ा सुख का कारण बन सकता है| इसका आशय यह है कि, सुख हमारे मन की कल्पना मात्र है जिसे, हम अपने मान्यताओं के अंतर्गत, मनचाहे तरीक़े से तैयार करते हैं| जैसे एक छोटा बच्चा, किसी खिलौने के मिलने से ख़ुश हो जाता है लेकिन, कुछ ही समय बाद बच्चे का आकर्षण खिलौने से हट जाता है और उसकी ख़ुशी के मायने बदल जाते हैं और यह चक्र पूरी ज़िंदगी निरंतर चलता रहता है| तो सवाल यह है कि, फिर हम कहाँ खुशी ढूंढ सकते हैं? दरअसल इस संसार में कोई भी ऐसी भौतिकवादी विषय वस्तु नहीं है जो, आपको निरंतर आनंदित रख सकें क्योंकि, संसार में मौजूद भौतिक तत्व निरंतर परिवर्तित होते रहते हैं| जब आप किसी व्यक्ति या वस्तु से रिश्ता बनाते हो तो, रिश्ता बनते ही दोनों बदल जाते हैं जिससे, दोनों की ख़ुशी के मायने भी बदल जाते हैं| जैसे यदि काले रंग को, सफ़ेद रंग से प्रेम हो जाए तो, दोनों के मिलन होते ही, न ही काला रह जाएगा और न ही सफ़ेद| इसी तरह से, हमारी ज़िंदगी होती है| किसी से रिश्ता बनते ही, हमारा पुराना जीवन परिवर्तित हो जाता है लेकिन, यदि हम उस बदले हुए रूप को पहचानते हुए, आगे बढ़ते रहें तो, हमारा जीवन आनंदित हो सकता है|

मैं बहूत आलसी क्यों हूँ?

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आलस हमारी आदत नहीं बल्कि, हमारी प्रकृति है| आपने अक्सर महसूस किया होगा कि, जब आपको मनचाहे परिणाम प्राप्त होते हैं तो, आलस दूर दूर तक नहीं भटकता लेकिन, वहीं दूसरी ओर मज़बूरी और ज़िम्मेदारी के बोझ तले दबा हुआ काम, आलस की ओर मोड़ देता है| उदाहरण के तौर पर, यदि किसी व्यक्ति को लॉटरी लग जाए और उसे बैंक में कई घंटों के इंतज़ार के बाद भी पैसे मिलें तो, उसे आलस महसूस नहीं होगा लेकिन, वहीं लिए गए ऋण की किस्त जमा करने का काम होगा तो, मन आलस से घिर जाएगा| एक विद्यार्थी पढ़ाई करते वक़्त, आलस महसूस करता है क्योंकि, उसे पढ़ाई के दौरान वर्तमान का आनंद प्राप्त नहीं होता बल्कि, भविष्य में कुछ बनने के सपने दिखाए जाते हैं और वह भविष्य की आस में, अपने वर्तमान के आनंद से वंचित रह जाता है जिससे, वह अपने जीवन की पूरी संभावना तक, कभी नहीं पहुँचता इसलिए, ज़्यादातर विद्यार्थी शिक्षा को बोझ समझने लगते हैं| लेकिन बुद्धिमान विद्यार्थी शिक्षा में ही आनंद प्राप्त करते हैं क्योंकि, उन्हें उनकी पढ़ाई के अनुसार, मनचाहे परिणाम प्राप्त होते रहते हैं जिससे, उनका मनोबल निरंतर बढ़ता रहता है| आलस मिटाने के लिए, अपने जीवन के महत्व को समझना होगा और जैसा कि इस पूरे लेख का उद्देश्य ही, स्वयं की पहचान करना है| तभी आलस जैसे विकार, हमें अपना शिकार नहीं बना सकेंगे|

क्यों किसी काम में मन नहीं लगता है?

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दोस्तों हमारा मन चंचल होता है और यह हमेशा बदलता रहता है लेकिन, वहीं कुछ लोग जीवन भर किसी एक लक्ष्य की ओर केंद्रित रहते हैं और अपार सफलता हासिल करते हैं तो, ऐसा क्या होता है जहाँ, कुछ भटकते हुए मन के साथ ज़िंदगी जीने पर मजबूर होते है और बहूत कम लोग ही कामयाबी की राह पर चलते हुए, जीवन का आनंद ले पाते हैं| दरअसल, मनुष्य के जीवन का हर कार्य, उसके दिल के केंद्र से होता है| उदाहरण के तौर पर, युवाओं को प्रेम होने पर अपने प्रेमी से बात करते हुए, पूरा दिन भी लग जाए तो, फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन, यदि पढ़ने को कह दिया जाए तो, कुछ ही समय में घूमने का मन होने लगता है दरअसल, जब कोई विषयवस्तु मजबूरी बनेगी तो, निश्चित ही उसमें मन नहीं लग सकता लेकिन, यदि वह ज़रूरी बन जाए तो, उससे मन हटा पाना मुश्किल हो जाएगा और दूसरी तरफ़ दबाव देकर, मन लगाने का प्रयास किया गया तो, इसके विपरीत परिणाम भी हो सकते हैं इसलिए, विद्यार्थियों को चाहिए कि, सर्वप्रथम अपनी शिक्षा के महत्व को समझें| तत्पश्चात, पढ़ाई प्रारंभ करें| अन्यथा, पढ़ाई सिर्फ़ एक बोझ बन कर रह जाएगी| वहीं युवा, किसी भी रोज़गार का चयन करने से पहले, उस कार्य के महत्व को समझें, अन्यथा नौकरी भी गीले कपड़ों की गठरी की तरह लगेगी और कुछ ही वर्षों में, वर्तमान काम से मन उठ जाएगा| परिणामस्वरूप, बदलाव के विचार उत्पन्न होने लगेंगे और आप अपने जीवन के उच्चतम लक्ष्य को खो देंगे| जिस तरह एक गोलाकार आकृति बनाने के लिए, केंद्र में विंदू रखना पड़ता है, उसी प्रकार जीवन की सही रचना करने के लिए, किसी एक कार्य को दिल में स्थायी करते हुए ही, आगे बढ़ा जा सकता है| यदि आप निरंतर अपने दिल के केंद्र विंदू को बदलते रहेंगे है तो, आपका जीवन आनंद से वंचित रह जाएगा|

मुझे सफलता कैसे मिलेगी?

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Image by Gerd Altmann from Pixabay

सफलता का कोई निश्चित समय नहीं होता अर्थात, जिसे आप सफलता समझते हैं, उसके नज़दीक पहुँचते ही, उसके मायने बदल चुके होते हैं| इस प्रश्न की जगह यह पूछना सही है कि, “मैं अपने काम में आनंद कैसे महसूस करूँगा, जो हर पल सफलता का एहसास दिलाता रहेगा?” यदि सही काम का चुनाव कर लिया जाए तो, सफलता हर क्षण में छुपी होती है| यदि इस संसार की विषय वस्तु को प्राप्त करना ही, आपकी नज़रों में सफल होना है तो, आप ग़लत दिशा में बढ़ रहे हैं और इसी कारण आप, हमेशा सफलता के लिए, तरसते रहेंगे क्योंकि, इस ब्रम्हाण्ड में ऐसी कोई भी विषय वस्तु मौजूद ही नहीं है जो, लगातार आप को सफल बनाए रखने में भूमिका निभा सके| हाँ लेकिन कुछ और है जो, आपको सफलता से भी श्रेष्ठ, विंदू की ओर केंद्रित करेगा| इस विंदू की पहचान के लिए चलते हैं, अपने आख़िरी पड़ाव की ओर|

मुझे क्या करना चाहिए जिससे, मेरा जीवन बदल जाए: यह एक ऐसा सवाल है जो, हर किसी के जीवन में पहेली की तरह है| ज़्यादातर लोगों को, मृत्यु तक पहुँचते हुए भी, इसका जवाब नहीं मिल पाता| हम में से अधिकतर लोग, अपनी पूरी ज़िंदगी जीने के बाद भी, अपने वक़्त की बर्बादी के लिए पछताते रहते हैं| दरअसल, हमारे आस पास एक ऐसा माहौल बनाया गया है जिसमें, भौतिक वस्तुओं को प्राप्त करना ही सफल माना जाता है जहां, गाड़ी, बांग्ला जैसी मटेरियल चीजों को पाना ही, सफलता का पैमाना है जिसके, अंतर्गत आपकी सोच संकुचित हो जाती है और आप अपने घर परिवार या, अधिक से अधिक अपने रिश्तेदारों के बारे में ही सोच पाते हैं और यही आपकी कमज़ोरी है क्योंकि, जितना संकुचित आपका नज़रिया होगा, उतना ही संकुचन आपके जीवन में होगा| आपको ये समझना होगा कि, आप सामाजिक जीव नहीं बल्कि, एक चेतना है जिसमें, पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है| इस प्रकृति का एक एक कण, आप में विद्यमान् है जिसे, तृप्ति की तलाश है और मजबूरी बस, भ्रमित होकर उस परमानंद के लिए, सामान्य व्यक्तियों के बीच भटक रहे हैं|

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Image by Gerd Altmann from Pixabay

दोस्तों यह अटल सत्य है कि, इस पृथ्वी पर हम सभी मेहमान है और सिर्फ़, कुछ ही वक़्त के लिए, हमें मानवरूपी शरीर प्राप्त हुआ है जिसका उद्देश्य, केवल भोग बिलास में डूबना नहीं बल्कि, शरीर का इस्तेमाल एक सार्थक उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए, गाड़ी की तरह किया जाना चाहिए लेकिन, हम अपनी गाड़ी की मरम्मत में ही, पूरा जीवन गुज़ार देते हैं और एक दिन वह गाड़ी भी,अस्पताल की चारपाई में दम तोड़ देती है| अब सवाल आता है, क्या है सार्थक उद्देश्य?
दोस्तों इसका उत्तर आप स्वयं खोज सकते हैं| बस इसके लिए, आपको स्वार्थ भरी सोच से ऊपर उठना होगा| तभी अपनी विशालता को पहचानने वाली आंखें प्राप्त होंगी क्योंकि, अपनी रणभूमि के आप स्वयं ही योद्धा है और युद्ध भी, आपको ही लड़ना होगा| बस ध्यान रहे कि, कोई भी ऐसा कार्य जो, आपके अहंकार को बढ़ाता जाए, उसे जल्दी से जल्दी विदाई देने में ही, आपका आनंद छुपा हुआ है| मुझे पूरी आशा है, देर सवेर आपको एक ऐसा काम ज़रूर मिलेगा जिसमें, आपका निजी स्वार्थ न छुपा हो और न ही, उसमें भविष्य में लाभ प्राप्त करने की आशा का समावेश हो बल्कि, वर्तमान में ही उसमें आनंद की अनुभूति हो रही हो, एक ऐसा काम जिसे करना, आपकी मजबूरी नहीं बल्कि, ज़रूरी हो और निश्चित ही इसके बाद, आपका जीवन अकल्पनीय ढंग से बदल जाएगा|

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